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क्या आपने कभी आसमान से टूटते तारे को देखा हैं? दरअसल, यह कोई तारा नहीं होता है। यह उल्कापात होता है, और इनमे से उल्कापिंड धरती पर गिरते हैं। उल्कापिंड अंतरिक्ष में बने धूल और चट्टान के कण या टुकड़े होते हैं, जो आमतौर पर पृथ्वी के वायुमंडल से गुजरते समय जल जाते हैं, और यही चिंगारी हमें दिखती है। हालांकि, इनमें से जो उल्कापिंड पृथ्वी पर गिरते हैं, वे हमें सौर मंडल तथा हमारी पृथ्वी के निर्माण के इतिहास के बारे में अधिक जानकारी और सबूत प्रदान कर सकते हैं।
लंदन(London) के ब्रिटिश संग्रहालय(British Museum) में, भारत में प्राप्त कई उल्कापिंडों को संरक्षित किया गया हैं। भारत में ब्रिटिश काल के दौरान दर्ज किए गए, कुल 106 उल्कापातों में से 86 उल्कापातों के कुछ मुख्य उल्कापिंड संग्रहालय में संग्रहित किए गए हैं तथा इनकी सूची भी बनाई गई है। दरअसल, यह संग्रह काफी हद तक, भारत सरकार तथा भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के निदेशक द्वारा की गई मदद के कारण पूरा हुआ है। इन उल्कापिंडों को संग्रहित करने में कलकत्ता के भारतीय संग्रहालय (Indian Museum, Kolkata) तथा एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल(Asiatic Society of Bengal) के अधिकारियों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। वर्ष 1798 में बनारस में हुए उल्कापात का एक उल्कापिंड भी, 1802 में सर जोसेफ बैंक्स (Sir Joseph Banks) द्वारा इस संग्रह के लिए प्रस्तुत किया गया था।
106 उल्कापिंडों की सूची में अधिकतर अर्थात् 100 उल्कापिंड पत्थर हैं, जबकि,केवल चार लौह (गढ़ी यासीन, कोडाइकनाल, नेदागोला, और समेलिया) तथा दो लौह–पत्थर(लोद्रन और सिंघुर) हैं। इन चार उल्कापिंडों में से तीन लौह उल्कापिंडों को प्रत्यक्ष गिरते हुए देखा गया था।परंतु, इनमें से केवल एक ही लौह उल्कापिंड संग्रहित किया जा सका। अनुमान है कि, भारत का एक बड़ा हिस्सा, प्राचीन काल से ही सघन रूप से बसा होने के कारण तथा यहां हुई खेती के परिणामस्वरूप, अधिकांश उल्कापिंडों का लोगों ने धातु के रुप में उपयोग कर लिया होगा।
वास्तव में, लगभग सभी अर्थात् 101 भारत में गिरे उल्कापिंडों को प्रत्यक्ष रूप से गिरते हुए देखा गया है । इसके साथ ही, कुल 83 उल्कापातों का समय भी दर्ज किया गया है। इनमें से 68 (81.9%) पिंड दिन के दौरान सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे के दौरान गिरे थे जबकि, केवल 15 (18.1%) रात के दौरान गिरे थे।
हम इन उल्कापातों की वास्तविक आवृत्ति के बारे में कुछ तथ्य भी जानते हैं। संयुक्त प्रांत (United Province) जो कि, ब्रिटिश भारत के आगरा एवं अवध प्रांत थे, में हुए उल्कापातों की काफी दिलचस्प जानकारी उपलब्ध है।इस प्रांत में 1831-1930 के दौरान घटित 24 उल्कापातों में से 12 उल्कापात पहले पचास वर्षों के दौरान हुए थे जबकि, समान संख्या में अगले पचास वर्षों के दौरान उल्कापात हुए थे। आश्चर्य की बात है कि इस प्रांत के कुल क्षेत्रफल, अर्थात् 1,07,000 वर्ग मील, जो वर्तमान में हमारे उत्तर प्रदेश एवं उत्तराखंड राज्य से बनता है, में से 11,000 वर्ग मील के हिमालय और दक्षिण मिर्ज़ापुर के कम आबादी वाले इलाकों में ऐसी कोई भी घटना दर्ज नहीं की गई थी।
आइए, हमारे राज्य के कुछ क्षेत्रों में हुए उल्कापातों के बारे में अधिक जानते हैं:
1.बनारस में 19 दिसंबर 1798 को रात्रि 8 बजे पत्थरों की बौछार हुई थी, जिनमें गोलाकार कोन्ड्राइट (Chondrite) उल्कापिंड मौजूद थे। संग्रहित किए गए, सबसे बड़े पिंड का वजन 1 किलो था।
2.वर्ष 1860-1862 के दौरान मेरठ में हुए उल्कापात में मध्यम आकार का कोन्ड्राइट पाया गया था। संग्रहित किए गए पिंड का वजन मात्र 22 ग्राम था।
3. जबकि, मिर्ज़ापुर में हुए उल्कापात में मध्यम आकार का खंडित कोन्ड्राइट गिरा था, जिसका वजन 8.5 किलोग्राम था। यह उल्कापात 7 जनवरी 1910 को 11.30 पूर्वाह्न हुआ था।
इसके अलावा, हाल ही के कुछ वर्षों में भी हमारे देश में कुछ उल्कापात हुए हैं; पिछले ही साल 17 अगस्त को गुजरात के दो गांवों में उल्कापात हुआ। तब अहमदाबाद की भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के शोधकर्ताओं ने पाया कि वह प्राप्त पत्थर एक दुर्लभ प्रकार का उल्कापिंड था। इस पिंड के गिरने पर उससे थोड़ी तीखी गंध भी आ रही थी।यह उल्कापिंड ऑब्राइट(Aubrite) का एक दुर्लभ एवं अनोखा नमूना है। और क्या आप जानते है कि, ऑब्राइट उल्कापात पहली बार हमारे राज्य के गोरखपुर में दर्ज किया गया था? जी हां, आपने सही पढ़ा हैं - ऐसे पिंड को गोरखपुर में 1852 में अर्थात 170 साल पहले केवल एक ही बार देखा गया था।
ऑब्राइट्स मोटे दाने वाली आग्नेय चट्टानें होती हैं। एक अध्ययन के अनुसार, इमें मुख्य रूप से एनस्टैटाइट(Enstatite) नामक खनिज था, जिसकी विशेषताएं बुध ग्रह की सतह पर पाए जाने वाले खनिजों के समान थीं। इसकी पुष्टि यह तथ्य करता है कि, इसमें पाए गए, विभिन्न खनिज पृथ्वी पर बिलकुल भी नहीं पाए जाते हैं। उल्कापिंड का यह दुर्लभ नमूना हमें विभिन्न ग्रहों की प्रक्रियाओं को समझने के लिए भी मदद करेगा।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर, के छात्रों और शोधकर्ताओं के एक संघ ने एक अन्य चौंकाने वाले उल्कापिंड का विश्लेषण किया है। 2015 में असम के एक गांव में यह उल्कापिंड गिरा था। वास्तव में यह उल्कापिंड एक प्रभाव घटना के कारण, उच्च दबाव और उच्च तापमान की स्थिति से गुज़रा, और इससे यह निष्कर्ष निकला है कि, इसकी रासायनिक संरचना पृथ्वी के मैंटल(Mantle) आवरण में पाए जाने वाले घटकों के समान है। यह उल्कापिंड, मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच स्थित क्षुद्रग्रह पट्टे से संबंधित था। ये क्षुद्रग्रह ग्रहों के निर्माण के दौरान ठोस कणों के संचय से बने हैं। निष्कर्षों के अनुसार, पृथ्वी का आवरण भी एक ऐसे ही पदार्थ से बना है, जो इस उल्कापिंड का निर्माण करता है।
यह दरअसल,ओलिवाइन(Olivine) नामक पदार्थ से बना है, जो पृथ्वी के आवरण में पाया जाने वाला, एक महत्वपूर्ण खनिज है।। ओलिवाइन एक चट्टान बनाने वाला खनिज है, जो गहरे रंग की आग्नेय चट्टानों में पाया जाता है। पहली बार, शोधकर्ताओं ने उल्कापिंड में ऐसी संरचनाएं देखी हैं, जो उच्च तापमान और दबाव पर ओलिवाइन के पिघलने पर बनती हैं। इससे यह पुष्टि होती है कि,मैंटल में पाया जाने वाला रसायन क्षुद्रग्रह बेल्ट में भी मौजूद है।
एक अन्य संदिग्ध उल्कापिंड बिहार के मधुबनी जिले में धान के खेत में गिरा था, जिसका आकार एक फुटबॉल जैसा था। उस समय उस क्षेत्र में काम कर रहे मजदूरों ने आसमान से, एक आग के गोले जैसी वस्तु को नीचे आते हुए देखा । गांव के निवासियों ने बाद में एक 5 फीट गहरे गड्ढे से इस उल्कापिंड को खोदकर बाहर निकाला ।इस पिंड में चमक थी तथा इसका रंग हल्का था। वजन में यह पिंड लगभग 15 किलोग्राम था। बताया गया था कि, इसमें मजबूत चुंबकीय गुण हैं।
कितनी आश्चर्य की बात है ना कि, अंतरिक्ष से धरती पर गिरने वाली वस्तुएं हमें पृथ्वी की संरचना के बारे में तथ्य बताती है! हम आशा कर सकते हैं कि आने वाले समय में वैज्ञानिक ऐसे अध्ययनों से महत्त्वपूर्ण खोज कर सकेंगे ।
संदर्भ
https://tinyurl.com/ycx39fbb
https://tinyurl.com/48t4vbca
https://tinyurl.com/bdewpv4d
https://tinyurl.com/3ybrnxtd
https://tinyurl.com/57nxv528
https://tinyurl.com/3nnm566d
चित्र संदर्भ
1. पृथ्वी की ओर बढ़ते उल्कापिंड को दर्शाता चित्रण (Wallpaper Flare)
2. संग्रहालय में रखे गए उल्कापिंड को दर्शाता चित्रण (Wallpaper Flare)
3. जलते हुए उल्कापिंड को दर्शाता चित्रण (Needpix)
4. नासा के उल्का बौछार पोर्टल को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
5. एनस्टैटाइट(Enstatite) नामक खनिज को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
6. बिहार में गिरे उल्कापिंड को दर्शाता चित्रण (Youtube)
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