किन खूबियों के कारण आज भी जीवित है, दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति, आमचि

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29-03-2023 10:25 AM
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किन खूबियों के कारण आज भी जीवित है, दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा पद्धति, आमचि

टेलीविजन या इंटरनेट पर तिब्बत से संबंधित तस्वीरों और वीडियो देखने पर, हमें आमतौर पर वहां केवल मठ और बर्फ से लदे पहाड़ ही नजर आते हैं। लेकिन तिब्बत के इन्हीं पहाड़ों में आज से हजारों वर्ष पूर्व एक ऐसी चिकित्सा पद्धति का विकास हुआ, जो आज शताब्दियों बाद भी प्राचीन काल के समान उतनी ही कारगर मानी जाती है और अनेक लोगों को नया जीवन दे रही है।
‘सोवा रिग्पा’ (SOWA-RIGPA) जिसे आमतौर पर आमचि (Amchi) चिकित्सा प्रणाली के रूप में जाना जाता है, दुनिया की सबसे पुरानी, जीवित और अच्छी तरह से प्रलेखित चिकित्सा पद्धतियों में से एक मानी जाती है। यह चिकित्सा पद्धति तिब्बत, मंगोलिया (Magnolia), भूटान, चीन (China) के कुछ हिस्सों, नेपाल, भारत के हिमालयी क्षेत्रों और पूर्व सोवियत संघ (Soviet Union) के कुछ हिस्सों में आज भी प्रचलित है। इस चिकित्सा परंपरा की उत्पत्ति हमेशा से ही विवादित रही है। कुछ विद्वानों का मानना है कि इसकी उत्पत्ति भारत में हुई थी; जबकि कुछ इसे चीन से और कई अन्य लोग इसे तिब्बत से ही उत्पन्न मानते हैं। सोवा-रिग्पा चिकित्सा पद्धति के अधिकांश सिद्धांत और व्यवहार ‘आयुर्वेद’ के ही समान है। हालांकि यह प्रणाली 7 वीं शताब्दी के बाद बौद्ध धर्म के तिब्बतियन दृष्टिकोण के साथ ही लोकप्रिय हुई। उसके बाद बौद्ध धर्म और अन्य भारतीय कलाओं तथा विज्ञान के साथ-साथ यह भारतीय चिकित्सा प्रणाली भी 19वीं शताब्दी की शुरुआत तक पूरे विश्व में फैलती रही ।
तिब्बती छात्रों के लिए बौद्ध कला और संस्कृति को समझने के लिए भारत, हमेशा से पसंदीदा स्थान रहा है। बौद्ध धर्म और अन्य भारतीय कलाओं तथा विज्ञान के प्रसार के लिए बहुत सारे भारतीय विद्वानों को भी तिब्बत में आमंत्रित किया जाता रहा है । भारत के साथ इस लंबे जुड़ाव के परिणामस्वरूप, तिब्बती भाषा में धर्म, विज्ञान, कला, संस्कृति और भाषा आदि जैसे विभिन्न विषयों पर भारतीय साहित्य का अनुवाद और संरक्षण भी हुआ है।
‘सोवा-रिग्पा’ (चिकित्सा विज्ञान) इसके उत्कृष्ट उदाहरणों में से एक है। इस चिकित्सा की भारतीय मौलिक पाठ्य पुस्तक ‘ग्यूद-ज़ी’ ( “Gyud-Zi (चार तंत्र) का पहली बार अनुवाद चीनी और फारसी आदि भाषाओं में किया गया था। बौद्ध धर्म और अन्य तिब्बती कला के साथ-साथ सोवा-रिग्पा का प्रभाव और विज्ञान पड़ोसी हिमालयी क्षेत्रों में फैला हुआ था। भारत में यह प्रणाली सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल), लाहौल और स्पीति (हिमाचल प्रदेश) और जम्मू-कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र आदि में प्रचलित है। सोवा-रिग्पा ‘जंग-वा-न्गा’ (Jang-wa-nga), जिन को संस्कृत में पंचमहाभूत अर्थात पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश कहा जाता है, और ‘नगेपा-सुम’ (Ngepa-sum) (संस्कृत: त्रिदोष) के सिद्धांतों पर आधारित है। इस प्रणाली के अनुसार ये पंचमहाभूत तत्व ब्रह्मांड में सभी जीवित और निर्जीव वस्तुओं में मौजूद हैं। हमारा शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से बना है। जब इन तत्वों का संतुलन बिगड़ जाता है, तो यह बीमारी का कारण बन सकता है। इन रोगों के उपचार में प्रयुक्त होने वाली औषधि और आहार भी इन्हीं पांच तत्वों से निर्मित होते हैं। सोवा-रिग्पा में, शरीर को उपचार के केंद्र के रूप में देखा जाता है। उपचार रोग का मारक है। इस मारक के उपयोग के माध्यम से उपचार की विधि की जाती है। रोग को दूर करने के लिए जो औषधि प्रयोग की जाती है वह पंचतत्वों से बनी होती है।
परंपरागत रूप से, इस प्रणाली के चिकित्सकों, जिन्हें आमची कहा जाता है, को गुरु-शिष्य नामक एक निजी प्रणाली या परिवारों के भीतर एक वंश प्रणाली के माध्यम से तिब्बती चिकित्सक बनने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। कई वर्षों के सैद्धांतिक और व्यावहारिक प्रशिक्षण के द्वारा चिकित्सीय ज्ञान पिता से पुत्र तक पारित किया जाता है। एक बार प्रशिक्षण पूरा हो जाने के बाद, प्रशिक्षु आमचि को प्रमाणित आमचि बनने के लिए समुदाय और विशेषज्ञ आमचि के सामने परीक्षा देनी होती है । पहले के दौर में भारतीय हिमालयी क्षेत्र के लोग विद्वानों के साथ अध्ययन करने या मेडिकल कॉलेजों में भाग लेने के लिए तिब्बत जाते थे। आजकल, ऐसे कई संस्थान हैं जो तिब्बती चिकित्सा प्रणाली में स्नातक या आमचि चिकित्सा आचार्य नामक छह वर्षीय पाठ्यक्रम प्रदान करते हैं। भारत में इस प्रणाली से संबंधित पाठ्यक्रमों को चार संस्थानों में संचालित किया जाता है। आधुनिक बुनियादी ढांचे वाले इन संस्थानों में पाठ्यक्रम सीमित अवधि में पूरा किया जाता है। छात्रों का चयन उनकी 10+2 शिक्षा पूरी करने के बाद उनकी प्रवेश परीक्षा की योग्यता के आधार पर किया जाता है। भारत में सोवा-रिग्पा के लगभग 1000 चिकित्सक हैं जो उच्च हिमालयी क्षेत्रों और अन्य स्थानों में स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करते हैं।
हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला और जम्मू और कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र भारत में सोवा-रिग्पा संस्थानों के मुख्य केंद्र हैं। कई विद्वान मानते हैं कि ‘आमचि’ शब्द की उत्पत्ति मंगोलियाई शब्द ‘अम-रजाई’ से हुई है, जिसका अर्थ ‘सभी से श्रेष्ठ’ होता है।" इस चिकित्सा के चिकित्सक जो तिब्बती चिकित्सा पद्धति का पालन करते हैं, उन्हें भी आमचि के नाम से ही जाना जाता है। एक शोध पत्र के अनुसार, आमचि प्रणाली दुनिया की सबसे पुरानी प्रलेखित चिकित्सा परंपराओं में से एक है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक गतिविधियों के संदर्भ में लद्दाख के लोगों के लिए आमचि की सेवा हमेशा महत्वपूर्ण रही है। 1960 के दशक से पहले, सोवा-रिग्पा लद्दाख के अधिकांश हिस्सों और भारत के अन्य ट्रांस-हिमालयी क्षेत्रों में आम लोगों के लिए एकमात्र स्वास्थ्य सुविधा हुआ करती थी। आज तक लद्दाख के कई हिस्सों में आमचि प्रणाली को प्रतिस्थापित नहीं किया गया है। तिब्बती चिकित्सकों ने पिछले 50 वर्षों में तिब्बती चिकित्सा को संरक्षित और पुनर्जीवित करने में अहम् भूमिका निभाई है। चीन के तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के त्सांग प्रांत (Tsang Province) में दशकों से जबरन सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक उथल-पुथल मचा के वहां के चिकित्सा ग्रंथों को नष्ट कर दिया गया था या छिपा दिया गया था, शिक्षकों और लामाओं को कैद या चुप करा दिया गया था, और औषधीय सामग्री में व्यापार रोक दिया गया था। इन चिकित्सकों को बहुत कम उम्मीद थी कि उनका ‘चिकित्सा विज्ञान’ (सोवा रिग्पा) कभी भी फिर से फलेगा-फूलेगा। हालाँकि, आज, तिब्बती चिकित्सा प्रचलन में है और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (Chinese Communist Party) द्वारा तिब्बत के स्तंभ उद्योग और तिब्बती संस्कृति की एक मूल्यवान संपत्ति के रूप में यह चिकित्सा प्रणाली प्रचारित की जाती है।
पारंपरिक चिकित्सा विशेष रूप से शहरी तिब्बतियों के लिए तिब्बती पहचान और भाषा की उदार अभिव्यक्ति की अनुमति देती है। शहरी परिवेश में, यह आसानी से सुलभ है, जबकि दूरस्थ क्षेत्रों में, युवा पीढ़ी के लिए इसके अभ्यास और प्रसारण में कई चुनौतियाँ आती हैं। हालांकि, पहुंच की कमी, गैर-आधिकारिक इतिहास के निरंतर दमन, भय और जीवित स्मृति के नुकसान ने तिब्बती चिकित्सा डॉक्टरों के लिए इसका अध्ययन करना मुश्किल बना दिया है। यह खंड उनकी कहानी प्रस्तुत करता है, यह प्रदर्शित करता है कि कैसे त्सांग के चिकित्सकों ने मठवासी बौद्ध धर्म और चिकित्सा घरों के लगभग विनाश के बावजूद हार नहीं मानी और चिकित्सा ज्ञान के शिक्षण में महत्वपूर्ण कड़ी बनाए रखी है।

संदर्भ

https://bit.ly/3z6orTr
https://bit.ly/3LR6BeF
https://bit.ly/3ZfQsT6
https://rb.gy/yujfj0

चित्र संदर्भ

1. आमचि (Amchi) चिकित्सा प्रणाली को संदर्भित करता एक चित्रण (Peakpx)
2. चीन के विज्ञान और प्रौद्योगिकी संग्रहालय, बीजिंग में मौजूद पारंपरिक तिब्बती चिकित्सा पोस्टर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. तिब्बती भिक्षु सभा को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
4. तिब्बती चिकित्सा चार्ट को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. तिब्बती लोगों को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)

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