आइए, लखनऊ के कुछ ऐतिहासिक कब्रिस्तानों पर गौर करें तथा उनके सरंक्षण पर ध्यान दें

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28-02-2023 10:13 AM
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आइए, लखनऊ के कुछ ऐतिहासिक कब्रिस्तानों  पर गौर करें तथा उनके सरंक्षण पर ध्यान दें

ऐतिहासिक रूप से, लखनऊ शहर अवध क्षेत्र की राजधानी था। इस पर दिल्ली सल्तनत और फिर बाद मेंमुगल साम्राज्य का नियंत्रण था। इसके पश्चात इसे अवध के नवाबों को स्थानांतरित कर दिया गया था। लखनऊ 18वीं और 19वीं शताब्दी में नवाबों की सत्ता का केंद्र रहा। 1856 में, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) ने यहां के स्थानीय शासन को समाप्त कर दिया और शेष अवध के साथ-साथ पूरे शहर पर पूर्ण नियंत्रण करते हुए, 1857 में इसे ब्रिटिश राज में स्थानांतरित कर दिया। इसी के साथ, लखनऊ 1857 के भारतीय विद्रोह के प्रमुख केंद्रों में से एक था ।हमारे लखनऊ ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण उत्तर भारतीय शहर के रूप में उभर कर, भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया था। अतः इस शहर में कई महत्वपूर्ण पदों पर काम करने वाले लोग रहे हैं । इनमें कुछ राजसी लोग तथा अफसर थे। यूरोपीय राज के वर्षों के दौरान लखनऊ में कई महत्वपूर्ण यूरोपीय लोग रहते थे। उनमें से कई लोगो का देहांत भी लखनऊ में ही हुआ था ।1857 के स्वतंत्रता संग्राम की विरासत के साथ-साथ यूरोपीय लोगों और अतीत में रह चुके नवाबों के कब्रिस्तान, आज लखनऊ में पुराने समय के लेखन और नक्काशियों के साथ शहर के ऐतिहासिक स्थल हैं। 1857 के विद्रोह के परिणामस्वरूप मरने वाले 2000 से अधिक पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को लखनऊ के रेजीडेंसी कब्रिस्तान में दफनाया गया था । भारत में ब्रिटिश राज के प्रति बढ़ते हुए असंतोष के कारण ब्रिटिश और भारतीयों के बीच अविश्वास के एक सामान्य वातावरण का निर्माण हो गया था, जो विद्रोह के रूप में फूटा और दोनों के बीच लड़ाई के एक वर्ष के बाद समाप्त हुआ। लखनऊ रेजीडेंसी, ब्रिटिश लोगों की घेराबंदी और रक्षा का स्थल था।विद्रोह के समय शहर के ब्रिटिश निवासियों ने विद्रोह की समाप्ति की प्रतीक्षा करने के लिए इसकी दीवारों के भीतर छिपने का प्रयास किया था , जिसके परिणाम स्वरूप कुछ लोग भूख से ही दीवारों के अंदर मर गए थे । लखनऊ शहर में 19 कब्रिस्तान है, जो इस प्रकार है; १.बंदरियाबाग कब्रिस्तान २.बांकुरा कब्रिस्तान ३.बनारस शमशान ४.कैथोलिक चर्च कब्रिस्तान ५.ईसाई कब्रिस्तान ६.दिलकुशा छावनी कब्रिस्तान ७.दिलकुशा पैलेस कब्रिस्तान ८.किला कब्रिस्तान, फतेहगढ़ ९.फैजाबाद कब्रिस्तान १०.आलमबाग किले के हैवलॉक कब्र और स्मारक ११.ला मार्टिनियर कॉलेज कब्रिस्तान १२.लखनऊ – क्राइस्ट चर्च १३.लखनऊ – रेजीडेंसी कब्रिस्तान १४.लखनऊ छावनी सैन्य कब्रिस्तान १५.लखनऊ गोल्फ कब्रिस्तान १६.निशातगंज कब्रिस्तान १७.रेजीडेंसी कब्रिस्तान १८.रेजीडेंसी में स्थित सेंट मैरी चर्चयार्ड कब्रिस्तान कब्रिस्तान शायद हमें एक नकारात्मक पहलू लगे, परंतु फिर भी यह हमारी विरासत है। यह उन लोगों की याद में बनाए गए हैं जिन्होंने लखनऊ के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण किया है, और जिनका समाज के लिए कुछ योगदान था। जिस प्रकार हम अपनी अन्य विरासतों की देखभाल करते हैं, उसी प्रकार हमें शहर के कब्रिस्तानो की भी देखभाल करनी चाहिए। हाल ही में यह देखा गया है कि, कई लोगों की कब्रें उपेक्षा की शिकार हुई है। उदाहरण के तौर पर, उर्दू शायर असरार उल हक मजाज की कब्र, और कई अन्य कब्रें झाड़ियों एवं पत्तों से ढकी हैं, और बेहद खराब स्थिति में है। असरार उल हक मजाज की कब्र के किनारों में दरारें भी आ गई हैं। जबकि यह हाल तो तब है जब निशातगंज कब्रिस्तान की ओर जाने वाली गली का नाम तक उनके नाम पर है। उनके नाम वाले क़ब्र का पत्थर और उस पर उकेरा हुआ उनका एक उर्दू दोहा, अब बिलकुल मिट सा गया है । इसी तरह उनके माता-पिता और बहन की कब्रों की दुर्दशा भी हुई है। यह दुख की बात है कि एक बार भी उनके किसी रिश्तेदार ने कब्र को साफ करने या सफेदी कराने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। और अन्य कोई और भी इस कब्र की मरम्मत के लिए आगे नहीं आये हैं । यह देखना दर्दनाक है कि मजाज की कब्र की कोई स्थायी देखभाल करने वाला तक नहीं है।यह ऐतिहासिक महत्व का एक स्थल है, जिसे आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया जाना चाहिए। जबकि लखनऊ में कई जगह एक अन्य रुझान देखा जा रहा है- शहर में दो खास कब्रों पर सिगरेट, ब्रेड, मक्खन और मुरब्बा चढ़ाने से लोगों की मुराद पूरी हो जाती है! क्या आपने कभी इसके बारे में सुना है? इन दो कब्रों में से एक, ‘कैप्टन की मजार’ लखनऊ-हरदोई मार्ग पर मूसा बाग में स्थित है। हालांकि, इसे साबित करने के लिए कोई स्पष्ट सबूत नहीं है, लेकिन लोग कहते हैं कि यह कैप्टन फ्रेड्रिक वेल्स (Fredrick Wales) की कब्र है, जिनकी मृत्यु 1857 के सिपाही विद्रोह में हुई थी। दूसरी कब्र, ‘गोरे की मजार’ जे के ब्लॉक के सामने लखनऊ विश्वविद्यालय में स्थित है। चूंकि, कथित तौर पर कप्तान को धुम्रपान करने का अत्यधिक शौक था, इसलिए उनकी पसंद को ध्यान में रखते हुए, लोग कैप्टन की मजार पर जली हुई सिगरेट पेश करते हैं। वहां कभी भी अनेकौँ जलती हुई सिगरेट देखी जा सकती हैं। और ऐसा माना जाता है कि जली हुई सिगरेट आधी होने तक न बुझे, तो यह मान लेना चाहिए कि मन्नत जरूर पूरी होगी! इसके इलावा, लोग रात को रोटी, मक्खन और जैम (Jam) भी कब्र पर रख देते हैं, और सुबह तक अक्सर यह सब गायब होता हैं! ऐसा माना जाता है कि कैप्टन शानदार भोजन करने के बाद ही मनोकामना पूरी करते है। लोग कप्तान के ‘जादू’ में इतना विश्वास करते हैं, कि उत्तर प्रदेश के दूसरे जिलों से भी लोग यहां आते हैं। “कप्तान की मजार” की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए, कुछ महीने पहले इसे नया रूप मिला - एक नया चबूतरा बनाया गया, जो सफेद रंग में रंगा गया। अब यह सब पढ़कर, यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या यह अंधश्रद्धा नहीं है? एक तरफ तो हम अंधविश्वास के चलते कब्रों पर खाना चढ़ाते हैं, तो दूसरी तरफ जो कब्रें और स्मारक ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, उनकी अवहेलना करते हैं। क्या यह सही है ?

संदर्भ
https://bit.ly/3INMIn3
https://bit.ly/3InaKUn
https://bit.ly/3lSIl0R
https://bit.ly/3YTHSu2

चित्र संदर्भ
1. लखनऊ में मौजूद कब्रिस्तान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. लखनऊ में ब्रिगेडियर जनरल जे.जी.एस.के मकबरे को संदर्भित करता एक चित्रण (Picryl)
3. लखनऊ में नील, लॉरेंस आदि की कब्रों को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
4. उर्दू शायर असरार उल हक मजाज की कब्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. मूसा बाग में मौजूद कब्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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