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उत्तर प्रदेश में लगभग 2,50,000 से अधिक हथकरघा बुनकर, 1,10,000 हथकरघा इकाइयों में काम कर रहे हैं। इन हथकरघा इकाइयों को विकसित होने में कई वर्षों का समय लगा है। फर्रुखाबाद, बरेली और लखनऊ जैसे कई जिले बारीक और नाजुक हाथ की कढ़ाई के काम के लिए मशहूर हैं और, यह यहां रह रहे अनेकों लोगों की आजीविका का आधार है। यहां के अधिकांश बुनकर ऐसे हैं, जिनके पूर्वज भी इसी कार्य में संलग्न थे, अतः उन्होंने भी इस कार्य को करने का निर्णय लिया। हथकरघा बुनाई मुख्य रूप से एक घरेलू व्यवसाय है, जो ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए एक बहुत ही सम्मानित व्यवसाय माना जाता है। पिछले एक दशक में राज्य में सरकार द्वारा आयोजित किए गए कौशल विकास कार्यक्रमों में हजारों युवाओं को प्रशिक्षित किया गया है। इन कुशल कामगारों की पूरे कपड़ा उद्योग में मांग है।
वाराणसी और मुबारकपुर को उच्चतम गुणवत्ता वाली रेशम की साड़ियों के लिए विश्व भर में जाना जाता है और ये दोनों राज्य पूरे देश में रेशम साड़ी उत्पादन में 90% का योगदान देते हैं। वाराणसी की 25% पुरुष आबादी आजीविका के लिए मुख्य रूप से इस उद्योग में संलग्न है। इस क्षेत्र में रोजगार सृजन की अत्यधिक संभावना है, और इसलिए वर्तमान प्रधान मंत्री ने भारतीय अर्थव्यवस्था में हथकरघा बुनाई की विरासत और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए 7 अगस्त को "राष्ट्रीय हथकरघा दिवस" के रूप में घोषित किया है ।
लेकिन उत्तर प्रदेश के बुनाई उद्योग में पिछले कुछ वर्षों में महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं और तकनीकी नवाचार के कारण हथकरघा अब बिजली के करघे में बदल गया है। बिजली से चलने वाले करघे के कारण सूत की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि के साथ-साथ बुनकर समुदाय की आजीविका भी अत्यधिक प्रभावित हुई है। नतीजतन अधिकांश बुनकरों को एक दयनीय स्थिति का सामना करना पड़ रहा है।
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज़रदोज़ी का कार्य करने वाले कारीगर भुखमरी की कगार पर हैं और उन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। इन श्रमिकों की स्थिति लखनऊ में भी बेहतर नहीं है। इस कार्य में संलग्न कम से कम एक तिहाई आबादी ने महामारी के बाद इस कार्य को छोड़ रिक्शा चलाना शुरू कर दिया है। लखनऊ के ज़रदोज़ी शिल्प को भौगोलिक संकेत का टैग मिले हुए लगभग दस साल हो गए हैं, लेकिन श्रमिकों की दुर्दशा में कोई बदलाव नहीं आया है। लखनऊ में जरदोजी का कार्य अवध के नवाबों के संरक्षण में अत्यधिक फला-फूला था, तथा उस समय यह कार्य बहुत पसंद किया जाता था। 18वीं और 19वीं शताब्दी में, जरदोजी को भोपाल, कोलकाता, दिल्ली, हैदराबाद, कश्मीर और वाराणसी में धनी हिंदू, मुस्लिम और यूरोपीय अभिजात वर्ग द्वारा भी अत्यधिक पसंद किया गया था। आज यह शिल्प पारंपरिक रूप से लखनऊ और आसपास के छह जिलों: अमेठी, बाराबंकी, हरदोई, रायबरेली, सीतापुर और उन्नाव में प्रचलित है। उत्तर प्रदेश कपड़ा मंत्रालय के अनुसार, लखनऊ में जरदोजी उत्पाद बनाने में 10,000 से अधिक सूक्ष्म और लघु उद्यम लगे हुए हैं। इस कढ़ाई का उपयोग दुल्हन के लहंगे, शादी की साड़ियों, पाकिस्तानी और पंजाबी सूट, कुर्तियां, कुशन कवर, दीवार की सजावट के सामान, बैग, पर्स और यहां तक कि जूतों पर भी किया जाता है। किंतु विडंबना यह है कि इस शिल्प की मांग अब दिन-ब-दिन कम होती जा रही है, जिसके कारण इसमें कार्यरत लोग इसे छोड़ रहे हैं। ज़रदोज़ी का कार्य करने वाले अनेकों शिल्पकार काम की तलाश में दूसरे शहरों में जा रहे हैं।
किंतु अब आशा की एक किरण दिखाते हुए उत्तर प्रदेश के पारंपरिक कपड़ा उद्योग को पुनर्जीवित करने के लिए, सरकार ने मौजूदा कपड़ा परिधान नीति, 2017 को फिर से जीवंत किया है। इस नीति का उद्देश्य सभी वर्गों के लोगों के जीवन स्तर में सुधार करना है ताकि वे सम्मानित जीवन जी सकें। इसके अलावा, औद्योगिक निवेश बढ़ाने और अधिक रोजगार पैदा करने के लिए विभिन्न प्रावधान किए गए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने घोषणा की कि वह अपनी नई नीति के तहत राज्य में कपड़ा इकाइयों की स्थापना के लिए भूमि की खरीद पर 25 प्रतिशत की सब्सिडी और स्टांप शुल्क में 100 प्रतिशत तक की छूट प्रदान करेगी। इस नीति का उद्देश्य राज्य को “वैश्विक कपड़ा केंद्र” बनाना, 10,000 करोड़ रुपये के निवेश को आकर्षित करना और 5 लाख नई नौकरियां पैदा करना है। ‘प्रधानमंत्री मित्र पार्क योजना’ (Prime Minister Mitra Park Scheme) के तहत लखनऊ और हरदोई जिलों में एक हजार एकड़ भूमि पर कपड़ा पार्क (Textile park) विकसित करने की योजना है। राज्य में रेशम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए, इस नीति के तहत रेशम उत्पादन और धागा बनाने वाली (Threading) इकाइयों की स्थापना पर 100 प्रतिशत स्टांप शुल्क की छूट भी प्रदान की जाएगी ।
इस नीति के तहत पूंजीगत सब्सिडी भी प्रदान की जाएगी, जिसमें कपड़ा और परिधान इकाइयों के लिए संयंत्र और मशीनरी की खरीद के लिए 25 प्रतिशत की सब्सिडी भी शामिल है। इसके अलावा, बुंदेलखंड और पूर्वांचल क्षेत्र में स्थापित होने वाली इकाइयों को 10 प्रतिशत अतिरिक्त पूंजीगत अनुदान प्रदान किया जाएगा । यह नीति निवेशकों को उनकी इकाइयों के लिए बुनियादी ढांचे के विकास में वित्तीय सहायता भी प्रदान करती है।
संदर्भ:
https://bit.ly/42b5goP
https://bit.ly/42hnKUS
https://bit.ly/3ypRVLN
चित्र संदर्भ
1. कपड़ा श्रमिकों को संदर्भित करता एक चित्रण (Max Pixel)
2. भारतीय कताई मिल में प्रसंस्करण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. महिला बुनकर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. ज़रदोज़ी का काम करते हुए कारीगर को संदर्भित करता एक चित्रण (Prarang)
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