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कोई वस्तु जितनी अधिक दुर्लभ और विशेष होती है, बाजार में उसकी मांग भी उतनी ही अधिक होती है। यही नियम भारतीय पैंगोलीन (Indian Pangolin) या वज्रशल्क जैसे शानदार जानवरों पर भी लागू होता है, जिन्हें उनकी अद्वितीयता और दुर्लभता का खमियाजा अपनी जान गवाकर चुकाना पड़ता है।
भारतीय पैंगोलिन (मैनिस क्रैसिकौडाटा “Manis Crassicaudata”), जिसे मोटी पूंछ वाला पैंगोलिन और पपड़ीदार चींटीखोर (Scaly Anteater) भी कहा जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी है। अन्य पैंगोलिन की भांति इसके शरीर पर भी बड़े, अतिव्यापी शल्क (Scale) होते हैं, जो कवच के तौर पर इसकी सुरक्षा करते हैं। यह बाघ जैसे शिकारियों के खिलाफ आत्मरक्षा के रूप में खुद को एक गेंद की भांति घुमा सकता है।
यह कीटभक्षी जीव चींटियों और दीमकों को खाता है, जो अपने लंबे पंजों का उपयोग करके उन्हें टीले और लकड़ी के गठ्ठो से खोदकर निकालता है। भारतीय पैंगोलिन निशाचर अर्थात रात में शिकार करने वाला होता है, और दिन के समय गहरे बिलों में आराम करता है। यह अकेला, धीमी गति से चलने वाला, निशाचर और शर्मीला स्तनपायी है। यह सिर से पूंछ तक लगभग 84-122 सेमी लंबा होता है और इसकी पूंछ आमतौर पर 33-47 सेमी लंबी होती है। इसका वजन 10-16 किलोग्राम होता है। पैंगोलिन के पास शंकु के आकार का सिर होता है, आंखें गहरी होती हैं, और एक लंबी थूथन होती है। पैंगोलिन के दांत नहीं होते हैं, लेकिन पाचन में सहायता के लिए पेट की मांसपेशियां काफी मजबूत होती हैं।पैंगोलिन की सबसे उल्लेखनीय विशेषता इसका विशाल, फैला हुआ कवच है, जो पेट और पैरों के अंदरूनी हिस्से को छोड़कर इसके ऊपरी चेहरे और पूरे शरीर को ढकता है।
भारतीय पैंगोलिन को विभिन्न प्रकार के वनों में देखा जा सकता है, जिसमें श्रीलंकाई वर्षावन (Sri Lankan rainforest) और मैदानी इलाकों से लेकर मध्य पहाड़ी स्थल भी शामिल हैं। यह घास के मैदानों और द्वितीयक जंगलों में रहता है, और शुष्क क्षेत्रों और रेगिस्तानी क्षेत्रों के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित है, लेकिन यह आमतौर पर अधिक बंजर पहाड़ी क्षेत्रों को पसंद करता है। श्रीलंका में, यह 1,100 मीटर (3,600 फीट) की ऊंचाई पर और नीलगिरी पहाड़ों में 2,300 मीटर (7,500 फीट) की ऊंचाई तक पर पाया जाता है ।
भारतीय पैंगोलिन रात्रिचर है और अधिकतर शाम के 5:00 बजे से लेकर सुबह के 5:00 के बीच सक्रिय होता है। भारतीय पैंगोलिन पेड़ों पर नहीं चढ़ता है, लेकिन यह अपने आवास स्थल में पेड़ों, जड़ी-बूटियों और झाड़ियों की उपस्थिति को महत्व देता है क्योंकि उनके चारों ओर बिल खोदना आसान होता है तथा यहां पर चींटियां और दीमक भी बहुतायत में होते हैं। पैंगोलिन को सूंघने की भी अच्छी समझ होती है और वे परिचित लोगों और जानवरों को उनकी गंध से ही पहचान सकते हैं। पैंगोलिन बहुत सावधान रहने वाले जानवर हैं, अगर उन्हें खतरा महसूस होता है तो वे अपने बिलों में वापस चले जाते हैं।
भारतीय पैंगोलिन को उसके मांस और शल्कों की भारी मांग के कारण बड़ी मात्रा में अवैध शिकार का खतरा होता है, जिसका उपयोग स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसका तेजी से व्यापार हो रहा है। हाल ही में, जूनागढ़ प्रादेशिक वन विभाग के अधिकारियों ने गुजरात के पोरबंदर, जूनागढ़, देवभूमि द्वारका, जामनगर और अहमदाबाद जिलों से 11 लोगों को कथित रूप से पोरबंदर जिले के राजस्व क्षेत्र से एक भारतीय पैंगोलिन का अवैध शिकार करने और फिर उसे बड़ी कीमत पर बेचने की कोशिश करने के आरोप में गिरफ्तार किया। हालांकि जिस पैंगोलिन को उन्होंने बचाया था, उसकी एक दिन बाद निगरानी में ही मौत हो गई थी। उपरोक्त पैंगोलिन के शरीर पर चोट के निशान भी पाए गए थे, जिससे पता चलता है कि उसे प्रताड़ित किया गया था।
पैंगोलिन के विभिन्न भागों को भोजन और औषधि के स्रोत के रूप में महत्व दिया जाता है। इसके शल्कों का उपयोग कामोत्तेजक के रूप में किया जाता है, या उनसे छल्ले तथा ताबीज का निर्माण भी किया जाता है। खाल का उपयोग जूते सहित चमड़े के सामान के निर्माण के लिए किया जाता है। 2000 के दशक की शुरुआत से ही चीन में खपत के लिए भारतीय पैंगोलिन के शरीर के अंगों की तस्करी की जाती रही है।
इनके लिए अन्य खतरों में वनों की कटाई के माध्यम से होने वाले निवास स्थान का नुकसान शामिल है। शेरों जैसे खतरनाक जानवरों से भी बच जाने वाले यह नन्हे जीव इंसानों की क्रूरता से नहीं बच पाते, इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि उनकी निगरानी हेतु बेहतर प्रबंधन किये जाएं। हालांकि पैंगोलिन ऐसे जानवर हैं जिनका अध्ययन करना कठिन है क्योंकि वे दुर्लभ होते हैं, और पैरों के निशान भी नहीं छोड़ते हैं और न ही उन्हें कैमरे पकड़ पाते हैं। हालांकि शोधकर्ताओं ने सूंघने की मजबूत क्षमता होने के कारण जंगल में पैंगोलिन खोजने में मदद करने के लिए कुत्तों का इस्तेमाल किया। शोधकर्ताओं ने कुछ पैंगोलिन की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए उन पर रेडियो ट्रांसमीटर (Radio Transmitter) भी लगाए। भारतीय पैंगोलिन को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Wildlife Protection Act) की अनुसूची-1 में शामिल किया गया है और इसे देश में उच्चतम स्तर की कानूनी सुरक्षा प्राप्त है। स्तनपायी का शिकार करने वालों को सात साल तक की कैद हो सकती है।
संदर्भ
https://bit.ly/3VI3IxW
https://bit.ly/3VHuwyo
https://bit.ly/3GcRZlB
चित्र संदर्भ
1. बेजुबान भारतीय पैंगोलिन को मारकर ताबीज बनाने को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. नजदीक से भारतीय पैंगोलिन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. पैंगोलिन की सबसे उल्लेखनीय विशेषता इसका विशाल, फैला हुआ कवच है, जो पेट और पैरों के अंदरूनी हिस्से को छोड़कर इसके ऊपरी चेहरे और पूरे शरीर को ढकता है। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. कैद में भारतीय पैंगोलिन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. पैंगोलिन उत्पादों की छवियों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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