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2005 | 105 | 2110 |
‘भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद - भारत मधुमेह’ (Indian Council of Medical Research – India Diabetes (ICMR INDIAB) की रिपोर्ट के अनुसार, 11.4% की व्यापकता दर से किए गए जनसंख्या प्रक्षेपण में पाया गया कि भारत में 10 करोड़ से अधिक लोग मधुमेह से पीड़ित हैं, जबकि अन्य 13.6 करोड़ लोग क्षीण ग्लूकोज सहनशीलता अर्थात प्रीडायबिटीज (prediabetes) की श्रेणी में आते हैं। चिंता का विषय यह है कि इस रिपोर्ट में बताया गया भारत में मधुमेह और प्रीडायबिटीज की व्यापकता का अनुमान पहले बताए गए आंकड़ों की तुलना में बहुत अधिक है। इस रिपोर्ट की तुलना में ICMR INDIAB की पिछली रिपोर्ट में भारत में मधुमेह की कुल व्यापकता 7.3% आंकी गई थी।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि मेटाबोलिक सिंड्रोम (Metabolic syndrome) के कारण हृदय रोग और अन्य दीर्घकालिक जटिल बीमारियों से एक बड़ी आबादी को खतरा है, जिसके कारण निकट भविष्य में देश के सामने एक बड़ी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती उत्पन्न हो सकती है। तेजी से बढ़ती हुई मेटाबोलिक सिंड्रोम की इस महामारी को रोकने के लिए तत्काल राज्य-विशिष्ट नीतियों और हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
वहीं हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में मधुमेह की कुल व्यापकता 4.9% दर्ज की गई। आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में राज्य के शहरों में यह आंकड़ा अधिक था। शहरों में 7.5-9.9% की दर से व्यक्ति मधुमेह से पीड़ित पाए गए। इसके साथ ही शहरों में उच्च रक्तचाप और मोटापे की व्यापकता दर ग्रामीण क्षेत्रों की 20-24.9% दर की तुलना में 25% से अधिक थी। जिसका सीधा तात्पर्य यह है कि राज्य में हर चार में से एक व्यक्ति मोटापे एवं उच्च रक्तचाप से पीड़ित है। इसके अलावा 20-24.9% व्यक्तियों में उच्च कोलेस्ट्रॉल तथा 25% व्यक्तियों में उच्च ट्राइग्लिसराइड्स की व्यापकता दर्ज की गई।
संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (Sanjay Gandhi Post Graduate Institute of Medical Sciences) के अंत:स्रावी विभाग द्वारा किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि “मधुमेह शहर के अमीरों की बीमारी है।“इस कथन का तात्पर्य यह निकाला जा सकता है कि तेजी से बढ़ते शहरीकरण और बढ़ते मध्यम वर्ग के साथ, भारत में मधुमेह के प्रसार की संभावना अधिक है। इसी अध्ययन में हमारे शहर लखनऊ के विषय में कहा गया है कि लखनऊ में मधुमेह का प्रसार अनुमान से अधिक हो सकता है। चिंता का कारण यह है कि अन्य सर्वेक्षणों की तुलना में SGPGI के अध्ययन द्वारा दिए गए आँकड़े बहुत अधिक हैं। उदाहरण के लिए, भारत के 'रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना निदेशालय' के कार्यालय द्वारा किए गए वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार लखनऊ में केवल 1% लोग मधुमेह रोगी हैं, जिनका संपूर्ण राज्य से औसत 6.25% है।
हालांकि सर्वेक्षण के लिए 'समृद्ध' मानदंडों को वर्गीकृत करने के लिए, शोधकर्ता द्वारा एक समृद्ध कॉलोनी में व्यवसाय, शिक्षा और निवास के स्व-स्वामित्व को ध्यान में रखते हुए उच्च आय समूह के 30 वर्ष से अधिक उम्र वाले व्यक्तियों के ऊपर यह सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षण में पाया गया कि कुल व्यक्तियों में से 43% व्यक्तियों का वजन सामान्य से अधिक था, जबकि 32% व्यक्ति मोटापे से पीड़ित थे, वहीं 87% व्यक्ति पेट और कमर के मोटापे से पीड़ित थे। इनमें से लगभग 39% लोग उच्च रक्तचाप से, 35% से अधिक लोग ट्राइग्लिसराइड्स से, या खराब कोलेस्ट्रॉल के उच्च स्तर से पीड़ित थे। इस स्थिति के कारणों पर प्रकाश डालते हुए अध्ययन में बताया गया कि 60% से अधिक व्यक्ति निष्क्रिय अर्थात बिना किसी शारीरिक गतिविधि के अपनी दिनचर्या व्यतीत करने वाले और 20% पुरुष धूम्रपान करने वाले थे। अध्ययन में यह भी बताया गया कि मधुमेह के उच्च प्रसार के लिए मोटापा, मेटाबोलिक सिंड्रोम एवं निष्क्रिय जीवन शैली मुख्य रूप से जिम्मेदार है।
मेटाबोलिक सिंड्रोम एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर में एक साथ कई रोगों, जैसे हृदय रोग, हृदयाघात (Heartstroke) और टाइप 2 मधुमेह (Type 2 diabetes) का खतरा बढ़ जाता है। इस स्थिति में रक्तचाप में वृद्धि, उच्च रक्त मधुमेह (high blood sugar), कमर के आसपास चर्बी बढ़ना और असामान्य रूप से कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) या ट्राइग्लिसराइड (triglyceride) स्तर का बढ़ना शामिल है।
मेटाबोलिक सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्तियों के शरीर पर पेट एवं कमर के चारों ओर वजन बहुत अधिक मात्रा में बढ़ जाता है जिससे उनके शरीर का आकार सेब के समान दिखाई देने लगता है, जबकि ऐसा माना जाता है कि पेट एवं कमर पर चर्बी कम होने से मधुमेह, हृदय रोग और मेटाबोलिक सिंड्रोम जैसी बीमारियों के खतरे की संभावना कम होती है। हालांकि पेट और कमर पर चर्बी अधिक होने का मतलब यह नहीं है कि आप मेटाबोलिक सिंड्रोम से पीड़ित हैं। लेकिन इसका तात्पर्य यह अवश्य है कि आपको टाइप 2 मधुमेह और हृदय रोग जैसी गंभीर बीमारियों के होने का खतरा अधिक है। यदि यह परेशानी अर्थात पेट और कमर पर चर्बी समय के साथ बढ़ती जाती है तो इससे यह खतरा और भी अधिक बढ़ जाता है। हालांकि कमर पर चर्बी के अलावा मेटाबॉलिक सिंड्रोम से जुड़े अधिकांश विकारों के अन्य कोई स्पष्ट संकेत या लक्षण नहीं होते हैं। हाँ, अवश्य ही यदि आपका रक्त शर्करा उच्च है, तो आपको मधुमेह के लक्षण जैसे प्यास और पेशाब में वृद्धि, थकान और आँखों का धुँधला होना आदि महसूस हो सकते हैं। आज मेटाबॉलिक सिंड्रोम की यह बीमारी तेजी से आम होती जा रही है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, अमेरिका के एक-तिहाई वयस्कों में यह बीमारी पाई गई है। यदि आपको मेटाबॉलिक सिंड्रोम है या इससे संबंधित कोई लक्षण परिलक्षित होता है। तो जीवन शैली में बदलाव लाकर इस प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ने से रोका जा सकता है।
मेटाबॉलिक सिंड्रोम का मुख्य कारण अधिक वजन या मोटापा और निष्क्रियता है। इसके साथ ही यह इंसुलिन प्रतिरोध के कारण भी हो सकता है। आम तौर पर, हम जो भी भोजन खाते हैं, उसे पाचन तंत्र द्वारा शर्करा के रूप में विभाजित कर दिया जाता है, जिससे उसे आसानी से पचाया जा सके। इसके लिए अग्नाशय (pancreras) द्वारा बनाया गया एक हार्मोन इंसुलिन इस शर्करा को ईंधन के रूप में परिवर्तित कर देता है जिससे यह कोशिकाओं में ऊर्जा के रूप में प्रवेश कर पाता है। इंसुलिन प्रतिरोध से पीड़ित व्यक्तियों में, कोशिकाएं इंसुलिन के प्रति सामान्य रूप से प्रतिक्रिया नहीं करती हैं और ग्लूकोज कोशिकाओं में आसानी से प्रवेश नहीं कर पाता है। परिणामस्वरूप, शरीर में रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है, जबकि दूसरी तरफ शरीर द्वारा रक्त शर्करा को कम करने के लिए अधिक से अधिक इंसुलिन का उत्पादन किया जाता है।
निम्नलिखित कुछ ऐसे प्रमुख कारण हैं जिनके कारण मेटाबॉलिक सिंड्रोम होने की संभावना बढ़ जाती है:
➲ आयु- उम्र के साथ मेटाबॉलिक सिंड्रोम होने का खतरा बढ़ता जाता है।
➲ महिलाएं - महिलाओं में मेटाबॉलिक सिंड्रोम विकसित होने का खतरा सबसे अधिक होता है।
➲ मोटापा- बहुत अधिक वजन, खासकर पेट और कमर के आसपास होने से, मेटाबॉलिक सिंड्रोम का खतरा बढ़ जाता है।
➲ मधुमेह- यदि आपके परिवार में टाइप 2 मधुमेह का इतिहास है, या आपको गर्भावस्था के दौरान मधुमेह था, तो आपको मेटाबोलिक सिंड्रोम होने की अधिक संभावना है।
➲ अन्य बीमारियाँ- नॉनअल्कोहलिक फैटी लीवर रोग (nonalcoholic fatty liver disease), पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (polycystic ovary syndrome) या स्लीप एपनिया (sleep apnea) की स्थिति में मेटाबॉलिक सिंड्रोम का खतरा अधिक होता है।
मेटाबोलिक सिंड्रोम होने से निम्नलिखित बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है:
1. मधुमेह टाइप 2- ज़रूरत से अधिक वज़न होने पर शरीर में इंसुलिन प्रतिरोध की समस्या उत्पन्न हो सकती है जिससे रक्त शर्करा का स्तर बढ़ सकता है। अंततः, इंसुलिन प्रतिरोध से टाइप 2 मधुमेह का खतरा बढ़ सकता है।
2. हृदय और रक्त वाहिका रोग- उच्च कोलेस्ट्रॉल और उच्च रक्तचाप के कारण धमनियों में प्लाक के निर्माण की समस्या उत्पन्न हो सकती है, जिसके कारण धमनियां संकीर्ण और सख्त हो सकती है और दिल के दौरे या स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।
हालांकि वज़न घटाकर और जीवनशैली में परिवर्तन लाकर इस खतरे को टाला जा सकता है। इसके अलावा एक स्वस्थ जीवनशैली को अपनाकर उन परिस्थितियों को दूर रखा जा सकता है, जिनके कारण मेटाबोलिक सिंड्रोम की समस्या उत्पन्न होती है। एक स्वस्थ जीवनशैली के अंतर्गत निम्नलिखित कार्यों को शामिल किया जा सकता है:
प्रतिदिन नियमित रूप से कम से कम 30 मिनट की शारीरिक गतिविधि या व्यायाम करना।
हरी सब्जियाँ, फल, प्रोटीन और साबुत अनाज आदि को भोजन में शामिल करना।
अपने आहार में संतृप्त वसा और नमक को सीमित करना।
वजन को न बढ़ने देना और संतुलित वजन बनाए रखना।
धूम्रपान नहीं करना।
संदर्भ
https://shorturl.at/giruN
https://shorturl.at/cqxM5
https://shorturl.at/crAST
चित्र संदर्भ
1. मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (
Flickr)
2. हृदय रोग को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
3. अवलोकन के सबसे महत्वपूर्ण मधुमेह के लक्षण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. गंभीर केंद्रीय मोटापे से ग्रस्त एक व्यक्ति, जो मेटाबॉलिक सिंड्रोम का एक लक्षण है! को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. मधुमेह की जाँच को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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