वर्साय संधि: जब शांति की चाह ने दुनियां को द्वितीय विश्व युद्ध की खाई में धकेला

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
06-12-2023 10:45 AM
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वर्साय संधि: जब शांति की चाह ने दुनियां को द्वितीय विश्व युद्ध की खाई में धकेला

शांति की चाह दुनियां को युद्ध की खाई में धकेल सकती है। जी हाँ द्वितीय विश्व युद्ध के प्रमुख कारणों में से एक, "पैरिस शांति संधि (Paris Peace Treaty)" भी थी, जिस पर प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हस्ताक्षर किये गए थे। इस शांति संधि पर 28 जून, 1919 को पैरिस (Paris) के पास वर्साय (Versailles) में हस्ताक्षर किए गए। इसके बाद जर्मनी और मित्र देशों (Allies) के बीच युद्ध आधिकारिक तौर पर समाप्त हो गया था । लेकिन इस संधि ने दूसरे विश्व युद्ध के बीज बो दिए थे।
वर्साय की संधि के दौरान यह योजना बनाई जानी थी कि “युद्ध के बाद दुनिया कैसी होगी?” इस संधि पर युद्ध में जर्मनी के पक्ष में रहने वाले कई देशों ने हस्ताक्षर किए। लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका वर्साय संधि पर सहमत नहीं हुआ और उसने जर्मनी के साथ एक अलग शांति समझौता किया। हालांकि प्रथम विश्व युद्ध 11 नवंबर, 1918 के दिन ही समाप्त हो गया था, लेकिन शांति संधि को अंतिम रूप देने में पैरिस में छह महीने तक चर्चा की गई थी। क्या आप जानते हैं कि इन चर्चाओं में जर्मनी को हिस्सा लेने की अनुमति नहीं थी, लेकिन उसे अंतिम संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर ज़रूर किया गया। संधि के सबसे विवादित विषयों में से एक, युद्ध अपराध खंड (War Crimes Section) था, जिसके तहत प्रथम विश्व युद्ध शुरू करने के लिए सीधे तौर पर जर्मनी को दोषी ठहराया गया था। इस संधि के बाद जर्मनी को मजबूरन अपनी सैन्य शक्ति भी कम करनी पड़ी और अपने कई हथियार नष्ट करने पड़े। जर्मनी को अपनी कई क्षेत्रीय रियायतें यानी अपनी ज़मीन भी दूसरे देशों को देनी पड़ी।
इसके अलावा जर्मनी को उन देशों को भारी मुआवज़ा देना पड़ा, जिन्हें इस युद्ध में नुकसान हुआ था। जर्मनी के मित्र राष्ट्रों को भी 5 अरब डॉलर की बड़ी राशि का भुगतान करना पड़ा। वर्साय की संधि के कारण जर्मनी को फ्रांस (France), बेल्जियम (Belgium), चेकोस्लोवाकिया (Czechoslovakia) और पोलैंड (Poland) में अपनी ज़मीन से हाथ धोना पड़ा। दरअसल जर्मनी को उसके उपनिवेशों को भी मित्र देशों को वापस देने के लिए भी मजबूर किया गया था । हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन (Woodrow Wilson) संधि की इन कठिन शर्तों से सहमत नहीं थे, लेकिन उस समय फ्रांस के प्रधान मंत्री जॉर्जेस क्लेमेंसियो (Georges Clemenceau) का प्रभाव अधिक था। जर्मनी के साथ सीमा साझा करने वाला एकमात्र मित्र देश होने के नाते, फ्रांस को जर्मन सेनाओं से सबसे अधिक क्षति का सामना करना पड़ा था। इसलिए फ्रांसीसी, जर्मनी को यथासंभव कमज़ोर करना चाहते थे। अमेरिकी राष्ट्रपति विल्सन ने वर्साय की संधि को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, अमेरिकी कांग्रेस के कुछ सदस्य, जिन्हें "इर्रोकन्सिलेबल्स (Irreconcilables)" के नाम से जाना जाता है, इस संधि के खिलाफ थे। इनमें से अधिकांश रिपब्लिकन (Republicans) थे, लेकिन कुछ डेमोक्रेट (Democrats) भी इस समूह का हिस्सा थे।
वर्साय की संधि की कई अन्य लोगों ने भी आलोचना की, जिनमें जॉन मेनार्ड कीन्स (John Maynard Keynes) जैसे प्रमुख अर्थशास्त्री भी शामिल थे। कीन्स ने तर्क दिया कि यह संधि जर्मनी के लिए बहुत कठोर थी और उससे बहुत अधिक क्षतिपूर्ति मांगी जा रही थी। उनका मानना था कि इन कठोर शर्तों से जर्मनी में आर्थिक अस्थिरता पैदा होगी और अंततः एक और युद्ध हो सकता है। दुर्भाग्य से उनकी यह भविष्यवाणी सच साबित हुई। वर्साय की संधि का जर्मनी सहित पूरे विश्व पर गहरा प्रभाव पड़ा। संधि की कठोर शर्तों के कारण जर्मनी में आर्थिक कठिनाई और आक्रोश उत्पन्न होने लगा, जिसने नाजी पार्टी (Nazi) के उदय में बड़ी भूमिका निभाई। इस तरह से इस संधि ने द्वितीय विश्व युद्ध को भड़काने में आग में घी डालने का काम किया। 1934 में जब एडोल्फ हिटलर (Adolf Hitler) जर्मनी का नेता बना तो उसने वर्साय की संधि के कई नियमों को तोड़ना शुरू कर दिया। उसने जर्मनी पर लागू सभी ऋण भुगतान और क्षतिपूर्ति बंद कर दी और जर्मन सेना को मज़बूत करना शुरू कर दिया। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि संधि की कठोर शर्तों ने ही नाज़ी पार्टी को सत्ता में आने के लिए मजबूर किया।
नाज़ियों ने प्रथम विश्व युद्ध के बाद मित्र देशों द्वारा उन पर डाले गए बोझ के प्रति जर्मन लोगों की नाराज़गी का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए किया। वर्साय संधि बहुत लंबी और जटिल थी, और इससे कोई भी जर्मन या कई अन्य देशों के नेता भी खुश नहीं थे। अंत में इस संधि के कारण यूरोप में अस्थिरता फ़ैल गई और इस प्रकार इस संधि ने द्वितीय विश्व युद्ध के फैलने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। हालांकि जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ तो उसके बाद भी विजेता देशों (ब्रिटेन, रूस, अमेरिका और फ्रांस) ने हारने और युद्ध के दौरान पक्ष बदलने वाले देशों (इटली, रोमानिया, हंगरी, बुल्गारिया और फिनलैंड) के साथ क्या करना है, यह तय करने के लिए पै रिस में एक और बैठक की। इन संधियों पर 29 जुलाई से 15 अक्टूबर, 1946 तक चले पैरिस शांति सम्मेलन में चर्चा की गई थी। बाद की पैरिस शांति संधियों में युद्ध क्षतिपूर्ति, अल्पसंख्यक अधिकार और क्षेत्रीय समायोजन के प्रावधान शामिल थे। संधियों में शामिल देशों को अपने यहाँ के युद्ध अपराधियों को मुकदमे के लिए मित्र देशों को सौंपने की भी बात कही गई थी।

संदर्भ

https://tinyurl.com/yc5xnbds
https://tinyurl.com/2mjjr6tf
https://tinyurl.com/5y3dfr6s
https://tinyurl.com/2wm3bxm4

चित्र संदर्भ

1. 18 जनवरी, 1919 में पेरिस में शांति सम्मेलन का पहला पूर्ण सत्र आयोजित किया गया। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. प्रारंभिक शांति सम्मेलन, पेरिस, फ्रांस, 1919 के पूर्ण सत्र द्वारा बनाए गए राष्ट्र संघ के आयोग के सदस्यों की तस्वीर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. पेरिस शांति सम्मेलन के विभिन्न दृश्यों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. वर्साय संधि की ओर अग्रसर पेरिस शांति सम्मेलन में डेविड लॉयड जॉर्ज, विटोरियो ऑरलैंडो, जॉर्जेस क्लेमेंस्यू और वुडरो विल्सन को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. द्वितीय विश्व युद्ध को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)

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