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क्या आप जानते हैं कि हमारे ब्रह्मांड का कण-कण, प्रत्येक क्षण अपने ही द्वारा निर्मित संगीत की धुनों में झूम रहा है! हालांकि ये बात अलग है कि हमारे कान इस संगीत को सुनने में असमर्थ हैं! दार्शनिक स्तर पर ब्रह्मांड के इस संगीत को “म्यूज़िका यूनिवर्सलिस (Musica Universalis) या सार्वभौमिक संगीत” के रूप में संदर्भित किया जाता है! सार्वभौमिक संगीत को "म्यूज़िक ऑफ़ द यूनिवर्स", को "यूनिवर्सल म्यूज़िक (Universal Music)" या "हार्मनी ऑफ द स्फियर्स (Harmony Of The Spheres)" के नाम से भी जाना जाता है! “म्यूज़िका यूनिवर्सलिस, एक दार्शनिक विचार है जो सूर्य, चंद्रमा और ग्रहों जैसे आकाशीय पिंडों की गतिविधियों को संगीत के एक प्रकार के रूप में देखता है।”
ब्रह्मांडीय संगीत की यह अवधारणा, प्राचीन ग्रीस से शुरू हुई! इसे “पाइथागोरसवाद (Pythagoreanism)” का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है! इसे 16वीं शताब्दी के खगोलशास्त्री “जोहान्स केपलर (Johannes Kepler)” द्वारा आगे विकसित किया गया था। केप्लर मानते थे कि इस "संगीत" को कानों से नहीं, बल्कि आत्मा द्वारा "सुना" जा सकता है।
सार्वभौमिक संगीत का यह विचार पुनर्जागरण के अंत तक विद्वानों के बीच लोकप्रिय रहा, जिसने कई संस्कृतियों के सोचने के तरीकों को भी प्रभावित किया। प्राचीन यूनानी दार्शनिक पाइथागोरस (Pythagoras) का मानना था कि “ब्रह्मांड, आकाशीय पिंडों का एक विशाल आर्केस्ट्रा (Orchestra) है, जो अपनी अनूठी आवृत्ति के साथ गूंजता है।” ये आवृत्तियाँ पूरी तरह से सामंजस्यपूर्ण होती हैं और आकाशीय संगीत की एक सिम्फनी (Symphony) यानी वाद्य-वृंद रचना बनाती हैं। हालांकि, इस ब्रह्मांडीय सिम्फनी को इंसानी कानों द्वारा सुनना असंभव है। इसके पीछे पाइथागोरस और उनके अनुयायियों ने यह तर्क दिया कि “चूंकि यह संगीत लगातार बजता रहता है, इसलिए हम मनुष्यों के पास इसकी तुलना करने के लिए कोई मौन नहीं है, और इस प्रकार, हम इसे मौन के रूप में ही देखते हैं।”
इस तरह से पाइथागोरस ने श्रव्य और अश्रव्य (Audible And Inaudible) के आधार पर समझ का एक नया स्तर पेश किया। 17वीं शताब्दी में जोहान्स केप्लर ने अपने काम, हार्मोनिसिस मुंडी (Harmonices Mundi) में इस विचार पर दोबारा गौर किया। केप्लर ने ब्रह्मांड और प्लेटोनिक ज्यामिति (Platonic Geometry) के हेलिओसेंट्रिक मॉडल (Heliocentric Model) का उपयोग करके, ब्रह्मांड के हार्मोनिक्स (Harmonics) को परिष्कृत किया और ग्रहों की अण्डाकार गति की खोज की। आकाशीय संगीत की अश्रव्यता के बावजूद, केप्लर ने इसके रूपक और आध्यात्मिक अस्तित्व पर जोर दिया। आप इस ब्रह्मांडीय नेटवर्क का लाभ केवल ब्रह्मांड के साथ सामंजस्य से जुड़कर उठा सकते हैं।
पहली बार 'हार्मनी ऑफ़ द स्फेयर्स”' की अवधारणा, ब्रह्मांड को समझने के लिए संख्याओं का उपयोग करने के प्रयास से उभरी। पाइथागोरस ने विभिन्न प्राचीन संस्कृतियों में गणित के उपयोग के बारे में जानने के लिए दुनियां भर की यात्रा की। पाइथागोरस को मुख्य रूप से “गणित को एक व्यावहारिक साधन से ब्रह्मांड को समझने वाले साधन में बदलने के लिए जाना जाता है।” उन्होंने प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने के लिए धर्म, संगीत और गणित को मिलाकर ग्रीक उपनिवेश शहर क्रोटन में एक धार्मिक पंथ की भी स्थापना की। इस पंथ ने ब्रह्मांड की व्याख्या करने के लिए ग्रीक खोज का विस्तार किया, जहां गणित ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पाइथागोरस और उनके अनुयायी प्रकृति के ज्ञान को मात्रात्मक, गणितीय आधार प्रदान करने का प्रयास करने वाले शुरुआती लोग थे। पाइथागोरस ने ब्रह्मांड को एक बड़े संगीत वाद्ययंत्र के रूप में देखा, जिसमें ब्रह्मांड के सामंजस्य को संख्याओं द्वारा दर्शाया गया था।
प्रसिद्ध गणितज्ञ पाइथागोरस ने यह दर्शाया कि “जब विशिष्ट संगीत नोट्स को सामंजस्यपूर्ण बनाया जाता है, तो वे एक सुखद श्रवण अनुभव पैदा करते हैं।” उन्होंने इसके लिए गणितीय आधार की खोज की थी। वह इस खोज से इतना प्रभावित थे कि उन्होंने यह कह दिया कि, 'नंबर या अंक ही सब कुछ है!' यह कथन संभवतः पायथागॉरियन स्कूल (Pythagorean School) द्वारा प्रस्तावित, सबसे प्रसिद्ध वैचारिक सिद्धांत है!
पायथागॉरियन स्कूल एक दार्शनिक और धार्मिक समुदाय है, जो 6ठी से 4थी शताब्दी ईसा पूर्व तक यूरोप के भूमध्यसागरीय क्षेत्र में फला-फूला था।
ऐसा माना जाता है कि “यूरोप में ज्ञान की यात्रा ही पाइथागोरस से शुरू होती है।” पाइथागोरस ही ऐसे पहले यूरोपीय (ग्रीक) व्यक्ति थे, जिन्होंने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में ग्रीस में भारतीय ज्ञान और गणित को व्यवस्थित रूप से पेश किया था। अपनी मातृभूमि में उपलब्ध सर्वोत्तम शिक्षा (जिसमें संगीत और जिमनास्टिक “Gymnastics” शामिल थे) प्राप्त करने के बाद, पाइथागोरस और अधिक ज्ञान की खोज करना चाहते थे। उनकी यात्रा उन्हें मिस्र ले गई। मिस्र में, उनका सामना ऐसे विद्वानों से हुआ जो भारतीयों और भारत-ईरानियों के संपर्क के कारण ज्यामिति और ज्योतिष के अच्छे जानकार बन गए थे। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि पाइथागोरस ने संभवतः पंजाब और यहां तक कि हिमालय की भी यात्रा की होगी। भारतीय दर्शन से जुड़े अपने सभी अनुभवों ने उनकी जीवनशैली और विचार प्रक्रिया को गहराई से बदल दिया।यहां तक की उन्होंने लंबे ग्रीक वस्त्रों को भी स्थायी रूप से त्याग दिया और पतलून को अपना लिया। पाइथागोरस से पहले, यूरोप में पतलून के बारे में कोई नहीं जनता था। उस समय ऊनी पतलून केवल हिमालय में ऊंचाई पर रहने वाले भारतीयों जैसे नेपाल, लद्दाख, तिब्बत, कश्मीर आदि के लोगों द्वारा पहनी जाती थी।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2yfsjk2t
https://tinyurl.com/yb8x7vwf
https://tinyurl.com/3rmmhkec
https://tinyurl.com/2p9fhsc
https://tinyurl.com/tr6vu6ud
चित्र संदर्भ
1. रात के आसमान को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
2. विश्व की सद्भावना को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
3. पाइथागोरस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. हार्मनी ऑफ़ द स्फेयर्स को दर्शाता एक चित्रण (sensorystudies)
5. अपने सिद्धांतों का प्रतिपादन करते पाइथागोरस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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