लखनऊ के निकट स्थित, ‘श्रावस्ती’ का क्या महत्व है, भगवान बुद्ध के जीवन से?

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
05-05-2023 09:20 AM
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लखनऊ के निकट स्थित, ‘श्रावस्ती’ का क्या महत्व है, भगवान बुद्ध के जीवन से?

भगवान बुद्ध के जन्म की सटीक तारीख एशियाई लूनिसोलर कैलेंडर (Asian luni-solar calendar) पर आधारित है और बुद्ध पूर्णिमा को मुख्य रूप से बौद्ध कैलेंडर और विक्रम संवत हिंदू कैलेंडर के वैसाख के महीने में मनाया जाता है। ‘वेसाक’ शब्द की उत्पत्ति यही से हुई है। आधुनिक भारत और नेपाल, जहां भगवान बुद्ध रहते थे,में बुद्ध पूर्णिमा,बौद्ध कैलेंडर के वैशाख महीने की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। थेरवाद परंपरा का अनुसरण करने वाले लोग इस दिन सफेद रंग की पोशाक पहनते हैं, जबकि अन्य लोग किसी विशिष्ट रंग की पोशाक को धारण नहीं करते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान बुद्ध के जीवन काल में सुजाता नामक एक युवती ने भगवान बुद्ध को दूध से बनी खीर दी थी,तथा इसी घटना को याद करते हुए बुद्ध पूर्णिमा के दिन खीर परोसी जाती है। अनौपचारिक रूप से बुद्ध पूर्णिमा को भगवान बुद्ध के जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है, लेकिन वास्तव में थेरवाद परंपरा में यह दिन गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान (निर्वाण) और मृत्यु (परिनिर्वाण) का प्रतीक है। श्रावस्ती भी भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बंधित एक महत्वपूर्ण स्थल है, जिसे बौद्ध धर्म के सबसे पूजनीय स्थलों में से एक माना जाता है।ऐसा विश्वास है कि भगवान बुद्ध ने इसी स्थल पर अपने कई उपदेश दिए थे तथा अपने कई प्रसिद्ध शिष्य बनाए। यह वो स्थल है जहां उन्होंने “श्रावस्ती चमत्कार” या "महान चमत्कार" या "जुड़वां चमत्कार" किए, जो कई ऐतिहासिक बौद्ध नक्काशियों, मूर्तियों और बौद्ध धर्म के साहित्य का मुख्य विषय रहा है। प्राचीन श्रावस्ती का उल्लेख सभी प्रमुख भारतीय धर्मों के साहित्य में मौजूद है।इनमें से बौद्ध स्रोत सबसे व्यापक स्रोत माना जाता है। श्रावस्ती का उल्लेख उन ऐतिहासिक अभिलेखों में भी मिलता है, जिन्हें चीनी तीर्थयात्रियों द्वारा भारत में छोड़ा गया था।बौद्ध परंपरा के अनुसार, इस शहर को श्रावस्ती इसलिए कहा जाता था,क्योंकि यहां श्रावस्ती नामक ऋषि रहा करते थे।श्रावस्ती प्राचीन भारत के विकसित शहरों में से एक था और यह कोशल साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। ऐसा कहा जाता था कि श्रावस्ती शहर अचिरवती नदी के तट पर स्थित था जो वर्तमान में राप्ती नदी के नाम से प्रसिद्ध है। इस नदी के कारण यहां का कृषि क्षेत्र काफी समृद्ध था, जिसकी वजह से शहर को काफी सुंदर रूप मिला। कोशल साम्राज्य के राजा पसेनदी भगवान बुद्ध के शिष्य थे और गौतम बुद्ध के प्रमुख संरक्षकों में से एक माने जाते थे। श्रावस्ती के अन्य मुख्य संरक्षक विशाखा, सुप्पवास और अनाथपिंडिका थे।गौतम बुद्ध ने अपना अधिकांश मठवासी जीवन श्रावस्ती में बिताया। गौतम बुद्ध पहली बार अनाथपिंडिका के निमंत्रण पर श्रावस्ती आए थे। श्रावस्ती के मुख्य मठ जेतावन और पुब्बारामा हैं। राजा पसेनदी ने श्रावस्ती के एक और प्रसिद्ध मठ, राजकरमा या राजकर्मा का निर्माण कार्य शुरू किया । ऐसा कहा जाता है कि बौद्ध धर्म के चार निकायों में से लगभग 871 सूत्तों का प्रचार श्रावस्ती में हुआ था। जेतावन के मठ में लगभग 844 सूत्तों का प्रचार किया गया, पुब्बारामा के मठ में 23 सूत्तों का प्रचार किया गया और शेष 4 सूत्तों का उपदेश श्रावस्ती के उपनगरों में दिया गया। इस प्रकार, श्रावस्ती वह स्थान बन गया जहाँ भगवान बुद्ध द्वारा सबसे अधिक मात्रा में उपदेश दिए गए थे।
माना जाता है कि श्रावस्ती में एक जादुई आकर्षण है जो थके हुए पर्यटकों को तुरंत जीवंत कर देता है। श्रावस्ती में कई आकर्षक स्थल हैं, जो भगवान बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं के इतिहास पर प्रकाश डालते हैं। इन स्थलों में मुख्य रूप से जेतावन मठ,जुड़वां चमत्कार स्थल,शोभनाथ मंदिर,आनंदबोधि वृक्ष शामिल है।जुड़वां चमत्कार स्थल,वह स्थान है जहां माना जाता है कि भगवान बुद्ध ने अपने शरीर से आग और पानी का उत्सर्जन किया था, यानि जहां जुड़वां चमत्कार हुआ था।शोभनाथ मंदिर,श्रावस्ती में स्थित एक पुराना मंदिर है, जो जैन तीर्थंकर को समर्पित है और जैन लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है।आनंदबोधि वृक्ष के सम्बंध में यह माना जाता है कि गौतम बुद्ध ने एक रात इस पेड़ के नीचे ध्यान लगाया और इस पेड़ के नीचे ध्यान करने वाले सभी भक्तों को आशीर्वाद दिया। श्रावस्ती का सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थान जेतावन मठ था, जिसे अनाथपिंडका द्वारा भगवान बुद्ध को भेंट किया गया था।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा यहां उत्खनन किया गया है, और तीन मुख्य ऐतिहासिक काल का प्रतिनिधित्व करने वाले स्तूपों, मंदिरों और मठों के अवशेषों को मान्यता दी गई है।श्रावस्ती स्थल की पुरातात्विक खुदाई में बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और जैन धर्म से संबंधित कई कलाकृतियों और स्मारकों का पता चला है।श्रावस्ती में और उसके पास पाए गए अभिलेखों और मूर्तियों से पता चलता है कि यह बुद्ध के समय से एक सक्रिय बौद्ध स्थल और समृद्ध क्षेत्र था।1986 और 1996 के बीच जापानी (Japani) पुरातत्वविदों के नेतृत्व में हुई खुदाई से पता चलता है कि पहली सहस्राब्दी के दौरान इस स्थल का निर्माण और विस्तार जारी रहा।
इसके बाद, यहां से लकड़ी के कोयले और जली हुई मिट्टी के अवशेष प्राप्त हुए, जिससे पता चला कि स्थल का एक बड़ा हिस्सा जलकर नष्ट हो गया।19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश और भारतीय पुरातत्वविदों की एक टीम द्वारा श्रावस्ती स्थल की फिर से खोज की गई थी। 19वीं शताब्दी के अंत से 1990 के दशक तक इस स्थल की व्यवस्थित रूप से खुदाई हुई।श्रावस्ती पुरातात्विक स्थल और इसके संभावित महत्व की पहली बार 1863 में ब्रिटिश पुरातत्वविद् अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा पहचान की गई थी।उस समय, इस स्थल में दो महत्वपूर्ण टीले और स्मारक थे, जिनके पत्थर और ईंटें आंशिक रूप से दिखाई देते थे।कनिंघम ने 1876 में श्रावस्ती की पहली आंशिक खुदाई का नेतृत्व किया, जिसमें स्तूपों और छोटे मंदिरों का सफलतापूर्वक पता चला। लगभग एक दशक बाद, 1885 में, होए (Hoey) ने अधिक व्यापक उत्खनन किया। होए की सबसे महत्वपूर्ण खोज, एक विहार परिसर था,जिसमें विक्रम युग के वर्ष 1176 के अवशेष भी प्राप्त हुए ।
इससे पता चला कि श्रावस्ती कम से कम 12वीं शताब्दी तक एक सक्रिय बौद्ध स्थल था, तथा यह भी पुष्टि की गई कि यहाँ के एक स्तूप का नाम जेतावन विहार था।1910 में, मार्शल (Marshall) और साहनी ने एक और विस्तारित उत्खनन का नेतृत्व किया और यहाँ और स्मारकों की खोज की। इन सभी खुदाइयों से प्राचीन स्तूपों, मंदिरों, मूर्तियों, शिलालेखों, सिक्कों, मुहरों और टेराकोटा की मात्रा में वृद्धि हुई।1959 में, सिन्हा ने श्रावस्ती में खुदाई की एक और श्रृंखला का नेतृत्व किया, विशेष रूप से सहेत-महेत की किले की दीवारों के पास। इससे इस बात का प्रमाण मिला कि दीवारों का निर्माण और मरम्मत तीन अवधियों में हुआ था, जो तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लगभग पहली शताब्दी ईस्वी के बीच था।गहरी परतों से भित्ति चित्र, आभूषण, ब्राह्मी लिपि में खुदे हुए छोटे खंड, साथ ही मां देवी की टेराकोटा की आकृतियाँ आदि प्राप्त हुए।

संदर्भ:
https://bit.ly/3LTwKJn
https://bit.ly/3Lx5sY6
https://bit.ly/3HEgFEO

चित्र संदर्भ

1. नव जेतवन मंदिर - श्रावस्ती को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. श्रावस्ती में बुद्ध के उपदेशों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. अनाथपिंडिका स्तूप (सुदत्त स्तूप), श्रावस्ती को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मानचित्र में श्रावस्ती को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. जेतवन भवन, श्रावस्ती को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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