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पिछले कुछ महीनों से नवाबों की नगरी लखनऊ से सपनों के शहर मुंबई तक का सफर तय करने वाले प्रसिद्ध भारतीय गीतकार, अमिताभ भट्टाचार्य अपने एक गीत “केसरिया" केकारण खूब चर्चा में हैं। गीत के माध्यम से उन्होंने कश्मीर की शान और विश्व के सबसे महंगे मसाले “केसर" का खूब अच्छी तरह से प्रचार-प्रसार कर दिया है। इस गीत के माध्यम से अभी तक आपका परिचय केवल “केसर” शब्द से हुआ था, लेकिन आज हम आपको केसर के इतिहास, उत्पादन और उपयोग जैसी सभी जरूरी जानकारियों से परिचित करा देंगे।
केसर (Saffron) मूलतः केसर के फूल क्रोकस (Crocus) के वर्तिकाग्र (Stigma) से निर्मित एक मसाला होता है। केसर का उपयोग खाना पकाने में एक मसाले तथा एक खाद्य रंग के रूप में किया जाता है। केसर का जंगली पूर्वज ‘क्रोकस कार्टराईटियनस’ (Crocus Cartwrightianus) मूल रूप से संभवतः मध्य एशिया में उत्पन्न हुआ माना जाता है। यह प्राचीन समय से ही दुनिया का सबसे महंगा मसाला रहा है।
केसर का स्वाद कड़वा होता है और इसकी गंध घास की तरह होती है। इसे यह गंध पिक्रोक्रोसिन और सेफ्रान (Picrocrocin and Safran) नामक रसायन से मिलती है। केसर में मौजूद ‘डाई क्रोसिन’ (Dye Crocin) भोजन को एक समृद्ध सुनहरा रंग प्रदान करता है। साथ ही इसका उपयोग दवा के रूप में भी किया जाता है।
केसर के लिए अंग्रेजी शब्द “सेफ्रॉन (Saffron)”, 12वीं शताब्दी के एक फ्रांसीसी शब्द ‘सफ्रान’ (Safran) से आया है, जो लैटिन शब्द ‘सफ्रानम’ (Safranum) से निकला है। वहीँ सफ्रानम शब्द अरबी शब्द أَصْفَر से आया है, जिसका अर्थ "पीला" होता है।
धरती पर केसर की खेती का इतिहास 3,000 साल से भी पुराना माना जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार केसर का प्रथम दस्तावेजी उल्लेख, वनस्पति विज्ञान से संबंधित 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व की असीरियाई पुस्तक (Assyrian Book) में मिलता है। यह किताब नव-असीरियन साम्राज्य के राजा अशुरबनिपल (Ashurbanipal) के समय में लिखी गई थी। इसमें केसर को लगभग 90 बीमारियों के उपचार के लिए औषधि के तौर पर प्रयोग करने के प्रमाण मिलते हैं।
मिनोअन (Minoan) सभ्यता के अवशेष महलों में 1500-1600 ई.पू. तक, केसर को औषधि के तौर पर दर्शाने वाले चित्र मिलते हैं। बाद में, ग्रीक किंवदंतियों में सिलिसिया (Cilicia) की समुद्री यात्राओं के वर्णन में केसर को खोजने का जिक्र मिलता है। हेलेनिस्टिक काल (323 ईसा पूर्व से 31 ईसा पूर्व) के दौरान मिस्र (Hellenistic Egypt) में, क्लियोपेट्रा (Cleopatra) द्वारा भी अपने स्नान में अच्छी अनुभूति के लिए केसर का प्रयोग किया जाता था। मिस्र के चिकित्सक भी अनेक जठरांत्र संबंधी बीमारियों के उपचार के लिए केसर का ही उपयोग करते थे। सिदोन और टायर (Sidon and Tyre) जैसे लेवांत (Levantine) शहरों में केसर का उपयोग कपड़ों की रंगाई में किया जाता था। वहीँ प्राचीन रोमन एनसाइक्लोपीडिस्ट (Encyclopedist) ‘औलस कॉर्नेलियस सेलसस’ (Aulus Cornelius Celsus) द्वारा केसर को घावों, खांसी, शूल, और खाज की दवा के रूप में प्रयोग किया जाता था। रोमनों को केसर के प्रति बेहद लगाव था।
भारत के श्रवणबेलगोला (Shravanabelagola) में 978-993 ईसवी के बीच उकेरे गए, जैन तीर्थंकर भगवान गोमतेश्वर बाहुबली के एकाश्म, को महामस्तकाभिषेक उत्सव पर प्रत्येक 12 साल में केसर से ही सजाया जाता है। आज के ईराक में 50,000 साल पुराने चित्र मिलते हैं, जिन्हें बनाने में केसर से बने रंग का इस्तेमाल किया जाता था। बाद के वर्षों में सुमेरियन लोगों (Sumerian people) ने भी जंगली केसर का इस्तेमाल औषधि के रूप में किया था। 10 वीं शताब्दी ईसा पूर्व तक प्राचीन फारसी (Persia) , डरबेना (Derbena), इस्फहान (Isfahan) और खोरसान (Khorasan) में घरेलू स्तर पर केसर की खेती शुरू हो गई थी। केसर के दक्षिण एशिया में आगमन के कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलते हैं।
हालांकि कई पारंपरिक कश्मीरी और चीनी अभिलेख केसर के दक्षिण एशिया में आगमन की तारीख 900-2500 साल पहले की बताते हैं। प्राचीन फ़ारसी अभिलेखों का अध्ययन करने वाले इतिहासकार एशिया में केसर के आगमन की तारीख 500 ईसा पूर्व से कुछ समय पहले की बताते हैं। माना जाता है कि तब फोनीशिया (Phoenician) के लोग , कश्मीरी केसर को रंग और उदासी के इलाज के रूप में बेचते थे। फ़ोनीशिया मध्य-पूर्व के पश्चिमी भाग में भूमध्य सागर के तट के पास स्थित एक प्राचीन सभ्यता थी।
इसके बाद पूरे दक्षिण एशिया में खाद्य पदार्थों और रंगों में केसर का उपयोग शुरू हो गया। उदाहरण के लिए, भारत में बौद्ध भिक्षुओं ने बुद्ध सिद्धार्थ गौतम की मृत्यु के बाद केसर के रंग से रंगे भगवा रंग के वस्त्र पहनना शुरू कर दिया था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि केसर सबसे पहले फारस के रास्ते मंगोल आक्रमणकारियों के साथ चीन(China) में आया था। प्राचीन चीनी चिकित्सा ग्रंथ ‘शेंनोंग बेन काओ जिं’ग (Shennong Ben Cao Jing) में भी केसर का उल्लेख किया गया है। चीनी, केसर की उत्पत्ति तीसरी शताब्दी के आसपास कश्मीर में होने का जिक्र करते हैं । उदाहरण के लिए, एक चीनी चिकित्सा विशेषज्ञ वान जेन (Wan Zhen) ने लिखा है कि "केसर का निवास स्थान कश्मीर में है। कश्मीरी केसर आज भी सबसे महंगे मसालों में से एक है, जिसका इस्तेमाल पारंपरिक दवाओं में भी किया जाता है। कश्मीर में कुल 5,707 हेक्टेयर भूमि में केसर की खेती की जाती है।”
केसर को इसके रंग और उच्च लागत के कारण लाल-सोने के रूप में भी जाना जाता है भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से कश्मीर के पंपोर क्षेत्र में की जाती है । पारंपरिक खेती के अलावा आज किसान इसकी भीतरी (Indoor) या लंबवत (Vertical) खेती भी करने के प्रयोग कर रहे हैं जिसमें वे कुछ हद तक सफल भी हो रहे हैं । ऐसा ही एक उदाहरण कश्मीर के अब्दुल मजीद वानी का है।
अब्दुल मजीद वानी (Abdul Majeed Wani) कश्मीर में पुलवामा जिले के पंपोर इलाके में रहने वाले एक 65 वर्षीय किसान हैं। उन्होंने हाल ही में अपने घर में ही स्टील (Steel) की अलमारियों में केसर उगानी शुरू कर दी है। दरसल, वानी भीतरी या लंबवत रूप में केसर की खेती की नई अवधारणा पेश कर रहे हैं। उन्होंने इस आधुनिक तकनीक का प्रयोग करना कुछ साल पहले ही शुरू किया था। हालांकि मेहनत एवं लागत का जोखिम होने के बावजूद उन्होंने सकारात्मक प्रभाव देखें हैं।
उनके द्वारा केसर की खेती के लिए एक आदर्श भीतरी वातावरण से हर साल आधा किलोग्राम बेशकीमती केसर मसाला काटा जाता है। इतने केसर के लिए आमतौर पर 400 वर्ग मीटर बाहरी भूमि की आवश्यकता होती है। वानी के अनुसार, इनडोर केसर के वर्तिकाग्र भी खेत में उगाए जाने वाले वर्तिकाग्र की तुलना में उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं। उन्हें उगाने के लिए केवल अच्छी संख्या में घनकन्द (Corms), एक कमरा, कुछ दराजों (Racks) और प्लास्टिक ट्रे (Plastic Trays) की आवश्यकता होती है। उनके अनुसार यदि घर के अंदर घनकन्द बनाने का प्रयोग सफल रहता है , तो संभव है कि भविष्य में केसर को कहीं भी उगाया जा सकता है।
केसर की कीमत और उपयोगिकता को देखते हुए उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में नरसुआ बहरपुरा गांव के एक किसान इस्राइल खान (Israel khan) ने भी केसर उगाने के लिए सात महीने तक कड़ी मेहनत की। किंतु लाख कोशिशों के बावजूद वह उसे बेच नहीं पाए। इस्राइल खान ने केसर उगाने की तरकीब, निकट गांव के एक अन्य किसान से सीखी और खुद इसे आजमाने का फैसला किया। उन्होंने 100 ग्राम अमेरिकन हाईब्रिड केसर (American Hybrid Saffron) के बीज 5000 रुपए में खरीदे और अक्टूबर में लगाए। हालांकि, उनके क्षेत्र में जलवायु और स्थलाकृति केसर उगाने के लिए आदर्श नहीं थी। लेकिन वह केसर उगाने के लिए प्रतिबद्ध थे। दुर्भाग्य से, फरवरी में हुई भारी बारिश ने केसर की फसल को काफी नुकसान पहुंचाया, और अब इस्राइल के पास केवल 3 किलोग्राम केसर बचा है। कश्मीर के केसर की गुणवत्ता अत्यधिक मूल्यवान है और इसकी कीमत 8 लाख रुपये प्रति किलोग्राम तक हो सकती है। वहीँ इस्राइल द्वारा उगाए गए अमेरिकी केसर की कीमत केवल 1 लाख रुपये प्रति किलोग्राम है। इस्राइल को अपनी फसल के लिए खरीदार नहीं मिल पाए हैं क्योंकि उनकी गुणवत्ता कश्मीर के केसर जितनी अच्छी नहीं है। विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर इस्राइल ने अक्टूबर से पहले अपनी फसल लगाई होती, तो शायद उसकी गुणवत्ता बेहतर होती।
केसर का उपयोग ऐतिहासिक रूप से पारंपरिक चिकित्सकों द्वारा दिल के दर्द से लेकर बवासीर तक सब कुछ के इलाज के लिए किया जाता रहा है। आधुनिक अध्ययनों से पता चला है कि केसर में पाए जाने वाले उच्च स्तर के एंटीऑक्सिडेंट शरीर में सूजन को दूर करने में मदद कर सकते हैं और यह यौन रोग और अवसाद के इलाज में सहायक हो सकता है। केसर अत्यंत लाभदायक है आज के युग में यह न केवल चिकित्सा क्षेत्र में बल्कि व्यवसाय क्षेत्र में भी अत्यधिक लाभदायक होता जा रहा है जिसके कारण हर कोई इसे उगाना चाहता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3JYnUcT
https://on.natgeo.com/3If0y1t
https://bit.ly/3XB3x8Z
https://bit.ly/3Yp5uX6
चित्र संदर्भ
1. केसर को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
2. क्रोकस के फूलों से तोड़े गए और सुखाए गए केसर के "धागों", को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. केसर फली को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. 1800 के चीनी - केसरिया सम्राट की पेंटिंगको दर्शाता करता एक चित्रण (Flickr)
5. केसर फार्म, टोरबत-ए-हैदरीह, रज़ावी खुरासान, ईरान को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)
6. केसर फार्म को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)
7. केसर के बीज को दर्शाता करता एक चित्रण (wikimedia)
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