अंतरिक्ष अभियान में पुन: प्रयोज्यता;क्या प्रमुख जिम्मेदारी है ‘इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क’ के लखनऊ स्टेशन की?

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12-04-2023 09:15 AM
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अंतरिक्ष अभियान में पुन: प्रयोज्यता;क्या प्रमुख जिम्मेदारी है ‘इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क’ के लखनऊ स्टेशन की?

प्रत्येक वर्ष 12 अप्रैल को अंतरिक्ष यात्री यूरी गगारिन(Yuri Gagarin) द्वारा की गई सबसे पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान की वर्षगांठ के उत्सव के रूप में ‘अंतर्राष्ट्रीय मानव अंतरिक्ष उड़ान दिवस’ (International Day of Human Space Flight Day) आयोजित किया जाता है। इस दिवस को सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने तथा राष्ट्रों और लोगों के कल्याण में वृद्धि करने हेतु मानव जाति के लिए अंतरिक्ष युग की शुरुआत के रूप में और अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के महत्वपूर्ण योगदान की पुष्टि करने के लिए मनाया जाता है। साथ ही शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए हमारे अंतरिक्ष को कायम रखने की हमारी महत्वाकांक्षा को सुनिश्चित करने के लिए भी यह दिवस महत्वपूर्ण है। आपको जानकर अत्यधिक प्रसन्नता होगी कि अब देश के अंतरिक्ष अभियानों में हमारा शहर लखनऊ भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हमारे देश की अंतरिक्ष संस्था, इसरो अर्थात ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ (Indian Space Research Organisation (ISRO) की एक शाखा ‘इसरो टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क’ (ISRO Telemetry,Tracking and Command Network (ISTRAC), के लखनऊ स्टेशन को इसरो के सभी सेटेलाइट्स (Satellites) और लॉन्च वाहन (Launch Vehicle) मिशनों को ट्रैक करने की प्रमुख जिम्मेदारी सौंपी गई है। भारत की महत्वाकांक्षी योजना ‘पुन: प्रयोज्य लॉन्च व्हिकल’ (Reusable Launch Vehicle (RLV) या ‘पुन: प्रयोज्य रॉकेट’ (Reusable Rocket) को भी इसरो द्वारा एक परीक्षण द्वारा सफलतापूर्वक पूरा किया गया । यह परीक्षण कर्नाटक के चित्रदुर्ग में ‘एरोनॉटिकल टेस्ट रेंज’ (Aeronautical Test Range), में इसी वर्ष अभी हाल ही में 2 अप्रैल को सुबह किया गया था, जिसे 4.5 किमी की ऊंचाई तक उड़ाने के लिए ‘25kW ब्रशलेस डीसी मोटर’ (25 kW Brushless DC Motors का उपयोग किया गया।
इस मोटर का निर्माण तमिल नाडु के सेलम शहर में स्थित ‘सोना कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी’ (Sona College of Technology) के ‘इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग’ (Electrical and Electronics Engineering) विभाग के विद्यार्थी–प्राध्यापक संघ द्वारा किया गया था जो ऐसे मिशन के लिए महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों हेतु स्वदेशी प्रौद्योगिकी उत्पादों का विकास और वितरण करता है। यह सफलता ‘मेक इन इंडिया’ (Make In India) मिशन के आगमन को भी चिह्नित करती है। यह,परीक्षण उन पांच परीक्षणों में से दूसरा परीक्षण था जो पुनःप्रयोज्य लॉन्च व्हिकल या अंतरिक्ष शटल (Space Shuttle) विकसित करने के इसरो के प्रयासों का एक हिस्सा है। आरएलवी वैज्ञानिक या तकनीकी उपकरण लॉन्च करने हेतु पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit) में जा सकता है और फिर से उपयोग के लिए पृथ्वी पर वापस आ सकता है। ‘लैंडिंग एक्सपेरिमेंट’ (LandingExperiment (LEX) के रूप में प्रख्यात इस मिशन ने भविष्य में एक पूर्ण अंतरिक्ष शटल बनाने के लिए, आवश्यक प्रौद्योगिकी में महारत हासिल करने हेतु कुछ महत्वपूर्ण मापदंडों को साबित किया है। हालांकि अभी इसरो को इस तरह के महत्वाकांक्षी मिशन को पूर्ण परिचालन के साथ लॉन्च करने से पहले एक लंबा रास्ता तय करना है।
जनवरी 2012 में ही, इसरो के आरएलवी अंतरिक्ष यान के डिजाइन को राष्ट्रीय समीक्षा समिति द्वारा स्वीकृति मिल गई थी। मंजूरी मिलने के बाद, इस यान की पहली प्रतिकृति या आद्य रूप बनाया गया और इसे आरएलवी–टीडी (RLV-TD) नाम दिया गया। इस तरह की परियोजना में शामिल होने का इसरो का मुख्य उद्देश्य सेटेलाइट्स को पृथ्वी की निचली कक्षा में लॉन्च करने की लागत को कम करना था। आरएलवी का उद्देश्य पारंपरिक पीएसएलवी (PSLV) रॉकेटों की तुलना में लागत को लगभग 80% कम करना है।
आरएलवी के इस प्रयोग की सफलता का अर्थ है कि यह अब अपने परीक्षण के अगले स्तर के लिए मजबूत हो गया है। इसरो द्वारा भविष्य में अंतरिक्ष यान द्वारा ‘एक कक्षीय पुन: प्रवेश प्रयोग’ (Orbital Re-entry Experiment (OREX) और एक ‘स्क्रैमजेट प्रोपल्शन प्रयोग’ (Scramjet Propulsion Experiment (SPEX) करने की योजना बनाई जा रही है। इस प्रकार के परीक्षणों और वाहन सुधारों के लिए आरएलवी पृथ्वी की निचली कक्षा में कम लागत के साथ सेटेलाइट्स को लॉन्च करने के लिए एक मजबूत यान के रूप में विकसित हो सकता है । साथ ही भविष्य में इसकी तकनीक और प्रौद्योगिकी के और भी उन्नत होने की उम्मीद है । हालांकि, भारत अपने मानवचालक युक्त ‘गगनयान’ मिशन के साथ 2024 तक मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता हासिल करने की दिशा में कदम बढ़ा रहा है, किंतु मानव अंतरिक्ष उड़ान प्रयास में आरएलवी का अनुप्रयोग हमारे लिए अभी भी एक सपना है। भारत इस दशक के अंत तक मानव अंतरिक्ष स्टेशन के अपने सपने को साकार करने की दिशा में चीन(China) के पथ पर चलने का निर्णय ले सकता है। 2003 में शेनझोउ-5(Shenzhou-5) के प्रक्षेपण के साथ चीन ने अपना मानवयुक्त अंतरिक्ष यान कार्यक्रम शुरू किया है। शेनझोउ-5 को लॉन्च करने के लिए इस्तेमाल किए गए लॉन्गमार्च-2F(Long March-2F) रॉकेट की उपकरण वाहकक्षमता (Payload Capability) पृथ्वी की निचली कक्षा में 8,400 किलोग्राम है जो भारतीय एलवीएम–3(LVM-3) की पृथ्वी की निचली कक्षा के लिए 10,000 किलोग्राम के उपकरण वाहक क्षमता के समान है। गगनयान का वजन करीब 8200 किलोग्राम होगा। इसलिए, भारत के लिए एलवीएम–3 पर गगनयान को लॉन्च करना कोई बड़ी बात नहीं है। भविष्य में विभिन्न अनुखंड(Multi–Module) वाले भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए नियमित मानव चालकयुक्त अंतरिक्ष उड़ानों को निष्पादित करने में भारतीय आरएलवी अंतरिक्ष विमान महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। वैसे तो पुनः प्रयोज्य लॉन्चिंग व्हीकल का इतिहास पुराना है। नासा द्वारा बनाए गए अंतरिक्ष शटल दुनिया के पहले पुन: प्रयोज्य अंतरिक्ष यान थे। हालांकि, यह योजना 2011 में ही समाप्त हो गई । आज, ‘ब्लू ओरिजिन’ (Blue Origin) और ‘स्पेस एक्स’ (SpaceX) जैसी कुछ निजी कंपनियां भविष्य में पुन: प्रयोज्य रॉकेट बनाने का प्रयास कर रही हैं। इन पुनः प्रयोज्य लॉन्चिंग व्हीकल का एक लाभ सामर्थ्य है। रॉकेट लॉन्च करने में लाखों, जबकि कभी-कभी तो अरबों रुपए या डॉलर खर्च हो जाते हैं। नासा के अंतरिक्ष शटल कार्यक्रम में, शटल तो पुन: प्रयोज्य थे, लेकिन रॉकेट पुन: प्रयोज्य नहीं थे, जिसके कारण यह योजना बहुत महंगी थी । अतः यदि रॉकेट का भी एक से अधिक बार उपयोग किया जाता है, तो कुल लागत कम हो जाती है।
अनुमान बताते हैं कि पुन: प्रयोज्यता अंतरिक्ष यात्रा को 100 गुना सस्ता बना सकती है। इससे अंतरिक्ष यात्रा अधिक लोगों के लिए सुलभ होगीजिसके कारण अधिक वैज्ञानिकों द्वारा नए विचारों को सीखने और परीक्षण करने की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि, कीमत कम करने का मतलब सुरक्षा में कटौती करना नहीं है। इसलिए एक मिशन के पूरा होने पर और दूसरे मिशन की शुरुआत से पहले पुन: प्रयोज्य रॉकेट की जाँच भी की जाती है। किसी मिशन की सफलता को सुनिश्चित करने के लिए इसमें आवश्यक मरम्मत भी की जाती हैं। यह भी उम्मीद की जाती है कि, पुन: प्रयोज्य रॉकेट के उपयोग से अंतरिक्ष यात्रा के दौरान उत्पन्न होने वाले कार्बन उत्सर्जन(Carbon Footprint) को भी कम किया जा सकता है। रॉकेट की पुन: प्रयोज्यता अंतरिक्ष यात्रा पर खर्च किए जाने वाले प्राकृतिक संसाधनों की संख्या को भी कम कर देगी। आज, कुछ पुन: प्रयोज्य रॉकेट पहले से ही उपयोग में हैं। और यही कुछ कारक अंतरिक्ष अभियानों में पुन: प्रयोज्य अंतरिक्ष यानों के प्रयोग को महत्त्वपूर्ण बना देते है।

संदर्भ
https://bit.ly/3ZVdnnj
https://bit.ly/3ZLdqBH
https://bit.ly/42ZvGuh

चित्र संदर्भ
1. चंद्रयान-2 के लिए ऑर्बिट रेजिंग बर्न शुरू होने से पहले इस्ट्रैक में मिशन ऑपरेशंस कॉम्प्लेक्स-1 (MOX-1) के एक दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. ‘भारतीय अंतरिक्ष विभाग की संगठनात्मक संरचना को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. 23 मई 2016 को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के पहले लॉन्च पैड (SDSC SHAR) से RLV-TD HEX01 को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. आरएलवी–टीडी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. लॉन्गमार्च-2F को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
6. ब्लू ओरिजिन को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

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