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हमारे वातावरण में स्वयं को खुद ही स्वच्छ करने की एक अद्भुत क्षमता होती है। वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड, जो कि वातावरण के गर्म होने एवं जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख कारण है, वातावरण में मौजूद पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा स्वयं ही अवशोषित कर ली जाती है। किंतु अत्यधिक मानव हस्तक्षेप के कारण यह स्थिति अब बदलती जा रही है। वातावरण की स्वयं को शुद्ध करने की क्षमता धीरे-धीरे क्षीण होती जा रही है। क्षतिग्रस्त वन और अन्य पारिस्थितिक तंत्र हमें अग्रिम चेतावनी भेज रहे है कि यदि मानव हस्तक्षेप तुरंत ही बंद नहीं किया गया तो स्थिति बद से बदतर हो सकती है ।
वातावरण में मौजूद लगभग 30 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन पेड़-पौधों और मिट्टी द्वारा तथा इसके अतिरिक्त 25 प्रतिशत समुद्र द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है । वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययनों में पाया है कि पिछले कुछ वर्षों से भूमि द्वारा कार्बन सिंक अस्थिर हो रहा है। इसके अलावा महासागरों और अमेज़ॅन (Amazon) जैसी नदियों द्वारा कार्बन अवशोषण की प्रक्रिया पहले से ही धीमी हो गई है। ‘ब्रिटिश मेट ऑफिस हैडली सेंटर’ (British Met Office Hadley Center) में जलवायु प्रभाव अनुसंधान के प्रमुख डॉ. रिचर्ड बेट्स (RichardBetts ) के अनुसार, तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस नीचे लाने के लिए पर्याप्त मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित किए जाने की आवश्यकता है जिसके लिए एक बहुत ही स्वस्थ जीवमंडल की आवश्यकता है ।
उपग्रहों (Satellite) द्वारा भेजी गई तस्वीरों से पता चलता है कि शुष्क मिट्टी और सीमित नाइट्रोजन वाले स्थानों में कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण विशेष रुप से कम हो रहा है। नेचर (Nature) में पिछले सप्ताह प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, ‘पूर्वी अफ्रीका, भूमध्यसागरीय क्षेत्र, उत्तर और मध्य अमेरिकी पश्चिमी तट, भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया इन संवेदनशील क्षेत्रों में शामिल हैं।‘ शोधकर्ताओं द्वारा कार्बन अवशोषण प्रक्रिया में बदलाव एवं वातावरण द्वारा स्वयं को स्वस्थ बनाए रखने की प्रक्रिया का अध्ययन किया गया है। परिणामों के अनुसार, यदि जलवायु परिवर्तन पर शीघ्र ही रोक नहीं लगाई गई और ये क्षेत्र अपनी पुरानी स्थिति में जल्द ही वापस नहीं लौटते हैं तो इन क्षेत्रों में प्रणालीगत परिवर्तन होने की संभावना बढ़ जाएगी जिसका दीर्घकालीन परिणाम यह होगा कि भूमि द्वारा कार्बन को कम मात्रा में अवशोषित किया जाएगा।
अतः अब जलवायु परिवर्तन के इन गंभीर परिणामों को रोकने और मिट्टी एवं वृक्षों की कार्बन अवशोषण क्षमता को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा कई शोध किए जा रहे हैं। अभी हाल ही में एक स्टार्ट-अप (start-up) द्वारा जॉर्जिया (Georgia) राज्य में वृक्षारोपण कार्यक्रम के दौरान जंगलों से एकत्रित मिट्टी में कवक और अन्य रोगाणुओं को भी रोपित किया गया । एक अध्ययन के अनुसार मिट्टी के माइक्रोबायोम (Microbiome) को फिर से अपनी पुनर स्थिति में लाने के प्रयास से स्वस्थ पेड़ों को उगाने में मदद मिल सकती है जो अधिक कार्बन जमा करने में सक्षम होते हैं । मिट्टी में मौजूद कवक और अन्य सूक्ष्म जीव पेड़ों के विकास और स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण कारक होते हैं। हालांकि कवक जंगल के नम और छायादार क्षेत्रों में उगते हैं। लेकिन माइकोराइजल नामक कवक पेड़ों की जड़ों के बीच भूमिगत रूप से विकसित हो सकते है। वैज्ञानिकों का कहना है कि एक्टोमाइकोरिजल (Ectomycorrhizal) नामक कवक की एक विशेष प्रजाति पेड़ों और जंगलों को कार्बन डाइऑक्साइड को अधिक तेज़ी से अवशोषित करने में सहायता करती है।
यह कवक जंगल की मिट्टी से वातावरण में कार्बन वापस लौटने की गति को भी धीमा कर सकता है, जिससे जंगलों को पेड़ों और मिट्टी में कार्बन को लंबे समय तक अवशोषित रखने में मदद मिलती है।
मायकोरिजल (MYCORRHIZAL) कवक या 'फंगस रूट' (fungus root) पौधों की वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वे पेड़ों की जड़ों को स्वस्थ बनाकर जड़ रोगों और कीटों के खिलाफ प्राकृतिक सुरक्षा प्रदान करते हैं। हालांकि कवक जड़ों से अपने लिए ऊर्जा प्राप्त करते हैं किंतु ऊर्जा के स्थिर स्रोत के बदले में जड़ों को मिट्टी से पोषक तत्वों और पानी को अवशोषित करने में मदद करने के लिए पौधे की जड़ों के विस्तार के रूप में काम करते है। पौधों और कवक के बीच यह संबंध प्राकृतिक वनों में सैकड़ों वर्षों में विकसित हुआ है जिसके कारण इन दोनों को सूखे एवं उच्च मिट्टी के तापमान से लड़ने और जड़ों को लंबी अवधि तक कार्यशील बनाने में मदद मिली है।
टिश्यू कल्चर(Tissue culture) के वर्तमान युग में लाखों पौधों को प्रयोगशाला से खेत में स्थानांतरित करके उगाया जाता है। हालांकि प्रत्यारोपण विफलता आम बात है और प्रत्यारोपण के बाद पौधों के जीवित रहने की दर 10 प्रतिशत से 90 प्रतिशत तक होती है। नर्सरी में बड़ी संख्या में अनुपजाऊ मिट्टी में पौधों का उत्पादन किया जाता है । पौधों को उचित प्रकार से बढ़ने के लिए जैविक जरूरतें प्रदान कीकी जाती हैं , जो सामान्य परिस्थितियों में प्रकृति द्वारा प्रदान की जाती हैं। एक शोध में पाया गया है कि जब पौधे रोपे जाते हैं, तो वे अत्यधिक तनाव से गुजरते हैं। जब तक नई मिट्टी के वातावरण में जड़ प्रणाली को फिर से स्थापित नहीं किया जाता है, तब तक पौधों को इस तनाव के हानिकारक प्रभावों से पीड़ित होना पड़ता है। यदि मिट्टी में मायकोरिजल (Mycorrhizal) कवक को मिलाया जाता है, तो यह एक नए वातावरण में पौधों को जीवित रहने में मदद करता है, जिससे कई प्रत्यारोपण विफलताओं से बचा जा सकता है।
सघन खनन द्वारा बंजर छोड़ी गई भूमि को पुनः उपजाऊ बनाने में भी कवक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। परित्यक्त खनन स्थल अक्सर अम्लीय होते हैं, इसके साथ ही ये स्थल उच्च तापमान, कम उर्वरता, कम जल भंडारण क्षमता और अक्सर जहरीले खनिज वाले होते हैं ।एक शोध में पाया गया है कि बंजर भूमि की इन समस्याओं को दूर करने के लिए, वृक्षारोपण की शुरुआत करने से पहले यदि पौधों की जड़ों के साथ मायकोरिजल कवक का संबंध स्थापित किया जाता है तो पौधे अति शीघ्रता के साथ नई मिट्टी में पनपने लगते हैं। हालांकि, आज कृषि विस्तार, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग, वनों की कटाई और शहरीकरण के कारण फंगल प्रजाति भी खतरे में हैं।
संदर्भ:
https://bit.ly/3KUr9lZ
https://bit.ly/3ILfbZk
https://bit.ly/3KTYvS8
चित्र संदर्भ
1. एक सूख रहे पेड़ को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. पानी बहने पर कार्बन कहां जाता है?, को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. जंगल कटाव को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. एक्टोमाइकोरिजल (Ectomycorrhizal) नामक कवक की एक विशेष प्रजाति पेड़ों और जंगलों को कार्बन डाइऑक्साइड को अधिक तेज़ी से अवशोषित करने में सहायता करती है। को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. टिश्यू कल्चर(Tissue culture) के वर्तमान युग में लाखों पौधों को प्रयोगशाला से खेत में स्थानांतरित करके उगाया जाता है। को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
6. खेत में एक पेड़ को दर्शाता एक चित्रण (Geograph)
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