पत्थर की नक्काशी का समय के साथ विकास

द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
08-03-2018 01:22 PM
पत्थर की नक्काशी का समय के साथ विकास

मानव के प्राकृतिक मित्रों में से धरती और लकड़ी के बाद पत्थर ही आता है। पत्थर मानव के विकास और उपकरण प्रयोग में बढ़ती कुशलता का भी एक प्रतीक हैं। इस काल को मानव की एक बड़ी उपलब्धि पाने के काल के रूप में माना जाता है तथा ऐतिहासिक रूप से इस काल का नाम भी पत्थर के ऊपर ही पड़ा – पाषाण काल।

पत्थर न केवल एक खुदाई का औज़ार था बल्कि मानव ने उसका प्रयोग छुरी, शिकार के लिए भाले की नोक और एक हथियार के रूप में भी किया तथा बाद में पूजा-अर्चना और साज-सज्जा के कार्यों के लिए भी प्रयोग किया। खुदाई में मिले नक्काशीदार पत्थरों को 3,000 वर्ष पुराना माना गया है। यह बात बहुत रोमांचक है कि समय के साथ आयी नयी घरेलू सामग्री को अपनाने के बावजूद भी मनुष्य के जीवन में पत्थर आज भी एक अहम हिस्सा है।

खुदाई में निकले पत्थरों से पता चलता है कि इनका इस्तेमाल कई रूप में किया गया। शुरुआती दौर में पत्थरों का इस्तेमाल तराजू में वज़न की तुलना के लिए किया गया। फिर आये कोल्हू, चक्की, ओखली आदि जिस समय भोजन बनाने की प्रक्रिया और विकसित हो चुकी थी। मिट्टी के मुकाबले पत्थर को हिन्दुओं द्वारा ज़्यादा शुद्ध माना गया और इसलिए पत्थर को रसोई एवं भोजन कक्ष में भी स्थान मिला।

भारत कई भिन्न प्रकार के पत्थरों से समृद्ध है। पत्थर की मूर्तियों को पूजनीय माने जाने के कारण मानव के मस्तिक्ष पर भी इसका काफी प्रभाव पड़ा। पत्थर से जुड़ी एक आकर्षक कथा यह भी है कि एक समय तक पत्थर एवं पर्वतों को पंछियों की भाँती पर लगे थे अतः वे जहाँ चाहे उड़ सकते थे परन्तु इस बात से धरती माँ ने परेशान होकर इंद्र से अपने बचाव का आग्रह किया इसलिए इंद्र ने उनके पर काट दिए और तबसे वे एक स्थान पर ही रहे।

पत्थर का काम करना एक ऐसी कला है जहाँ कारीगर को बहुत कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती हैं क्योंकि यह प्रक्रिया उत्खनन की प्रक्रिया से शुरू होती है और तकनीकी विकास के साथ भी उसमें ज़्यादा बदलाव नहीं आ पाए हैं। साथ ही नक्काशी के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले औज़ार भी काफी महंगे होते हैं इसलिए सब कारीगर कुछ छोटे औज़ार खरीदते हैं और आपस में मिल बाँट के प्रयोग करते हैं। परिश्रम इसलिए और बढ़ जाता है क्योंकि पत्थर निकालने के लिए कारीगर को धरती की गहराई तक जाना पड़ता है क्योंकि सतह का पत्थर नक्काशी के लिए काफी नाज़ुक होता है। पत्थर को निकालने के लिए कम से कम 2 से 5 व्यक्ति लगते हैं।

भारत में पत्थर के स्मारक काफी सामान्य रूप से पाए जाते हैं। ये इमारतें अपनी सुन्दर वास्तुकला और मूर्तिकला के साथ बनी भव्य संरचनाएं हैं। ज़ाहिर है कि पत्थर की नक्काशी आज काफी घट गयी है क्योंकि आज आलीशान महलों या मंदिरों का निर्माण बहुत ही कम देखने को मिलता है। परन्तु यह कला आज भी जीवित है और आवश्यकता के समय पत्थर के नक्काशों को नियुक्त करने पर अत्यधिक सुन्दर एवं संतुष्ट करने वाला काम प्राप्त होता है। परन्तु व्यवसाय के रूप में पत्थर की नक्काशी आज कम ही की जाती है।

1. हैंडीक्राफ्ट्स ऑफ़ इंडिया, कमलादेवी चट्टोपाध्याय

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