गणतंत्र दिवस विशेष: पाकिस्तान के संविधान निर्माण में मजहबी प्रभाव

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26-01-2023 12:41 PM
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गणतंत्र दिवस विशेष: पाकिस्तान के संविधान निर्माण में मजहबी प्रभाव

भारत के संविधान निर्माण में डॉ॰ बाबासाहब अम्बेडकर का सबसे अहम् योगदान रहा है जो कि एक भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे। साथ ही उन्होंने दलित बौद्ध आंदोलन को भी प्रेरित किया और अछूतों (दलितों) के साथ होने वाले सामाजिक भेदभाव के विरुद्ध अभियान चलाया था। इसलिए यदि आप गौर करेंगे तो भारतीय संविधान में आपको किसी भी धर्म का हस्तक्षेप या प्रभाव बिल्कुल भी नज़र नही आएगा। लेकिन इसके विपरीत हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में मुस्लिम बहुल समाज होने कारण वहां के संविधान में, इस्लाम कई संदर्भों में वहां के संविधान पर भी हावी नज़र आता है। पाकिस्तान का संविधान, जिसे “1973 का संविधान” भी कहा जाता है, मुल्क का सर्वोच्च कानून है। पाकिस्तान के संविधान को जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार द्वारा अन्य विपक्षी दलों की अतिरिक्त सहायता के साथ तैयार किया गया था। इसे 10 अप्रैल को संसद द्वारा अनुमोदित किया गया था और अंत में 14 अगस्त 1973 को इसकी पुष्टि की गई थी। यह संविधान पाकिस्तान की कानूनी प्रणाली, राजनीतिक संस्कृति और सरकारी संरचना के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है। यह राज्य की संरचना, जनसंख्या के मौलिक अधिकारों, राज्य के कानूनों और आदेशों के साथ-साथ विभिन्न संस्थानों और सशस्त्र बलों की संरचना और स्थापना की रूपरेखा तैयार करता है। संविधान के पहले तीन अध्याय सरकार की तीन शाखाओं “द्विसदनीय विधायिका, मुख्य कार्यकारी के रूप में प्रधानमंत्री द्वारा शासित एक कार्यकारी शाखा, तथा सर्वोच्च न्यायालय की अध्यक्षता वाली एक सर्वोच्च संघीय न्यायपालिका के नियमों, जनादेश और अलग-अलग शक्तियों को स्थापित करते हैं। संविधान पाकिस्तान के राष्ट्रपति को राज्य के एक औपचारिक प्रमुख के रूप में नामित करता है। संविधान के पहले छह लेख एक संघीय संसदीय गणतंत्र के रूप में राजनीतिक प्रणाली की रूपरेखा तैयार करते हैं, साथ ही इस्लाम को राष्ट्र धर्म घोषित करते हैं। संविधान में ऐसे प्रावधान भी शामिल हैं जो यह निर्धारित करते हैं कि कानूनी प्रणाली को कुरान और सुन्नत में पाए जाने वाले इस्लामी आदेशों का पालन करना जरूरी है। माना जाता है कि पाकिस्तान का वर्तमान संविधान 10 अप्रैल, 1973 के दिन जबरन लागू किया गया था। जिसके पीछे यह तथ्य दिया जाता है कि सभी मुख्य राजनीतिक दलों ने वर्तमान संविधान के प्रारूप पर सहमति व्यक्त की और नेशनल असेंबली (National Assembly) में प्रस्तुत किए जाने से पहले ही इस पर हस्ताक्षर कर दिए। पाकिस्तान का संविधान देश में संसदीय लोकतंत्र को प्रत्याभूत करता है। मौलिक अधिकार, प्रांतीय स्वायत्तता और स्थानीय शासन सभी इसके द्वारा गारंटीकृत हैं। संविधान के अनुसार देश का आधिकारिक नाम “इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ पाकिस्तान” (Islamic Republic of Pakistan) है। संविधान की प्रस्तावना स्पष्ट रूप से व्यक्त करती है कि पूरे ब्रह्मांड पर अकेले सर्वशक्तिमान अल्लाह का ही एकमात्र प्रभुत्व है, और अल्लाह द्वारा स्थापित सीमाओं के भीतर पाकिस्तान के लोगों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले अधिकार एवं शक्तियां एक पवित्र विश्वास है। ब्रिटिश सरकार ने 1947 में भारत को स्वतंत्रता प्रदान की तथा भारत और पाकिस्तान के नवगठित प्रभुत्वों को सत्ता हस्तांतरित करने के लिए भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम,1947 ( Indian Independence Act, of 1947) पारित किया। इस अधिनियम ने प्रभावी रूप से भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवादी सत्ता को समाप्त कर दिया और ब्रिटिश संसद ने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम को अपनाया। भारत सरकार अधिनियम, 1935 (Government of India Act, 1935), जो पहले ब्रिटिश भारत के संविधान के रूप में कार्यरत था, को 1947 अधिनियम में निर्धारित स्वतंत्रता के लक्ष्यों और उद्देश्यों के साथ संरेखित करने के लिए संशोधित किया गया था। नवगठित अधिराज्यों के घटक विधायिकाओं द्वारा अपने स्वयं के संविधान का निर्माण होने तक , इन दो संवैधानिक दस्तावेजों का संयोजन दोनों देशों के लिए एक अंतरिम संवैधानिक आदेश के रूप में संचालित होता था। 1956 में अपने पहले संविधान को अपनाने के साथ पाकिस्तान एक गणतंत्र मुल्क बन गया, लेकिन बाद में 1958 में एक सैन्य तख्तापलट के बाद इसे निरस्त कर दिया गया। 1962 के संविधान ने राष्ट्रपति को कार्यकारी शक्ति प्रदान की और प्रधानमंत्री के कार्यालय को समाप्त कर दिया गया तथा राजनीति में सेना की भूमिका को भी संस्थागत बना दिया। यह संविधान 1969 में निलंबित कर दिया गया था और बाद में 1972 में पूर्ण रूप से निरस्त कर दिया गया था। 1973 का संविधान पाकिस्तान में निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा लिखा जाने वाला पहला संविधान था। इसने एक संसदीय लोकतंत्र की स्थापना की, जिसमें प्रधान मंत्री के पास कार्यकारी शक्ति थी, और राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर कार्य कर रहे थे। संविधान में यह भी कहा गया है कि सभी कानूनों को कुरान और सुन्नत में उल्लिखित इस्लाम की शिक्षाओं के अनुरूप होना चाहिए। इसके द्वारा इस्लाम की व्याख्या और आवेदन को निर्देशित करने के लिए शरीयत न्यायालय और इस्लामी विचारधारा परिषद जैसे संस्थानों को भी स्थापित किया गया । 1977 में एक और सैन्य तख्तापलट के बाद, संविधान को 1985 में एक संशोधन के साथ बहाल किए जाने तक निलंबित कर दिया गया था, जिसने शक्ति को संसद और प्रधानमंत्री से राष्ट्रपति में स्थानांतरित कर दिया । 2004 में हुए एक और संशोधन (सत्रहवाँ) ने इस बदलाव को जारी रखा किंतु 2010 में हुए अठारहवें संशोधन ने राष्ट्रपति की शक्तियों को कम कर सरकार को एक संसदीय गणतंत्र रूप में वापस स्थापित कर दिया । पाकिस्तानी संविधान में इस्लाम का काफी गहरा प्रभाव दिखता है क्योंकि इसका उपयोग राज्य के नेताओं द्वारा केंद्रीकृत मुस्लिम राष्ट्र-राज्य के निर्माण में एक एकीकृत कारक के रूप में किया जाता है। पाकिस्तान के संविधान में इस्लामिक प्रावधानों पर एक खंड भी शामिल है, जो अनुच्छेद 227-231 में उल्लिखित है। अनुच्छेद 227 के अनुसार, सभी कानूनों को पवित्र कुरान और सुन्नत में उल्लिखित इस्लाम की शिक्षाओं और मूल्यों के अनुरूप होना चाहिए, और कोई भी कानून इन शिक्षाओं का उल्लंघन नहीं कर सकता है। संविधान ने यह भी निर्धारित किया कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री केवल मुस्लिम होने चाहिए और कानून इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार होना चाहिए। अनुच्छेद 228 इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार जीवन व्यतीत करने के लिए पाकिस्तानी मुसलमानों का मार्गदर्शन करने के लिए एक इस्लामी परिषद की स्थापना करता है, इस्लामी निषेधाज्ञा के साथ कानूनों की असंगति निर्धारित करता है और इस्लामी शिक्षाओं के साथ मौजूदा कानून को संरेखित करने के लिए सुझाव प्रदान करता है। पाकिस्तान में, राष्ट्रीय पहचान की अवधारणा पर दो मुख्य दृष्टिकोण हैं। पहला राज्य के नेताओं से बना एक समूह है जो एक केंद्रीकृत मुस्लिम राष्ट्र-राज्य के निर्माण में एक एकीकृत कारक के रूप में इस्लाम का उपयोग करके एक एकीकृत मुस्लिम समाज और एक मुस्लिम राष्ट्रीय पहचान बनाना चाहता है। दूसरा समूह, जो विभिन्न जातीय, भाषाई, सांस्कृतिक और क्षेत्रीय समूहों से बना है, देश की विविध जनसंख्या और विकेंद्रीकृत संघीय व्यवस्था की संवैधानिक मान्यता चाहता है। इन विरोधी विचारों ने 1973 के वर्तमान संविधान, जो एक केंद्रीकृत संघीय प्रणाली की स्थापना करता है, सहित सभी संवैधानिक साधनों के निर्माण को प्रभावित किया है, । भारत में गणतंत्र दिवस के दिन राष्ट्रीय अवकाश होता है, जिसे 26 जनवरी,1950 में भारतीय संविधान को अपनाने के उपलक्ष्य में एक त्यौहार की भांति मनाया जाता है। यह अवकाश देश के 1935 के औपनिवेशिक भारत सरकार अधिनियम से मुक्त होकर एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में शासित होने का प्रतीक है। 26 जनवरी की तारीख को 1930 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा की गई पूर्ण स्वराज की घोषणा का सम्मान करने के लिए चुना गया था, जो ब्रिटेन से भारत की स्वतंत्रता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।

संदर्भ
https://bit.ly/3XPcyf8
https://bit.ly/3XNM25K

चित्र संदर्भ
1. जिन्ना के एक भाषण को संदर्भित करता एक चित्रण (lookandlearn)
2. डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. पाकिस्तान के राज्य चिन्ह को संदर्भित करता एक चित्रण (Creazilla)
4. पाकिस्तान की नेशनल असेंबली को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. पाकिस्तानी सेना को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. भारत में गणतंत्र दिवस को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)

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