पशुओं द्वारा अतिचारण के कारण बढ़ सकता है भूमि का मरुस्थलीकरण, इसका प्रबंधन है जरुरी

मरुस्थल
26-05-2023 09:46 AM
Post Viewership from Post Date to 30- Jun-2023 31st
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
1220 501 1721
पशुओं द्वारा अतिचारण के कारण बढ़ सकता है भूमि का मरुस्थलीकरण, इसका प्रबंधन है जरुरी

आज विश्व में कई ऐसे रेगिस्तान देखे जा सकते हैं जहां पहले 1,000 मिलीमीटर (millimeters) या उससे अधिक वर्षा होती थी,किंतु आज वर्षा के भारी अभाव के कारण ये क्षेत्र तेजी से मरुस्थल में परिवर्तित होते जा रहे हैं। दरअसल इस प्रक्रिया को हम मरुस्थलीकरण कहते हैं।यह मरुस्थलीकरण व्यापक तौर पर मनुष्यों के कारण हो रहा है और इस तरह का पर्यावरणीय क्षरण भयानक है। भूमि मरुस्थलीकरण उन क्षेत्रों में हो रहा है जहांलंबी शुष्क अवधि के साथ मौसमी वर्षा होती है।
संपूर्ण विश्व के साथ-साथ हमारे देश में भी उपजाऊ भूमि के व्यापक रूप से बंजर और शुष्क होने के लिए, चरने वाले जानवर और अतिचारण एक समस्या के रूप में उभर रहे हैं। दुनिया भर मेंअधिकांश घास के मैदान लुप्त हो गए हैं।। भेड़ और मवेशियों को अगर ठीक से प्रबंधित किया जाए, तो सैद्धांतिक रूप से अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में,जहां वर्ष के कुछ दिनों में बारिश के बाद लंबे समय तक सूखा रहता है,प्रकृति अपने सामान्य चक्र में वापस आ सकती है। राजस्थान के नेत्सी गांव के एक पशुपालक कहते है कि जब वे छोटे थे, उनके परिवार के पास 200 ऊँट, 50 गायें और 200 बकरियाँ और भेड़ें थीं। जबकि, आज उनके पास केवल 200 बकरियों और भेड़ों तथा15 गायों का झुंड बचा है। उन्हें ऊंटों को छोड़ना पड़ा क्योंकि उनके लिए कोई बाजार नहीं था। वर्षा उनकी आजीविका को दो तरह से प्रभावित करती है। जुलाई की शुरुआत में पहली बारिश के बाद सेवण घास जिसका वैज्ञानिक नाम लासियुरस सिंडिकस (Lasiurus Sindicus)है,जो वे चारे के रूप में इस्तेमाल करते हैं, अचानक उग जाती है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, बारिश देर से और आमतौर पर कम रही है। इसलिए अधिकांश घास के मैदान लुप्त हो गए हैं और टीले बंजर हो गए हैं। वर्षा में 50% से अधिक की कमी के कारण, पिछले कुछ वर्ष बेहद शुष्क रहे हैं। अब उन्हें पशु चारा खरीदना पड़ता है जिसकी कीमत 850 रुपये प्रति कट्टा है। एक कट्टे में 35 किलो चारा आता है। उन्हें अपने पशुधन की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रत्येक महीने में ऐसे 10 कट्टे चाहिए होते है। इसके साथ ही बारिश गायों की प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित करती है। लगातार बारिश होने पर ही गायेंगर्भ धारण करती हैं। उनकी 15 गायों में से किसी ने भी पिछले दो सालों में गर्भधारण नहीं किया है। नतीजतन, वे गाय का दूध नहीं बेच पा रहे है, जिससे उन्हें महीने में 15,000 रुपये तक नुकसान हो रहा है। बकरियां अनियमित वर्षा के दौरान गर्भ धारण कर लेती हैं, लेकिन यदि उनकी पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कियाजाए, तो उनका गर्भपात हो जाता है।
कम बारिश के कारण पानी की उपलब्धता न होने पर उन्हें दूर से पानी लाने के लिए ट्रैक्टर किराए पर लेना पड़ता है। पहले वे उनके ऊंटों का इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब वे पानी को लाने के लिए ही महीने में 7,000 रुपये से ज्यादा खर्च करते हैं। पहले उनके पास कुआं था, लेकिन अब उसका पानी धीरे-धीरे खारा होता जा रहा है। उनका अनुभव है कि मरुस्थल में पशुपालन से कोई लाभ नहीं होता। आज, हजारों अध्ययन एवं अनुसंधान के आंकड़ेजानवरों द्वारा अत्यधिक चराईको मरुस्थलीकरण के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं।हजारों वर्षों से, पशुपालक अपने जानवरों को हरे-भरे घास के मैदानों और खेतों में चराई के लिए छोड़ते आ रहे हैं ,जिसका परिणाम भूमि के मरुस्थलीकरण के रूप में सामने आया हैऔर आज भी यह जारी है, क्योंकि पौधों के बीच की लाखों हेक्टेयर (hectare) से अधिक भूमि को अस्तव्यस्त किए बिना पशुधन को भूमिपर चलाने का कोई तरीका नहीं है।इसके परिणामस्वरूप मरुस्थलीकरण होता रहेगा। हालांकि, विश्व के निरंतर आर्द्रता का अनुभव करने वाले क्षेत्रों और स्थानों पर चाहे पशुधन का प्रबंधनकैसा भी हो, मरुस्थलीकरण नहीं होता है।
अतिचारण समय के साथ चलनेवाला कार्य है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि पौधे कितने दिनों तक चराई के लिए उपभोग में रहते हैं और कितने दिन बादउन पौधोंपर फिर से चारण किया जा सकता है। हमें आज पशुधन के प्रबंधन का एक तरीका खोजना है, जो कुछ चरों को पूरा कर सकें; जैसे कि,पौधों के विकास की दर, पशुधन के झुंडकी संख्या, जानवरों के प्रकार,आदि।ऐसा करके ही हम मरुस्थलीकरण से दो-दो हाथ कर सकते हैं।हम सभी को अपनी जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने के साथसमस्याओं को सुलझाने के लिए कदम उठाने की जरूरत है।अतिचारण का उचित प्रबंधन करकेहीहम एक बेहतर कल की अपेक्षा कर सकते है। यदि हम मरुस्थलीकरण को गंभीरता से संबोधित करना चाहते हैं, तो हमें इसे दो स्तरों पर संबोधित करना होगा। सबसे पहले, एक उपकरण के रूप में समग्र नियोजित चारण प्रक्रियाके साथ,हमें किसानों और पशुपालकों द्वारा पशुधन के सही उपयोग पर ध्यान देना है। दूसरा, नीतिगत स्तर पर हमारी सरकार और अन्य संस्थान नीतियों को समग्र रूप से विकसित करने के लिए एक प्रबंधन ढांचे का उपयोग कर सकती है। इसी कड़ीमें, अतिचारण प्रबंधन के सिद्धांत के जनक एलन सेवरी(Allan Savory)ने,जो कि संयुक्त राज्य अमेरिका(United States of America) के कोलोराडो(Colorado) में स्थित सेवरी संस्थान(Savory Institute) के अध्यक्ष है, ओडिशा राज्य के भुवनेश्वर में भारतीय वन सेवा को लगभग 30 साल पहले यह प्रशिक्षण दिया था, जिसके परिणामस्वरूप अधिकारियों ने अपनी मौजूदा या नियोजित नीतियों में से बारह नीतियों का विश्लेषण किया था।
मरुस्थलीकरण अब न तो कोई रहस्य है और न ही कोई तकनीकी समस्या । यह अब लोगों की समस्या है, जिसे जल्द से जल्द हल किया जाना चाहिए। औरजबलोग प्रबंधन और नीति को समग्र बनाने पर जोरदेंगे, इस समस्या को कुछ हद तक सुलझाया जा सकता है।

संदर्भ
https://bit.ly/41XDbjk
https://bit.ly/42VnfzE
https://bit.ly/3BNaP0N

 चित्र संदर्भ
1. सूखे रेगिस्तान को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. रेगिस्तान में खड़े गधे को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
3. मैदान में पानी पीती भेड़ों को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
4. रेगिस्तान में भोजन करते चरवाहों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.