हमारे लखनऊ में ही तो जन्मी हैं उर्दू शायरी की लोकप्रिय शैलियाँ, ‘मसनवी’ और ‘मर्सिया’

ध्वनि 2- भाषायें
03-04-2023 10:10 AM
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हमारे लखनऊ में ही तो जन्मी हैं उर्दू शायरी की लोकप्रिय शैलियाँ, ‘मसनवी’ और ‘मर्सिया’

‘ये अवध है कि जहाँ शाम कभी ख़त्म नहीं होती
वो बनारस है जहाँ रोज़ सहर होती है!’
अवध और उर्दू शायरी का साझा इतिहास बेहद पुराना रहा है। अवध वही स्थान है जहां पर उर्दू शायरी के विविध रूप विकसित हुए। आज हम उर्दू शायरी के एक लोकप्रिय रूप ‘मसनवी और मर्सिया (Masnavi and Marsiya) के अवध यानी आज के लखनऊ के साथ साझा इतिहास के बारे में जानेंगे ।
विभिन्न रूपों और शैलियों के साथ, उर्दू शायरी का एक समृद्ध इतिहास रहा है। मसनवी, मर्सिया और हास्य छंद उर्दू शायरी के सबसे लोकप्रिय रूपों में से एक माने जाते हैं। मसनवी का मूल रूप फ़ारसी कविता से उत्पन्न हुआ है । उर्दू में सबसे पहले मसनवी लिखने का श्रेय प्रसिद्ध कवि मीर गुलाम हसन (Mir Ghulam Hasan,) को जाता है, जिन्होंने हमारे लखनऊ में ही अपनी प्रसिद्ध कृति मसनवी ‘बेनजीर-ओ-बदर-ए-मुनी’र (Benazir-O -Badar-E -Munir) लिखी थी। मसनवी लिखने वाले अन्य प्रसिद्ध कवियों में मौलाना मिर्जा मोहम्मद तकी खान (Maulana Mirza Muhammad Taqi Khan), रम (Rum), खुसरो (Khusro), जामी (Jami) और हनाफी (Hanafi) भी शामिल हैं। मर्सिया, लालित्य कविता या शोकगीत होते हैं, जो हुसैन इब्न अली (Husayn Ibn Ali) और कर्बला में उनके साथियों की शहादत और बहादुरी की याद में गाए जाते हैं। कुछ प्रसिद्ध मर्सिया लेखकों में मीर बाबर अली अनीस (Mir Babar Ali Anis) और मिर्ज़ा सलामत अली दबीर (Mirza Salamat Ali Dabir) शामिल हैं। मीर अनीस को उनकी सरल, भावनात्मक शैली और वक्तृत्व कला की नवीन तकनीकों के लिए जाना जाता था।
प्राचीन अरब कविता में, शोकगीत और युद्ध कविताओं का पाठ करना वाक्पटुता और छंद पूर्णता प्रदर्शित करने का एक तरीका माना जाता था। उर्दू साहित्य में, मर्सिया मुख्य रूप से पैगंबर के पोते इमाम हुसैन और उनके परिवार के सदस्यों की प्रशंसा में लिखा गया गीत होता है, जो वर्तमान इराक में 680 ईसवी में कर्बला की लड़ाई में मारे गए थे। मर्सिया कविता, शिया मुसलमानों के लिए विशेष महत्व रखती है। मर्सिया आमतौर पर मोहर्रम के महीने में पढ़ी जाती है। ‘मर्सिया’ शब्द अरबी शब्द ‘रिसा’ से निकला है, जिसका अर्थ एक दिवंगत आत्मा के लिए विलाप करना होता है। मुहर्रम के पहले दस दिनों के दौरान इन शोकगीतों का पाठ करना मुस्लिम समुदाय में एक महत्वपूर्ण परंपरा है। मीर बाबर अली अनीस, एक प्रसिद्ध उर्दू कवि, अपने सलामों, शोकगीतों, नौहों और चौपाइयों के लिए जाने जाते हैं। मीर अनीस ने अपनी कविताओं में अरबी, फ़ारसी, उर्दू, हिंदी और अवधी भाषाओं का इस प्रकार इस्तेमाल किया है, कि यह सभी भाषाएं सांस्कृतिक पच्चीकारी का प्रतिनिधित्व करते हुए उर्दू का ही भाग बन गई । मुहर्रम और मीर अनीस, भारत-पाक उपमहाद्वीप में उर्दू प्रेमियों के बीच पर्याय बन गए हैं। समय के साथ, मीर अनीस और मिर्ज़ा दबीर दोनों अपनी मर्सियों के लिए बहुत प्रसिद्ध हो गए।
मर्सिया 7वीं शताब्दी के दौरान अरब में घटित घटनाओं के चित्रण के लिए भी उल्लेखनीय है । उदाहरण के लिए, इसके अरब पात्रों को दक्षिण एशियाई परिपेक्ष्य में चित्रित किया गया है, जिनकी आदतें और रीति-रिवाज कुलीन उत्तर भारतीय परिवारों की तरह हैं। ‘रिलीविंग कर्बला: मार्टडम इन साउथ एशियन मेमोरी’ (Relieving Karbala: Martyrdom in South Asian Memory') नामक अपनी किताब में, लेखक सैयद अकबर हैदर ने मर्सिया के एक ऐसे रूप को वर्णित किया है, जो न केवल इमाम हुसैन की मृत्यु और अन्य घटनाओं को छूता है, बल्कि उनकी नैतिकता (अखलाक), क्षमा, करुणा और शिष्टाचार की प्रवृत्ति को भी दर्शाता है। हमारे लखनऊ के लोग फारसी संस्कृति और शिया इस्लाम से काफी प्रभावित थे। उनकी कविता (मर्सिया) पर फारसी प्रभाव विशेष रूप से मजबूत था।
माना जाता है कि भारत में मर्सिया परंपरा सबसे पहले दिल्ली और दक्कन क्षेत्र में विकसित हुई, लेकिन लखनऊ के नवाबों के संरक्षण में यह परंपरा अपने चरम पर पहुंच गई, जिन्होंने 18वीं और 19वीं शताब्दी में कला के इस रूप को खूब प्रोत्साहित किया।
माना जाता है कि रामपुर के नवाब ने प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, जब अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर की सत्ता पर अंग्रेजों द्वारा कब्जा कर लिया गया था और उन्हें म्यांमार निर्वासित कर दिया गया था, लखनऊ और दिल्ली के कवियों को संरक्षण प्रदान किया था । रामपुर रज़ा लाइब्रेरी के निदेशक प्रोफेसर अज़ीमुद्दीन के अनुसार मर्सिया की कला से संबंधित 82 पांडुलिपियां और 240 किताबें आज भी रज़ा पुस्तकालय में सुरक्षित हैं।

संदर्भ
https://bit.ly/3ntQKsz
https://bit.ly/3ngDLdj
https://bit.ly/3lTmEOs

चित्र संदर्भ
1. उर्दू शायरी के एक लोकप्रिय रूप ‘मसनवी" महफ़िल को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. उर्दू में सबसे पहले मसनवी लिखने का श्रेय प्रसिद्ध कवि मीर गुलाम हसन (Mir Ghulam Hasan,) को जाता है, को संदर्भित करता एक चित्रण (rekhta)
3. जलाल अल-दीन रूमी की मसनवी को दर्शाता एक चित्रण (Look and Learn)
4. ‘रिलीविंग कर्बला: मार्टडम इन साउथ एशियन मेमोरी’ (Relieving Karbala: Martyrdom in South Asian Memory') नामक किताब को संदर्भित करता एक चित्रण (amazon)

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