समयसीमा 229
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 963
मानव व उसके आविष्कार 757
भूगोल 211
जीव - जन्तु 274
Post Viewership from Post Date to 01- Sep-2023 (31st Day) | ||||
---|---|---|---|---|
City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
677 | 623 | 1300 |
बाजो के साथ शिकार करना, पक्षियों द्वारा छोटे जानवरों का अपने प्राकृतिक आवास में शिकार करने की एक पारंपरिक प्रथा है जिसे फैलकनरी (Falconry) कहा जाता हैं ।इस विद्या का उपयोग प्राचीन खितान और तुर्किक ( Ancient Khitan and Turkic) लोगों द्वारा किया जाता था। आज यह समकालीन कजाकिस्तान और किर्गिस्तान में कज़ाकों और किर्गिज़ लोगों द्वारा उपयोग के लिए, साथ ही बायन-ओल्गी( Bayan-Ölgii), मंगोलिया ( Mongolia) और चीन के झिंजियांग (Xinjiang, China) प्रांत में भी प्रचलित है। हालांकि, ये लोग गरूड़ो (golden eagles) के साथ शिकार करने के लिए सबसे प्रसिद्ध हैं, वे उत्तरी गोशावक (Goshawks),, परदेशी बाज़ों(Peregrine falcons) सेकर बाज़ों (Saker falcons), और अन्य शिकारी पक्षियों को प्रशिक्षित करने के लिए भी जाने जाते हैं।
फैलकनरी एक प्रशिक्षित शिकारी पक्षी के माध्यम से जंगली जानवरों का उनके प्राकृतिक अवस्था और आवास में शिकार करना होता है। इस विद्या से छोटे जानवरों का शिकार किया जाता है। सामान्यतया गिलहरी और खरगोश ज्यादातर इन पक्षियों का शिकार बनते हैं। लगभग 2,000 ईसा पूर्व के सबूत बताते हैं कि मेसोपोटामिया(Mesopotamia) में इस कला की शुरूआत हुई होगी।कज़ाख भाषा में, ‘क़ुस्बेगी’(Qusbegi) और ‘सयात्शी’(Sayatshy)ये दोनों शब्द पक्षियों को प्रशिक्षित करने वाले लोगों को संदर्भित करते हैं। Qusbegi शब्द qus (“पक्षी”) और bek (“भगवान”) से आया है, इस प्रकार शाब्दिक रूप से इस शब्द का “पक्षियों के भगवान” के रूप में अनुवाद किया जा सकता है। पुरानी तुर्किक भाषा में, कुश बेगी ये शब्द खान के सम्मानित सलाहकारों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक शीर्षक था, जो आज पक्षियों को प्रशिक्षण देने वाले लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है।
‘सयात्शी’ शब्द सयात (पक्षियों को सिखाने की विद्या) और प्रत्यय -शई से आया है, जिसका उपयोग तुर्की भाषाओं में पेशेवर शीर्षकों के लिए किया जाता है। चीलो के साथ शिकार करने वाले तथा पक्षियों को प्रशिक्षण देने वाले लोगों के लिए कज़ाख शब्द ‘बुर्कित्शी’ है जो की बुर्किट (गरुड़) से आया है। दूसरी ओर, गोशावको के लिए शब्द ‘क़र्शीघा’ (गोशावक) से ‘क़ारशीघाशी’ है।जबकि किर्गिज़ में, ऐसे लोगों के लिए सामान्य शब्द ‘मुनुशकोर’ है। एक व्यक्ति, जो विशेष रूप से, चील के साथ शिकार करता है,उसे बुर्कुटचु संबोधित करते है,जो शब्द बुर्कुट (गरुड़) से लिया गया है।
बाज़ो के द्वारा शिकार करने का इतिहास अत्यंत पुराना है।बायन-ओल्गी प्रांत मे,पश्चिमी मंगोलिया के अल्ताई पर्वत में स्थित लगभग 250 बाज शिकारी हैं। उनकी प्रथा में गरूडो के साथ शिकार करना शामिल है, और वे मुख्य रूप से लाल लोमड़ियों और कोर्सेक लोमड़ियों का शिकार करते हैं। सर्दी के ठंडे मौसम के समय वे लोमड़ियों और खरगोशों का शिकार करने के लिए इस विद्या का उपयोग करते हैं।
अब हाल ही के वर्षो में भारतीय सेना ने भी दुश्मनों के ‘निगरानी रखने वाले ड्रोन’ को नीचे गिराने के लिए चीलो को प्रशिक्षित किया है। यह कदम उठाने का कारण यह है कि , सीमा सुरक्षा बल (BSF) उन ड्रोनों पर नजर रख रहा है जो पाकिस्तान से भारतीय क्षेत्र में ड्रग्स और हथियारों की तस्करी करते हैं। आज इस प्राचीन विद्या का उपयोग भारतीय सेना द्वारा भी किया जा रहा है। उत्तराखंड में हुए भारत-अमेरिका के संयुक्त सैन्य अभ्यास के समय इस विद्या को एक ऐसे ही पक्षी के माध्यम से दिखाया गया था। इस युद्धाभ्यास के दौरान फुटेज(वीडियो) में एक चील पक्षी को एक सैनिक के हाथ से उड़ते हुए तथा एक हवाई लक्ष्य को छीनकर कुछ दूरी पर गिराते हुए दिखाया गया है।भारत ने उस चील पक्षी, जिसका नाम ‘अर्जुन’ रखा गया है,के कौशल का वहा प्रदर्शन किया था,जो अब सेना का नवीनतम ‘एंटी-ड्रोन फ्लाइंग’ सैनिक है।
युद्ध अभ्यास' भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच दोनों सेनाओं के बीच सर्वोत्तम प्रथाओं, रणनीति, तकनीकों और प्रक्रियाओं का आदान-प्रदान करने के लिए प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है। रक्षा मंत्रालय के एक समाचार बयान के अनुसार, अभ्यास का पिछला संस्करण अक्टूबर 2021 में अलास्का (यूएसए) में संयुक्त बेस एल्मडॉर्फ रिचर्डसन (Joint Base Elmendorf Richardson in Alaska (USA)) में आयोजित किया गया था।
यह एक कुत्ते की सहज प्रवृत्ति और चील की आंखों का एक अनूठा संयोजन है, जो ड्रोन को मार गिराने की एक नई रणनीति का हिस्सा है।कुत्ते, उड़ते मानव रहित हवाई वाहन (यूएवी) की भनभनाहट सुनकर, एक अलार्म बजाते हैं और तभी पक्षी को लक्ष्य का पता लगाने के लिए आसमान में छोड़ा जाता है और मिनटों के भीतर ड्रोन चील के द्वारा नीचे गिरा दिया जाता है।
भारतीय सेना की पशु चिकित्सा की टीम इन पक्षियों को ड्रोन का मुकाबला करने के लिए एक नई रणनीति के हिस्से के रूप में प्रशिक्षित कर रही है। सेना में इस तरह के कई पक्षियों को प्रशिक्षित किया गया है। और साथ ही परीक्षण के कई चरणों में उन्होंने ड्रोन को सफलतापूर्वक मार गिराया है।
इस विद्या का सेना के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण उपयोग है। सिर्फ ड्रोन-विरोधी ऑपरेशन ही नही बल्कि, पक्षियों को उनके सिर पर लगे हुए कैमरों से निगरानी रखने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।और उस कैमरे में कैद होने वाली हर गतिविधि पर जमीन से सेना द्वारा नजर रखी जाती है।
इन शिकारी पक्षियों को प्रकृति से हवा से जमीन पर शिकार करने की विशेष देन मिली है।प्राचीन काल में लोगों ने उस शक्ति को पहचान लिया था और आज यह सेना की गतिविधियों में भी उपयोग में लाया जा रहा है। पक्षियों द्वारा सेना की इस प्रकार सहायता भी की जा सकती है यह पक्षियों के महत्व को दर्शाता है ।
संदर्भ –
https://bit.ly/3itFbic
https://bit.ly/3FfDbmE
https://bit.ly/3gQ0muD
चित्र संदर्भ
1. बाज़ की ट्रेनिंग को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. शिकार को दबोचे बाज़ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. ट्रेनिंग लेते बाज़ को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. ड्रोन को दबोचे बाज़ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.