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विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और नोबेल (Nobel) पुरस्कार विजेता “रबिन्द्रनाथ टैगोर" ने भारत के राष्ट्रगान की रचना करके, पूरे देश को एकजुट करने में बेहद अहम् भूमिका निभाई। उन्होंने जापान (Japan) और संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) जैसे देशों में व्याख्यान देते हुए विश्व भ्रमण किया। उनके कार्यों की विभिन्न देशों के लोगों द्वारा प्रशंसा की गई और वे नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले गैर-यूरोपीय बने। हालांकि, वे संपूर्ण विश्व में अत्यधिक सम्माननीय है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यूरोप का एक ऐसा देश भी है जहां उन्हें भारत के समान ही अत्यधिक सम्मान प्राप्त है। यूरोपीय महाद्वीप (European Continent) में स्थित एक देश चॆक गणराज्य (Czech Republic) के आम नागरिकों के बीच रबिन्द्रनाथ टैगोर एक लोकप्रिय शख़्सियत हैं। टैगोर केवल कवि और लेखक ही नहीं थे।
बल्कि वह एक क्रांतिकारी व्यक्तित्व और महान संगीतकार भी थे। उन्होंने रबिन्द्रसंगीत नामक एक नई भारतीय संगीत शैली की स्थापना की थी। उनकी यह शैली आज भी भारत में लोकप्रिय है। इसके अलावा वह एक महान चित्रकार होने के साथ-साथ एक प्रतिभावान शिक्षाविद भी थे। उन्होंने भारतीय किसानों को कृषि के नए तरीके सिखाने के लिए भारत में एक कृषि विद्यालय की स्थापना भी की।
टैगोर का जन्म एक बंगाली परिवार में हुआ था। उनके लेखन में बंगाली शास्त्रीय और ग्रामीण परंपरा की झलकियाँ देखने को मिलती हैं। हालांकि, उन्होंने यूरोपीय साहित्य की भी शिक्षा प्राप्त की थी ।
मध्य युग से ही चेक गणराज्य के निवासी भारतीय भाषाओं का अच्छा ज्ञान रखने के साथ ही इन्हें सीखने में भी रूचि रखते हैं। उदाहरण के लिए, 19वीं शताब्दी की शुरुआत में कुछ तथाकथित 'ज्ञानियों' ने संस्कृत का अध्ययन भी किया। चेक गणराज्य के प्रसिद्ध दार्शनिक एवं इतिहासकारों जैसे डोब्रोव्स्की (Dobrovsky), युंगमान (Jungmann) और अन्य लोगों ने भी भारतीय मूल की और विश्व की सबसे पुरानी भाषा संस्कृत का ज्ञान प्राप्त किया।
हालांकि, चेक गणराज्य की भारतीय संस्कृति में रूचि के पीछे के मूल कारणों के बारे में स्पष्ट तौर पर नहीं बताया जा सकता , लेकिन जब यह देश, विदेशी शासन के अधीन था तब भारतीय लोग वहां के लोगों के प्रति विशेष सहानुभूति रखते थे। 1947 तक भारत, खुद भी एक अंग्रेजी उपनिवेश रहा था, वहीं प्रथम विश्व युद्ध तक चेक गणराज्य भी ऑस्ट्रो हंगेरियन एम्पायर (Austro-Hungarian Empire) के अधीन था। शायद यह एक प्रमुख कारण था कि दोनों देश एक दूसरे से परस्पर सहानुभूति रखते थे।
चेक प्रोफेसर और अनुसंधान विद्वान (Professor and Research Scholar) विनचेनज़ो लेस्नी (Vincenzo Lesny), चेक गणराज्य की राजधानी और सबसे बड़े शहर प्राग (Prague) में भारतीय अध्ययन (Indology) के जनक माने जाते थे। उन्होंने बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में, प्राग के जर्मन विश्वविद्यालय (German University) के मोरिज विंटरनिट्ज़ (Moritz Winternitz) के साथ चार्ल्स विश्वविद्यालय (Charles University) में भारतीय भाषाओं के अध्ययन का माहौल तैयार किया।
लेस्नी, रबिन्द्रनाथ टैगोर के अच्छे मित्र माने जाते हैं। लेस्नी और विंटरनिट्ज़ दोनों को बंगाल में टैगोर द्वारा स्थापित विश्व भारती विश्वविद्यालय में व्याख्यान देने के लिए भारत आमंत्रित किया गया। वहीं 1920 के दशक में टैगोर ने भी प्राग की दो यात्राएँ की थी, जिनकी जिम्मेदारी लेस्नी ने उठाई थी।
मई 1921 में उनकी पहली यात्रा अपेक्षाकृत छोटी थी, लेकिन इस छोटी यात्रा के दौरान भी उन्होंने दो सार्वजनिक व्याख्यान दिए। उनके व्याख्यान को सुनकर चेक संगीतकार, संगीत सिद्धांतकार, लोकगीतकार, प्रचारक और शिक्षक लियोस यानाचेक (Leoš Janáček) ने भी रबिन्द्रनाथ टैगोर से मुलाकात की और उनसे प्रभावित होकर तत्कालीन लोकप्रिय अख़बार लिडोवे नोविनी (Lidové Noviny) में उन्होंने कुछ ऐसा लिखा:
“कवि (रबिन्द्रनाथ टेगोर) ने हॉल में चुपचाप प्रवेश किया। मुझे ऐसा लगा जैसे वहां मौजूद हजारों लोगों के सिर के ऊपर एक सफेद पवित्र लौ चमक रही हो। उन्होंने कहा: 'आपको मेरी कविताओं को पढ़ना आना चाहिए - इसलिए मैं आपसे बात कर रहा हूं।' यह एक भाषण नहीं बल्कि किसी कोकिला के गीत की तरह सरल और किसी भी कठोरता से रहित लग रहा था। उन्होंने अपनी कोमल और सुरीली आवाज में जो कविता पढ़ी थी, उसमें मैंने कोमल सामंजस्यपूर्ण आवाज़ें और ध्वनियाँ सुनीं, हालांकि वह मेरे लिए असंगत थी।”
1928 में जब टैगोर दूसरी बार प्राग गए, तो वहां के राष्ट्रीय रंगमंच में उनके दो नाटकों का प्रदर्शन किया गया। इसके अलावा जर्मन थिएटर (German Theater) में भी उन्होंने उनके एक नाटक का प्रदर्शन किया।
टैगोर की भाषा ने यानाचेक को उनके सबसे प्रसिद्ध कोरल गीतों (Chorus) में से एक, “पोटुलनी सिलेनेक" (द वांडरिंग मैडमैन) ("Potulni Silenac" (The Wandering Madman)) के निर्माण के लिए प्रेरित किया।
हालांकि, टैगोर ने स्वयं चेक संगीत और साहित्य में विशेष रुचि नहीं ली थी, लेकिन वे चेकोस्लोवाकिया (Czechoslovakia) के राजनीतिक जीवन में बहुत सक्रिय रूप से रुचि रखते थे। चेकोस्लोवाकिया मध्य यूरोप में स्थित एक देश हुआ करता था जो अक्टूबर 1918 से 1992 तक अस्तित्व में रहा। जिसके पश्च्यात चेक और स्लोवाक अलग अलग राष्ट्र बन गए ।
इस देश में लगभग हर कोई उन्हें राष्ट्रों के बीच शांति और समझ के राजदूत के रूप में मानता था। वह फासीवाद के खिलाफ इंडियन लीग (Indian League) के पहले अध्यक्ष थे, जो नाजीवाद (Nazi), हिटलर (Hitler) और मुसोलिनी (Mussolini) के घोर आलोचक थे।
1937 में क्रिसमस की पूर्व संध्या पर, प्रसिद्ध चेक लेखक कारेल चैपेक (Karel Capek) ने बंगाल में शांतिनिकेतन में टैगोर को रेडियो द्वारा संदेश भेजा। यह कैपेक की आवाज की एकमात्र जीवित रिकॉर्डिंग मानी जाती है। इस संदेश में कैपेक ने युद्ध, भाईचारे और राष्ट्रिय एकता की बात की थी। बदले में टैगोर ने खुद भी एक टेलीग्राम (Telegram) भेजा, जिसे अंग्रेजी (English) भाषा में रेडियो पर पढ़ा गया।
1938 में जब चेकोस्लोवाकिया फिर से नाजीवाद के अधीन हो गया, तो टैगोर ने सभी देशों को संबोधित करते हुए एक खुला पत्र लिखा, जो अंग्रेजी और अमेरिकी समाचार पत्रों में भी प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने नाज़ीवाद और पश्चिमी लोकतंत्रों की निंदा की। 7 अगस्त 1941 को 80 वर्ष की आयु में कलकत्ता में उनका निधन हो गया। रबिन्द्र नाथ टैगोर की कविताओं का चेक भाषा में भी अनुवाद किया गया है। चेक भाषा और बंगाली भाषा की संरचना काफी हद तक समान है। प्राग शहर के जोन 6 में ठाकुरोवा (Thakurova) नाम का एक पार्क है। इस पार्क के ठीक मध्य में लगभग 6 फीट ऊँचे एक चबूतरे पर रबिन्द्रनाथ टैगोर की कांस्य प्रतिमा स्थापित है। चेक गड़राज्य ने हमारे राष्ट्रकवि के सम्मान में उनके नाम (“रबिन्द्रनाथ ठाकुर”) पर ही इस क्षेत्र का नाम ठाकुरोवा रखा था।
संदर्भ
https://rb.gy/sovhii
https://rb.gy/2eiuxf
https://rb.gy/b5bwwk
चित्र संदर्भ
1. रबिन्द्रनाथ टैगोर तथा चेक गणराज्य और भारत के मानचित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. विश्व पटल पर चेक गणराज्य की स्थिति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. चेक गणराज्य और भारत के विदेश मंत्रियों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. रबिन्द्रनाथ टैगोर को चित्रकारी करते हुए दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. प्राग शहर के जोन 6 में ठाकुरोवा (Thakurova) नाम का एक पार्क के ठीक मध्य में लगभग 6 फीट ऊँचे एक चबूतरे पर रबिन्द्रनाथ टैगोर की कांस्य प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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