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मृद्भांड के मूल को स्पष्ट करते हुए एक काफी रंगीन उपाख्यान है जो बताता है कि जब देवताओं ने अमृत बनाने के लिए समुद्र को मथा, तब उन्हें उस अमृत को इकठ्ठा करके रखने के लिए एक बर्तन की आवश्यकता पड़ी। इसलिए शिल्पकार रुपी भगवान विश्वकर्मा ने मिट्टी के एक घड़े का निर्माण किया। उस समय से लेकर आज तक पानी से भरा मिट्टी का घड़ा एक अच्छे शगुन का प्रतीक है तथा उसके बिना कोई भी धार्मिक क्रिया सम्पूर्ण नहीं होती। यदि पूजा अर्चना के समय ईश्वर की कोई मूर्ती उपलब्ध ना हो, तब भी यह पानी से भरा घड़ा इस कर्तव्य को पूरा करता है और इसीलिए इसे ‘मंगलघट’ भी कहा जाता है जिसका सरल अनुवाद हुआ अच्छा शगुन।
कई प्रकार की मिट्टी से बनी वस्तुएं धार्मिक क्रियाओं में प्रयोग होती हैं जैसे दीये, फूलदान, संगीत वाद्ययंत्र आदि। एक सामान्य मृद्भांड बिलकुल साधारण होता है। अतः भारत में बिना किसी दिखावे के मृद्भांड की दिव्यता को बरक़रार रखने में विश्वास रखा जाता है। मृद्भांड की दिव्यता को दर्शाता हुआ एक और उपाख्यान है जो इसका इश्वर के साथ सम्बन्ध स्पष्ट करता है। कहते हैं कि जब भगवान शिव माँ पारवती से विवाह के लिए तैयार हो रहे थे तब उन्होंने देखा कि उनके पास संस्कार-सम्बन्धी पानी का घड़ा नहीं था। यह देख वे निराश हो गए। इस कारण उन्होंने एक मनके से एक मनुष्य का सृजन किया और उससे घड़ा बनाने के लिए कहा। वह मनुष्य कुछ मांग पूरी होने पर घड़े का निर्माण करने को तैयार हो गया। उसकी मांगें थी – शिव के बैठने वाला गोलाकार पत्थर जिसे वह अपने पहिये की तरह इस्तेमाल करे, उनकी ओखली जिससे वह पहिये को घुमाता रहे, उनका सिलबट्टा जिसमें वह पानी रखे, और शिव की माला से एक धागा जिसकी मदद से वह घड़े को पहिये से अलग करे।
इन सभी चीज़ों की मदद से वह मनुष्य कुम्भ का निर्माण करता है जिस वजह से मृद्भांड के निर्माता को कुम्हार का नाम मिला। इस कारण कई कुम्हार परंपरागत रूप से अपने विधाता के सम्मान में हर सवेरे एक दीया जलाते हैं।
1. हैंडीक्राफ्ट्स ऑफ़ इंडिया, कमलादेवी चट्टोपाध्याय
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