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हमारा शहर लखनऊ उत्तर प्रदेश राज्य की राजधानी होने के साथ साथ भारत के सबसे अधिक आबादी वाले शहरों में से एक है। हमारा यह शहर अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए विश्व प्रसिद्ध है। एक महत्वपूर्ण सेवा और व्यापारिक केंद्र होने के कारण, लखनऊ शहर का विकास बहुत तेज़ी से हुआ है, जिससे बड़ी संख्या में लोग शहर की ओर आकर्षित हुए हैं। शहर के तेज़ी से विकास और संबंधित शहरी फैलाव के कारण सार्वजनिक परिवहन के बुनियादी ढांचे में वृद्धि की मांग तेज़ हुई है। इस मांग को पूरा करने के लिये और शहर के परिवहन बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने और बढ़ाने के लिए, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लखनऊ मेट्रो रेल परियोजना को एक एकीकृत जन सार्वजनिक परिवहन प्रणाली के रूप में लागू करने का निर्णय लिया गया, जो लखनऊ के लोगों की गतिशीलता और पहुंच आवश्यकताओं को पूरा करती है।
क्या आप जानते हैं कि लखनऊ मेट्रो ने निर्माण गतिविधि पूरी करने के मामले में सबसे तेज़ी से निर्मित होने वाली मेट्रो रेल परियोजना बनने का गौरव हासिल किया है? कुशल परियोजना प्रबंधन, विस्तृत योजना, और कार्यान्वयन रणनीति repeat के साथ, लखनऊ मेट्रो परियोजना समय से पहले पूरी हो गई। कोलकाता मेट्रो, दिल्ली मेट्रो, नम्मा मेट्रो, रैपिड मेट्रो गुड़गांव, मुंबई मेट्रो, जयपुर मेट्रो, चेन्नई मेट्रो और कोच्चि मेट्रो के बाद लखनऊ मेट्रो भारत की 9वीं मेट्रो प्रणाली है। लखनऊ मेट्रो का निर्माण और संचालन 'लखनऊ मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड' (Lucknow Metro Rail Corporation (LMRC) द्वारा किया जाता है। लखनऊ मेट्रो 22 स्टेशनों के साथ 22.87 किलोमीटर की दूरी तय करती है जिसमें 19 स्टेशन ऊँचाई पर और 3 भूमिगत हैं।
भूमिगत स्टेशनों के लिए के निर्माण चरण के दौरान सुरंग बनाने के लिए भूमि से 4.5 लाख टन मिट्टी खोदी गई। भूमिगत सुरंग बनाने के लिए लखनऊ मेट्रो रेल कॉरपोरेशन द्वारा सुरंगों की खुदाई करने वाली दो टनल बोरिंग मशीनों - 'गंगा' और 'गोमती' का उपयोग किया गया, जिन्होंने पहले चरण में सचिवालय-हज़रतगंज और सचिवालय-हुसैनगंज मेट्रो खंड के बीच सुरंग बनाने का काम पूरा किया। और उसके बाद अंतिम चरण में चारबाग और हुसैनगंज भूमिगत मेट्रो खंड के बीच खुदाई का कार्य किया गया।
लखनऊ मेट्रो रेल परियोजना चरण I-A के 3.67 किलोमीटर लंबे चारबाग-हज़रतगंज भूमिगत मेट्रो खंड के लिए सुरंग बनाने का पहला अभियान 18 जनवरी, 2017 को सचिवालय मेट्रो स्टेशन से शुरू किया गया था और पूरे खंड के लिए सुरंग बनाने का काम निर्धारित समय से दो महीने पहले, लगभग 15 महीने के रिकॉर्ड समय में पूरा हो गया।
हालांकि लखनऊ शहर के मध्य से होकर सुरंग निकालना एक बड़ी इंजीनियरिंग चुनौती थी क्योंकि यह मार्ग अत्यधिक भीड़भाड़ वाले इलाकों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के तहखानों के नीचे से होकर गुज़रता था। लेकिन अत्याधुनिक ऑनबोर्ड कम्प्यूटरीकृत सुरंग मार्गदर्शन प्रणाली द्वारा सुरंग निर्माण में उच्चतम स्तर की सटीकता के साथ डिज़ाइन किए गए संरेखण के अनुसार कार्य सुनिश्चित किया गया। सुरंग निर्माण के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पूरे भूमिगत हिस्से में व्यापक उपकरणीकरण किया गया था और समर्पित विशेषज्ञों की एक टीम द्वारा निरंतर ऑनलाइन और वास्तविक समय की निगरानी की गई थी।
क्या आप जानते हैं कि सुरंग बनाने और खनन करने के लिए आज के युग में कई प्रकार की तकनीकें उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से दुर्गम से दुर्गम पारिस्थितिकी में भी बड़ी ही सहजता और सरलता के साथ कम समय में सुरंग निर्माण और खनन जैसे कार्य किए जा सकते हैं?आइये, आज के अपने इस लेख में ऐसी ही कुछ तकनीकों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं:
1. कट और कवर टनलिंग विधि (Cut and Cover Tunnelling Method)- कट और कवर टनलिंग उथली सुरंगों के निर्माण के लिए एक सामान्य और सिद्ध तकनीक है। इस विधि के द्वारा सुरंग की चौड़ाई और आकार में असमानता को समायोजित किया जा सकता है। भूमिगत स्टेशनों के निर्माण में अक्सर यह विधि अपनाई जाती है। इस सुरंग विधि का उपयोग करने के लिए कई कार्यों को एक साथ करने की आवश्यकता होती है। खाई खोदना, सुरंग निर्माण और खोदी गई सुरंगों को मिट्टी से ढंकना, सुरंग बनाने की इस विधि के तीन प्रमुख अभिन्न अंग हैं।
2. ड्रिल और विस्फोट विधि (Drill and Blast Method)- सुरंग बनाने की इस विधि में विस्फोटकों का उपयोग शामिल है। विस्फोट के लिए प्रस्तावित सुरंग की सतह पर निर्दिष्ट गहराई तक विस्फोटक गड्ढा ड्रिल करने के लिए ड्रिलिंग ट्रक (Drilling Truck) का उपयोग किया जाता है। फिर विस्फोटक और समयबद्ध अधिस्फोटक को विस्फोटक गड्ढे में रखा जाता है। एक बार विस्फोट करने के बाद, दोबारा विस्फोट करने से पहले अपशिष्ट चट्टानों और मिट्टी को सुरंग से बाहर निकाला जाता है। चट्टानों में सुरंग निर्माण करते समय अधिकांश भूमि क्षेत्र भी शामिल होता है, जिसके कारण कठोर चट्टान और नरम भूमि के बीच की चरम स्थितियां उत्पन्न होती हैं। इसलिए सुरंग बनाने के लिए इस पद्धति को अपनाते समय पर्याप्त संरचनात्मक सहायता उपायों की आवश्यकता होती है। टनल बोरिंग मशीन द्वारा सुरंग बनाने की तुलना में, विस्फोटक के परिणामस्वरूप आमतौर पर कंपन स्तर अधिक लेकिन कम अवधि का होता है।
3. टनल बोरिंग मशीन (Tunnel Boring Machines (TBM) द्वारा सुरंग खोदना - लंबी सुरंगों की खुदाई के लिए अक्सर टनल बोरिंग मशीन का उपयोग करके सुरंग खोदने का कार्य किया जाता है। टनल बोरिंग मशीनों के प्रभावशाली उपयोग के लिए विभिन्न चट्टानों की विविधता और भूवैज्ञानिक स्थितियों के अनुरूप उपयुक्त उपकरणों के चयन की आवश्यकता होती है। टनल बोरिंग मशीनें उन सुरंगों की खुदाई के लिए उपयुक्त होती हैं जहाँ चट्टानें भूवैज्ञानिक रूप से पर्याप्त स्थिर होती हैं। हालाँकि, अत्यधिक कठोर चट्टानों पर इस मशीन का उपयोग करने से इसके काँटे खराब हो जाते हैं और सुरंग बनाने का कार्य धीमा हो जाता है।
4. अनुक्रमिक उत्खनन विधि (Sequential Excavation Method) - इस विधि को ‘न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग विधि’ (New Austrian Tunnelling Method (NATM) के रूप में भी जाना जाता है। इस विधि में प्रस्तावित सुरंग के उत्खनन स्थान को पहले खंडों में विभाजित किया जाता है। फिर खंडों को क्रमिक रूप से खनन किया जाता है। सुरंग खुदाई के लिए रोड-हेडर और बैकहोज़ (road-headers and backhoes) जैसे कुछ खनन उपकरणों का उपयोग आमतौर पर किया जाता है। इस विधि के लिए खुदाई की जमीन पूरी तरह से सूखी होनी चाहिए और खुदाई से पहले जमीन से पानी निकालना एक आवश्यक प्रक्रिया है। इसके साथ ही सुरंग बनाने के लिए मिट्टी को स्थिर करने के लिए छोटे छोटे गड्ढ़ों एवं छिद्रों में घोल भरण ग्राउटिंग (grouting ) और ग्राउंड फ्रीजिंग (ground freezing) की प्रक्रिया भी इस विधि में आम है। हालांकि इस विधि की रफ्तार थोड़ी धीमी है, लेकिन यह उन क्षेत्रों के लिए उपयोगी है जहाँ सीवर या भूमिगत मार्ग जैसी मौजूदा संरचनाओं को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।
आधुनिक समय में विज्ञान एवं तकनीकी प्रगति के साथ आज भूमिगत सड़क एवं रेल मार्ग जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए सुरंग बनाने एवं खनन के लिए कई प्रकार की तकनीकें एवं विधियां मौजूद हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे शहर लखनऊ में ‘गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर’ (Government College of Architecture) के संरक्षणवादियों की एक टीम ने संरक्षण कार्य करते हुए सदियों पुरानी फ्रांसीसी वास्तुकला की उत्कृष्ट कृति - छतर मंजिल पैलेस - में 350 फीट लंबी सुरंग और एक जलमार्ग की खोज की है? यह सुरंग छतर मंजिल पैलेस परिसर को गोमती नदी से जोड़ती है और महल से जल मार्ग का भी संकेत देती है। हालांकि अभी सुरंग की गहराई और इसके दोनों किनारों पर कई आंतरिक कक्षों की जांच की जा रही है। सुरंग के दोनों किनारों पर कई कक्ष हैं जिन्हें आधुनिक ईंटों का उपयोग करके बंद कर दिया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि इन्हें या तो ब्रिटिश काल के दौरान या केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान द्वारा अवरुद्ध कर दिया गया था।
संरक्षणवादी टीम को सुरंग में महल को पानी से जोड़ने वाली सीढ़ियाँ मिली हैं, जिससे इस बात का अंदाज़ा लगाया जाता है कि नवाब महल से वापस आने के लिए जल मार्गों का उपयोग करते थे। सुरंग की लाखौरी छतें इस बात को प्रमाणित करती है कि इसका निर्माण संभवतः नवाबों के समय में हुआ था। इसके अलावा, सुरंग की छत पर सुंदर आलम्ब कुन्दे और कोष्ठ उस समय के वास्तुशिल्प चमत्कार को उजागर करते हैं। टीम को सुरंग में भगवान कृष्ण की एक मूर्ति भी मिली है। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि नदी के किनारे से कोठी का मुख्य प्रवेश द्वार जलमार्ग था।
संदर्भ
https://shorturl.at/horPR
https://shorturl.at/BDO25
https://shorturl.at/bhDFZ
चित्र संदर्भ
1. एक आधुनिक सुरंग खोदने वाली मशीन को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
2. सुरंग के भीतर के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (Terrasol)
3. हज़रत गंज मेट्रो स्टेशन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मेट्रो की सुरंग को संदर्भित करता एक चित्रण (wallpaperflare)
5. टनल बोरिंग मशीन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. छत्तर मंज़िल के प्रांगण को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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