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शहद उत्पादन एवं मधुमक्खी पालन का भारत में एक लंबा इतिहास रहा है। यह व्यवसाय सदियों से हजारों लोगों को लाभान्वित करता आ रहा है। कृषि से जुड़े लोग या फिर बेरोजगार युवक इस व्यवसाय को आसानी से अपना सकते है। मधुमक्खी पालन के लिए किसी बड़े निवेश की आवश्यकता भी नहीं होती, कोई भी इसे मात्र 5000 रुपये से भी शुरू कर सकता है।
मधुमक्खी पालन प्राचीन समय से चला आ रहा एक कुटीर उद्योग है जिससे हमें शहद तथा मधुमोम की प्राप्ति होती है। प्राचीन भारतीयों द्वारा चखी गयी पहली मीठी चीज शायद शहद ही रही होगी। मधुमक्खी पालन ने प्राचीन भारतीयों के जीवन में एक अद्वितीय स्थान प्राप्त कर लिया था। प्राचीन काल से ही भारत में शहद को महिलाओं, पशुओं, भूमि की उर्वरता और फसलों के लिए एक जादुई पदार्थ के रूप में माना गया है। भारत में मधुमक्खी पालन के बारे में प्राचीन वेद और बौद्ध ग्रंथों में भी उल्लेख किया गया हैं। मध्य प्रदेश में मध्यपाषाण काल की शिलाचित्रकारी में भी शहद संग्रह गतिविधियों को दर्शाया गया हैं। मधुमक्खी, शहद और मधुमक्खी पालन का उल्लेख भारत के विभिन्न हिंदू वैदिक ग्रंथों में जैसे ऋग्वेद, अथर्व वेद, उपनिषद, भगवद गीता, मार्कण्डेय पुराण, राज निघटू, भारत संहिता, अर्थशास्त्र और अमरकोश में भी किया गया है। विभिन्न बौद्ध ग्रंथों जैसे विनयपिटक, अभिधम्मपिटक और जातक कहानियों में भी मधुमक्खी और शहद का उल्लेख मिलता है। लोकप्रिय महाकाव्य रामायण में भी एक स्थान “मधुबन” ,जिसका शाब्दिक अर्थ - शहद का जंगल है, का वर्णन किया है जिसमें सुग्रीव खेती किया करते थे। महाकाव्य महाभारत में मथुरा के निकट एक और ‘मधुबन’ नामक स्थान का उल्लेख किया गया है जहाँ कृष्ण और राधा मिला करते थे।
यह पढ़ सुनकर शायद किसी को विश्वास न हो, किन्तु यह सच है कि मधुमक्खियों में ऐसी कई विशेषताएं होती हैं जो मनुष्य को पिछड़ा हुआ सिद्ध करती हैं। मधुमक्खियां समस्याओं को हल करने के लिए अवलोकन करने, सीखने और याद रखने में सक्षम होती हैं। उनमें अपने छत्ते के साथियों को पहचानने, उनके साथ अक्सर संवाद करने और एक बड़े समुदाय के भीतर रहने की चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त बुद्धिमत्ता होती है। ये छोटे जीव मानव चेहरे को पहचान सकते हैं, यहां तक कि भाषाओं का आविष्कार भी कर सकते हैं। मधुमक्खियां अन्य मधुमक्खियों से भोजन प्राप्त करने के लिए नई रणनीतियां सीख सकती हैं। मधुमक्खियां यह पता लगाती हैं कि फूल के अंदर कैसे जाना है, साथ ही साथ इसकी भी योजना बनाती है कि पराग को चूसने के लिए फूल में किस प्रकार छेद करना आसान हो सकता है। यह छोटा सा जीव आपकी समझ से भी कहीं ज्यादा चालाक है! ये एक प्रकार के नृत्य “वैगल डांस” ( Waggle dance) के माध्यम से संचार करती है। एक मधुमक्खी छत्ते में अन्य मधुमक्खियों को फूल या भोजन के स्रोत के स्थान के बारे में बताने के लिए इस विशेष नृत्य का उपयोग करती है, मधुमक्खी खाद्य स्रोत की गुणवत्ता को इंगित करने के लिए इस नृत्य को कई बार दोहराती है। मधुमक्खी का यह नृत्य अद्वितीय है क्योंकि इसमें वे प्रतीकों का उपयोग करती है। मनुष्यों के अलावा किसी अन्य जानवर के पास यह विशेषता नहीं होती है। यह नृत्य एक मधुमक्खी को पूरे समूह को कुशलतापूर्वक विस्तृत जानकारी देने में सक्षम बनाता है, और इसे छत्ते की सुरक्षा के लिए भी किया जा सकता है। वास्तव में ऐसा व्यवहार आश्चर्यजनक है और एक कीट की क्षमता से परे हैं। मधुमक्खी उन्नत प्रतीकात्मक संचार, भाषा, चेहरे की पहचान, संख्या का उपयोग, अवलोकन और नकल, नियमों की समझ और उच्च-स्तरीय समस्या-समाधान में सक्षम होती है। वे सही मायनों में कई स्तनधारियों की तुलना में काफी अधिक चतुर और अद्भुत हैं।
व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण मधुमक्खियों की छः प्रजातियाँ भारत में पाई जाती हैं जो कि प्राकृतिक शहद और मोम उत्पादन के लिए व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण हैं:
1. एपिस डोरसॅटा (Apis Dorsata (Rock bee),
2. हिमालयी प्रजातियां, एपिस लेबोरियोसा (Apis Laboriosa (Himalayan species),
3. एपिस सेराना इन्डिका (Apis Cerana Indica (Indian bee ),
4. एपिस फ्लोरिया (Apis Florea (dwarf bee),
5. एपिस मेलिफेरा (Apis Mellifera (European or Italian bee)
6. टेट्रागोनुला इरिडीपेनिस (Tetragonula Iridipennis (Dammer or stingless
bee)।
एपिस डोरसॅटा मधुमक्खियां आक्रामक होती हैं और इनको पाला नहीं जा सकता । इसलिये जंगल से इनका शहद लिया जाता है। एपिस फ्लोरिया से भी शहद जंगल से लिया जाता है क्योंकि ये मधुमक्खियां बहुत कम मात्रा में शहद का उत्पादन करती हैं। समशीतोष्ण क्षेत्र की मूल निवासी एपिस सेराना और एपिस मेलिफेरा कृत्रिम मधुमक्खी बक्से में संवर्धन कर सकती हैं। इसके अलावा टेट्रागोनुला इरिडीपेनिस मधुमक्खियों का भी पालन किया जा सकता है और ये विभिन्न फसलों के परागण में महत्वपूर्ण कारक हैं लेकिन ये मधुमक्खियां भी कम मात्रा में शहद का उत्पादन करती हैं। भारत में शहद उत्पादन के लिए प्रमुख क्षेत्रों में उप हिमालयी इलाके, उष्ण-कटिबंधीय वन, और राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के जंगल तथा खेत आते है।
वर्तमान में शहद तथा शहद से बने उत्पादों की बढती हुई मांग के परिणाम स्वरूप मधुमक्खी पालन एक फायदेमंद रोजगार के रूप में उभर कर आया है। शहद के भंडारण एवं उपयोग की कोई निश्चित अवधि (shelf life) नहीं होती है और और ना ही इसके संग्रह के लिए किसी महंगे भंडार घर अथवा सामान की आवश्यकता होती है, क्योंकि शहद लंबे समय तक सुरक्षित रहता है। मधुमक्खी के छत्ते के लिए न तो अतिरिक्त स्थान की आवश्यकता होती है और न ही किसी भी निवेश की। कोई भी व्यक्ति सप्ताह में कुछ घंटे का समय निकालकर आसानी से मधुमक्खी पालन का व्यवसाय कर सकता है। इसलिए मधुमक्खी पालन एक अंशकालीन व्यवसाय के रूप में अत्यधिक लोकप्रिय है। यह व्यवसाय उन व्यक्तियों के लिए सर्वोत्तम है जो सीमित स्थान में कोई बड़ा निवेश किये बिना कृषि में भाग लेना चाहते हैं ।
शहद उत्पादन के इस क्षेत्र में हमारे शहर लखनऊ में भी 30 साल के मधुमक्खी पालक निमित सिंह ने इतनी सफलता हासिल की है कि आज उन्होंने अपना खुद का ब्रांड “मधुमक्खीवाला” शुरू किया है। इस व्यवसाय में निमित आज एक सफल व्यवसाई है । उन्होंने 2016 में अपने ब्रांड को पंजीकृत करवाया था। वे बताते है कि इस व्यवसाय में जाने से पहले उन्होंने काफी शोध किया था। वे मधुमक्खी पालकों से मिलने, देखने और सीखने के लिए देश के कई दूर-दूराज इलाकों में भी घूमें। उन्होंने देश के कई विशेषज्ञों और शहद निर्माताओं से मिलकर उनका अनुभव साझा किया औऱ मधुमक्खियों की देखभाल करते हुए उनके साथ दो साल बिताए। उन्होंने अपने इस सफर में मधुमक्खी पालन की उन बारीकियों के बारे में जाना और सीखा, जिनकी निमित को बहुत ही कम या कहें न के बराबर समझ थी। निमित बताते हैं कि मधुमक्खी पालन के हर पहलू से रुबरु होने के इस सफर में उन्होंने जीवन के कई महत्वपूर्ण सबक भी सीखे हैं। उन्होंने मानव मनोविज्ञान के बारे में भी सीखा। वह बाराबंकी के चैनपुरवा गांव में 114 परिवारों की 250 महिलाओं को मोम देते हैं, जिनसे वे दीया बनाती हैं और आजीविका कमाती हैं। वह बताते हैं कि पिछले साल, दिवाली से पहले एक महीने में महिलाओं ने 9 लाख मोम के दीये बनाए थे। इस साल उन्होंने 9.5 लाख दीये बनाए हैं। हमने जिस गांव को इसके लिए प्रशिक्षित किया है, वहां के लोगों ने लखनऊ के अलग-अलग स्थानों पर इन दियों को बेचा है। निमित कहते हैं कि मैंने जान लिया है कि मधुमक्खियों के बिना इस ग्रह पर हमारा कोई अस्तित्व नहीं है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3jTBWBZ
https://bit.ly/3K07v7B
https://bit.ly/40OJx5d
चित्र संदर्भ
1. मधुमक्खी पालन को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
2. उत्तराखंड की एक महिला मधुमक्खी पालक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. खेतों में रखे मधुमक्खी के बाड़ों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. केसर के फूल से पराग एकत्र करती मधुमक्खी को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)
5. एपिस डोरसॅटा मधुमक्खी को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)
6. मधुमक्खी पालन को दर्शाता करता एक चित्रण (Rawpixel)
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