लखनऊ का हवा प्रदूषण बन रहा है हमारी गंध चेतना के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए घातक

गंध- ख़ुशबू व इत्र
17-03-2023 09:52 AM
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लखनऊ का हवा प्रदूषण बन रहा है हमारी गंध चेतना के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए घातक

हमारे आस-पास की दुनिया को समझने में हमारी गंध की भावना सबसे समृद्ध और विस्तृत रास्तों में से एक है। हमारे स्वाद के साथ-साथ हमारे सामाजिक जीवन में और यहां तक कि संभावित खतरों का पता लगाने में भी यह भावना महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और हमारी मदद भी करती हैं। लेकिन जिस हवा में हम सांस लेते हैं उसमें एक खतरा भी है, जो हमारी सूंघने की शक्ति को कम कर सकता है। और वह है, हवा में प्रदूषकों का होना….
सबसे पहले गौर करने लायक विषय हमारे अपने लखनऊ शहर से है। वायु प्रदूषण के स्तर में वृद्धि के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारकों में से एक होने के बावजूद भी शहर में खुले में कचरा जलाना आज भी जारी है। शहर के कई इलाकों में लोगों को कूड़ा जलाते हुए पाया जा सकता है। न्यू हैदराबाद, गोमतीनगर, नरही, जियामऊ और बालागंज के इलाकों में तो यह आम बात हो चुकी है। यहां के निवासियों की शिकायत है कि क्षेत्र में कचरा जलाने के बाद उन्हें अक्सर सांस लेने में तकलीफ होती है एवं नाक और सीने में जकड़न की समस्या होती है। हालांकि लखनऊ नगर निगम द्वारा कचरा उठाने में देरी के कारण लोग कचरा जलाते हैं। लेकिन इस परिस्थिति में भी कचरा जलाने वाले लोग यह नहीं समझते हैं कि खुले में कचरा जलाने से वातावरण में हानिकारक तत्व फैल जाते हैं जिससे कुछ लोगों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।
निवासियों का कहना है कि खुले में कचरा जलाने पर लगाया गया प्रतिबंध केवल ‘कागजों’ पर ही है। इसे कभी भी लागू नहीं किया गया है अतः संबंधित अधिकारियों द्वारा इसे रोकने के लिए कुछ सख्त कदम उठाए जाने चाहिए। कुछ क्षेत्रों में तो दवा के पैकेट तथा प्लास्टिक की खाली बोतल के ट्यूब भी जलाए जाते हैं। शहर में श्वसन विकार से ग्रसित कई मरीज भी हैं, लेकिन कचरा जलाने वाले लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हां, इस संदर्भ में आप एक काम जरूर कर सकते है। अगर आपके सामने ऐसी घटनाएं होती हैं तो उसे नगर निगम के हेल्पलाइन नंबरों या आपके फोन में उपलब्ध एप (App) पर शिकायत दर्ज करें, शायद कुछ मदद मिल जाए….
हवा में पाए जाने वाले छोटे प्रदूषक कण या बूंदें जिन्हें हम पर्टिकुलेट मैटर 2.5 (Particulate Matter (PM), भी कहते है, हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार की “घ्राण संबंधी” (Olfactory) बीमारियां उत्पन्न कर सकते हैं । हमारे दिमाग के निचले हिस्से में, नाक के छिद्रों के ठीक ऊपर, घ्राण बल्ब (Olfactory bulb) होता है। ऊतकों का यह संवेदनशील शारीरिक हिस्सा हमारी दुनिया की विविधतापूर्ण विशाल तस्वीर बनाने के लिए आवश्यक है जो हम अपनी गंध की भावना से प्राप्त करते हैं। बड़े पैमाने पर वाहनों, बिजली स्टेशनों और हमारे घरों में ईंधन के दहन से हवा में छोटे हवाई प्रदूषण कण फैल जाते हैं जो सांस के द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं और घ्राण बल्ब की तंत्रिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं। ये तंत्रिकाएं मस्तिष्क में प्रवेश करने वाले वायरस (Virus) और प्रदूषकों के खिलाफ हमारी रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में कार्य करती है।
लेकिन, बार-बार जोखिम के साथ, ये बचाव दल धीरे-धीरे खराब हो जाते हैं या फिर भंग हो जाते हैं। निरंतर कणीय प्रदूषण के साथ एनोस्मिया (Anosmia) विकसित होने का जोखिम आज 1.6 से 1.7 गुना बढ़ गया है। एनोस्मिया की बीमारी में पूर्ण या आंशिक रूप से गंध की भावना का नुकसान होता हैं। एक अध्ययन के अनुसार जिन स्थानों में एनोस्मिया के रोगी रहते हैं वहां पर निश्चित रूप से, पीएम 2.5 का स्तर “काफी अधिक” पाया गया है । पीएम 2.5 के लगातार संपर्क में रहने पर एनोस्मिया की बीमारी में वृद्धि भी हो सकती है। प्रदूषण के कुछ कण घ्राण बल्ब से होकर गुजरते हैं और सीधे मस्तिष्क में जाते हैं, जिससे मस्तिष्क में सूजन तक आ सकती है। और इस तरह यह हमारे मस्तिष्क के लिए भी हानिकारक है। आज कल तो किशोरों और युवा वयस्कों की नाक नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (Nitrogen dioxide), जैसी तीव्र गंध वाली गैस के प्रति भी कम संवेदनशील हो गई है। नाइट्रोजन डाइऑक्साइड गैस वाहनों के इंजन में जीवाश्म ईंधन (Fossil fuels) के जलने से उत्पन्न होती है, इसके लगातार संपर्क में आने से यह स्थिति उत्पन्न हो रही है। उच्च प्रदूषण कण वाले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में गंध की भावना क्षीण होती जा रही है और यह एक चिंताजनक विषय है ।
हवा में कुछ प्रदूषक कण तो इतने महीन होते हैं कि वे सीधे हमारे रक्त प्रवाह और मस्तिष्क के ऊतकों में प्रवेश कर सकते हैं। हृदय रोग और ह्रदय आघात से होने वाली सभी मौतों में एक चौथाई मौत वायु प्रदूषण के कारण होती हैं । साथ ही,यह फेफड़ों की बीमारी से होने वाली लगभग सभी मौतों का कारण माना जाता है। पर्यावरणीय विष रूपी कण घ्राण बल्ब के माध्यम से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central nervous system) में प्रवेश करते हैं और हमारे शरीर में क्षति का कारण बनते हैं, यह क्षति अंततः हमारे मस्तिष्क के पतन का कारण बन सकती है।

संदर्भ

https://bit.ly/3l467qP
https://bbc.in/3LjoNO2
https://bit.ly/3l2zycN

चित्र संदर्भ

1. लखनऊ में प्रदूषित गंध को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. जल रहे प्लास्टिक को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
3. घ्राण बल्ब (Olfactory bulb) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. नाक के इलाज को संदर्भित करता एक चित्रण (Imaggeo)

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