भारतीय किसानों के लिए सुरक्षा कवच की भांति हैं, भूमि सुधार नीतियां

भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)
27-04-2023 10:08 AM
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भारतीय किसानों के लिए सुरक्षा कवच की भांति हैं, भूमि सुधार नीतियां

उत्तर प्रदेश भारत का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य है। लेकिन यही विशाल जनसंख्या, हमारे राज्य में भूमि के आवंटन को एक जटिल तथा संवेदनशील मुद्दा बना देती है। इसलिए राज्य के प्रत्येक नागरिक के लिए यह बेहद जरूरी है कि वह राज्य में भूमि आवंटन से जुड़े मापदंडों और नियमों से भली भांति परिचित रहे, जिनकी सहायता से वह कानून को समझकर अपनी भूमि की रक्षा कर सके।
भारत में दुनिया की कुल आबादी का 17.7% हिस्सा निवास करता है, लेकिन इसके बावजूद हमारे पास दुनिया की केवल 2.4% भूमि ही अधिग्रहित है। भारत में 47.1% भारतीय अपनी दिनचर्या चलाने के लिए कृषि पर निर्भर हैं। देश के सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product (GDP) में कृषि का योगदान 15.5% होने के कारण यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन भारत में कृषि भूमि के स्वामित्व में महत्वपूर्ण असमानताएँ नज़र आती हैं, और अधिक आर्थिक समानता स्थापित करने के लिए इन्हें कम करने की आवश्यकता है। हालांकि, कृषि भूमि सुधारों तथा भूमि के पुनर्वितरण के माध्यम से असमानता के इस अंतर को पाटा जा सकता है। दरअसल कृषि भूमि सुधार भूमि के स्वामित्व, प्रबंधन और किराए पर लेने के तरीके को बदलने का एक तरीका है। भारत सरकार इस बात से भली-भांति अवगत है कि भारत में कृषि विकास केवल भारत के ग्रामीण संस्थागत ढांचे में सुधार के साथ ही प्राप्त किया जा सकता है। अतः भारत सरकार द्वारा लंबे समय से ही भूमि सुधार करने की कोशिश की जाती रही है। इसके अलावा सरकार ने भूमि वितरण में सुधार के लिए भी कई उपाय किए हैं, जिसमें जमींदारी व्यवस्था को समाप्त करना भी शामिल है, जिसके तहत राज्यों और किसानों के बीच बिचौलियों की भूमिका को समाप्त कर दिया गया। बिचौलियों के उन्मूलन ने लगभग 20 मिलियन काश्तकारों को सीधे तौर पर राज्य के साथ जोड़ दिया है। ‘जमींदारी उन्मूलन अधिनियम’ (Zamindari Abolition Act ) के सफल समापन के बाद भूमिहीन कृषकों को लगभग 142.57 लाख एकड़ जमीन वितरित की गई।
हालांकि किसानों के समक्ष एक बड़ी समस्या यह भी है कि बड़े और छोटे जमींदारों के बीच भूमि के आधिपत्य को लेकर बहुत बड़ी असमानता या अंतर है। ‘सीलिंग कानून’ (Ceiling Law) एक ऐसा उपकरण है, जिसकी मदद से इस असमानता को कम करने में मदद मिल सकती है। सीलिंग कानून के अंतर्गत बड़े भू-स्वामियों से अतिरिक्त भूमि लेकर उसे भूमिहीनों या छोटे भू-स्वामियों के बीच पुनर्वितरित करना शामिल है। स्पष्ट तौर पर समझें, तो सीलिंग कानून, किसी व्यक्ति या परिवार के स्वामित्व वाली भूमि की मात्रा को सीमित करता है। असमान भूमि वितरण के मुद्दों को हल करने के लिए 1960 के दशक में इन कानूनों को भूमि सुधार के हिस्से के रूप में पेश किया गया था। भारत में प्रत्येक राज्य में खाद्य और नकदी फसलों को उगाने की अधिकतम सीमा तय कर दी गई है। राज्य के आधार पर मौजूदा भूमि जोतों की अधिकतम सीमा 20 एकड़ से 125 एकड़ तक भिन्न होती है। आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में, यह सीमा प्रति व्यक्ति भूमि की मात्रा पर आधारित है, जबकि अन्य राज्यों में, यह प्रति परिवार पर आधारित है।
देश के सभी राज्यों में सीलिंग सीमा को अधिक सुसंगत बनाने के लिए, 1971 में एक नई नीति पेश की गई थी। इस नीति के तहत हुए प्रमुख परिवर्तनों में परिवार को माप की इकाई के रूप में उपयोग करते हुए, भूमि सीमा को 28 एकड़ आद्र भूमि और 54 एकड़ असिंचित भूमि तक सीमित करना, सीमा से छूट, बेनामी लेन-देन को शून्य करना और मौलिक अधिकारों के आधार पर कानून को चुनौती देने की क्षमता को हटाना शामिल था। उत्तर प्रदेश में भी यह कानून ही तय कर सकता है कि एक व्यक्ति कितनी जमीन का मालिक हो सकता है। यदि किसी के पास 20 एकड़ से अधिक भूमि है, तो इसे बहुत अधिक माना जाता है और अतिरिक्त भूमि को ‘अधिशेष भूमि’ कहा जाता है। इसका मतलब यह है कि सरकार इसमें से कुछ अतिरिक्त भूमि ले सकती है और इसे अन्य किसानों को दे सकती है जिन्हें इसकी आवश्यकता है।
कानून की धारा 6[25] उन शर्तों को निर्दिष्ट करती है जिनके तहत किसी व्यक्ति को इस नियम से छूट दी जा सकती है। कानून की धारा 5 बताती है कि एक व्यक्ति कानूनी रूप से कितनी जमीन का मालिक हो सकता है और इसकी गणना कैसे की जाए। उदाहरण के लिए, 3.70 एकड़ असिंचित भूमि, एक फसल वाली 3.70 एकड़ भूमि, वृक्षों वाली 6.17 एकड़ भूमि, या 6.17 एकड़ ‘बंजर’ भूमि को 2.47 एकड़ सिंचित भूमि के समान माना जाता है।
धारा 5 के अनुसार, एक व्यक्ति कानूनी रूप से अधिकतम 7.30 हेक्टेयर (लगभग 19 एकड़) भूमि का मालिक हो सकता है। हालांकि, इस नियम के कई अपवाद हैं, जैसे कि औद्योगिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि, गौशालाएं (गाय आश्रय), और पेड़ों वाली भूमि, इस सीमा से मुक्त हैं। किसी व्यक्ति के पास कितनी जमीन हो सकती है, यह भी उसके पास जमीन के प्रकार पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, ढाई हेक्टेयर उपवन या ऊसर भूमि भी एक हेक्टेयर सिंचित भूमि के रूप में गिनी जाती है।हेक्टेयर (Hectares) भूमि के लिए माप का एक प्रकार है। अगर किसी के परिवार में अधिकतम पांच लोग हैं, तो परिवार का मुखिया 7.30 हेक्टेयर सिंचित भूमि का मालिक हो सकता है। इसमें परिवार के अन्य सदस्यों के स्वामित्व वाली भूमि शामिल है। इसमें वयस्क पुत्र द्वारा अधिकृत अतिरिक्त दो हेक्टेयर सिंचित भूमि के साथ अधिकतम अतिरिक्त छह हेक्टेयर सिंचित भूमि को जोड़ा जा सकता है ।
भूमि के कुछ प्रकार ऐसे (जैसे कि औद्योगिक उद्देश्यों के लिए या आवासीय घर के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि) होते हैं जिन्हें भूमि सीमा की दृष्टि से नहीं देखा जाता है। भूमि सीमा में श्मशान भूमि या कब्रिस्तान के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि को भी नहीं गिना जाता है, लेकिन खेती की भूमि को गिना जाता है। चाय, कॉफी या रबर के बागानों के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि की गणना भी नहीं की जाती है। कुल मिलाकर सीलिंग कानून का लक्ष्य भारत में भूमि स्वामित्व के अधिक समान वितरण को बढ़ावा देना है। साथ ही एक व्यक्ति या परिवार के स्वामित्व वाली भूमि की मात्रा को सीमित करके, बड़े भू स्वामियों को संसाधनों पर एकाधिकार करने से रोकना और छोटे किसानों को खेती करने के लिए पर्याप्त भूमि देना सरकार का प्रमुख उद्देश्य है।
इन भूमि कानूनों की बेहतर समझ के लिए खेतों या जमीन के मापन इकाइयों से संबंधित आपका सामान्य ज्ञान भी दुरुस्त होना चाहिए! आज कई जानकार लोगों में भी मापन से संबंधित इकाइयों जैसे गज या एकड़ से संबंधित जानकारी का अभाव नजर आता है! भूमि की नाप जोख करने हेतु ‘गज’ (Yards) भारत में उपयोग की जाने वाली एक लोकप्रिय माप इकाई है। एक गज लगभग नौ वर्ग फुट (Square Feet) के बराबर होता है, और 100 गज लगभग 900 वर्ग फुट के बराबर होते है। गज इकाई अभी भी देश के कई हिस्सों में लोकप्रिय है। आप किसी भी वर्ग फुट संख्या को 0.11 से गुणा करके गज में बदल सकते हैं। मापन के लिए गज का उपयोग भारत सहित एशिया (Asia) के कुछ अन्य हिस्सों में भी किया जाता है। भारत में गज के उपयोग की शुरुआत मुगल साम्राज्य के दौरान हुई थी, और इसकी लंबाई देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग थी। यदि आप भारत में कहीं भी जमीन खरीदना या बेचना चाहते हैं तो एकड़ और गज के बीच संबंध पता होना बेहद जरूरी है। एक एकड़ 4,840 गज के बराबर होता है, और 1 गज 0.002 एकड़ के बराबर होता है। गज की तुलना में एकड़ अधिक महत्वपूर्ण माप है, क्योंकि इसका उपयोग भूमि के विशाल क्षेत्रों को मापने के लिए किया जाता है, जबकि गज का उपयोग छोटे क्षेत्रों को मापने के लिए किया जाता है। इन इकाइयों के अलावा भी भारत के अधिकांश हिस्सों में, किसानों द्वारा कृषि भूमि मापन हेतु पक्का बीघा, कच्चा बीघा, बिस्वा, हाथ, गट्ठा, जरीब, आदि इकाइयों का प्रयोग किया जाता है। नीचे दी गई तालिका में पारंपरिक इकाइयों का इंच (Inch), फुट (Foot), यार्ड (Yard), मीटर (Meter), एकड़ (Acre) और हेक्टेयर (Hectare) में रूपांतरण किया गया है। लंबाई माप की इकाइयां
                                                    कृषि भूमि / क्षेत्र माप के लिए इकाइयाँ

संदर्भ
https://rb.gy/6aihp
https://bit.ly/40gRbUI
https://bit.ly/3NenvVx
https://bit.ly/40CaqZb
https://bit.ly/40kXwi2

चित्र संदर्भ
1. भारतीय किसानों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. भारतीय मानचित्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. खेतों में काम करते किसानों को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
4. धरने पर बैठे किसानों, को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
5. खेत खोदते किसानों को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)

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