समयसीमा 229
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 963
मानव व उसके आविष्कार 757
भूगोल 211
जीव - जन्तु 274
Post Viewership from Post Date to 23- Jan-2024 (31st Day) | ||||
---|---|---|---|---|
City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2184 | 212 | 2396 |
शौक बड़ी चीज है, और इसीलिए लोग अपने अजीबों-गरीब शौकों को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं। पोस्टकार्ड संग्रह करना भी एक ऐसा ही शौक है, जिसके शौकीन लोग आपको लगभग हर देश में देखने को मिल जायेंगे। पोस्टकार्ड, मोटे कागज या पतले कार्डबोर्ड (Cardboard) का एक छोटा, आमतौर पर आयताकार टुकड़ा होता है। आप इस पर लिख सकते हैं और बिना किसी लिफ़ाफ़े की आवश्यकता के भी इसे डाक में डाल सकते हैं। कुछ पोस्टकार्डों के आकार भिन्न हो सकते हैं, लेकिन ऐसा आमतौर पर होता नहीं है।
आमतौर पर पोस्टकार्ड को एक पत्र की तुलना मे कम पैसे में भेज सकते हैं।
ये कार्ड दो प्रकार के होते हैं:
- पोस्टकार्ड, जिस पर आपको डाक टिकट लगाना होगा।
- डाक कार्ड, जिन पर पहले से ही डाक शुल्क मुद्रित होता है। ये आमतौर पर डाक सेवा द्वारा जारी किए जाते हैं।
पोस्टकार्ड 1800 के दशक के अंत और 1900 के प्रारंभ में खूब लोकप्रिय हो गए, क्योंकि वे लोगों के लिए संदेश भेजने का एक त्वरित और आसान तरीका बन गए थे। क्या आप जानते हैं कि पोस्टकार्ड के अध्ययन को डेल्टियोलॉजी (Deltiology) कहा जाता है? डेल्टियोलॉजी, अध्ययन का एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें संग्रहणीय वस्तुओं और रुचि के अन्य क्षेत्रों सहित विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। हालाँकि, इसमें कागजी मुद्रा को अध्ययन के विषय के रूप में शामिल नहीं किया गया है। जो लोग पोस्टकार्ड एकत्र करते हैं या उनका अध्ययन करते हैं उन्हें डैलटीओलॉजिस्ट (Deltiologist) कहा जाता है। यह शब्द ग्रीक शब्द “Deltion” या "स्मॉल राइटिंग टैबलेट (Small Writing Tablet)" और “ology” या "द स्टडी (The Study)" से आया है। भारत के दो शौकिया डैलटीओलॉजिस्ट, "रत्नेश माथुर और संगीता माथुर" ने विशेष रूप से पोस्टकार्ड को समर्पित "पिक्चर्सक इंडिया: ए जर्नी इन पिक्चर पोस्टकार्ड्स ऑफ इंडिया - 1896 से 1947 (Picturesque India: A Journey In Picture Postcards Of India - 1896 To 1947)" नामक एक दृश्य पुस्तक भी प्रस्तुत की है। इसमें 130 से अधिक भारतीय शहरों की 550 से अधिक छवियां दी गई हैं। यह पुस्तक भारत पर ध्यान केंद्रित करते हुए, चित्र पोस्टकार्ड एकत्र करने की प्रथा, डेल्टियोलॉजी की गहन खोज प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक पुरानी भारतीय तस्वीरों के संग्रह के साथ-साथ और भी रुचिकर तथ्यों को प्रदर्शित करती है। इसका उद्देश्य पाठकों को उन वैश्विक और स्थानीय नवाचारों से परिचित कराना है, जिनके कारण अतीत में कई बड़े बदलाव हुए। 425 पन्नों की इस पुस्तक में विशेष रूप से चार क्षेत्रों - मुद्रण, डाक, फोटोग्राफी और यात्रा, तथा भारत में उनके संबंधित प्रभावो की गहनता से जांच की गई है।
लोग कई कारणों से पोस्टकार्ड एकत्र करते हैं। पोस्टकार्ड इतिहास के छोटे स्नैपशॉट (Snapshot) की तरह होते हैं। ये हमें दिखाते हैं कि अलग-अलग समय में स्थान कैसे दिखते थे। इसीलिए इतिहास, शहरीकरण और वंश वृक्षों (Family Tree) का अध्ययन करने वाले लोग इनका संग्रह करते हैं। आज के समय में पोस्टकार्ड कई जगहों जैसे संग्रह करने वालों के घर पर, विशिष्ट दुकानों में या ऑनलाइन प्राप्त किये जा सकते हैं। कुछ लोग अपने स्वयं के पोस्टकार्ड भी बनाते हैं। कलाकार और प्रकाशक भी पोस्टकार्ड बनाते और छापते हैं। पोस्टकार्ड का उपयोग कई अन्य तरीकों से जैसे बच्चों को भूगोल पढ़ाना या उन्हें भाषा कला सीखने में मदद करने से भी किया जाता है। डाक सेवाएं शुरू होने के बाद से लोग छिटपुट रूप से संदेशों वाले कार्ड बना रहे हैं और भेज रहे हैं। पहला ज्ञात चित्र पोस्टकार्ड (Picture Postcard), थियोडोर हुक (Theodore Hook) द्वारा एक कार्ड पर हाथ से बनाया गया डिज़ाइन था। 1840 में, हुक ने लंदन के एक क्षेत्र, फ़ुलहम (Fulham) से खुद को कार्ड भेजा, जिस पर एक पैसे की काली मोहर लगी थी। कार्ड पर छवि डाकघर के कर्मचारियों का एक व्यंग्यचित्र था, जिसका उद्देश्य संभवतः डाक सेवा पर एक व्यावहारिक मज़ाक था। 2002 में यह पोस्टकार्ड रिकॉर्ड £31,750 में बेचा गया था।
संयुक्त राज्य अमेरिका में, पत्र दर पर एक संदेश के साथ एक तस्वीर या एक खाली कार्ड भेजने की प्रथा दिसंबर 1848 में पोस्टमार्क किए गए कार्ड के साथ शुरू हुई जिसमें मुद्रित विज्ञापन शामिल थे। पहला व्यावसायिक रूप से निर्मित कार्ड 1861 में फिलाडेल्फिया के जॉन पी. चार्लटन (John P. Charlton Of Philadelphia) द्वारा बनाया गया था।
पोस्टकार्ड की अहमियत को आप ऊपर दिए गए पोस्टकार्ड से समझ सकते हैं। 1910 में जारी किये गए इस दुर्लभ पोस्टकार्ड के माध्यम से आप यह देख सकते हैं कि 1910 के आसपास हमारे लखनऊ का इमामबाड़ा कैसा दिखाई देता था। यह पोस्टकार्ड आपकी यह समझने में भी मदद करेगा कि उस समय इमारत के आसपास का परिवेश आखिर कैसा था।
संदर्भ
http://tinyurl.com/25pvt7bv
http://tinyurl.com/mst8wd3m
http://tinyurl.com/4dt6d64u
http://tinyurl.com/4hzpdf8h
http://tinyurl.com/yk5cd7ea
http://tinyurl.com/3392x42z
चित्र संदर्भ
1. लखनऊ के रूमी दरवाजे को दर्शाते पोस्टकार्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (indian-heritage-and-culture)
2. लखनऊ के विभिन्न चित्रों को दर्शाते पोस्टकार्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. पिक्चरेस्क इंडिया: अ जर्नी इन अर्ली पिक्चर पोस्टकार्डस” नामक पुस्तक के मुख्य पृष्ठ को संदर्भित करता एक चित्रण (amazon)
4. लखनऊ में जेसी का सपना (jessie's dream at lucknow) नामक पोस्टकार्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
5. छत्तर मज़ाब महल लखनऊ नामक पोस्टकार्ड” को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
6. लखनऊ के इमामबाड़े को दर्शाते एक पोस्टकार्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (ebay)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.