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कोयले को “काला सोना” भी कहा जाता है। हालांकि, जिस प्रकार पृथ्वी पर सोने की मात्रा सीमित है, उसी प्रकार पृथ्वी में कोयला भी सीमित मात्रा में ही उपलब्ध है। तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या के कारण हम अपनी विशाल अर्थव्यवस्था की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए काफ़ी हद तक कोयले पर ही निर्भर है।
भारत में वाणिज्यिक रूप से कोयला-खनन उद्योग सन 1774 से चल रहा है, जिसे ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) ने पश्चिम बंगाल में दामोदर नदी के किनारे शुरू किया था। आज भारत में कोयला ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत बन गया है, और ऐसी उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में कोयले की माँग और भी बढ़ेगी।
क्या आप जानते हैं कि आज भी देश के एक चौथाई से अधिक हिस्से में बिजली की पहुंच नहीं है। ऐसे में भारत के दूरदराज क्षेत्रों में ऊर्जा पहुंच बढ़ाने के लिए भी कोयले को एक प्रमुख संसाधन के रूप में देखा जाता है। भारत का 70% से अधिक बिजली उत्पादन कोयला आधारित है, जिसमें कुल कोयले का 70% ईंधन झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश राज्यों से आता है। वित्त वर्ष 2012 में, भारत की कोयले की मांग लगभग 980 मिलियन टन थी, जबकि घरेलू आपूर्ति लगभग 777 मीट्रिक टन थी।
भारत के योजना आयोग द्वारा तैयार एकीकृत ऊर्जा नीति के अनुसार, 2031-32 में 40% से अधिक प्राथमिक वाणिज्यिक ऊर्जा की आपूर्ति कोयले के माध्यम से ही की जाएगी। नीति निर्माताओं का मानना है कि कोयला लंबे समय तक बिजली का सबसे सस्ता स्रोत बना रहेगा। भारत मुख्य रूप से इंडोनेशिया (Indonesia), ऑस्ट्रेलिया (Australia) और दक्षिण अफ्रीका (South Africa) से लगभग 210 मीट्रिक टन कोयले का आयात करता है। भारत का 80% से अधिक कोयला उत्पादन कोल इंडिया लिमिटेड (Coal India Limited (CIL) द्वारा संचालित होता है। वित्त वर्ष 2012 में 777 मीट्रिक टन के कुल घरेलू कोयला उत्पादन में से, 622 मीट्रिक टन का उत्पादन अकेले सीआईएल और उसकी सहायक कंपनियों ने किया। सीआईएल की योजना FY26 तक 1 बिलियन टन कोयला उत्पादन क्षमता हासिल करने की है।
भारत सरकार ने बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए देश के भीतर कोयले की आपूर्ति बढ़ाने के लिए कई उपाय किए हैं। इन उपायों में शामिल हैं:
1. निजी कंपनियों के लिए वाणिज्यिक कोयला खनन की शुरूआत।
2. कैप्टिव खनिकों (Captive Miners) को 50% तक कोयला खुले बाजार में बेचने की अनुमति देना।
3. कोयला निकासी बुनियादी ढांचे पर 50,000 करोड़ रुपये से अधिक निवेश करने की योजना।
4. सीआईएल की परित्यक्त खदानों को राजस्व हिस्सेदारी तंत्र पर नीलाम करना।
5. कोयला व्यापार के लिए एक राष्ट्रीय कोयला सूचकांक का परिचय।
इन पहलों का उद्देश्य देश में घरेलू कोयला आपूर्ति बढ़ाना और यह सुनिश्चित करना है कि देश की ऊर्जा ज़रूरतें पूरी हों। कोयले की भारी माँग के मद्देनज़र भारत में वर्ष 2022-23 में रिकॉर्ड तोड़ कोयला उत्पादन हुआ है। वर्ष 2022-23 में अखिल भारतीय कोयला उत्पादन 893.19 मिलियन टन (MT) था, जो इससे पिछले वर्ष के 778.21 Mtके उत्पादन से 14.77% अधिक था। कैलेंडर वर्ष 2023 (20 दिसंबर तक) के दौरान, देश में लगभग 932.92 मीट्रिक टन कोयले का उत्पादन हुआ है, जो कि पिछले वर्ष की समान अवधि से 7.95% अधिक है।
2023-2024 में भारत के घरेलू कोयला उत्पादन को, एक अरब टन पार करने की उम्मीद है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 25 दिसंबर 2023 तक कोयला उत्पादन 8.39% की वृद्धि के साथ 664.37 मिलियन टन तक पहुंच गया। इस अवधि के दौरान बिजली क्षेत्र को भेजे जाने वाले कोयले की मात्रा भी 577.11 मिलियन टन तक पहुंच गई। इसलिए, भारत के कोयला क्षेत्र की वर्तमान वृद्धि "आत्मनिर्भर भारत" की दृष्टि से अच्छी तरह मेल खाती है और आत्मनिर्भरता और ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में देश की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान देती है।
2030 तक घरेलू कच्चे कोकिंग कोयले का उत्पादन 140 मिलियन टन तक पहुंचने की उम्मीद है। कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने मौजूदा खदानों से कच्चे कोकिंग कोयले का उत्पादन 26 मिलियन टन तक बढ़ाने की योजना बनाई है। इसके अतिरिक्त, सीआईएल ने दस नई खदानों की पहचान की है, जहां से वित्तीय वर्ष 2025 के अंत तक लगभग 22 मिलियन टन कच्चे कोकिंग कोयले का उत्पादन होने की उम्मीद है।
भारत के पास पहले से ही बड़ी मात्रा में 319 बिलियन टन कोयला भंडार मौजूद है जो भारत को, दुनिया के सबसे बड़े कोयला उत्पादक देशों में से एक बनाता है । कोयले की खदानों वाले मुख्य क्षेत्र देश के पूर्वी और मध्य भाग में हैं। भारत में आमतौर पर पाए जाने वाले कोयले का प्रकार मुख्यतः बिटुमिनस और उप-बिटुमिनस (Bituminous And Subbituminous) है।
भारत में कोयला भंडार की दो मुख्य श्रेणियाँ हैं!
1. गोंडवाना कोयला
2. तृतीयक कोयला।
गोंडवाना कोयला दुनिया के सबसे पुराने और सबसे महत्वपूर्ण कोयला भंडारों में से एक है। यह मध्य भारत में स्थित है। दूसरी ओर, तृतीयक कोयला, जो अपेक्षाकृत नया है और ज्यादातर भारत के उत्तरपूर्वी हिस्से में पाया जाता है। दोनों प्रकार के कोयले का उपयोग बिजली उत्पादन और सहायक उद्योगों सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जाता है। गोंडवाना कोयले में, कार्बन सामग्री के आधार पर तीन अलग-अलग श्रेणियां (एन्थ्रेसाइट (Anthracite), बिटुमिनस और सब-बिटुमिनस) हैं। ये श्रेणियां विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए कोयले की गुणवत्ता और उपयोगिता निर्धारित करती हैं। 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पास 319 बिलियन टन से अधिक का सिद्ध, इंगित और अनुमानित कोयला भंडार है। सिद्ध-संसाधन के आधार पर, भारत दुनिया के सबसे बड़े कोयला भंडार वाले देशों में पांचवें स्थान पर है और चीन के बाद शीर्ष कोयला उत्पादक देशों में दूसरे स्थान पर है।
संदर्भ
http://tinyurl.com/3fzkb76k
http://tinyurl.com/ysk6eejy
http://tinyurl.com/mtwfzvjk
http://tinyurl.com/2zxsrr8n
चित्र संदर्भ
1. कोयला संचालित बिजली प्लांट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. जर्मनी में फ्रिमर्सडॉर्फ पावर स्टेशन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. कोयले की खदान को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere)
4. कोयले से बिजली बनाने की प्रक्रिया को संदर्भित करता एक चित्रण (openclipart)
5. भारत के कोयला उत्पादन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. कोयला खनन करती विशालकाय मशीन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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