मुगलिया इमारतों से प्रेरणा लेकर, लखनऊ में चिकनकारी जैसे उत्कृष्ट शिल्प का उदय हुआ!

स्पर्शः रचना व कपड़े
04-06-2023 08:07 AM
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भारत में मुगलों का शासनकाल समाप्त हुए एक अरसा गुजर चुका है! लेकिन मुगल वंश का, भारत की संस्कृति पर काफी गहरा प्रभाव पड़ा। हमारे लखनऊ में चिकनकारी जैसे उत्कृष्ट शिल्प का उदय इस प्रभाव का रूपक है। चिकनकारी अपनी जटिल कढ़ाई, विस्तृत पैटर्न, अलंकृत रूपांकनों, और नाजुक डिजाइनों के लिए जानी जाती है। मुग़ल वास्तुकला ने चिकनकारी को आकार देने, तथा भारत में लोकप्रिय बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई। मुगल स्मारकों में देखे जाने वाले खूबसूरत मेहराब, गुंबद, और जाली के उत्कृष्ट काम ने चिकनकारी के पैटर्न और रूपांकनों को प्रेरित किया। चिकनकारी कढ़ाई मुगल संरचनाओं के वास्तुशिल्प तत्वों को दर्शाती है। मुगल शिल्प कौशल की सटीकता को चिकनकारी में इस्तेमाल की जाने वाली सिलाई और जटिल थ्रेडवर्क तकनीकों, (Intricate Threadwork Techniques) जैसे मुरी, फंदा, लरची, कीलकांगन और बखिया आदि में देखा जा सकता है। चिकनकारी बनाने की प्रक्रिया में तीन चरण शामिल हैं- ब्लॉक प्रिंटिंग (Block Printing), कढ़ाई, और धुलाई । सबसे पहले, एक लकड़ी के ब्लॉक पर एक डिज़ाइन उकेरा जाता है, जिसे बाद में रंगों में डुबोया जाता है, और इससे कपड़े पर मुहर लगाई जाती है। इसके बाद, कपड़े पर विभिन्न टांकों का उपयोग करके, जटिल डिजाइनों के साथ कशीदाकारी की जाती है। अंत में, स्याही के निशान को हटाने के लिए कपड़े को धोया जाता है। चिकनकारी एक मेहनत भरी कला है, जिसमें सटीक और सूक्ष्मता के साथ काम करने के लिए कुशल कारीगरों की आवश्यकता होती है। ऊपर दिए गए वीडियो से आप इस शानदार विरासत शिल्प को और बारीकी से समझ सकते हैं।
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