समयसीमा 229
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 963
मानव व उसके आविष्कार 757
भूगोल 211
जीव - जन्तु 274
Post Viewership from Post Date to 01- Jul-2023 30th day | ||||
---|---|---|---|---|
City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2264 | 502 | 2766 |
आज 9 मई के दिन हम महान बंगाली कवि, लेखक, चित्रकार, संगीतकार और दार्शनिक रबिन्द्रनाथ टैगोर की जयंती मना रहे हैं। हालांकि, ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, रबिन्द्रनाथ टैगोर का जन्म दिवस 7 मई को मनाया जाता है किंतु जैसा कि वह मूल रूप से बंगाल से थे और उनका जन्म बंगाली कैलेंडर के अनुसार बंगाली महीने बोइशाख (২৫শে বৈশাখ) के 25वें दिन (1861 ई.) को हुआ था, जो इस वर्ष 9 मई अर्थात आज के दिन है। रबिन्द्रनाथ टैगोर ने केवल आठ साल की उम्र में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था और सोलह साल की उम्र में उन्होंने लघु कथाओं और नाटकों में महारत हासिल कर ली थी। रबिन्द्रनाथ टैगोर एक समाज सुधारक भी थे जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी अपना योगदान दिया था। वर्ष 1931 में, उन्हें साहित्य श्रेणी में ‘नोबेल पुरस्कार’ (Nobel Prize) से सम्मानित किया गया। वे इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाले न केवल पहले भारतीय बल्कि पहले गैर-यूरोपीय (Non-European) गीतकार थे। कविता के क्षेत्र में उनके विलक्षण योगदान की वजह से उन्हें ‘बंगाल के कवि’ (The Bard of Bengal) भी कहा जाता है।
संगीत के प्रति टैगोर का जुनून जगजाहिर है, परंतु यह बहुत कम लोग जानते हैं कि उन्होंने अपने ‘विश्वभारती विश्वविद्यालय’ को संगीतमय रूप से समृद्ध करने हेतु हमारे लखनऊ शहर से मदद ली थी। 1929 में, उन्होंने अपने मित्र, वकील और गीतकार अतुल प्रसाद सेन को लखनऊ के भातखंडे विश्वविद्यालय से उनके विश्वभारती के लिए एक संगीत शिक्षक की आवश्यकता के बारे में लिखा था। उनके महमूदाबाद के राजा के साथ भी घनिष्ठ संबंध थे। वे विश्वभारती का समर्थन करने के लिए राजा के प्रति आभारी थे। तब, राजा ने टैगोर से वादा किया था कि वे बनारस के तत्कालीन राजा माधोलाल को, विश्वभारती में पढ़ाने के लिए एक संस्कृत विद्वान की व्यवस्था करने के बारे में लिखेंगे।
1914 में अतुल प्रसाद सेन के निमंत्रण पर टैगोर पहली बार लखनऊ आए । लखनऊवासियों के व्यापक वर्ग के साथ टैगोर की सुंदर बातचीत की वजह से शहर में उनका पहला प्रवास यादगार बन गया था। तत्पश्चात, जब भी टैगोर अपने मित्र से मिलने लखनऊ आते थे, अतुल प्रसाद प्रख्यात संगीतकारों को गुरुदेव से मिलने के लिए अपने घर आमंत्रित करते थे। ऐसे ही एक सत्र में टैगोर ने अपनी रचनाएं भी प्रस्तुत की थीं।
1923 में लखनऊ विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित करने के लिए टैगोर ने हमारे शहर का पुन: दौरा किया । फिर तीन साल बाद, जब लखनऊ में, ‘अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन’ का आयोजन किया गया, तब टैगोर को उस बैठक को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था।
इसके बाद, अपने सहयोगी और कवि अमिया कुमार चक्रवर्ती के साथ टैगोर ने 1930 में शहर का दौरा किया था। लखनऊ में टैगोर के कई मित्र रहते थे। उनमें से अधिकांश अपने–अपने क्षेत्र में दिग्गज थे। साथ ही, इन मित्रों ने विश्वभारती के लिए धन जुटाने में टैगोर की मदद भी की थी। लखनऊ में रहने के दौरान टैगोर ने शहर के साथ एक बहुआयामी बंधन विकसित किया जो अतुल प्रसाद के साथ उनके जुड़ाव से परे था। आज तक, शहर नोबेल विजेता गुरुदेव के साथ अपने इस संबंध को याद रखता है और उसे बनाए रहने की हर संभव कोशिश करता है । गुरुदेव के साथ जुड़ा शांति निकेतन, जिसे आज विश्वभारती के निर्माण के साथ एक विश्वविद्यालय शहर के रूप में जाना जाता है, रबिन्द्रनाथ टैगोर के पिता देवेंद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित एक आश्रम था। यहां कोई भी, अपने किसी भी जाति और पंथ के बावजूद, आ सकता था। यहां लोग ईश्वर का ध्यान करते हुए समय बिता सकते थे। बाद में, शांति निकेतन को रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा विस्तारित किया गया। रबिन्द्रनाथ पहली बार 1873 में शांति निकेतन आए थे। तब वे केवल 12 साल के थे। 1888 में, उनके पिता देबेंद्रनाथ ने एक ट्रस्ट के माध्यम से एक ब्रह्म विद्यालय की स्थापना के लिए अपनी पूरी संपत्ति समर्पित कर दी। 1901 में, रबिन्द्रनाथ ने यहां एक ब्रह्मचर्य आश्रम शुरू किया और 1925 से इसे पाठभवन के रूप में जाना जाने लगा। टैगोर शांतिनिकेतन में ब्रह्मचर्य आश्रम के पहले पांच छात्रों में से एक थे।
रबिन्द्रनाथ ने शांति निकेतन में बच्चों के लिए एक विद्यालय की स्थापना की जिसके विकास के साथ-साथ एक विश्वविद्यालय की संरचना विकसित हुई। रबिन्द्रनाथ शांति निकेतन में कला के विभिन्न रूपों का समर्थन करने और उन्हें एक साथ लाने वाले पहले व्यक्तियों में से एक थे। शांति निकेतन 1921 में ‘विश्व भारती विश्वविद्यालय’ के रूप में विकसित हुआ। कला, भाषा, मानविकी, संगीत आदि के अन्वेषण और समर्थन के उद्देश्य से विश्व भारती को संस्कृति केंद्र के रूप में स्थापित किया गया था। फिर वर्ष 1951 में हमारे देश की संसद के एक अधिनियम द्वारा इस संस्था को ‘राष्ट्रीय महत्व का संस्थान’ भी घोषित किया गया।
विश्व भारती कुछ सिद्धांतों पर आधारित हैं। दरअसल, ये सिद्धांत टैगोर के शैक्षिक दर्शन के चार मूलभूत सिद्धांत –प्रकृतिवाद, मानवतावाद, अंतर्राष्ट्रीयतावाद और आदर्शवाद हैं।
रबिन्द्रनाथ के अनुसार, शिक्षा को प्राकृतिक परिवेश में प्रदान किया जाना चाहिए; क्योंकि बच्चों का अपना एक सक्रिय अवचेतन मन होता है जो एक पेड़ की तरह आसपास के वातावरण से अपना भोजन इकट्ठा करने की शक्ति रखता है। एक शिक्षण संस्थान को एक मृत पिंजरा नहीं होना चाहिए, जिसमें बच्चों के जीवंत मस्तिष्क को कृत्रिम रूप से तैयार किए गए भोजन रूपी शिक्षा से भरा जाए। उनके अनुसार, शिक्षा का अर्थ मन को परम सत्य का पता लगाने में सक्षम बनाना होता है। यह ज्ञानोदय की एक प्रक्रिया है। शिक्षा सत्य की प्राप्ति में मदद करती है। शांति निकेतन का मुख्य उद्देश्य प्रकृति के प्रति प्रेम जागृत करना, अपनी मूल भाषा में ज्ञान प्रदान करना, मन, हृदय और इच्छा की स्वतंत्रता, एक प्राकृतिक वातावरण प्रदान करना और अंततः भारतीय संस्कृति को समृद्ध करना था। रबिन्द्रनाथ टैगोर के लिए धर्म आदर्श था। और उनका ‘विश्व भारती विश्वविद्यालय’ उनकी आत्मा के बड़प्पन का प्रतीक था।
‘द सेंटर ऑफ इंडियन कल्चर’ (The Centre of Indian Culture) पुस्तिका में टैगोर ने लिखा है कि “शिक्षा में रचनात्मक गतिविधि का प्रेरक माहौल महत्वपूर्ण है। एक शैक्षणिक संस्था का प्राथमिक कार्य रचनात्मक होना चाहिए, जबकि यहां सभी प्रकार के बौद्धिक अन्वेषण के लिए गुंजाइश होनी चाहिए। जबकि, शिक्षण संस्कृति, आध्यात्मिक, सामाजिक, बौद्धिक, सौंदर्यपरक और आर्थिक होना चाहिए।”
उनके अनुसार सच्ची शिक्षा का तात्पर्य हर कदम पर यह महसूस करना है कि हमारे शिक्षण और ज्ञान का हमारे परिवेश के साथ कैसा संबंध है। वे कहते हैं, “हमें पता होना चाहिए कि हमारी संस्था का महान कार्य विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से मन और सभी इंद्रियों की शिक्षा प्रदान करना है”। टैगोर, शिक्षार्थी के प्रकृति के साथ संपर्क पर जोर देते हुए कहते हैं, “प्रकृति मनुष्य को किसी भी संस्था से ज्यादा सिखाती है।” उनका मानना था कि शिक्षा का एक मुख्य उद्देश्य व्यक्ति को राष्ट्र की सेवा के लिए तैयार करना है। शिक्षा मानव के उत्थान, सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व, सद्भाव और बौद्धिकता के लिए है।
संदर्भ
https://bit.ly/3LTNgsP
https://bit.ly/3LAGFSX
चित्र संदर्भ
1. पश्चिम बंगाल शांतिनिकेतन में स्थित सिंह सदन को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. जवाहरलाल नेहरू और रवींद्रनाथ टैगोर के श्याम स्वेत चित्र को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
3. विल्मोट ए परेरा (Wilmot A Perera) और रवींद्रनाथ टैगोर. को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. विश्वभारती को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. शांतिनिकेतन में स्थित कालो बारी - मिट्टी और कोयले के तार से बने घर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. मृणालिनी आनंद पाठशाला - आश्रम परिसर - शांतिनिकेतन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.