जानिए, ऐसा क्या है दिल्ली के लौह स्तंभ का अनसुलझा रहस्य?

मघ्यकाल के पहले : 1000 ईस्वी से 1450 ईस्वी तक
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जानिए, ऐसा क्या है दिल्ली के लौह स्तंभ का अनसुलझा रहस्य?

प्राचीन भारतीय लोहे की कलाकृतियों ने अपने उत्कृष्ट संक्षारण प्रतिरोध के कारण हमेशा शोधकर्ताओं को आकर्षित किया है, लेकिन इस विशेषता की वैज्ञानिक व्याख्या स्पष्ट की जानी बाकी है।
लोहा (Iron) आवर्त सारणी के आठवें समूह का पहला तत्व है। धरती के गर्भ में और बाहर मिलाकर भार के अनुसार यह सर्वाधिक प्राप्त होने वाला तत्व है। धरती के गर्भ में यह चौथा सबसे अधिक पाया जाने वाला तत्व है। प्राचीन काल से ही लोहे का प्रयोग किया जाता रहा है। इसका पुरातन काल से ही मनुष्यों को ज्ञान है। वैज्ञानिकों द्वारा 'अगरिया' नामक भारतीय जनजातियों द्वारा पारंपरिक धातुकर्म प्रक्रियाओं के अनुसार निर्मित लोहे के संक्षारण प्रतिरोध की जांच की गई है। जिसमें मध्य भारत (आमदंध, कोरबा जिला और छत्तीसगढ़) से लोहे के नमूने एकत्र किए गए। अतिशयोक्तिपूर्ण संक्षारण प्रतिरोध के छिपे हुए तंत्र की जांच करने के लिए सहसंबंधी सूक्ष्म (Correlative microscopic) , स्पेक्ट्रोस्कोपिक (Spectroscopic) , विवर्तन और टोमोग्राफिक (Diffraction and Tomographic) तकनीकों की एक श्रृंखला का उपयोग करके लोहे की कलाकृतियों की जाँच की जाती है।
भारतीय उपमहाद्वीप धातु वैज्ञानिकों, संरक्षकों और पुरातत्वविदों के बीच अपनी प्राचीन लौह -निर्माण तकनीकी विरासत एवं संक्षारण प्रतिरोधी लोहे के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध रहा है। आपको बता दें कि प्राचीन काल में बना दिल्ली का लौह स्तंभ भी एक अनसुलझा रहस्य बना हुआ है। दिल्ली का 7.21 मीटर लंबी संरचना वाला यह लौह स्तंभ, जो लगभग 1600 साल पुराना होने के बावजूद पूरी तरह से जंग मुक्त है, दिल्ली में महरौली में कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में स्थित है । । इस स्तंभ का निर्माण चंद्रगुप्त द्वितीय द्वारा कराया गया था। दिल्ली का लौह स्तंभ दुनिया की सबसे विचित्र धातु की वस्तुओं में से एक है। यह लोहे के टुकड़ों को फोर्ज वेल्डिंग (Forge welding (FOW), जिसे फायर वेल्डिंग भी कहा जाता है द्वारा उच्च तापमान पर गर्म करके और फिर उन्हें एक साथ ठोक कर निर्मित किया गया था। करंट साइंस(Current Science) नामक पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि आयरन हाइड्रोजन फास्फेट हाइड्रेट (Iron Hydrogen Phosphate Hydrate) नामक एक महत्वपूर्ण संक्षारण प्रतिरोधी तत्व खंबे को जंग लगने के लिए प्रतिरोधी बनाता है। अनेक वैज्ञानिकों ने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली (Indian Institute of Technology, Delhi) में 1600 साल पुराने लौह स्तंभ के पीछे के रहस्य को सुलझाने का प्रयास किया है,जिसमें किसी हद तक वह सफल भी हुए हैं । साथ ही कानपुर आईआईटी के धातुकर्मियों ने पता लगाया है कि लोहे, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के यौगिक “मिसवाइट” (Misawite) की एक पतली परत लोहे के खंभे को जंग से बचाती है। वैज्ञानिकों द्वारा इस रहस्य को सुलझाने हेतु अनेक तर्क एवं निरंतर प्रयासों के बावजूद भी यह एक रहस्य ही बना हुआ है। यह लौह स्तंभ भारत में लोहा बनाने की आदिवासी परंपरा (भारतीय लुहारों) का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है । लौह स्तंभ के संक्षारण प्रतिरोध के संबंध में कई सिद्धांत प्रतिपादित किए गए हैं। उनमें से कुछ निर्माण सामग्री की अंतर्निहित प्रकृति, जैसे शुद्ध लोहे का चयन, धातु मल कणों और धातुमल लेपन की उपस्थिति, यांत्रिक संचालन का उपयोग करके सतह परिष्करण या दिल्ली की बेहतर जलवायु, का उल्लेख करते हैं। संक्षारण प्रतिरोध घटना का सटीक कारण एक रहस्य बना हुआ है। दिल्ली लौह स्तंभ से प्राप्त लोहे की जाँच करना संभव नहीं है क्योंकि यह पुरातात्विक रूप से संरक्षित स्मारक है।
प्राचीन काल में अगरिया जनजाति लोहा बनाने का काम करती थी,जो जंगलों में रहकर लोहा बनाते थे और इस प्रथा को अपनी आजीविका के साधन के रूप में अपनाते थे। यह जनजाति लोहे के निर्माण की शुरुआत से पहले विशेष अनुष्ठान और रीति-रिवाजों के लिए प्रसिद्ध थे। ब्रिटिश साम्राज्य ने, एक उपनिवेश के रूप में भारत की स्थिति में, लोहे बनाने की पारंपरिक प्रथाओं को प्रभावित किया, जिन पर ब्रिटिश शासकों द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसलिए अगरिया जनजातियों द्वारा प्राचीन लोहा निर्माण की तकनीकी और ऐतिहासिक ज्ञान सुरक्षित नहीं रह सका और पहले लिखे गए यात्रा दस्तावेजों से केवल कुछ सुराग प्राप्त किए जा सकते हैं। अब जहाँ एक तरफ प्राचीन काल जैसा गुणवत्ता वाला लोहा प्राप्त नहीं होता है, वहीं आधुनिक युग में लोहे का बहुत अधिक उपयोग होता है। वर्तमान में लोहे के बिना किसी राष्ट्र की आर्थिक प्रगति नहीं हो सकती है। मानव जीवन बिना लोहे के इतना सरल व सुविधाजनक नहीं हो सकता है क्योंकि मानव उपयोग की छोटी से छोटी वस्तु अर्थात शुरू से लेकर बड़ी-बड़ी वस्तुओं जैसे मशीन, ट्रक, हवाई जहाज ,रेल आदि की कल्पना भी नहीं की जा सकती है फिर भी इसके बावजूद प्राचीन काल में निर्मित होने वाले लोहे की निर्माण विधि के अभाव का खेद न जाने कब तक बरकरार रहेगा।

चित्र संदर्भ

1. दिल्ली के लौह स्तंभ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. लौह धातु को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. क़ुतुब मीनार और लौह स्तंभ को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. नज़दीक से लौह स्तंभ को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. अगरिया पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (amazon)

संदर्भ
https://go.nature.com/3Z3BeSe
https://bit.ly/3GzyUeE
https://bit.ly/3IgZc6y

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