समयसीमा 229
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 963
मानव व उसके आविष्कार 757
भूगोल 211
जीव - जन्तु 274
Post Viewership from Post Date to 07- Feb-2023 31st Day | ||||
---|---|---|---|---|
City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1080 | 850 | 1930 |
कवक (Fungi) का विकास लगभग 1.5 अरब वर्ष पूर्व कवक के अन्य “जीवन” से अलग होने के बाद से चल रहा है। अल्बर्टा विश्वविद्यालय (University of Alberta) द्वारा किए गए एक अनुसंधान में लगभग 600 अलग-अलग कवक जिनमें लाइकेन (Lichen) , माइकोरिज़ल (Mycorrhizal) और कीट सहजीवन (insect symbiotes) शामिल है, और जो कभी भी कवक परिवार के पेड़ के साथ उपयुक्त नहीं पाए गए, के एक सामान्य पूर्वज प्रदर्शित करने और इन अजीबोगरीब जीवों को अपना वर्गीकरण घर देने के लिए जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया। वैज्ञानिकों द्वारा इन्हें फफूंद दुनिया के प्लैटिपस ( Platypus) और इकिडना ( Echidna) के नाम से दर्शाया गया ।"
वैज्ञानिकों ने डीएनए-आधारित डेटिंग विधियों का उपयोग करके पता लगाया कि कवक का यह नया वर्ग, लिचिनोमाइसेट्स (Lichinomycetes), 300 दशलक्ष वर्ष पहले, या डायनासोर के विलुप्त होने से 240 दशलक्षवर्ष पहले एक ही स्रोत से उत्पन्न हुए थे। इन कवक को वैज्ञानिक डेविड डियाज़-एस्कैंडोन (David Díaz-Escandón) जिन्होंने अपने पीएचडी (PhD) शोध के हिस्से के रूप में इसके बारे में अध्ययन किया था के द्वारा सात अलग-अलग वर्गों में रखा गया था, । उन्होंने बताया कि यह उच्च स्तरीय समूहन, जानवरों में, स्तनधारियों या सरीसृप नामक समूहों के समतुल्य होगा।
डेविड डियाज़-एस्कैंडोन और उनके सहयोगियों ने दुनिया भर के नौ अलग-अलग देशों से कवक की 30 विभिन्न प्रजातियों के जीनोम का अनुक्रम और विश्लेषण किया और पाया कि एक को छोड़कर कवक के सभी वर्ग एक सामान्य उत्पत्ति से उपजे हैं। डिआज़-एस्कैंडोन कहते हैं, “उन्हें वर्गीकृत किया गया था, लेकिन उन्हें वंश वृक्ष के कवक पक्ष के ऐसे अलग-अलग हिस्सों में वर्गीकृत किया गया था कि लोगों को कभी संदेह नहीं था कि वे एक-दूसरे से संबंधित हैं।”
उनमें कुछ असामान्य लाइकेन (Lichens) भी शामिल हैं जो दक्षिण अमेरिका के अटाकामा रेगिस्तान (South America’s Atacama Desert), जो दुनिया का सबसे शुष्क गैर-ध्रुवीय रेगिस्तान है, जैसे अत्यधिक आवासों में जीवित रहते हैं। स्प्रिबिल (Spribille), जो इस अध्ययन के एक अन्य शोधकर्ता है, कहते हैं, “वास्तव में आकर्षक बात यह है कि इन कवक के इतने अलग दिखने के बावजूद, उनके जीनोम के स्तर पर बहुत कुछ समान है।”
वैज्ञानिकों का दल जीनोम के आधार पर बताता है कि कवक का यह समूह, , जो अन्य कवक की तुलना में छोटा हैं, जीवन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर करता है। कुछ कवक शैवाल या सायनोबैक्टीरिया (cyanobacteria) के साथ रहते हैं, जिससे समग्र जीव लाइकेन बनता है । ये कवक प्रकाश संश्लेषण से कार्बोहाइड्रेट प्राप्त करने के लिए अपने सहजीवी साथी पर निर्भर होते हैं, जबकि कवक पर्यावरण से नमी और पोषक तत्व शैवाल या साइनोबैक्टीरिया को प्रदान करते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार उनके छोटे जीनोम का मतलब कवक के इस वर्ग द्वारा कुछ जटिल कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates) को एकीकृत करने की अपनी क्षमता को खो देना है। जब वैज्ञानिक इनमें से प्रत्येक कवक को देखने के लिए वापस जाते हैं, तो अचानक देखते हैं कि ये सभी एक प्रकार के सहजीवन में हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि नया शोध कवक के विकास के व्यापक अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण होगा, विशेष रूप से कवक कैसे महत्वपूर्ण जैव तकनीकी विशेषताओं को प्राप्त करते हैं जैसे कि एंजाइम(Enzymes) जो पौधे के तत्वों को तोड़ते हैं।साथ ही साथ नया समूह ‘पिछले कवको के विलुप्त होने के बारे में नई जानकारी का स्रोत भी हो सकता है।
कुछ अन्य कवक जियोग्लोसैसी (Geoglossaceae) एक वर्ग के सदस्यों की तरह, स्वतंत्र रूप से रहते हैं, हवा को सीधे जमीन से अपने गहरे रंग के फलने वाले सिर के साथ ग्रहण करते है।
जबकि सिम्बायोटैफ्रिना बुचनेरी (Symbiotaphrina buchneri) जैसी प्रजातियां भी पारस्परिक सहजीवी के रूप में रहती हैं, (स्टेगोबियम पैनिसियम) [Stegobium paniceum] बिस्किट बीटल के साथ यह कवक अपने जीवनचक्र के सभी चरणों में बीटल के भीतर एक घर के बदले में बीटल को बी विटामिन प्रदान करती है। और फिर इसके अतिरिक्तज़ाइलोना हेवी (Xylona heveae) जैसे एंडोफाइट्स(endophytes) हैं जो जीवन भर पूरी तरह से पौधों पर निर्भर रहते हैं। वास्तव में आकर्षक यह है कि इन कवकों के इतने अलग दिखने के बावजूद, उनके जीनोम के स्तर पर बहुत कुछ समान है।
इस अनुसंधान के परिणाम बताते हैं कि कवक की 600 प्रजातियां, जिन्हें पहले सात अलग-अलग वर्गों में रखा गया था, सभी को एक साथ एक ही विकासवादी शाखा से संबंधित होना चाहिए, जिसे लिचिनोमाइसेट्स(Lichinomycetes) कहा जाता है। चूंकि लिचिनोमाइसेट्स श्रेणी का सबसे पुराना नाम था, इसलिए शोधकर्ताओं ने इसे एक नई श्रेणी के रूप में उपयोग करने का फैसला किया।
वैज्ञानिकों के अनुसार इनके वर्ग का यह टैक्सोनॉमिक (taxonomic level) स्तर हमारे और मेंढकों के बीच के अंतर के बराबर है और यह नया वर्ग कवक के यूरोटिओमाइसेट्स (Eurotiomycetes) वर्ग से जुड़ा हुआ है।
इस प्रकार यह अनुसंधान हमें बताता है कि कुछ कवको की पैतृक वंशावली, जिनकी उत्पत्ति कई दशलक्ष पुरानी है, कैसे एक पूरी तरह से नई शाखा से संबंधित है।
संदर्भ –
https://bit.ly/3hW79mV
https://bit.ly/3Vlh57d
चित्र संदर्भ
1. फेवोलास्चिया कैलोसेरा को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. माइकोरिज़ल जड़ कंद को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. लाइकेन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. सायनोबैक्टीरिया को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. स्टेगोबियम पैनिसियम को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.