लखनऊ में तम्बाकू

कोशिका के आधार पर
14-02-2018 11:39 AM
लखनऊ में तम्बाकू

तम्बाकू और दुसरे सब्जिओं की उपज के लिए रखी जमीन को कछिअना। कछिअना दो प्रकार के होते थे, प्रथम श्रेणी की जमीन नगर पालिका के तहत थी और सिंचाई तथा अच्छे खाद की वजह से अधिक उपजाऊ थी। दूसरी श्रेणी की कछिअना जमीन नगर पालिका के अधिकार के बाहर तराई क्षेत्र में स्थित थी और उसकी उपज की क़ीमत सीधे बाज़ार में बेचने पर मिलती थी। गोमती के किनारे तुच्छ प्रकार की जमीन पर उपज होने वाले को चौथी श्रेणी में रखा गया था। लखनऊ में बहरहाल तम्बाकू की खेती बड़े पैमाने पर नहीं होती थी मगर लखनऊ नवाबों, अमीरों और कुलीन लोगों ने इसे एक उच्च दर्जा प्राप्त करवाया जिसमें हुक्का (प्रस्तुत चित्र देखिये) पीना बड़े घराने का लक्षण माना जाता था। आज भी भारत में हुक्का एक बड़े दर्जे का लक्षण माना जाता है, अगर कोई समाज विरोधी काम करे तो आज भी पंचायत या उस व्यक्ति का समाज उसे हुक्का-पानी बंद कर देने की बात करता है जिसका मतलब होता है की उस व्यक्ति का दर्जा अब समाज के साथ उठने बैठने लायक नहीं है। निकोटियाना प्रजाति के पेड़ के पत्तों को सुखा कर तम्बाकू का निर्माण किया जाता है। इन पत्तों की कोशिकाओं में सोलानेसोल, नायट्रईल्स, पायरीडीन्स और सबसे महत्वपूर्ण निकोटिन रहता है जिससे कैंसर हो सकता है। तम्बाकू के विविध प्रकार जैसे खमीरा तम्बाकू धुम्रपान के लिए और ज़र्दा यह तम्बाकू चबाने के लिए ज्यादातर इस्तेमाल किया जाता है। सिगरेट के आने पर लखनऊ से तम्बाकू की निर्यात बहुत कम हो गयी थी मगर फिर भी यह प्रकार बड़े मशहूर थे और इनके उत्पाद-उद्योग में बहुत लोग काम करते थे। खमीरा तम्बाकू खमीरा एकसेरा (मतलब एक सेर एक रुपये में) तथा चौसेरा (मतलब चार सेर एक रुपये में) ऐसे बेचा जाता था तथा इसके तीन मुख्य प्रकार हैं कड़वा तम्बाकू जो बहुत तीव्र जायके का होता है, दोर्सा यह मध्यम और मीठा यह बहुत हलके ज़ायके का रहता है। आज भी पान या मावा बनाने में इन अलग प्रकार के तम्बाकू का इस्तेमाल होता है और पनवाड़ी ग्राहक के पसंद के हिसाब से इन ज़ायकों को मिलकर बनाता है। हुक्के में इस्तेमाल करने के लिए जो खमीरा बनाया जाता है उसमे ज़ायके की मजबूती और विविधता के लिए जैसे उसका नाम है उसी हिसाब से अलग अलग प्रमाण में तम्बाकू ले पत्ते, मसाले, सज्जी, अलग अलग किस्म के फल जैसे अनानास, जामुन, बेर आदि गुड़ के रस में मिलाये जाते हैं जिसे फिर ज़मीन के अन्दर 3-4 महीनों में दबाया जाता है खमीर उत्पन्न करने के लिए। चबाने का तम्बू जिसे जर्दा कहते हैं खास रेह की ज़मीन में उगाये गए काली पत्ती से बनता है। इसे बनाने के लिए इसमें उबले हुए चाशनी जैसे किमाम जिसमे कुछ मसाले भी मिलाए जाते हैं और फिर इस्तेमाल होता है। किमाम के लसदार मिश्रण से फिर छोटी गोलियां और गोले बनाए जाते हैं जिसपर सोने और चाँदी का वर्ख लगाया जाता है। तम्बाकू से सेहत का जो नुक्सान होता है उसकी वजह से उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे बेचने पर पाबन्दी लगायी है। 1. डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर ऑफ़ द यूनाइटेड प्रोविन्सेस ऑफ़ आग्रा एंड औध: हेन्री रिवेन नेविल, 1904 2. रिपोर्ट ओन ओरल टोबाको यूज़ एंड इट्स इम्प्लिकेशन इन साउथ ईस्ट एशिया, डब्लू.एच.ओ सीएरो 2004 http://www.searo.who.int/tobacco/topics/oral_tobacco_use.pdf

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