विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की रुचि और संभावनाएं दोनों बढ़ रही हैं, किंतु कुछ चुनौतियाँ भी हैं

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विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं की रुचि और संभावनाएं दोनों बढ़ रही हैं, किंतु कुछ चुनौतियाँ भी हैं

भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में से एक है, जहां से सबसे अधिक वैज्ञानिक और अभियंता (Engineer) निकलते है। हालांकि, इस क्षेत्र में पहले केवल पुरुष वर्ग का दबदबा था, लेकिन अब यहाँ भी महिलाओं की संख्या में वृद्धि नज़र आ रही है। एक अच्छी खबर यह भी है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान भारत में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित के संयुक्त क्षेत्र ‘एसटीईएम’ (Science, Technology, Engineering and Mathematics (STEM) को चुनने वाली छात्राओं की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। हालांकि, चिंता की बात यह है कि इन महिलाओं का हुनर और शिक्षा समान रूप से नौकरियों में तब्दील नहीं हो पा रहे है।
1903 में विख्यात भौतिकविद और रसायनशास्त्री मैरी क्यूरी (Marie Curie) के बाद से 2017 तक 572 पुरुषों की तुलना में केवल 17 महिलाओं ने ही भौतिकी, रसायन विज्ञान या चिकित्सा क्षेत्र में ‘नोबेल पुरस्कार’ (Nobel Prize) जीता है। इसके अलावा, दुनिया के कुल शोधकर्ताओं में महिलाओं की संख्या केवल 28% है। यह आंकड़े विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (एसटीईएम) के क्षेत्र में महिलाओं की कम सहभागिता की कठोर वास्तविकता को प्रस्तुत करते है।
दरसल, एसटीईएम (STEM) एक संयुक्त शब्द है, जिसका उपयोग विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित के विशिष्ट लेकिन संबंधित तकनीकी विषयों को समूहबद्ध करने के लिए किया जाता है। यह शब्द आमतौर पर शिक्षा नीति या विद्यालयों में पाठ्यक्रम विकल्पों के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, एसटीईएम में महिलाओं की भागीदारी में कमी और असमानता के प्रमुख कारणों में सामाजिक भेदभाव, पूर्वाग्रह, सामाजिक मानदंड और पारिवारिक अपेक्षाएं शामिल है, जिनके कारण महिलाओं को प्राप्त होने वाली शिक्षा की गुणवत्ता और उनके द्वारा चुने जाने वाले विषय भी प्रभावित होते हैं । यह प्रभाव न केवल महिलाओं को प्राप्त होने वाले अवसरों में हुई चूक को दर्शाता है, बल्कि सामाजिक असंतुलन को भी उजागर करता है जहां किसी महिला को सीमाओं और प्रतिबंधों के तले दबा दिया जाता है।
विश्व बैंक (World Bank) के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया के 114 मुख्य देशों में से 107 में एसटीईएम स्नातकों में पुरुषों की तुलना में महिलाएं बहुत ही कम हैं। वैश्विक स्तर पर, विश्वविद्यालय एवं व्यवसायिक स्तर की शिक्षा के अंतर्गत 35% लड़कों की तुलना में मात्र 18% लड़कियां ही एसटीईएम का अध्ययन कर रही हैं। दुनिया भर में, केवल 33% शोधकर्ता महिलाएं हैं। वहीँ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) अर्थात कृत्रिम बुद्धिमत्ता के क्षेत्र में पेशेवर रूप में मात्र 22% महिलाएं हैं, जबकि इंजीनियरिंग स्नातकों में भी केवल 28% महिलाएं ही हैं। एसटीईएम के क्षेत्र में महिलाओं की कम भागीदारी के कई कारण हैं, जिनमें निर्धारित रूढ़िबद्ध धारणा और लैंगिक भूमिकाएं सबसे स्पष्ट कारण हैं। इसके अलावा अनुदान देने, अध्येतावृत्ति देने और नौकरी पर रखने के तरीकों के साथ-साथ सामाजिक मानदंड एवं घरेलू जिम्मेदारियां भी भागीदारी में कमी के प्रमुख कारण हैं। साथ ही शादी, बच्चे के जन्म से संबंधित तनाव और पितृसत्तात्मक रवैया भी महिलाओं को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भविष्य बनाने और सपने बुनने से रोक रहा है। हालाँकि, धीरे-धीरे परिस्थितियाँ बदल रही हैं। पिछले कुछ वर्षों के दौरान एसटीईएम क्षेत्र एक आंदोलन के रूप में आकार ले रहा है, और अधिक से अधिक महिलाओं को विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हाथ आजमाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। इस संदर्भ में हमारे भारत का प्रदर्शन वाकई सराहनीय है। भारत में, कुल एसटीईएम स्नातकों में से लगभग 43% महिलाएं हैं, जो कि वैश्विक स्तर पर तुलनात्मक रूप से बेहतर परिदृश्य है। इस संदर्भ में हम दुनिया में सबसे ऊंचे दर्जे पर हैं। हालांकि, इसके बावजूद अनुसंधान एवं विकास संस्थानों और विश्वविद्यालयों में केवल 14% वैज्ञानिक, इंजीनियर और प्रौद्योगिकीविद ही महिलाएं हैं।
भारत में प्रशिक्षित महिला वैज्ञानिकों की कमी के कारणों को समझने के लिए 2016-17 में नीति आयोग ने एक रिपोर्ट तैयार की । इस रिपोर्ट में पाया गया कि कई महिला वैज्ञानिक, पात्रता मानदंड में आयु में छूट चाहती हैं। इसके अलावा वह गैर-शैक्षणिक बुनियादी ढांचे के संस्थागत प्रावधानों (जैसे आवास, परिवहन, समय की प्रतिबद्धता, रोजगार अनुबंधों में लचीलापन और चिकित्सा सहायता) में विस्तार की भी मांग कर रही हैं। भारत में एसटीईएम क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की जा रही हैं-१. ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग’ (Department of Science & Technology) द्वारा दसवीं कक्षा में मेधावी लड़कियों द्वारा उनकी उच्च शिक्षा में एसटीईएम शिक्षा प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए “विज्ञान ज्योति” नामक योजना शुरू की गई है। यह योजना ग्रामीण छात्राओं को उनके विद्यालय से लेकर नौकरी तक विज्ञान के क्षेत्र में उनकी पसंद के पाठ्यक्रम का मानचित्र बनाने का अवसर भी प्रदान करती है। २. एसटीईएम में लैंगिक असमानता कम करने और एक रूपरेखा विकसित करने के लिए अभिनव प्रायोगिक परियोजना ‘जेंडर एडवांसमेंट फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंस्टीट्यूशंस’ (Gender Advancement for Transforming Institutions (GATI) की भी घोषणा की गई थी। ‘गति’ नामक यह परियोजना ‘नॉलेज इनवॉल्वमेंट रिसर्च एडवांसमेंट थ्रू नर्चरिंग’ (Knowledge Involvement Research Advancement through Nurturing (KIRAN) योजना के साथ घनिष्ठ सहयोग के साथ भी काम कर रही है।
३. ‘नॉलेज इनवॉल्वमेंट इन रिसर्च एडवांसमेंट थ्रू नर्चरिंग’ या ‘किरण’ योजना ‘विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय’ की एक पहल है जिसे 2014 में शुरू किया गया था। यह पहल विज्ञान के क्षेत्र में लैंगिक असमानता कम करने के लिए प्रयासरत है। किरण योजना के अंतर्गत बेरोजगार महिला वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों को नौकरी के अवसर प्रदान करने की कोशिश की जाती है। यह पहल उन महिलाओं के लिए वरदान है, जिन्हें किन्हीं कारणों से अपने पेशेवर जीवन से पीछे हटना पड़ा था। नतीजतन, यह पहल न केवल महिलाओं को उनके सपनों को पूरा करने में मदद करेगी, बल्कि हमारा विज्ञान भी उनके प्रतिनिधित्व से लाभान्वित होगा।
इन सभी प्रयासों के मद्देनजर भारत में एसटीईएम को चुनने वाली महिलाओं की संख्या 2017-18 में 10,02,707 से 2019- 20 में 10,56,095 हो गई ,जिससे इन तीन वर्षों ) के दौरान कुल मिलाकर 53,388 की वृद्धि हुई । शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने ‘उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण’ ( All India Survey on Higher Education (AISHE) की वार्षिक रिपोर्ट के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि प्रतिशत के संदर्भ में एसटीईएम में भारतीय महिला स्नातकों की संख्या, कई विकसित देशों जैसे कि अमेरिका (America) में (34%), यूके (UK) में (38%), जर्मनी (Germany) में (27%) और फ्रांस (France) में (32%) की तुलना में (43%) तक अधिक हैं। यह रिपोर्ट चिकित्सा से संबंधित पाठ्यक्रमों में भी महिलाओं के नामांकन की वृद्धि को दर्शाती है। चार वर्षों के दौरान बीएससी.नर्सिंग (B.Sc (Nursing) में दाखिला लेने वाली महिलाओं की संख्या (2015-16: 445), (2016-17: 384), (2017-18: 379), (18-19: 358), और (2019-20: 385) रही है।
इसके अलावा बीएससी पाठ्यक्रम के लिए, छात्राओं की संख्या 2016-17 में 94 से बढ़कर 2019-20 में 113 हो गई। वहीँ एमबीबीएस (MBBS) के लिए, यह संख्या (2016-17 में 99) से बढ़कर (2019-20 में 113) हो गई । इसी अवधि के दौरान, ‘बैचलर्स इन टेक्नोलॉजी कोर्स’ (Bachelors in Technology Course) में भी छात्राओं के नामांकन 2016-17 में 39 से बढ़कर 2019-20 में 42 हो गए हैं।
एसटीईएम क्षेत्रों में अब तक महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में काफी कम रही है। यही कारण है कि दुनिया भर की कई कार्यरत महिला वैज्ञानिक एसटीईएम से संबंधित क्षेत्रों में महिलाओं की संख्या बढ़ाने की मांग कर रही हैं। ‘आविष्कार’ नामक शिक्षा मंच द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 57 प्रतिशत छात्राएं एसटीईएम में पढ़ाई जारी रखने में रुचि रखती हैं। शायद यह रूचि विषय के बारे में बढ़ती जागरूकता और ऑनलाइन शिक्षा की बढती पहुंच के कारण जगी है। इसके अलावा ‘कौरसेरा’ (Coursera) और ‘अपग्रेड’ ( upGrad ) जैसे ऑनलाइन शिक्षा मंचों के उदय के कारण भी इस क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। ‘कौरसेरा’ में महिला शिक्षार्थियों द्वारा एसटीईएम पाठ्यक्रम नामांकन की हिस्सेदारी 2020 के पहले के 22 प्रतिशत से बढ़कर 2020 में 33 प्रतिशत और अपग्रेड में 27 प्रतिशत हो गई है।
स्वीडन (Sweden) की वैज्ञानिक सलाहकार फैनी वॉन हेलैंड (Fanny Von Heland) द्वारा भी 2021 में ही अनुमान लगा लिया गया था कि भविष्य में भारत में लगभग 43 प्रतिशत (दुनिया में सबसे अधिक) एसटीईएम स्नातक महिलाएं ही होंगी। हालांकि, एसटीईएम शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय महिलाओं के दबदबे के बावजूद भारत में एसटीईएम नौकरियों में उनकी हिस्सेदारी मात्र 14 प्रतिशत है।
एसटीईएम क्षेत्रों में महिलाओं और लड़कियों की पहुंच और भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष "विज्ञान के क्षेत्र में लड़कियों और महिलाओं का अंतर्राष्ट्रीय दिवस" (International Day of Women and Girls in Science) भी मनाया जाता है। यह दिवस ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ (General Assembly of United Nations) द्वारा समर्थित है। संयुक्त राष्ट्र महासभा, ने 2015 में संकल्प 70/212 के माध्यम से 11 फरवरी को इस दिवस के रूप में घोषित किया। विज्ञान में लैंगिक समानता पर ध्यान आकर्षित करने के लिए प्रत्येक वर्ष एक विषय का चयन किया जाता है। यह कार्यक्रम यूनेस्को (UNESCO) द्वारा ‘संयुक्त राष्ट्र महिला संघ’ (U N Women) के साथ साझेदारी में आयोजित किया जाता है और इसमें विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं और लड़कियों की भूमिका को बढ़ावा देने और उनकी उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिए राष्ट्रीय सरकारों, अंतर-सरकारी संगठनों, विश्वविद्यालयों, निगमों और नागरिक समाज भागीदारों के साथ सहयोग भी शामिल है।

संदर्भ
https://bit.ly/3lj37q6
https://bit.ly/3jCm8DF
https://bit.ly/3XjtCce

चित्र संदर्भ
1. लैब में काम करती महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (Flickr)
2. विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित के संयुक्त क्षेत्र ‘एसटीईएम’ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. इंटरएक्टिव विज्ञान प्रदर्शनी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस 2022 पर की जा रही एक मीटिंग को दर्शाता करता एक चित्रण (Flickr)
5. महिला चिकित्सक को दर्शाता करता एक चित्रण (PIXNIO)
6. विज्ञानं प्रदर्शनी में छोटी बच्ची को दर्शाता करता एक चित्रण (Flickr)

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