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भारत को आजादी मिलने के तुरंत बाद, देश में ढेरों हिंदी साप्ताहिक पत्रिकाएँ प्रकाशित होने लगीं। इन सभी में से दो पत्रिकाओं को पाठकों से खूब प्यार मिला, जिनमें से पहली थी, हिंदुस्तान टाइम्स (Hindustan Times) द्वारा जारी की गई "साप्ताहिक हिंदुस्तान" और दूसरी थी टाइम्स ऑफ इंडिया (Times Of India) द्वारा शुरू की गई "धर्मयुग" नामक पत्रिका। हालांकि इंटरनेट के आगमन के साथ ही इन पत्रिकाओं का प्रकाशन भी कम या बंद हो गया। लेकिन 1960 से 1980 के दशक में, रंगीन चित्रों और अनोखे तथ्यों से भरपूर इन्हीं पत्रिकाओं का दबदबा चलता था!
उत्तर भारत में धर्मयुग नामक हिंदी पत्रिका बहुत लोकप्रिय हुआ करती थी।
इसका संपादन प्रसिद्ध उपन्यासकार और नाटककार धर्मवीर भारती द्वारा किया जाता था। यह पत्रिका बेनेट एंड कोलमैन (Bennett & Coleman (B&C) नामक कंपनी द्वारा प्रकाशित की जाती थी, जिसके मालिक साहू जैन और रमा जैन थे। उन्होंने रचनात्मक लेखन का समर्थन किया और यहां तक कि ज्ञानपीठ पुरस्कार भी शुरू किया, जिसे विभिन्न भारतीय भाषाओं के लेखकों के लिए एक बड़ा साहित्यिक पुरस्कार माना जाता है। बेनेट एंड कोलमैन , जिसे बाद में टाइम्स ऑफ इंडिया समूह के नाम से जाना गया, ने सारिका (जिसमें आधुनिक हिंदी लेखन था) और दिनमान (राजनीति और अर्थशास्त्र से जुड़ी एक साप्ताहिक पत्रिका) जैसी कुछ पत्रिकाएँ प्रकाशित कीं। इसी दौरान धर्मयुग और सारिका के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए बिरला (Birla) के स्वामित्व वाले एक समूह, हिंदुस्तान टाइम्स समूह ने "कादंबरी" और "साप्ताहिक हिंदुस्तान" जैसी पत्रिकाओं को प्रकाशित किया। इन समूहों ने उस समय के सबसे लोकप्रिय हिंदी लेखकों की कहानियाँ प्रकाशित करने का प्रयास किया। 1950 और 1960 के दशक में उत्तर भारत के हर पुस्तकालय और पाठक के पास ये पत्रिकाएँ होती थीं। “साप्ताहिक हिन्दुस्तान” विशेष तौर पर साहित्य के साथ-साथ सामाजिक विषयों पर गंभीर व गवेषणापूर्ण (Exploratory) लेखों तथा उच्च स्तरीय काव्य-विधाओं के प्रकाशन के लिये जानी जाती थी।
इसके साथ-साथ साप्ताहिक हिंदुस्तान, ज्ञान-विज्ञान पर आधारित समसामयिक उपयोगी सामग्री भी प्रदान करती थी। इस साप्ताहिक पत्रिका के सम्पादक श्री मुकुट बिहारी वर्मा थे और इसका प्रथम अंक 1950 में प्रकाशित हुआ था। इस पत्रिका के संपादक श्री मुकुट बिहारी वर्मा के कार्यकाल के तीन वर्ष बाद इसका संपादन भार श्री बांके बिहारी भटनागर को सौंपा गया, जिन्होंने लगभग 15 वर्ष तक इसका कुशलता से संपादन किया और साप्ताहिक हिंदुस्तान को देश भर में लोकप्रियता दिलाई। इसे लोकप्रिय बनाने के लिए उन्होंने अपने समय के सभी लेखकों, कवियों और साहित्यकारों का सहयोग लिया। प्रसार संख्या की दृष्टि के आधार पर, इन सभी हिन्दी की साप्ताहिक पत्रिकाओं में साप्ताहिक हिंदुस्तान दूसरे स्थान पर आती है। हालांकि लंबे समय तक पाठकों की पहली पसंद रहने के बावजूत, हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की यह विशुद्ध साहित्यिक पत्रिका और इस जैसी कई पत्रिकाएं अलग-अलग कारणों से बंद हो गई।
किंतु इसी बीच ‘इंडिया टुडे’ (India Today) ने एक साप्ताहिक पत्रिका के तौर पर अपने 25 वर्ष सफलतापूर्वक पूरे कर लिए हैं। ‘इंडिया टुडे’ पत्रिका का प्रकाशन 1975 से नई दिल्ली स्थित लिविंग मीडिया इंडिया लिमिटेड (Living Media India Limited) से किया जा रहा है। अंग्रेजी के साथ-साथ इंडिया टुडे हिंदी में भी प्रकाशित होती है। यह पत्रिका इंडिया टुडे समूह का हिस्सा है। इस पत्रिका के सफर की शुरुआत 1975 में 5,000 प्रतियों के वितरण के साथ हुई थी लेकिन आज इसके साथ 5.62 मिलियन से अधिक पाठक जुड़ चुके हैं और इसकी तकरीबन 1.1 मिलियन से अधिक प्रतियाँ हर साल वितरित होती हैं।
पहले के समय में साप्ताहिक हिंदुस्तान, धर्मयुग और सारिका जैसी कई पत्रिकाएँ अपने साहित्य और बौद्धिक सामग्री के बल पर मध्यम वर्ग के बीच खूब लोकप्रिय हुआ करती थीं। लेकिन जब इन पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद हो गया तो हिंदी साहित्य जगत में एक खालीपन आ गया। शुक्र है, कि आगे चलकर यह खालीपन छोटी पत्रिकाओं ने भर दिया, जिन्हें "लघु पत्रिकाएं" कहा जाता है। आज के समय में ऐसी लगभग एक हजार से अधिक छोटी पत्रिकाएं हैं। जिनमें से तद्भव, हंस, समयांतर, पहल कथादेश, आलोचना, पल-प्रतिपल, नया ज्ञानोदय, समकालीन जनमत और उद्भावना आदि प्रमुख हैं। ये पत्रिकाएँ गंभीर साहित्य और विचारों पर केन्द्रित हैं।
ये छोटी पत्रिकाएँ उन संपादकों द्वारा चलाई जाती हैं, जो साहित्य और विचारों में रूचि रखते हैं। लघु पत्रिकाएँ समाज को प्रतिबिंबित करती हैं और अक्सर सत्ता को चुनौती देने का काम करती हैं। इनके माध्यम से पीड़ितों का समर्थन और सहायता करने का प्रयास किया जाता है। उदाहरण के तौर पर "हंस पत्रिका" के संपादक के अनुसार वे जीवन, लिंग, भाषा और समाज पर पारंपरिक विचारों को चुनौती देने से नहीं डरते हैं।
सीमित बजट और संसाधन होने के बावजूद लघु पत्रिकाओं ने हिंदी साहित्य में बड़ा अहम् योगदान दिया है। उन्होंने समाज के महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला है। उदाहरण के लिए, कई छोटी पत्रिकाओं ने 1857 के विद्रोह की 150वीं वर्षगांठ पर विशेष अंक प्रकाशित किये। वहीँ मुख्यधारा की पत्रिकाओं में 1857 के विद्रोह के ऐतिहासिक महत्व पर कोई भी चर्चा नहीं की जाती है। लघु पत्रिकाएं समाज में इसलिए भी अहम् भूमिका निभाती हैं, क्यों कि ये बुद्धिजीवियों को सामाजिक मुद्दों और राज्य सत्ता के खिलाफ लोकतांत्रिक असहमति पर चर्चा करने के लिए एक मंच प्रदान करती हैं।
संदर्भ
Https://Tinyurl.Com/Mscekdw4
Https://Tinyurl.Com/3zjwxmme
Https://Tinyurl.Com/523scfv6
Https://Tinyurl.Com/Mep7xeh7
Https://Tinyurl.Com/Mw59vpkt
चित्र संदर्भ
1. साप्ताहिक हिन्दुस्तान पत्रिका को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. धर्मयुग नामक हिंदी पत्रिका को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. एक पत्रिका विक्रेता को दर्शाता एक चित्रण (PxHere)
4. ‘इंडिया टुडे’ की साप्ताहिक पत्रिका को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. अख़बारों के समूह को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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