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प्राचीन भारत में धार्मिक प्रथाओं और मान्यताओं ने अक्सर विशेष खोजों या आविष्कारों को जन्म दिया। सभी धर्मों जिन्होंने भारत में जन्म लिया था, में अपना धार्मिक अनुष्ठान करने के लिए दिन के किसी एक विशेष समय का चुनाव किया गया, जिसमें वे हर दिन ठीक उसी समय पर अपना धार्मिक अनुष्ठान करते थे। लेकिन उनके पास समय बताने का कोई विश्वसनीय तरीका नहीं था।एक साधारण छड़ी को जमीन पर रखा जाता, तथा उसका उपयोग एक सन डायल (Sun Dial) बनाने के लिए किया जाता था। लेकिन जरा सोचिए कि जिस दिन सूरज न हो या जिस दिन बादल लगे हो, उस दिन वे क्या करते होंगे?
इस समस्या के हल के लिए प्राचीन भारतीयों ने एक अलग प्रकार की घड़ी तैयार की, जो मुख्य रूप से पानी पर आधारित थी और इसे घटिका यंत्र कहा जाता था। सभी महत्वपूर्ण नगरों में समय मापने के लिए घड़ियालियों नामक पुरुषों का एक समूह नियुक्त किया गया। समय मापने के लिए एक बर्तन जिसके तल पर छेद हो, को पानी से भरे दूसरे बड़े बर्तन के ऊपर रखा गया। धूपघड़ी के साथ पानी की घड़ियाँ सबसे पुराने समय मापने वाले उपकरण माने जाते हैं। पहली बार उनका आविष्कार कहाँ और कब हुआ, यह ज्ञात नहीं है, और उनकी महान पुरातनता को देखते हुए इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है।
पानी की घड़ी का सबसे सरल रूप कटोरे के आकार का बहिर्वाह (Bowl-shaped outflow) है,जो हजारों साल पहले भारत, चीन (China), बेबीलोन (Babylon) और मिस्र (Egypt) में मौजूद था।
संदर्भ:
https://bit.ly/3CzKH9I
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