भारतीय सिनेमा के लिए मील का पत्थर, दादासाहब फालके द्वारा निर्देशित, देश की पहली फ़िल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’

द्रिश्य 2- अभिनय कला
04-05-2023 10:55 AM
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भारतीय सिनेमा के लिए मील का पत्थर, दादासाहब फालके द्वारा निर्देशित, देश की  पहली फ़िल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’

भारतीय सिनेमा ने अपने रंगीन सफर की शुरुआत आज से ठीक 110 साल पहले, "राजा हरिश्चंद्र" नामक एक ऐसी फिल्म के साथ की थी, जो पूरी तरह से श्वेत-श्याम (Black And White) थी! देश में बनी यह पहली फिल्म, तकरीबन सौ साल पहले 3 मई, 1913 के दिन रिलीज (Release) हुई थी। मजे की बात यह है कि, यह फिल्म पूरी तरह से मूक (Mute) थी, अर्थात फिल्म में कोई भी संवाद या आवाज नहीं दी गई थी। लेकिन इसके बावजूद भी यह फिल्म, इतिहास रचने में कामयाब रही और भारतीय सिनेमा के लिए पहला मील का पत्थर साबित हुई।
भारतीय फिल्म उद्योग के 'पितामह' माने जाने वाले दादासाहब फालके (Dadasaheb Phalke) के निर्देशन में बनी ‘राजा हरिश्चंद्र’ को पहली पूर्ण लंबाई वाली भारतीय फिल्म माना जाता है। यह फिल्म “हरिश्चंद्र” नामक एक महान राजा की लोकप्रिय कहानी पर केंद्रित है। इस फ़िल्म की शुरुआत प्रसिद्ध चित्रकार राजा रवि वर्मा (Raja Ravi Verma) द्वारा निर्मित राजा हरिश्चन्द्र, उनकी पत्नी और पुत्र की चित्रों की प्रतिलिपियों के साथ होती है। चूंकि यह एक मूक फिल्म थी, इसलिए इस फिल्म में अंग्रेजी, मराठी और हिंदी भाषा के सब-टाइटल (Subtitle) दिए गए थे। साथ ही उस समय महिला किरदार की भूमिकाओं को निभाने के लिए कोई महिला कलाकार उपलब्ध नहीं थी, इसलिए इस फिल्म में महिला किरदारों का अभिनय भी पुरुष अभिनेताओं को ही करना पड़ा था। राजा हरिश्चंद्र के मुख्य कलाकारों की सूची निम्नवत दी गई है:
1.दत्तात्रय दामोदर दबके (Dattatraya Damodar Dabke), ने राजा हरिश्चंद्र का किरदार निभाया था।
2.अन्ना सालुंके (Anna Salunke), ने हरिश्चंद्र की पत्नी तारामती की भूमिका निभाई थी।
3.भालचंद्र फालके (Bhalchandra Phalke), ने हरिश्चंद्र और तारामती के पुत्र रोहिताश्व की भूमिका निभाई।
4.गजानन वासुदेव साने (Gajanan Vasudev Sane), ने विश्वामित्र की भूमिका निभाई।
फिल्म के सभी कलाकारों ने बहुत अच्छा काम किया और दर्शकों ने भी उनके अभिनय की बहुत सराहना की। इस फिल्म की कहानी लिखने से लेकर, प्रोडक्शन डिजाइन (Production Design), मेकअप (Makeup), फिल्म एडिटिंग (Editing) और प्रोसेसिंग (Processing) समेत, अधिकांश कार्यों की जिम्मेदारी, दादा साहब फाल्के के ही ऊपर थी। त्रयम्बक बी. तैलंग (Trymbak B. Telang) कैमरे (Cameras) को संभालने के लिए जिम्मेदार थे। इस फिल्म को बनाने में छह महीने और 27 दिन लगे तथा यह चार रीलों (Reels) से बनी थी। दुर्भाग्य से, इस फिल्म का अधिकांश हिस्सा खो गया है, और भारत के राष्ट्रीय फिल्म संग्रह (National Film Archive Of India) में इसकी केवल पहली तथा आखिरी रील ही संरक्षित हैं। हालांकि नेशनल फिल्म आर्काइव ऑफ इंडिया (National Film Archive Of India) ने लोगों को दिखाने के लिए, फिल्म को पुनर्स्थापित करने का प्रयास किया है। इस फिल्म का प्रीमियर (Premiere) अप्रैल 1913 में बॉम्बे के ओलंपिया थिएटर (Olympia Theater) में हुआ था, और फिर मई 1913 में कोरोनेशन सिनेमैटोग्राफ (Coronation Cinematograph) एवं वैरायटी हॉल (Variety Hall) में इसे रिलीज किया गया। भारतीय सिनेमा जगत में यह फिल्म एक बड़ी सफलता साबित हुई और इसने भारतीय फिल्म उद्योग को स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई।
इस फिल्म को रोमांचक बनाने के लिए फिल्म के निर्देशक गोविंद निहलानी (Govind Nihalani) ने सूरज की रोशनी का चतुराई से प्रयोग किया। साथ ही उन्होंने यह भी सुनिश्चित किया कि प्रकाश व्यवस्था, कैमरा चालन और रंग, फिल्म के हिसाब से बिल्कुल उचित हों। फिल्म का एक दृश्य (जहां, भगवान प्रकट होते हैं और गायब हो जाते हैं), को भी एक ही शॉट (Shot) में फिल्माया गया था, जो उस समय के लिहाज से बहुत ही प्रभावशाली काम था। इस फिल्म की कहानी पारंपरिक कलाओं और रंगमंच से प्रभावित थी, जिस कारण यह आम लोगों के बीच खूब लोकप्रिय हुई थी। कुछ लोगों का तर्क है कि श्री पुंडलिक (Shri Pundalik) नामक एक अन्य फिल्म, पहली भारतीय फीचर फिल्म (First Indian Feature Film) थी, लेकिन अधिकांश लोग राजा हरिश्चंद्र को ही पहली फिल्म मानते हैं। हालांकि यह फिल्म बहुत पुरानी हो गई है, लेकिन फिर भी लोग इसे देखना पसंद करते हैं और भारतीय सिनेमा में इसके महत्व को याद करते हैं। इस शानदार फिल्म के निर्माता दादा साहब फाल्के को फिल्म बनाने का विचार, बंबई (मुंबई) में ईसा मसीह के जीवन से जुड़ी एक फिल्म (1902 में “द लाइफ ऑफ क्राइस्ट (The Life Of Christ)” देखने के बाद आया। 1912 में, वह फिल्म बनाने के तरीके के बारे में जानने के लिए लंदन (London) गए और फिर फाल्के फिल्म्स (Phalke Films) नाम से अपनी खुद की कंपनी शुरू की। भारत लौटने के बाद, फाल्के ने राजा हरिश्चंद्र के लिए पटकथा लिखी, और इसे वास्तविकता बनाने के लिए अपनी जीवन बीमा पॉलिसियों (Life Insurance Policies) को गिरवी रख दिया तथा फिल्म को वित्तपोषित करने के लिए अपनी पत्नी के गहने भी बेच दिए। फाल्के ने मुंबई में दादर, और पुणे के पास एक गांव में अपने स्टूडियो (Studio) में फिल्म की शूटिंग की। दादर में जहां दादा साहब फाल्के का स्टूडियो हुआ करता था, आज उस सड़क का नाम भी भारतीय फिल्म जगत के पितामह पर ही, एक श्रद्धांजलि के तौर पर रखा गया है । इस फिल्म को बनाने के लिए, आवश्यक उपकरणों को उन्हें इंग्लैंड (England), फ्रांस (France), जर्मनी (Germany) और संयुक्त राज्य अमेरिका (United States) जैसे अन्य देशों से आयात करना पड़ा। निवेशकों को आकर्षित करने के लिए, फाल्के ने अंकुराची वध (Ankurachi Vadh) नामक एक लघु फिल्म बनाई। उन्होंने समाचार पत्रों में विज्ञापन भी प्रकाशित किए और अभिनेताओं तथा चालक दल के सदस्यों से फिल्म बनाने में मदद करने के लिए कहा।
फिल्म बनाने से पहले, उन्होंने कई नौकरियां भी की, और इस दौरान उन्होंने भारतीय पुरातत्व सोसायटी (Archaeological Society Of India) के लिए भी काम किया। भारत सरकार द्वारा फिल्म के निर्देशन और भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए, दादा साहब फाल्के पुरस्कार (Dadasaheb Phalke Award) नामक एक पुरस्कार भी दिया जाता है।
आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि महाराष्ट्र में वंगानी (Vangani) के पास सेलू (Selu) में एक नया शहर बनाया जा रहा है। यह वही जगह है, जहां पहली भारतीय फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ की शूटिंग हुई थी। यह शहर उन लोगों के लिए बनाया जा रहा है जो फिल्मों में काम करते हैं, और मुंबई जैसे व्यस्त शहर में उनके रहने के लिए कोई अच्छा ठिकाना नहीं मिलता। शहर का नाम भारतीय सिनेमा के पितामह दादा साहब फाल्के की पत्नी (कावेरी बाई यानी सरस्वती जी) के नाम पर रखा जाएगा। फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लॉइज (Federation Of Western India Cine Employees) के अध्यक्ष बीएन तिवारी (BN Tiwari) के अनुसार यह कार्य प्रधानमंत्री आवास योजना (Pradhan Mantri Awas Yojana) के तहत किया जा रहा है। नए शहर में फ़िल्मी कलाकारों और उनके परिवार के रहने के लिए भरपूर जगह होगी। इस शहर का निर्माण 2024 तक समाप्त होने की उम्मीद है, जिसमें कुल मिलाकर 10,080 घर होंगे। चूंकि इस शहर को दादा साहब फाल्के की पत्नी का नाम मिल रहा है, इसलिए यह दादा साहब को एक सच्ची श्रद्धांजलि भी है।

संदर्भ
https://bit.ly/3nlTict
https://bit.ly/3AUJLfn
https://bit.ly/3nrNOwU
https://bit.ly/3NuwbXF

चित्र संदर्भ

1. राजा हरिश्चंद्र फिल्म के एक दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. हाथों में फिल्म का एक छोटा सा रोल लेकर कुर्सी पर बैठे दादासाहब फालके को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
3. राजा रवि वर्मा द्वारा निर्मित हरिश्चंद्र और थरामथी के चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण ( GetArchive)
4. फिल्म, राजा हरिश्चंद्र (1913) के लिए पोस्टर को संदर्भित करता एक चित्रण (Picryl)
5. अंतिम संस्कार के एक दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (Picryl)
6. दादा साहब फाल्के पुरस्कार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

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