लखनऊ की गोमती नदी पर बना लौह पुल, निर्माण की पूर्वनिर्मित संरचना तकनीक का है भाग

वास्तुकला 1 वाह्य भवन
21-08-2023 09:49 AM
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लखनऊ की गोमती नदी पर बना लौह पुल, निर्माण की पूर्वनिर्मित संरचना तकनीक का है भाग

आज के युग में, प्रीफैब्रिकेशन (Prefabrication) कोई नई बात नहीं है। आज यह तकनीक डिजाइन (Design), भवन निर्माण और वास्तुकला की समग्र प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण बन गई है। दरअसल, प्रीफैब्रिकेशन किसी कारखाने या कार्यशाला में निर्माण–स्थल से कही दूर अर्थात ऑफ साइट (Offsite), मानकीकृत घटकों या बुनियादी संरचनाओं का उत्पादन करने की एक विधि है। फिर इन्हें, निर्माण–स्थल पर अर्थात ऑन साइट (On site) एक साथ खड़ा किया जा सकता है। पूर्वनिर्मित घटकों या संरचनाओं को समतल तरीके से बांधकर या आंशिक रूप से खड़ा करके निर्माण–स्थल पर लाया जा सकता है। आम भाषा में हम इसे, ‘पहले से गठित’ अथवा ‘पूर्वनिर्मित संरचनाएं’ कह सकते हैं। वैसे तो किसी भी निर्माण के बुनियादी ढांचे के रूप में, कंक्रीट (Concrete) और स्टील (Steel) की संरचनाओं का उत्पादन निर्माण-स्थान से दूर अर्थात, उनका प्रीफैब्रिकेशन ही होता है। यंत्रों के द्वारा निर्माण में, भवन निर्माण मानकीकृत और पूर्वनिर्मित संरचनात्मक घटकों के साथ ही, अपना पहला कदम रख सका है। प्रीफैब्रिकेशन काफ़ी समय से अपने विकासात्मक चरण में था, और 20वीं शताब्दी के अंतिम दशकों में यह विकसित हुआ। समकालीन वास्तुकला में उपयोग की जाने वाली सामान्य पूर्वनिर्मित संरचनाओं को, प्रयुक्त की गई प्रमुख संरचनात्मक सामग्री के आधार पर तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता हैं: पहली है पूर्वनिर्मित कंक्रीट, दूसरी पूर्वनिर्मित स्टील और तीसरी पूर्वनिर्मित लकड़ी प्रणाली। इन तीनों प्रकारों में, अपनी यांत्रिक प्रकृति के कारण संरचनात्मक अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए, पूर्वनिर्मित स्टील प्रणाली सबसे आसान तरीका है।
हमारे ‘निर्माण इतिहास’ में प्रीफैब्रिकेशन ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह कई देशों में काफ़ी पहले से प्रसिद्ध था। हालांकि, तब यह संकल्पना, जहां कोई निर्माण उपयुक्त स्थानीय सामग्री उपलब्ध नहीं होती थी, वहां एक समाधान थी। उदाहरण के लिए, पूर्वी उपनिवेशों में, जहां इमारतों को जल्दी से खड़ा किया जाना आवश्यक था, या फिर जहां कौशल और सामग्री की कमी थी, वहां इस तकनीक ने निर्माण कार्य को आसान बना दिया था। मेसोपोटामिया सभ्यता (Mesopotamian civilisation) की पकी हुई मिट्टी की ईंटों से लेकर प्राचीन रोमनों (Romans) तक, जो अपने नहरों एवं सुरंगों के लिए कंक्रीट के सांचों का उपयोग करते थे, यह तकनीक प्रसिद्ध थी। विलियम द कॉन्करर (William the Conqueror), जिन्होंने 1066 में इंग्लैंड (England) पर आक्रमण किया था, वह भी आक्रमण के समय अपने साथ रक्षा हथियारों के पूर्वनिर्मित खंड लेकर आए थे। विश्व के इन स्थानों के साथ ही, हमारे देश और राज्य में भी कई पूर्वनिर्मित संरचनाएं देखी जा सकती हैं। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि, हमारे शहर लखनऊ में ऐसी संरचना कहा है? आइए, हम आपको बताते हैं। गोमती नदी पर बना लौह पुल नवाब अमजद अली (1842-1847) के शासनकाल में बनाया गया था। हालांकि, इसकी लोहे की संरचना वास्तव में, कई साल पहले ब्रिटेन (Britain) से आयात की गई थी।
ब्रिटेन की बटरली (Butterley) कंपनी द्वारा बनाए गए, इस लौह पुल के 2,500 टुकड़े 1820 के दशक में लखनऊ में आयात किए गए थे। इस पुल को 1814 में जॉन रेनी (John Rennie) द्वारा डिजाइन किया गया था। लेकिन, इसके निर्माण हेतु तकनीकी विशेषज्ञता की आवश्यकता थी। और तत्कालीन अवध राज्य में, इंजीनियरिंग कौशल एवं ज्ञान की कमी के कारण इसके निर्माण में देरी हुई थी। फिर बाद में, अमजद अली ने ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) से मदद के लिए संपर्क किया। तब, अंततः ईस्ट इंडिया कंपनी के अलेक्जेंडर फ्रेजर (Alexander Fraser) और उनके बंगाल इंजीनियरों के संघ ने इसका निर्माण पूर्ण किया। जबकि, अब यह हमारे शहर का एक विशिष्ट आभूषण बन गया है। यहां हम आपको बता दें कि बटरली कंपनी एक अंग्रेजी विनिर्माण कंपनी थी, जिसकी स्थापना 1790 में बेंजामिन आउट्राम एंड कंपनी (Benjamin Outram and Company) के रूप में की गई थी। इसकी सहायक कंपनियां वर्ष 2009 तक अस्तित्व में थीं। यह डर्बीशायर (Derbyshire) क्षेत्र के रिपले (Ripley) शहर में स्थित थी। डर्बीशायर का क्षेत्र लौह अयस्क के भंडार के लिए जाना जाता था। और अतः यह विनिर्माण कंपनी यहां स्थित थी। जबकि, जनरल (General) अलेक्जेंडर फ़्रेज़र (1824–1898) रॉयल इंजीनियर्स (Royal Engineers) अथवा बंगाल इंजीनियर्स में, एक ब्रिटिश सेना अधिकारी थे। उन्होंने भारत एवं बर्मा (Burma) में सेवा दी थी। जैसा कि हम पढ़ चुके हैं कि, वह 1844 में लखनऊ में गोमती नदी पर बनाएं गए लौह पुल के निर्माण के प्रभारी भी थे।
दशकों के तकनीकी विकास के बाद, अब हम, पूर्वनिर्मित वास्तुकला की क्षमता की खोज जारी रखने तथा इसे अपनी निर्माण डिजाइनों के पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने हेतु एक मानक तरीके के रूप में विचार करने के लिए सुसज्जित हैं। दिलचस्प बात यह है कि, इसकी संभावनाएं केवल विस्तारित ही हो रही हैं!

संदर्भ
https://tinyurl.com/m5nwuun6
https://tinyurl.com/5e9bvmxn
https://tinyurl.com/32kjuym5
https://tinyurl.com/c7u8v28x
https://tinyurl.com/ep5pn3zk
https://tinyurl.com/bdcpy94a

चित्र संदर्भ
1. गोमती नदी पर बने लौह पुल को दर्शाता चित्रण (Prarang)
2. प्रीफैब्रिकेशन निर्माण को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
3. प्रीफैब्रिकेशन इंस्टालेशन को दर्शाता चित्रण (Wallpaper Flare)
4. लौह पुल के विस्तृत दृश्य को दर्शाता चित्रण (Look and Learn)

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