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हम सभी जानते हैं कि महभारत के भयावह युद्ध का पहला बीज वहीँ पर पड़ गया था जहां पर युधिष्ठिर, मामा शकुनि के योद्धाओं यानी कौरवों से जुएं में अपने राजपाठ को हार गए थे। हालांकि जब युद्ध हुआ तो इसमें अंततः जीत पांडवों की ही हुई। लेकिन अब आप पांडवों को भाग्यशाली कहेंगे या दुर्भाग्यशाली कहेंगे?
बहुत से लोग यह मानते हैं कि उनका सौभाग्य, जुए के खेल में उनकी किस्मत को प्रभावित कर सकता है। विशेष रूप से एशियाई संस्कृतियों में कई लोग यह मानते हैं कि कुछ रंग, संख्याएँ या अनुष्ठान उनके भाग्य को पलट सकते हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि ऑनलाइन जुए (Online Gambling) में भी, खिलाड़ी अक्सर अपनी जीत की संभावना बढ़ाने के लिए, विभिन्न प्रकार की रणनीतियों और तरकीबों का उपयोग करते हैं।
उदाहरण के तौर पर कुछ लोग ऐसे खेलों को चुनने का प्रयास करते हैं, जिनमें अधिक पैसे मिलते हैं, जबकि अन्य लोग अपनी सट्टेबाजी की प्रणालियों को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं। यहां तक की कुछ लोग तो अपने भाग्य को चमकाने के लिए जुआ खेलते समय अपने साथ भाग्यशाली माने जाने वाली वस्तुओं जैसे खरगोश के पैर, घोड़े की नाल या चार पत्ती वाला तिपतिया घास को भी रखते हैं। उनका मानना होता है कि ये वस्तुएं उनके लिए सौभाग्य लाएंगी और जीतने में उनकी मदद करेंगी।
आपने खुद भी अक्सर यह ध्यान दिया होगा कि “कुछ लोग जुआ खेलने से पहले, कुछ अनोखी (जैसे मशीन को एक निश्चित तरीके से छूना, प्रार्थना करना, या पासे पर फूंकना आदि) हरकतें करने लगते हैं।” इन हरकतों के पीछे उनका मानना होता है कि, “ये अनुष्ठान उन्हें भाग्यशाली बनाएंगे और उन्हें जुए पर ध्यान केंद्रित करने तथा जीतने में मदद करेंगे।” वहीँ दूसरी ओर जो लोग, भाग्य की शक्ति पर विश्वास नहीं करते हैं, वे ऐसे ऑनलाइन कैसीनो (Online Casino) को ढूंढते हैं, जहां पर बोनस या पदोन्नति प्रणाली मौजूद होती है, जिससे उनके जीतने की संभावना बढ़ जाती है।
जुआरियों की सोच का पैटर्न यानी उनके सोचने का तरीका भी उनके जुआ खेलने के तरीके को प्रभावित कर सकता है। जुआ अनुभूति सूची (Gambling Cognition Inventory (GCI), इस तरह के दो प्रकार के पैटर्न (भाग्य में विश्वास और विशेष जुआ कौशल में विश्वास) को मापता है। कनाडाई जुआरियों में इन पैटर्न को मापने के लिए जीसीआई एक उपयोगी उपकरण साबित हुआ है। हालांकि, अन्य संस्कृतियों के जुआरियों के लिए जीसीआई की उपयोगिता को परखना अभी भी शेष है।
जुआ खेलना एक जोखिमभरी गतिविधि होती है, क्यों की यह वित्तीय बर्बादी, परिवार टूटने और अन्य समस्याओं का कारण बन सकती है। जुए की लत लोगों को कड़ी मेहनत के बजाय, अपने भाग्य पर भरोसा करने के लिए प्रेरित करती है, और अक्सर नशे की लत की ओर ले जाती है। हालाँकि हिंदू धर्म में जुआ खेलने की स्पष्ट रूप से मनाही नहीं है, लेकिन इसके संभावित नकारात्मक परिणामों के कारण, पौराणिक कथाओं में जुए को लेकर अक्सर चेताया जरूर गया है। उदाहरण के तौर पर महाभारत, में युधिष्ठिर की कहानी के माध्यम से जुए के खतरों पर प्रकाश डालने की कोशिश की गई है, जहां उन्होंने जुए की लत के कारण अपना राज्य, संपत्ति, पत्नी और यहां तक कि अपना जीवन भी खो दिया था।
यद्यपि जुए का खेल प्राचीन भारत में भी प्रचलित था, जिसका उल्लेख वेदों और पुराणों में मिलता है। अग्नि पुराण में जुए के परिणामों की भविष्यवाणी करने के लिए, एक अंधविश्वासी अनुष्ठान का भी वर्णन किया गया है। उस समय जुआ केवल आपके पैसे और संपत्ति तक ही सीमित नहीं था, उस समय कभी-कभी इंसानों, विशेषकर महिलाओं को भी दाव पर लगा दिया जाता था। हम सभी जानते हैं कि महाभारत में पांडवों ने अपनी पत्नी द्रौपदी को जुए में दाव पर लगा दिया था, इसके अलावा देवराज इंद्र भी अप्सरा उर्वशी को एक अन्य जुआरी से हार गए थे।
आपको जानकर हैरानी होगी कि प्राचीन भारत में जुए को न केवल अनुमति दी गई थी, बल्कि राज्य द्वारा इसे विनियमित करने के साथ-साथ इस पर कर यानी टैक्स भी लगाया जाता था। उस समय के जुआघरों में एक अधीक्षक (Superintendent) का होना आवश्यक था, जो खेल की देखरेख और बीच में उठ रहे विवादों को निपटाने का काम करता था। जुआरियों को अपनी जीत पर राजा को कर भी देना पड़ता था।
कुछ हिंदू ग्रंथों, जैसे कि याज्ञवल्क्य स्मृति, ने जुए के लिए विशिष्ट नियम भी निर्धारित किए हैं। उदाहरण के लिए, पाठ में कहा गया है कि एक जुआ घर के अधीक्षक को 100 पण से अधिक के सभी दावों पर पांच प्रतिशत का कमीशन और अन्य सभी दावों पर दस प्रतिशत कमीशन लेना चाहिए। अधीक्षक का काम जीती गई धनराशि में से राजा का हिस्सा इकट्ठा करने के साथ यह भी होता था कि विजेता को भुगतान अवश्य दिया जाए।
इन नियमों के अलावा, जुए में धोखाधड़ी के लिए गंभीर दंड भी थे। याज्ञवल्क्य स्मृति के अनुसार, जो जुआरी धोखाधड़ी करते हुए पकड़ा जाता, उसे कलंकित कर राज्य से निष्कासित किया जा सकता था। हालांकि हिंदू धर्म में जुए को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित नहीं किया गया था, लेकिन यह स्पष्ट था कि प्राचीन भारतीय समाज इसके संभावित नकारात्मक परिणामों के बारे में चिंतित ज़रूर था। याज्ञवल्क्य स्मृति में वर्णित नियमों और दंडों से पता चलता है कि राज्य जुए की अनुमति देने और इसे एक सामाजिक समस्या बनने से रोकने के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा था। भले ही जुआ अतीत में हिंदू संस्कृति का एक हिस्सा रहा होगा, लेकिन आधुनिक समय में इसे आमतौर पर अनुचित और हानिकारक माना जाता है। आधुनिक समय में भारत में कसीनों (Casinos) के उदय ने जुए की नैतिकता से जुड़ी एक नई बहस छेड़ दी है।
जुए की नैतिकता पर सवाल उठाने वाले लोग जुए के ख़िलाफ़ चार मुख्य तर्क देते हैं:
1. सांस्कृतिक सापेक्षवाद: जुआ अनैतिक है यदि यह किसी समुदाय के स्वीकृत सांस्कृतिक और/या धार्मिक मानदंडों के विरुद्ध जाता है।
2. उपयोगितावाद: जुआ अनैतिक है, यदि यह समग्र रूप से समाज को फायदे से अधिक नुकसान पहुंचाता है।
3. कांतियन नैतिकता: (Kantian Ethics) जुआ अनैतिक है, यदि यह लोगों के मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है।
4. अरस्तोतेलियन नैतिकता (Aristotelian Ethics): जुआ अनैतिक है, अगर यह उन बुराइयों को बढ़ावा देता है जो मानव समृद्धि के लिए हानिकारक हैं। महाभारत में पांडवों और कौरवों की कहानी इस बात का प्रमुख उदाहरण है कि जुआ कैसे अकेले ही खुशहाल वंशों का भी विनाश कर सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/msetm4m5
https://tinyurl.com/2w4jdn9x
https://tinyurl.com/4bdfvhf5
https://tinyurl.com/3z94su8b
https://tinyurl.com/3ht6k6c8
चित्र संदर्भ
1. महाभारत में जुए के खेल के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (garystockbridge617)
2. एक भारतीय कसीनों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. ऑनलाइन कसीनों को दर्शाता एक चित्रण (Pexels)
4. जुआ खेलते भारतीयों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. श्री कृष्ण और पासों के साथ शकुनी को दर्शाता एक चित्रण (
DeviantArt)
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