भारत में वैदिक युग से किया जा रहा है, सिक्कों का निर्माण

धर्म का उदयः 600 ईसापूर्व से 300 ईस्वी तक
02-02-2024 09:23 AM
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भारत में वैदिक युग से किया जा रहा है, सिक्कों का निर्माण

आपने लोगों को अक्सर यह कहते हुए सुना होगा कि "इस इलाके में मेरा सिक्का चलता है।" लेकिन क्या आपने सुना है कि "भारत को दुनिया में सबसे पहले सिक्के जारी करने वाले देशों में से एक माना जाता है। आज हम भारत में सिक्कों की उत्पत्ति और इतिहास के संदर्भ में बहुत कुछ जानने वाले हैं। साथ ही यह भी समझेंगे कि सिक्कों के विभिन्न रूपों ने अलग-अलग तरीकों से हमारी वस्तु विनिमय प्रणाली को कैसे प्रभावित किया? मानव इतिहास में सिक्के का महत्व केवल "मुद्रा" तक ही सीमित नहीं रहा है, बल्कि हमारी परंपरा और संस्कृति से भी इनका गहरा संबंध रहा है। सिक्कों के प्रचलन की परंपरा हजारों वर्ष पुरानी मानी जाती है, और अब भी कायम है।
भारतीय इतिहास में जितने भी शासक या नवाब, अथवा राजा-महाराजा रहे हैं, उनके धर्म, प्रशासन और धन का प्रभाव उनकी मुद्रा के माध्यम से ही परिलक्षित होता है। क्या आप जानते हैं कि सिक्के की अवधारणा एकदम से ही शुरू नहीं हुई। इतिहास में, मनुष्य पूरी तरह से प्रकृति और उसके संसाधनों पर निर्भर था, इसलिए किसी भी प्रकार के विनिमय या भुगतान की कोई आवश्यकता ही नहीं थी। हालांकि समय के साथ-साथ मानव जीवन के स्वरूप में भी परिवर्तन आने लगा। नवपाषाण काल की शुरुआत में मानव बस्तियाँ अस्तित्व में आई। इस परिवर्तन के साथ ही पौंधों और जानवरों को पालतू बनाने के साथ-साथ जटिल समाजों का निर्माण हुआ और आबादी भी बढ़ने लगी। इससे परिवर्तन की एक लहर पैदा हुई और वस्तु विनिमय (Barter System) या आसान शब्दों में कहें तो वस्तु या सेवा के बदले वस्तु की ही लेनदेन प्रणाली का उदय हुआ। शुरुआत में लेन-देन केवल वस्तुओं के बदले वस्तुओं (या शायद अन्य सेवाओं) के माध्यम से किया जाता था। हालांकि यह प्रणाली प्राकृतिक रूप से कठिन साबित होती थी, क्योंकि कई बार वस्तुओं का मूल्य सेवा या उसके बदले में दी जाने वाली वस्तु से मेल नहीं खाती थी। कहा जाता है कि वैदिक काल के दौरान किसी व्यक्ति की संपत्ति को एक निश्चित वस्तु जैसे गाय, पशु की खाल, कृषि उत्पाद जैसे बीज और पौधे, तथा खनिज उत्पाद इत्यादि से मापा जाता था। इसे वस्तु विनिमय प्रणाली का 'पुनर्निर्मित' संस्करण कहा जाता है। इस संदर्भ में भारतीय इतिहास का इतिहास हमेशा से ही समृद्ध रहा है। सिंधु घाटी की कांस्य युग की सभ्यता से लेकर मध्ययुगीन राजवंशों और फिर भारत के उपनिवेशीकरण तक, हमारे उपमहाद्वीप ने कई बड़े परिवर्तन और उतार चढ़ाव देखे हैं। अपने पूरे इतिहास में कई धर्मों, संस्कृतियों और साम्राज्यों के साथ, भारत के पास अपने अतीत की कहानियाँ बताने के लिए समृद्ध पुरातात्विक स्रोत प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। भारत में सिक्कों की उत्पत्ति एक विवादास्पद विषय रहा है। वास्तव में भारत में सिक्कों की सटीक शुरुआत का उत्तर देना कठिन साबित होता है। भारत में सिक्कों की प्राचीनता को समझने में हमें जिन मुख्य कमियों का सामना करना पड़ता है, उनमे अस्पष्ट रूप से लिखे गए स्रोत और साथ ही अतीत में उत्खनन के असंगठित या गलत तरीको का प्रयोग किया जाना भी शामिल हैं। कुछ जानकार मानते हैं कि भारत में सिक्कों का प्रचलन विदेशी संस्कृतियों के संपर्क में आने के बाद हुआ, जबकि अन्य विद्वानों का तर्क है कि सिक्कों की उत्पत्ति भारत में ही स्वतंत्र रूप से हुई। भारत में सिक्कों की उत्पत्ति को विदेशों से जोड़ने वाले विद्वानों का मानना है कि भारतीय संस्कृति को ग्रीक, बेबीलोनियन और अचमेनिड (Greek, Babylonian And Achaemenid) जैसे शक्तिशाली साम्राज्यों ने सिक्का प्रणाली से परिचित कराया था। उदाहरण के लिए, एच.एच. विल्सन (H.H. Wilson) नामक एक प्राच्यविद् ने प्रस्तावित किया कि सिकंदर के आक्रमण तक भारत में सिक्कों का प्रचलन नहीं था। इस सिद्धांत के अनुसार ग्रेको-बैक्ट्रियन (Graeco-Bactrian) ने हमारे सिक्के निर्माण को प्रभावित किया होगा। हालाँकि, यह सिद्धांत भी हमेशा से सवालों के घेरे में रहा है, क्योंकि भारत में ग्रीक संपर्क से पहले भी सिक्कों की उपस्थिति होने के निर्णायक सबूत हैं। डॉ. डी.आर. भंडारकर (Dr. D.R. Bhandarkar), एडवर्ड थॉमस (Edward Thomas), अलेक्जेंडर कनिंघम (Alexander Cunningham) , और ई.जे. रैप्सन (E.J. Rapson) जैसे कई विद्वानों ने ऐसे सिद्धांत प्रस्तुत किए हैं जो सिक्कों की उत्पत्ति भारत में होने के सिद्धांत का समर्थन करते हैं। ई.जे. रैपसन का सिद्धांत स्वदेशी मूल सिद्धांतों को समझने का एक आदर्श उदाहरण है। उनका तर्क है कि प्रारंभिक वैदिक काल में धातु का मुद्रा के रूप में आदान-प्रदान शुरू हो गया था, जो शायद भारत में सिक्कों की शुरुआत थी। रैपसन का यह भी मानना है कि विनिमय के माध्यम के रूप में उपयोग करते समय धातु के वजन और उपस्थिति को ध्यान में रखा जाता था। उन्होंने भारत में सिक्कों की उत्पत्ति का पता लगाने के लिए मनु और याज्ञवल्क्य स्मृतियों जैसे प्राचीन अभिलेखों का अध्ययन किया। इस प्रकार साहित्यिक स्रोतों के आधार पर कई शिक्षाविदों का तर्क है कि पहले सिक्के वैदिक काल में मौजूद थे। हालांकि हमारे पास इन तथ्यों की पुष्टि करने के लिए कोई भौतिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। चलिए अब प्राचीन भारत के कुछ दुर्लभ सिक्कों पर एक नजर डालते हैं: पंच-चिह्नित सिक्के: भारतीय उपमहाद्वीप पर दिखाई देने वाले पहले प्रकार के सिक्के पंचमार्क सिक्के (Punch-Mark Coin) हैं। पहला प्रलेखित सिक्का निर्माण 'पंच मार्क्ड' सिक्कों के रूप में शुरू ही हुआ, जिन्हें 7वीं-6ठी शताब्दी ईसा पूर्व और पहली शताब्दी ईस्वी के बीच जारी किया गया था। इन सिक्कों को उनकी निर्माण तकनीक के कारण 'पंच-मार्क्ड' सिक्के कहा जाता है। वे अधिकतर चांदी के बने होते थे और उन पर एक अलग पंच से चिन्ह अंकित होते थे। ऐसा माना जाता है कि पहले पंच मार्क्ड सिक्कों का निर्माण महाजनपदों द्वारा किया गया था। मोहनजोदड़ो: मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की सिंधु घाटी सभ्यता 2500 ईसा पूर्व और 1750 ईसा पूर्व के बीच विकसित हुई थी। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि इन स्थलों पर मिली मुहरें वास्तव में सिक्के थीं या कुछ और। राजवंशीय सिक्के: इन सिक्कों को विभिन्न राजवंशों द्वारा जारी किया गया था। इन सिक्कों की कालावधि बहस का विषय है। इंडो-ग्रीक सिक्के: सबसे पुराने इंडो-ग्रीक सिक्के, दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी ईस्वी तक शक-पहलव और कुषाणों के दौर के माने जाते हैं। चांदी से बने इंडो-ग्रीक सिक्कों पर अक्सर ग्रीक देवी-देवताओं की तस्वीरें होती हैं और इन्हें इंडो-ग्रीक के इतिहास को समझने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। कुषाण सिक्के: सबसे पुराने कुषाण सिक्कों का श्रेय विमा कडफिसेस को दिया जाता है। इनमे ग्रीक, मेसोपोटामिया, पारसी और भारतीय पौराणिक कथाओं के तत्वों का चित्रण किया गया है। इन सोने के सिक्कों ने बाद के सिक्कों के डिजाइनों विशेषकर गुप्तों के सिक्कों को भी प्रभावित किया। सातवाहन सिक्के: गोदावरी और कृष्णा नदियों के बीच के क्षेत्र के शुरुआती शासक सातवाहन ने मुख्य रूप से तांबे और सीसे के सिक्के जारी किए, जिनमें से कुछ सिक्के चांदी के भी थे। सिक्कों में जानवरों और प्राकृतिक रूपांकनों को दर्शाया गया है, और चांदी के सिक्कों में चित्र और द्विभाषी किंवदंतियाँ चित्रित हैं।
पश्चिमी क्षत्रप सिक्के: पहली से चौथी शताब्दी ईस्वी तक पश्चिमी भारत पर शासन करने वाले पश्चिमी क्षत्रपों ने ग्रीक और ब्राह्मी में किंवदंतियों वाले सिक्के जारी किए। उनके सिक्के सबसे पुराने दिनांकित सिक्के माने जाते हैं।
अन्य सिक्के: मौर्यों के पतन और गुप्तों के उत्थान के बीच, विभिन्न आदिवासी गणराज्यों और राजशाही ने भी तांबे के सिक्के जारी किए।
गुप्त सिक्के: चौथी से छठी शताब्दी ईस्वी तक जारी किए गए गुप्त सिक्के, कुषाणों की परंपरा का पालन करते थे, जिसमें एक तरफ राजा और दूसरी तरफ एक देवता की छवि होती थी। ये सिक्के अक्सर महत्वपूर्ण घटनाओं या शाही सदस्यों की उपलब्धियों का स्मरण दिलाते हैं।
गुप्तोत्तर सिक्के: 6वीं से 12वीं शताब्दी ई.पू. के गुप्तकालीन सिक्कों में हर्ष, त्रिपुरी के कलचुरी और प्रारंभिक मध्ययुगीन राजपूतों के राजवंशीय मुद्दे उकेरे गए हैं। ये सिक्के पहले के अंकों की तुलना में सौंदर्य की दृष्टि से कम दिलचस्प माने जाते हैं। 'पंच मार्क्ड' सिक्कों से पहले धातु को कमोडिटी और शेल मनी (Commodity And Shell Money) के स्थान पर विनिमय का एक टिकाऊ और आसान माध्यम माना जाता था। हालाँकि, विनिमय के एक आदर्श माध्यम के रूप में काम करने के लिए, धातु को समान वजन और आकार वाले टुकड़ों में विभाजित करना पड़ता था। धातु के टुकड़ों की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए, व्यापारियों ने उन्हें प्रतीकों के साथ चिह्नित करना शुरू कर दिया। इस प्रथा ने सिक्के की अवधारणा को जन्म दिया, जिसे लोगों ने व्यापक रूप से स्वीकार किया। धीरे-धीरे छिद्रों और प्रतीकों वाले सिक्के जारी किए गए, जिससे लोगों के लिए गुप्त चिह्नों वाले धातु के टुकड़े स्वीकार करना आसान हो गया। सिक्कों का मूल्य उन्हें प्रमाणित करने वाले व्यक्ति की सत्यनिष्ठा और छवि पर निर्भर करता था। भारत में और फलस्वरूप पूरी दुनिया में पहले सिक्के छठी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास ढाले गए थे। वैदिक साहित्य में 'हिरण्य' शब्द का उल्लेख है, जिसका अनुवाद 'सोना' होता है। हालाँकि, वैदिक युग के दौरान, इसका मतलब केवल 'धातु' था और बहुत बाद में इसे सोने से जोड़ा जाने लगा। निश्चित पुरातात्विक साक्ष्य इस बात की ओर इशारा करते हैं कि पहले सिक्के ढालने के लिए सोने के बजाय चांदी का इस्तेमाल किया गया था। भारत में सिक्के सदियों से विकसित होते रहे हैं। आज सिक्का निर्माण इस हद तक विकसित हो गया है कि लोग स्टेनलेस स्टील (Stainless Steel) के सिक्कों और कागज के रूप में सांकेतिक मुद्रा का उपयोग करने लगे हैं।

संदर्भ
http://tinyurl.com/433pb5yb
http://tinyurl.com/muh2s3zv
http://tinyurl.com/5n72d8cf

चित्र संदर्भ
1. ब्रिटिश संग्रहालय में रखे गए 400-300 ईसा पूर्व के दक्षिण एशियाई सिक्कों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. दो भारतीय व्यापारियों को दर्शाता एक चित्रण (Look and Learn)
3. मौर्य काल के सिक्कों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. गुप्त साम्राज्य के चंद्रगुप्त द्वितीय के सिक्कों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. पंच-चिह्नित सिक्कों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. इंडो-ग्रीक सिक्कों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. कुषाण सिक्कों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. सातवाहन सिक्के को दर्शाता एक चित्रण (garystockbridge617)
9. पंच-चिह्नित सिक्कों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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