लखनऊ के वैज्ञानिक अचंभित; क्यों नहीं बचा पा रहे हम अपने यहां, अफ्रीकी चीता को

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लखनऊ के वैज्ञानिक अचंभित; क्यों नहीं बचा पा रहे हम अपने यहां, अफ्रीकी चीता को

70 साल पहले भारत में पूर्ण रूप से विलुप्त होने के बाद पिछले साल से अब तक नामीबिया (Namibia) और दक्षिण अफ्रीका (South Africa) से कुल 20 चीतों को मध्य प्रदेश के ‘कूनो नेशनल पार्क’ में एक मुक्त आबादी स्थापित करने के लिए लाया जा चुका है। इनमें आठ नामीबियाई (Namibian) चीते (पांच मादा और तीन नर), तथा 12 दक्षिण अफ्रीकाई (South African) चीते (सात नर और पांच मादा) शामिल हैं।
किंतु विदेशों से लाए गए इन चीतों में से एक चीता “साशा” की 27 मार्च को गुर्दे की बीमारी से मृत्यु हो गई थी। हाल ही में इस साल मार्च में कूनो नेशनल पार्क में एक नामीबियाई मादा चीता ने चार शावकों को जन्म दिया था, किंतु गर्मी और कुपोषण के कारण इनमें से तीन शावकों की भी मृत्यु हो गई। इसी तरह एक अन्य चीते, उदय, की मौत संभवत: दिल का दौरा पड़ने या सांप द्वारा काटे जाने, या अन्य शारीरिक क्षति के कारण हुई थी। इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका से लाई गई मादा चीता, दक्षा की दो नर चीतों से भिड़ंत के कारण मौत हो गई। इसके अलावा पिछले महीने ‘ओबन’ (Oban) नाम का एक नर चीता ‘कूनो राष्ट्रीय वन’ से भटक कर उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के पास के जंगलों में पहुंचा। मध्य प्रदेश के ‘कूनो नेशनल पार्क’ से भटके नर चीते को उस समय पकड़ लिया गया, जब वह हमारे उत्तर प्रदेश के एक जंगल को पार करने वाला था, और उसे पार्क में वापस लाया गया। यह दूसरी बार था, जब चीता ‘ओबन’ को नियंत्रित किया गया, और पार्क से लंबी दूरी तक भटकने के बाद वापस कूनो नेशनल पार्क लाया गया था। जब चीते को पकड़ा गया तो वह झांसी की ओर बढ़ रहा था। इन चीतों को एक महत्वाकांक्षी ‘चीता पुन: परिचय कार्यक्रम’ (Cheetah Reintroduction Program) के तहत नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से ‘कूनो राष्ट्रीय उद्यान’ में लाया गया था। लखनऊ के ‘बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पेलियो साइन सेंस’ (Birbal Sahni Institute of Palaeosciences) में किए गए शोध ने भी अफ्रीकी और भारतीय चीतों के बीच आनुवंशिक समानता के अध्ययन और विश्लेषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसने इस कार्यक्रम की नींव रखी। किंतु अब 43 दिनों की छोटी सी अवधि के भीतर ही 3 चीतों की मौत और चीतों के जंगलों से बाहर भटकने जैसे मामले, जानवरों और उनके बदलते आवास के बीच संबंधों के बारे में महत्वपूर्ण सवाल खड़े कर रहे हैं। कूनो में जानवरों के जंगल से भागने, तथा उनकी मौत के मामले अब आम हो गए हैं। वन अधिकारियों और ‘चीता पुन: परिचय कार्यक्रम’ से जुड़े लोगों को यह सोचने की आवश्यकता है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है।
नामीबिया के ‘लाइबनिट्स-आईजेडडब्ल्यू’ (Leibniz-IZW) के चीता अनुसंधान परियोजना के वैज्ञानिकों का तर्क है कि दक्षिणी अफ्रीका में, चीता एक स्थिर सामाजिक-स्थानिक प्रणाली में व्यापक रूप से फैले क्षेत्रों में बहुत कम आबादी घनत्व के साथ रहते हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार, भारत में अफ्रीकी चीतों को लाने की योजना उनकी स्थानिक पारिस्थितिकी पर विचार किए बिना बनाई गई थी, जो इस बात का संकेत है कि चीते किसी अन्य क्षेत्र के जानवरों के साथ संघर्ष में आ सकते हैं। पत्रिका ‘संरक्षण विज्ञान और अभ्यास’ (Conservation Science and Practice) में प्रकाशित एक पत्र के अनुसार, ‘कूनो राष्ट्रीय उद्यान’ अपेक्षाकृत काफी छोटा है। इसलिए यह संभावना हो सकती है कि यहां लाए गए जानवर पार्क की सीमाओं से बहुत आगे निकल जाएं। परिणामस्वरूप उन्हें पड़ोसी गांवों के साथ संघर्ष करना पड़ता है, जो उनके अस्तित्व को प्रभावित कर सकता है। कूनो राष्ट्रीय उद्यान लगभग 750 वर्ग किलोमीटर का एक बिना बाड़ वाला जंगल क्षेत्र है। `कूनो नेशनल पार्क में शिकार के आधार पर 21 वयस्क चीतों को बनाए रखा जा सकता है। अर्थात प्रति 100 वर्ग किलोमीटर में केवल 3 चीते ही रह सकते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि नर चीते दो अलग-अलग स्थानिक रणनीति का पालन करते हैं। क्षेत्रधारक महत्वपूर्ण संचार हॉटस्पॉट संग्रह वाले क्षेत्रों पर कब्जा कर लेते हैं। ऐसे नर चीते जिनके अपने क्षेत्र नहीं होते, वे मादाओं के समान, मौजूदा क्षेत्रों के बीच घूमते रहते हैं। नामीबिया में जंगलों के क्षेत्र बड़े हैं और शिकार का घनत्व कम है। हालांकि, पूर्वी अफ्रीका में क्षेत्र छोटे हैं और शिकार का घनत्व अधिक है, लेकिन क्षेत्रों के बीच की दूरी स्थिर है और बीच में कोई नया क्षेत्र स्थापित नहीं किया गया है। जबकि कूनो राष्ट्रीय उद्यान में पुन: परिचय योजना के लिए, इन दूरियों को नजरअंदाज किया गया है। शोधकर्ताओं के अनुसार भारत में स्थापित उनके क्षेत्रों के आकार के बावजूद, तीन नामीबिया के नर चीतों ने पूरे राष्ट्रीय उद्यान पर कब्जा कर लिया होगा।इस कारण दक्षिण अफ्रीका से स्थानांतरित किए गए अतिरिक्त चीतों के लिए कोई जगह नहीं बची है। ऐसा होने पर चीतों को आवास, भोजन आदि के नुकसान का सामना करना पड़ रहा होगा। और शायद चीतों के जंगल से बार-बार भाग जाने की घटनाओं के पीछे यही कारण है।

संदर्भ:
https://rb.gy/2vzid
https://rb.gy/xs1r5
https://rb.gy/odksf
https://rb.gy/14ev2
https://rb.gy/2zqsg

 चित्र संदर्भ
1. जोड़े में अफ़्रीकी चीतों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia) 2. दौड़ लगाते अफ़्रीकी चीते को संदर्भित करता एक चित्रण (Pixabay)
3. वायनाड वन्यजीव अभयारण्य, केरल में आगंतुकों के लिए एक सूचना बोर्ड को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. मांस खाते अफ़्रीकी चीते को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. चौकन्ने अफ़्रीकी चीते को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

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