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पीढ़ियों से चली आ रही शिल्प तकनीकों की विरासत के कारण, भारत सदियों से कपड़ा एवं कढ़ाई का एक जबरदस्त केंद्र रहा है। यहां हाथ की कढ़ाई न केवल एक पेशा है, बल्कि यह एक संस्कृति है, जीवन जीने की एक कला है।
क्या आप जानते हैं कि, हमारे शहर लखनऊ में एक प्रतिष्ठित कला संस्थान है, जो हमारे देश भारत में, शिल्प उत्कृष्टता की मान्यता, प्रचार और रखरखाव के लिए प्रतिबद्ध है? आइए, आज इसके बारे में जानते हैं। ‘कलहथ’ यह संस्थान एक फ्रांसीसी-इतालवी (French-Italian) शिल्प और फैशन उद्यमी–मैक्सिमिलियानो मोडेस्टी (Maximiliano Modesti) द्वारा स्थापित है। मोडेस्टी पिछले 25 वर्षों से,पेरिस(Paris) और मुंबई में काम कर रहे है।
वर्ष 2016 में, उन्होंने लखनऊ डिज़ाइन ट्रस्ट(Lucknow Design Trust) की स्थापना की, जो एक गैर-लाभकारी संस्था है।यह संस्था भारत में लक्जरी(Luxury) या विलास साधन शिल्प उत्कृष्टता की मान्यता के लिए, समर्पित है। वर्ष 2017 में इसी ट्रस्ट से कलहथ संस्थान का उदय हुआ। यहां आयोजित की जाने वाली, प्रशिक्षण कक्षाओं का उद्देश्य संभावित कारीगरों के सर्वांगीण कौशल को विकसित करना है। इस संस्थान में, कुशल कारीगरों की दुर्लभ कढ़ाई शैलियों को समेकित किया गया है।
मोडेस्टी का मानना है कि, अगर कारीगर को सशक्त बनाना है, तो शिल्प में डिजाइन शिक्षा और कौशल को सह-साथी बनाने की जरूरत है। इस संस्थान की स्थापना लखनऊ में होना भी उपयुक्त है, क्योंकि, हमारा शहर हमेशा से ही कढ़ाई की भारतीय परंपरा के केंद्र में रहा है। उदाहरण के लिए, चिकनकारी, जरदोजी, कामदानी, दराज़दारी आदि कढ़ाई के लिए, लखनऊ प्रसिद्ध हैं। मैक्स के मुताबिक, शहर में आज भी उत्कृष्ट कढ़ाई करने वाले लोग मौजूद हैं, जिन्हें ‘राष्ट्रीय खजाना’ माना जाना चाहिए।इन कारीगरों की पहचान की जानी चाहिए, उन्हें अच्छा काम करने के लिए मंच दिया जाना चाहिए और नई पीढ़ी को सलाह देने के लिए प्रोत्साहित भी किया जाना चाहिए।
मोडेस्टी को बहुत अनुभव है। शिल्प, डिजाइन और उत्कृष्टता, इन सभी को ध्यान में रख, काम करते हुए, भारत में उन्होंने पिछले 20–25 वर्षों में, दिल्ली और मुंबई में तीन कारखानों में 650 से अधिक लोगों को रोजगार देकर, पांच लक्जरी ग्राहकों को सेवा प्रदान की है।
फैशन डिजाइन का अध्ययन करने के पश्चात, जब मोडेस्टी फैशन प्रबंधन में एमबीए(MBA) कर रहे थे, तब उन्हें भारतीय शिल्प के व्यापक भंडार से परिचय हुआ । देश की समृद्ध कपड़ा विरासत से प्रभावित होकर, वह 1993 में पहली बार भारत आए। जब वे हमारे देश भारत आए थे, तब यहां के असाधारण और अद्वितीय शिल्प को देखकर वे आश्चर्यचकित थे।1993 में मोडेस्टी के पास कोई विशेष योजना नहीं थी। तब, वह बस देखना चाहते थे कि, क्या किया जा सकता है। इससे पहले उन्होंने एक फैशन डिजाइनर(Fashion designer) के रूप में प्रशिक्षण लिया था, तथा कुछ वर्ष काम भी किया था। तब पहले कुछ वर्ष उन्होंने अनुसंधान एवं विकास पर कार्य किया।इसके बाद उन्होंने भारत में कई यात्राएं की।फिर वे कई ग्राहकों से मिले, यहां उनके मित्र बने और इस तरह उनका कढ़ाई का काम शुरु हुआ।जिसके परिणामस्वरूप, अंततः उन्होंने अपनी कंपनी यहां स्थापित की।
मोडेस्टी केवल उन लोगों के साथ काम करने का निश्चय करते है, जिन्हें भारत में सृजन करने पर गर्व है। और तो और, उनके सभी उत्पादों पर ‘मेड इन इंडिया(Made in India)’ अर्थात, ‘भारत में निर्मित’ यह नाम-पत्र होता हैं।
अब वे मुंबई में कढ़ाई और रेशम के कपड़े तथा दिल्ली में चमड़े के सामान और परिधान का कारोबार करते हैं। इस कारोबार को लेकर उनका विचार, शिल्प की उत्कृष्टता पर ध्यान केंद्रित कर, कारखानों में से तैयार उत्पादों का निर्माण करना है। आजकल कढ़ाई किए गए वस्त्रों के खरीदार, यह जानना चाहते हैं कि, वह कपड़ा कहां बनाया जा रहा है। वे खरीदार सीधे मूल स्थान पर भी आते हैं। इसलिए, इनकी गुणवत्ता काफ़ी मायने रखती है।
मोडेस्टी के हिसाब से, एकमात्र चीज़ जो शिल्प को जीवित रखेगी, वह डिज़ाइन है।अतः आज, डिजाइनरों को डिजाइन और शिल्प के बीच संबंध को संबोधित करने की आवश्यकता है।
1998 में, उन्होंने मुंबई में लेस एटेलियर्स 2एम(Les Ateliers 2M) की स्थापना की, जो एक कढ़ाई और कपड़ा विकास कंपनी है। 2013 में, मोडेस्टी ने यश अग्रवाल के साथ, जयपुर मॉडर्न(Jaipur Modern) की सह-स्थापना की, जो एक कॉन्सेप्ट स्टोर(concept store) है। इसमें, हमारे देश भारत के कुछ सबसे होनहार डिजाइनर काम करते हैं। मोडेस्टी एक दूरदर्शी व्यक्ति हैं, और वह भारत को रचनात्मक रूप से अराजक स्थान मानते हैं, जहां विकास की अपार संभावनाएं हैं।
26 वर्षों तक भारत में काम करने के बाद, अब वह कह सकते है कि, अंततः हमारा देश अपनी कला के प्रति जाग रहा है, तथा डिजाइनर अपने इतिहास, परंपराओं के प्रति जाग रहे हैं। यह भारतीय डिजाइनरों की जिम्मेदारी है कि, वे अपने काम के जरिए, उपभोक्ताओं में भावनाएं पैदा करें।
गलीचों की कढ़ाई प्रक्रिया में, कारीगर टांके की एक श्रृंखला के साथ, लिनन(Linen) कपड़े पर दो मिलीमीटर चौड़ा धागा जोड़ने के लिए, एक हुक(Hook) का उपयोग करता है। एक कारीगर के हाथ में, यह धागा लगभग एक ब्रश(Brush) में बदल जाती है, क्योंकि, टांके गलीचों के बड़े हिस्से को विभिन्न रंगों में रंग देते हैं। यह प्रक्रिया काफ़ी कठीन है, क्योंकि, प्रत्येक गलीचे के लिए, पूरे 2,600 घंटे तक गहन हस्तकार्य की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया में सटीकता और एकाग्रता की भी आवश्यकता होती है, क्योंकि गलीचे की आयामी स्थिरता एवं कढ़ाई की स्थिरता को भी बनाए रखना महत्वपूर्ण होता है।
भारतीय ग्राहक भी धीरे-धीरे शिक्षित हो रहे हैं: वे जानते हैं कि, एक उत्पाद के पीछे एक कारीगर होता है, जो लगन से उस वस्त्र पर काम करता है, और यही महत्वपूर्ण है,क्योंकि, इससे भारत में 5 करोड़ नौकरियां पैदा होती हैं। देश में कृषि के बाद, कढ़ाई एवं वस्त्र क्षेत्र दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता है। कई कारीगरों को विद्यालयों में जाने या पेशेवर प्रशिक्षण प्राप्त करने का मौका नहीं मिलता है। फिर भी, कुछ कारीगर अपने काम में असाधारण हैं।इसलिए, कलहथ संस्थान उनका चयन करता है, तथा उन्हें संस्थान में भाग लेने हेतु, एक वर्ष का सवैतनिक अवसर भी देता हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/46kcjxxa
https://tinyurl.com/bdzxnze8
https://tinyurl.com/3xejxcfb
https://tinyurl.com/5bx63tdf
चित्र संदर्भ
1. कढ़ाई करते कारीगर को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
2. कलहथ संस्थान लखनऊ में सुलेख वर्ग को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. जरदोज़ी हाथ की कढ़ाई करते बच्चे को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
4. शिल्प और फैशन उद्यमी–मैक्सिमिलियानो मोडेस्टी को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. कपड़े पर की गई शानदार कड़ाई को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
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