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इंसान को धरती पर सबसे अधिक बुद्धिजीवी प्राणी समझा जाता है। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है की हमारे शरीर में ही रहने वाले अति शूक्ष्म बैक्टीरिया हमसे भी अधिक तेज़ी से सीखने, माहौल के हिसाब से ढलने और प्रतिरोध विकसित करने की क्षमता रखते हैं। हम एंटीबायोटिक युग के बाद आज ऐसे युग में प्रवेश कर चुके हैं, जहां बैक्टीरिया ने शायद चतुर मनुष्यों की भांति एंटीबायोटिक दवाओं (Antibiotic medicines) के खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर लिया है।
एंटीबायोटिक्स का उपयोग अक्सर दस्त और ऊपरी श्वसन मार्ग के संक्रमण के इलाज के लिए किया जाता है। हालांकि ऐसी दिक्कतों को व्यक्तिगत स्वच्छता में सुधार करके भी कम किया जा सकता है, लेकिन अत्यधिक और अनावश्यक उपयोग के कारण बेहद शक्तिशाली और मजबूत एंटीबायोटिक्स भी अपना प्रभाव खो रहे हैं, और परिणाम स्वरूप, मानव शरीर में बैक्टीरिया ने ही रोग प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर ली है।
बैक्टीरिया की यह क्षमता वास्तव में मानव जीवन के लिए एक बड़ा खतरा साबित हो रही है। दुनिया भर में एंटीबायोटिक प्रतिरोध (Antibiotic Resistance) एक निरंतर बढ़ती हुई सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता है। जब कोई व्यक्ति एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी जीवाणु से संक्रमित होता है, तो न केवल उस रोगी का उपचार करना बेहद कठिन होता है, बल्कि एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी जीवाणु अन्य लोगों में फैल सकता है। आमतौर पर एंटीबायोटिक का उपयोग इसी प्रकार के जीवाणु संक्रमण के खिलाफ किया जाता है।
हालांकि एंटीबायोटिक्स, बैक्टीरिया को मारते हैं, लेकिन वे वायरस के खिलाफ प्रभावी नहीं होते हैं। इसलिए, वे वायरल संक्रमण जैसे सर्दी, खांसी, कई प्रकार के गले में खराश और इन्फ्लूएंजा (Influenza (flu) के खिलाफ भी प्रभावी नहीं होते।
विशेषज्ञों को आशंका है कि दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया की बढ़ती संख्या के साथ, उन्हें अंग प्रत्यारोपण, कीमोथेरेपी या यहां तक कि छोटी से छोटी सर्जरी करने में भी भारी मुश्किलें आ सकती हैं। अलेक्जेंडर फ्लेमिंग (Alexander Fleming) ने अपने 1945 के नोबेल पुरस्कार व्याख्यान में कहा था, "वह समय आ सकता है, जब पेनिसिलिन (Penicillin) को कोई भी व्यक्ति दुकानों से खरीद सकता है। सर अलेक्जेंडर फ्लेमिंग FRS FRSE FRCS एक स्कॉटिश चिकित्सक और सूक्ष्म जीवविज्ञानी थे, जिन्हें दुनिया के पहले व्यापक रूप से प्रभावी एंटीबायोटिक पदार्थ की खोज के लिए जाना जाता है, जिसे उन्होंने “पेनिसिलिन” नाम दिया। 1928 में फ्लेमिंग द्वारा पेनिसिलिन की खोज ने चिकित्सा विज्ञान की दुनिया को बदल दिया था। हालांकि इसकी खोज से पहले मनुष्य हजारों सालों से, मामूली संक्रमणों से भी मर जाते थे। लेकिन, इसकी खोज के बाद, जटिल सर्जरी के दौरान भी एंटीबायोटिक दवाओं की एक साधारण खुराक से संक्रमणों का इलाज किया जा सकता है। नई दवाओं ने उपचार क्षेत्र में क्रांति ला दी, मानव स्वास्थ्य को बदल दिया और लाखों लोगों की जान बचाई।
किन्तु दुर्भाग्य से आज भारत में बड़े पैमाने पर एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग या अति प्रयोग हो रहा है, जिसके परिणामस्वरूप सुपरबग (Superbug “बैक्टीरिया का एक प्रकार जो एंटीबायोटिक दवाओं के लिए प्रतिरोधी बन गया है।”) सभी ज्ञात प्रकार की दवाओं के प्रतिरोधी के रूप में उभरे हैं। हमने वायरल बुखार और सर्दी से निपटने के लिए भी एंटीबायोटिक गोलियों का प्रयोग करना शुरू कर दिया है, हालांकि इनका इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से नहीं किया जा सकता है।
हमने उन्हें अपने पशुओं को भी देना शुरू कर दिया है ताकि उन्हें मोटा किया जा सके। लेकिन अब, आश्चर्यजनक रूप से, सबसे असरदार और शक्तिशाली एंटीबायोटिक्स भी काम नहीं कर रहे हैं। कई विशेषज्ञ मान रहे हैं, की हमने अब एंटीबायोटिक के बाद की दुनिया में प्रवेश कर दिया है। दुनिया भर में प्रतिवर्ष लगभग 700,000 लोग, एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण मर रहे हैं, वहीँ एक अध्ययन के अनुसार 2050 तक यह आंकड़ा बढ़कर 10 मिलियन हो जाने का अनुमान है।
हालांकि एंटीबायोटिक प्रतिरोध एक वैश्विक घटना है, लेकिन भारत इस तबाही के केंद्र में है। देश में बिना नुस्खे या निदान के सबसे मजबूत एंटीबायोटिक दवाओं तक लोगों की आसान पहुंच है। यहां तक कि न केवल झोलाछाप डॉक्टरों बल्कि योग्य डॉक्टरों द्वारा भी बिना सोचे समझे अपने मरीज़ों को इन्हे लेने का सुझाव दे दिया जाता है। इसका परिणाम यह है की, समय के साथ कई एंटीबायोटिक, गंभीर रोगों के प्रति अप्रभावी साबित हो रहे हैं। वही वैज्ञानिकों ने वैंकोमाइसिन (Vancomycin) नामक एक शक्तिशाली एंटीबायोटिक में बदलाव किया है, जिसके बारे में माना जा रहा है की यह जीवाणु संक्रमण के खिलाफ काफी अधिक शक्तिशाली और प्रभावी साबित हो रही है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि अधिक शक्तिशाली यौगिक (संशोधित वैंकोमाइसिन) आने वाले कई वर्षों तक एंटीबायोटिक प्रतिरोध के खतरे को समाप्त कर सकती है। वैंकोमाइसिन को दवा प्रतिरोधी एंटरोकोकी और सूक्ष्मजीव (Enterococci and Microorganisms) के मूल रूपों दोनों के खिलाफ 1,000 गुना अधिक प्रभावी बना दिया गया है। बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया के खिलाफ दुनिया की आखिरी रक्षा पंक्ति को अभी एक नया योद्धा वैंकोमाइसिन 3.0 मिल गया है। वहीँ इसके पूर्ववर्ती-वैंकोमाइसिन 1.0 का उपयोग 1958 से मेथिसिलिन-प्रतिरोधी स्टैफिलोकोकस ऑरियस (Methicillin-Resistant Staphylococcus Aureus) जैसे खतरनाक संक्रमणों से निपटने के लिए किया गया है। लेकिन समय के साथ प्रतिरोधी बैक्टीरिया ने इसकी प्रभावशीलता भी को कम कर दिया, जिसके बाद वैज्ञानिकों ने दवा के अधिक शक्तिशाली संस्करण-वैंकोमाइसिन 2.0 का निर्माण किया है।
इसके सबसे आधुनिक संस्करण 3.0 में बैक्टीरिया को मारने के लिए एक अद्वितीय त्रि-आयामी दृष्टिकोण है, जो डॉक्टरों को दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के खिलाफ एक शक्तिशाली नया हथियार दे सकता है और शोधकर्ताओं को अधिक टिकाऊ एंटीबायोटिक दवाओं के इंजीनियर की मदद कर सकता है।
वैंकोमाइसिन, जिसे लंबे समय तक "अंतिम उपाय की दवा" माना जाता है। नई एंटीबायोटिक वीआरई और वीआरएसए (VRE and VRSA) जैसे रोगाणुओं के खिलाफ कम से कम 25,000 गुना अधिक शक्तिशाली है। वैज्ञानिकों ने जब नए तीन-भाग एनालॉग (Three-Part Analog) के खिलाफ वैंकोमाइसिन-प्रतिरोधी बैक्टीरिया का परीक्षण किया तो रोगाणु, 50 राउंड के बाद भी प्रतिरोध विकसित करने में असमर्थ थे। इससे पता चलता है कि नया यौगिक मौजूदा एंटीबायोटिक दवाओं की तुलना में कहीं अधिक टिकाऊ साबित हो सकता है।
संदर्भ
https://bit.ly/3O6hatp
https://bit.ly/3Es5sGd
https://bit.ly/3X04Fnq
https://bit.ly/2GIL58Y
चित्र संदर्भ
1. एंटीबायोटिक को दर्शाता एक चित्रण (Creazilla)
2. एंटीबायोटिक प्रतिरोध को दर्शाता एक चित्रण (The Blue Diamond Gallery)
3. अलेक्जेंडर फ्लेमिंग को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. सुपरबग के विकास को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. मेथिसिलिन-प्रतिरोधी स्टैफिलोकोकस ऑरियस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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