भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लखनऊ और देश की अन्य महिला स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
26-01-2024 10:11 AM
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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लखनऊ और देश की अन्य महिला स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका

जैसा कि आज हम 75 वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं, भारत की उन साहसी महिला स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान का उल्लेख किए बिना गणतंत्र दिवस का यह समारोह अधूरा रहेगा, जिनके कारण हम आज यह उत्सव मनाने में सक्षम है। स्वतंत्र भारत के संघर्ष में महिलाओं के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जब भी महिला स्वतंत्रता सेनानियों की बात होती है तो झाँसी की रानी ‘लक्ष्मीबाई’ का नाम सबसे ऊपर आता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे शहर लखनऊ की भी एक महिला स्वतंत्रता सेनानी, जिन्होंने अपनी सेना के साथ अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब दिया था, और लखनऊ से प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का संचालन किया था, बेगम हज़रत महल हैं, जो प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सबसे महत्वपूर्ण महिला नेताओं में से एक थीं। तो आइए गणतंत्र दिवस के मौके पर महिला स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्ष को जानते हैं और उनके योगदान को याद करते हैं। 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हमारे शहर की भूमिका काफी महत्वपूर्ण एवं अनोखी रही है। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से पहले हमारा शहर लखनऊ अंग्रेजों के लिए एक ऐसा अनमोल मोती था जिसे वे पाने के लिए बेताब थे। अपनी इसी हसरत को पूरा करने के लिये 13 फरवरी 1856 को ब्रिटिश सैनिकों ने वाजिद अली शाह को कैद कर लिया। 13 मार्च को उन्हें कलकत्ता भेज कर अवध पर नाजायज़ कब्ज़ा कर लिया। अंग्रेजों ने नवाब वाजिद अली खान को पदच्युत तो कर दिया, लेकिन उनके इस कार्य के कारण विद्रोह और 1857 के सिपाही विद्रोह के बीज भी बो दिए गए। वाजिद अली शाह की बेगम, हज़रत महल के नेतृत्व में सैनिकों के साथ साथ शहर के कई निवासियों ने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। 31 मई, 1857 को अवध की राजधानी लखनऊ के छावनी क्षेत्र में देशी शासकों और लोगों की बैठक हुई और उन्होंने स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। उन्होंने ब्रिटिश सैनिकों को रौंद डाला और लखनऊ में उनकी शक्ति पूरी तरह समाप्त कर दी।बाद में, बेगम हज़रत महल ने 7 जुलाई, 1857 को अपने बेटे ‘बिरजिस खादिर’ को अवध का नवाब घोषित किया। उन्होंने 1,80,000 सैनिकों को एकत्र कर सेना का निर्माण किया और भारी मात्रा में धन खर्च करके लखनऊ किले का नवीनीकरण किया। उन्होंने राज्य के सुशासन के लिए एक उच्च स्तरीय समिति की स्थापना की जिसमें उन्होंने मुम्मू खान, महाराजा बालकृष्ण, बाबू पूर्ण चंद, मुंशी गुलाम हजरत, मोहम्मद इब्राहिम खान, राजा मान सिंह, राजा देसीबक्श सिंह, राजा बेनी प्रसाद जैसे सदस्यों को नियुक्त किया। इसके अलावा उन्होंने शराफ-उद-दौला को मुख्यमंत्री और राजा जैल लाल सिंह को कलेक्टर पद पर नियुक्त किया गया। बेगम हज़रत महल ने अपने बेटे की ओर से लगभग दस महीने तक राज्य पर शासन किया और लोगों और साथी शासकों के मन में देशभक्ति की भावना भरके ब्रिटिश सेना को चुनौती दी। उन्होंने 31 दिसंबर, 1858 को एक ऐतिहासिक बयान जारी कर महारानी विक्टोरिया (Queen Victoria) द्वारा 1 नवंबर, 1858 को जारी की गई उद्घोषणा को चुनौती दी। लेकिन, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख केंद्र दिल्ली पर कब्ज़ा कर लेने के बाद ब्रिटिश सैनिकों ने मार्च 1859में लखनऊ को घेर लिया और हमला कर दिया। दोनों सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ। लेकिन तत्कालीन आधुनिक हथियारों के साथ अंग्रेजों की सेना बेगम की सेना पर भारी पड़ी और जिसके बाद बेगम हज़रत महल नाना साहब पेशवा और अन्य सह-क्रांतिकारी नेताओं के साथ नेपाल के जंगलों में पीछे हट गईं। अंग्रेजों द्वारा उन्हें लखनऊ वापस लाने के लिए भारी मात्रा में धन और विलासितापूर्ण सुविधाओं की पेशकश की गई। लेकिन, उन्होंने विलासितापूर्ण जीवन को अस्वीकार कर दिया और स्पष्ट कर दिया कि स्वतंत्र अवध राज्य के अलावा उन्हें कुछ भी स्वीकार्य नहीं है। बेगम हजरत महल अपनी आखिरी सांस तक अपने राज्य की आजादी के लिए संघर्ष करती रही थीं। 7 अप्रैल, 1879 को नेपाल के काठमांडू में उनका निधन हो गया। वास्तव में देश की स्वतंत्रता में, भारत की महिलाओं का बलिदान सर्वोपरि स्थान रखता है। उन्होंने सच्ची भावना, अडिग विश्वास और निडर साहस के साथ लड़ाई लड़ी और हमें आजादी दिलाने के लिए विभिन्न यातनाओं, शोषण और कठिनाइयों का सामना किया। स्वतंत्रता आंदोलन का पूरा इतिहास हमारे देश की सैकड़ों-हजारों महिलाओं की वीरता, बलिदान और राजनीतिक सूझबूझ की गाथाओं से भरा पड़ा है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भागीदारी 1817 की शुरुआत से हुई जब भीमा बाई होल्कर ने ब्रिटिश कर्नल मैल्कम (Malcolm) को बड़ी बहादुरी एवं चतुराई से गुरिल्ला युद्ध में हराया। आइए अब, बेगम हजरत महल के अलावा भारत की कुछ अन्य प्रमुख महिला स्वतंत्रता सेनानियों के विषय में जानते हैं, जिन्होंने भारतीय इतिहास में एक प्रमुख भूमिका निभाई: 1. रानी लक्ष्मी बाई: भारत के इतिहास में महिला योद्धाओं के बीच रानी लक्ष्मीबाई का स्थान सर्वोपरि है। झाँसी के राजा गंगाधर राव की मृत्यु के पश्चात उन्होंने अंग्रेजों की हड़प नीति का विरोध किया और अंग्रेजों के प्रति आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया। 1857 के विद्रोह के दौरान बहादुरी से ब्रिटिश सेना से लड़ते हुए युद्ध के मैदान में उनकी मृत्यु हो गई। उनके साहस ने कई भारतीयों को विदेशी शासन के खिलाफ उठने के लिए प्रेरित किया।
2. बेगम हज़रत महल: हमारे लखनऊ की बेगम हज़रत महल बेगम ने 1857 के विद्रोह में सक्रिय रूप से भाग लिया था, जिसके विषय में हम ऊपर विस्तार में पढ़ चुके हैं। 3. कस्तूरबा गांधी: महात्मा गांधी की पत्नी 'कस्तूरबा गांधी' गाँधी जी के कार्यक्रमों की अग्रणी समर्थकों में से एक थीं। वह ट्रांसवाल में कैद होने वाली पहली महिलाओं में से एक थीं। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में भाग लिया जिसके कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और पुणे में कैद के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। 4. कमला नेहरू: जवाहरलाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू ने विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया और सविनय अवज्ञा आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) में 'नो टैक्स' (No Tax) अभियान के आयोजन में प्रमुख भूमिका निभाई। 5. विजय लक्ष्मी पंडित: विजय लक्ष्मी पंडित ने असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन तथा आजादी से जुड़े अन्य आंदोलनों में भाग लिया, जिसके लिए उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा। 1937 में वह संयुक्त प्रांत की प्रांतीय विधायिका के लिए चुनी गईं और स्थानीय स्वशासन और सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री नामित की गईं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की पहली बैठक के दौरान सैन फ्रांसिस्को (San Francisco) में भारत के प्रतिनिधि के रूप में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।वह संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्ष बनने वाली पहली महिला थीं। 6. सरोजिनी नायडू: स्वतंत्रता संग्राम के लिये महिलाओं को जाग्रत करने में ‘नाइटिंगेल ऑफ इंडिया’ (Nightingale of India) के नाम से प्रसिद्ध सरोजिनी नायडू ने एक अहम भूमिका निभाई। वह1925 में कानपुर अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष चुनी गईं। 1930 में गाँधी जी की गिरफ्तारी के बाद सरोजिनी नायडू ने उनके आंदोलन का नेतृत्व किया। 1931 में, उन्होंने गांधीजी और पंडित मदन मोहन मालवीय जी के साथ गोलमेज शिखर सम्मेलन में भाग लिया। 1942 में 'भारत छोड़ो' आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और वह 21 महीनों तक जेल में रहीं। स्वतंत्रता के बाद, वह हमारे राज्य उत्तर प्रदेश की पहली महिला राज्यपाल भी बनीं। 7. अरुणा आसफ अली: अरुणा आसफ अली ने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अग्रणी भूमिका निभाई। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत का संकेत देने के लिए बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान में राष्ट्रीय ध्वज फहराकर वह हजारों युवाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गई। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की मासिक पत्रिका 'इंकलाब' का संपादन भी किया । उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, भारत रत्न से सम्मानित किया गया है । 8. मैडम भीकाजी कामा: मैडम भीकाजी कामा दादाभाई नौरोजी से प्रभावित थीं और ब्रिटेन में भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत थीं। उन्होंने 1907 में स्टटगार्ट, जर्मनी (Stuttgart (Germany)) में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन में पहला राष्ट्रीय ध्वज फहराया, 'फ्री इंडिया सोसाइटी' (Free India Society) का आयोजन किया और अपने क्रांतिकारी विचारों को फैलाने के लिए 'बंदे मातरम' पत्रिका शुरू की।
9. कमलादेवी चट्टोपाध्याय: 1929 में युवा कांग्रेस (Youth Congress) की अध्यक्ष रहीं कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने राष्ट्रीय कांग्रेस नेताओं से पूर्ण स्वराज को अपना लक्ष्य घोषित करने की अपील की। 26 जनवरी, 1930 को, कमलादेवी अंग्रेजों से हाथापाई के दौरान तिरंगे की रक्षा के लिए उससे लिपट गईं। इस घटना से वह संपूर्ण देश में महिला कार्यकर्ताओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गई। वह झंडे की रक्षा के लिए लाठियों की बारिश में भी चट्टान की तरह खड़ी रहीं जिससे उनका काफी खून बहा। 10. सावित्रीबाई फुले: सावित्रीबाई ज्योति राव फुले महाराष्ट्र के प्रमुख सुधारकों, शिक्षाविदों और कवियों में से एक थीं। उन्होंने अपने पति, ज्योति राव फुले, के साथ मिलकर भारत में महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। सावित्रीबाई ने अपने पति के साथ मिलकर पुणे में पहले आधुनिक भारतीय बालिका विद्यालय की स्थापना की। उन्हें भारत की 'पहली महिला शिक्षिका' भी माना जाता है। 11. उषा मेहता: गुजरात राज्य के एक बहुत छोटे से गाँव सारस की उषा मेहता को बहुत कम उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय प्रतिभागियों में से एक होने के लिए जाना जाता है। केवल 8 साल की उम्र में उन्होंने अपने पहले विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जो साइमन कमीशन के खिलाफ था। उन्होंने सीक्रेट कांग्रेस रेडियो (Secret Congress Radio) का आयोजन किया और भारत छोड़ो आंदोलन में भी हिस्सा लिया । उन्हें भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

संदर्भ
https://shorturl.at/ersN7
https://shorturl.at/eGHTU
https://rb.gy/0p3r1r


चित्र संदर्भ
1. बेगम हज़रत महल और झाँसी की रानी के सेना को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia, Look and Learn)
2. 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को समर्पित भारत का डाक टिकट जिसमें बेगम हज़रत महल का चित्र एवं उल्लेख है। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. बेगम हज़रत महल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. रानी लक्ष्मी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. कस्तूरबा गांधी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. 1974 के भारत के डाक टिकट पर कमला नेहरू को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. विजय लक्ष्मी पंडित को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
8. सरोजिनी नायडू को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
9. 1998 के डाक टिकट पर अरुणा आसफ अलीको दर्शाता चित्रण (wikimedia)
10. 1962 के डाक टिकट पर मैडम भीकाजी कामा को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
11. सावित्रीबाई फुले को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
12. 1996 में डॉ. उषा मेहता को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

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