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पिछले दिनों संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) द्वारा, जासूसी हेतु प्रयोग किये जा रहे एक चीनी गुब्बारे को नष्ट किये जाने की खबर आपने भी सुनी होगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ रिपोर्टों के अनुसार पिछले वर्ष, जब भारत और चीन की सीमाओं पर हुई हिंसक झड़पों की खबरें सामने आई थी, उसी दौरान बिल्कुल ऐसा ही एक गुब्बारा भारतीय हवाई क्षेत्र के ठीक ऊपर भी देखा गया था।
वाशिंगटन पोस्ट (Washington Post) के अनुसार, पिछले कई वर्षों से, चीन के द्वारा जासूसी गुब्बारों को चीन के दक्षिण तट से दूर हैनान प्रांत (Hainan Province) से संचालित किया जा रहा है। इन गुब्बारों के द्वारा चीन ने जापान (Japan), भारत, वियतनाम (Vietnam), ताइवान (Taiwan) और फिलीपींस (Philippines) आदि विभिन्न देशों की महत्वपूर्ण सैन्य संपत्ति पर जानकारी एकत्र की है।
फाइनेंशियल टाइम्स (Financial Times) की रिपोर्ट में किसी विशेष स्थान का उल्लेख किये बिना यह दावा किया गया था कि “जनवरी 2022 में भारत के आसमान में भी गुब्बारे जैसी नजर आने वाली एक सफेद संरचना देखी गई थी”। हालांकि अंडमान की स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इस गुब्बारे को रणनीतिक रूप से बंगाल की खाड़ी के द्वीपों पर उद्धृत किया गया था क्योंकि इन स्थानों पर भारत के महत्वपूर्ण सैन्य प्रतिष्ठान मौजूद हैं। सफेद गोले के आकार की यह वस्तु, कुछ हद तक मौसम का आंकलन करने वाले गुब्बारे की भांति दिख रही थी। अपने आकार और चमकदार सफेद सतह के कारण यह लोगों का ध्यान भी आकर्षित कर रही थी। चश्मदीदों द्वारा दिया गया यह विवरण उस गुब्बारे से मेल खाता है जिसे हाल ही में अमेरिका ने मार गिराया था।
हालांकि, एक साल से भी अधिक समय बीत जाने के बावजूद इस तथ्य की पुष्टि नहीं हो पाई है कि यह गुब्बारा, जो उस समय भारतीय संप्रभुता का उल्लंघन करते हुए भारतीय हवाई क्षेत्र के ऊपर उड़ रहा था, चीनी ही था । उस दौरान भारत और चीन की सीमा पर एक गतिरोध भी चल रहा था। लेकिन भारत सरकार ने अभी तक इस विषय पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि जासूसी हेतु गुब्बारों का प्रयोग आधुनिक नहीं है, बल्कि कई दशकों पहले से ही इनका प्रयोग किया जा रहा है। उन्नीसवीं शताब्दी के दौरान, भी खुफिया जानकारी एकत्र करने के लिए गुब्बारे एक महत्वपूर्ण उपकरण माने जाते थे। हालांकि, समय के साथ उनकी उपयोगिता में तेजी से गिरावट आई है। 1950 के दशक में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने सोवियत संघ (Soviet Union) की जासूसी करने के लिए उच्च ऊंचाई पर उड़ने वाले गुब्बारों का इस्तेमाल किया था। हालांकि, बाद में सोवियत संघ द्वारा इन गुब्बारों को U-2 नामक टोही विमान (Reconnaissance Aircraft) द्वारा गिरा दिया गया था।
हाल ही में इसी प्रकार के अमेरिकी क्षेत्र के ऊपर उड़ने वाले एक चीनी गुब्बारे ने भी दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी हैं। यह विशाल सफेद गुब्बारा दिन के उजाले के दौरान चंद्रमा जैसा दिख रहा था। माना जा रहा है कि अमेरिकी क्षेत्र के ऊपर उड़ रहा यह गुब्बारा कथित तौर पर निगरानी उपकरणों से युक्त था। हालांकि, चीनी सरकार ने गुब्बारे के चीन से आने की पुष्टि की है, लेकिन उन्होंने निगरानी हेतु इस गुब्बारे के प्रयोग से इनकार किया है। इस गुब्बारे को पहली बार इसी वर्ष 28 जनवरी के दिन अमेरिकी राज्य अलास्का (Alaska) के ऊपर से गुजरते हुए देखा गया था। बाद में अमेरिकी वायु सेना द्वारा 4 फरवरी को इसे अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean) के ऊपर मार गिराया गया।
हालांकि, आज एक से बढ़कर एक परिष्कृत तकनीकी विकल्प होने के बावजूद, आपको चीन के द्वारा निगरानी के लिए गुब्बारे का उपयोग करने की बात पर पर हैरानी अवश्य होगी। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, चीन द्वारा आकाश में जासूसी के लिए गुब्बारों का चुनाव करने के पीछे कई कारण हैं।
इनमें मुख्य रूप से तकनीकी लाभ को सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है। दरसल, गुब्बारों को बहुत अधिक ऊंचाई पर संचालित किया जा सकता है, जिससे सुरक्षा विमानों के लिए उन तक पहुंचना अधिक कठिन हो जाता है। साथ ही आधुनिक रडार से भी इनका पता लगाना मुश्किल है। इसके अलावा गुब्बारे आसान गतिशीलता भी प्रदान करते हैं और ऑपरेटर को अधिक सटीक डेटा प्राप्त करने की अनुमति देते हैं। ये विपरीत मौसम के बावजूद भी अच्छी तरह से काम कर सकते हैं, और लागत प्रभावी भी होते हैं।
जासूसी के इस पारंपरिक वाहन को अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी उन्नत तकनीकों से भी सुसज्जित किया जा रहा है। जिससे वे जासूसी, निगरानी और सैन्य पर्यवेक्षण गतिविधियों के लिए अत्यधिक कुशल हथियार बन जाते हैं।
चीन द्वारा की गई यह हरकत भारत के लिए भी अपनी खुफिया और प्रति-खुफिया दक्षता बढ़ाने के संदर्भ में एक खतरे की घंटी की भांति है। चीन-भारत संबंध पहले से ही नाज़ुक मोड़ पर हैं, ऐसे में उभरते खतरों की पहचान करने और उनका मुकाबला करने की विफलता, भारत के लिए महंगी साबित हो सकती है। चीन की इस हरकत से पता चलता है कि बीजिंग (Beijing) अपनी जासूसी प्रणाली को मजबूत करना चाहता है। इस बात की भी अत्यधिक संभावना है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग करके बीजिंग, अपनी बैलून प्रौद्योगिकी (Balloon Technology) की क्षमता को और अधिक बढ़ा रहा है।
संदर्भ
https://bit.ly/3ZohJ6G
https://bit.ly/3Zmxkno
https://bit.ly/3Zn7QpM
https://bit.ly/3mmd1I5
चित्र संदर्भ
1. एक जासूसी गुब्बारे को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
2. चीनी गुब्बारे के तुलनात्मक आकार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. हवा में उड़ते चीनी गुब्बारे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. अमेरिकी जासूसी गुब्बारे को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
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