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प्राचीन काल से ही विश्व भर के खानाबदोशों द्वारा विभिन्न स्थायी या अस्थायी आवास के लिए
विभिन्न प्रकार के आश्रयों और टेंट (Tent) या तम्बू या शामियने व कनात का उपयोग किया गया।
क्या है इनका इतिहास? प्रारंभिक समय में मध्य एशिया के खानाबदोश जनजातियों द्वारा इन्हे
साधारण आश्रयों के रूप में उपयोग किया जाता था, जो गेंगिज़ खान के समय तक शानदार ले जाने
योग्य आश्रय के रूप में विकसित हुए। मध्य एशिया और मंगोलिया (Mongolia) के खानाबदोश ले
जाने योग्य आश्रयों में रहते थे, इसका आकार वहाँ की हवाओं, बर्फ और तूफानों से इनको बचाता था।
कठोर, गुंबददार लकड़ी के ढांचे से निर्मित, इन यर्ट (Yurt - एक बंधनेवाला ढांचे पर ऊनी कपड़े या
खाल का एक गोलाकार तम्बू) को उत्कृष्ट रूप से लटके हुए आसनों, और आरामदायक और रंगीन
कुशन से सजाया जाता था। एक शासक या खान का यर्ट लाल रंग का बना होता था जिसे गुंबददार
महल की तरह सोने से सजाया जाता था।
वहीं इस्लामिक शाही शामियने या कनात को विभिन्न साधन जैसे कपास, रेशम और सोने तथा
कढ़ाई, पिपली, ब्लॉक प्रिंट (Block print) और जरी जैसी तकनीकों में कई प्रकार के वस्त्रों का
उपयोग किया जाता था। खानाबदोश जीवन का विचार तुर्क (Ottoman) के समय तक रहा और मध्य
एशिया की संस्कृति में एक शाही परंपरा बन गई। शामियने तुर्क साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा
बन गए और समय के साथ यह सुल्तान के अधिकार और प्रतिष्ठा को दर्शाने लगे। सुल्तान द्वारा
शामियने का उपयोग महत्वपूर्ण घटनाओं को मनाने, भोज की मेजबानी करने, गणमान्य व्यक्तियों के
लिए दावतें, नृत्य और मनोरंजन, राजकुमारों का खतना, विदेशी गणमान्य व्यक्तियों के स्वागत करने
के लिए, राजनयिक मिशन, राज्याभिषेक और यहां तक कि समाधि के लिए भी किया जाता था।
सुल्तान और जनता द्वारा सैन्य अभियानों, राज्य समारोहों, दैनिक सैर और मनोरंजन के लिए
शामियने का उपयोग किया जाता था।
साथ ही तुर्क की सेना को इसके अनुशासन और संगठन के लिए सराहा जाता था।सुल्तान के तम्बू
परिसर या ओटायू-वाई ह्यमायूं (OtaU-Y HYmayun) में वह सब कुछ शामिल था जिसकी सुल्तान
को अपने महल के बाहर जरूरत थी, एक प्रकार से घर से दूर हो कर भी सुल्तान के लिए घर जैसा
आराम प्रदान किया जाता था। खजाने के लिए, पवित्र अवशेषों के लिए, राज्य परिषद, भंडारण, रसोई,
स्नान और यहां तक कि शौचालय के लिए एक शामियना या कनात हुआ करता था। ये सभी
शामियने ज़ोकक (Zokak) नामक कपड़े की एक पर्दे की दीवार से घिरे हुए थे जो सुल्तान को सुरक्षा
और गोपनीयता प्रदान करते थे। साथ ही इस सुल्तान के तंबुओं के चारों ओर, ग्रैंड विज़ियर (Grand
Vizier) या राज्य के अधिकारियों के तंबू हुआ करते थे और उन सभी को रहने वालों के श्रेणी के
अनुसार अलग-अलग आकार में रखा जाता था।
तुर्क शामियने की संरचना को इस प्रकार बनाया गया था कि वह लगभग हर परिस्थिति में मजबूती
से खड़े रहें, वे अंदर से बेहतरीन कपड़े से बने हुए थे और बाहर से मजबूत थे। ये अस्थिर संरचनाएं
हवा, बारिश और तूफान और चरम मौसम की स्थिति का सामना करने में सक्षम रहती हैं। केवल
इतना ही नहीं, तुर्क, तंबू कला के जीवित उदाहरण थे जो सुल्तान को निरंतर युद्धों और अभियानों
से राहत प्रदान करते थे। विभिन्न आकृतियों और आकारों में साटन, रेशम और ऊनी कपड़े पर
सजावट के काम में अति-काल्पनिक पुष्प किसी भी व्यक्ति को एक सुखद आराम प्रदान करते हैं।
तुर्की की संस्कृति में तुर्क तंबू एक महत्वपूर्ण तत्व रहे हैं, और वे अपने गौरवशाली अतीत को प्रदर्शित
करते हैं। तुर्की शाही तंबू के कुछ सबसे बड़े संग्रह को टोपकपी पैलेस संग्रहालय (Topkapi Palace
Museum) और इस्तांबुल (Istanbul) में सैन्य संग्रहालय में संग्रहीत किया गया है।कुछ बेहतरीन तुर्क
तंबू यूरोप (Europe) के कोषागारों और संग्रहालयों में भी मौजूद हैं, जहां उन्हें या तो युद्ध वैजयंती
या संप्रभु को दिए गए उपहार के रूप में प्राप्त किया गया था।
साथ ही आपको यह जानकर हैरानी होगी की उर्दू या ओरडू (Ordu) का अर्थ है तम्बू या सेना और
उर्दू इस प्रकार सेना की भाषा थी। यह 'लश्कराई ज़बान' या ज़बान ई उर्दू भारत की सेनाओं के लिए
आवश्यक हुआ करती थी, ऐसी सेनाएँ जिनमें अक्सर मध्य पूर्व और भारत के विभिन्न क्षेत्रों से
विभिन्न मातृभाषाओं वाले सैनिक शामिल होते थे। इसलिए उर्दू इन सैनिकों को संबोधित करने के
लिए चुनी गई भाषा बन गई क्योंकि इसने कई मूल भाषाओं को संक्षिप्त कर दिया था।
वहीं जैसा कि हम में से अधिकांश यह जानते हैं कि भारत के मुगल सम्राट कला के महान पारखी थे,
क्योंकि उनके संरक्षण में भारत में कला और संस्कृति का विकास हुआ था।सर थॉमस रो (Sir
Thomas Roe, 1615-1618 में मुगल दरबार में अंग्रेजी राजदूत) ने दीवारें या चित्रपट पर हाथ से
रंगे हुए छींटदार या लाल कढ़ाई वाले कपड़े से बनी चौखटों को देखा। कनात (Qanat) चौखटों ने
मुगल दरबार की आंतरिक सजावट में एक महत्वपूर्ण तत्व प्रदान किया। वहीं सम्राट जहाँगीर की
वनस्पति विज्ञान में रुचि और फूलों की झाड़ी का प्रतिरूप सबसे लोकप्रिय रूपांकनों में से एक बन
गया। तथा मुगल बादशाह के वहनीय शहर वस्त्रों से बनाए गए थे। तुर्क की भांति ये तंबू विभिन्न
उद्देश्यों जैसे दावतों, राजदूतों के स्वागत आदि के लिए काम में आते थे। फतेहपुर सीकरी में कई
इमारतें हैं जिनके आंगनों में छल्ले हैं, जो संभावित रूप से टेंट की रस्सियों को बांधने के कार्य करते
होंगे। साथ ही शाही लाल डेरा का शाब्दिक अर्थ रॉयल रेड टेंट (Royal Red Tent) है। यह महान
मुगल सम्राट शाहजहां का यात्रा महल था। इसमें उनकी सभी आवश्यकताओं और राजस्वी विलासिता
शामिल थी, माना जाता है कि यह तम्बू एक युद्ध के दौरान लूट लिया गया था, जिसके विजेता
जोधपुर के शासक थे और वे इस तंबू को अपने साथ मेहरानगढ़ में अपने किले में ले गए थे।
भारत की महारानी के रूप में महारानी विक्टोरिया के राज्याभिषेक के उपलक्ष्य में 1911 में आयोजित
दिल्ली दरबार के दौरान भारत में अंग्रेजों ने इस शैली को अपनाया। वहीं भारत में, तम्बू, शाही छतरी
की प्राचीन अवधारणा के साथ घुलमिल गया, और बहुत बार जिसे हम तम्बू कहते हैं, वह अधिक
सटीक रूप से एक कपड़े की दीवार के साथ संयुक्त छतरी हुआ करती थी, जैसा कि मैसूर के टीपू
सुल्तान के शानदार शाही तम्बू हुआ करते थे। इन तंबुओं को इतने अच्छे से सजाया जाता था कि ये
मुगल शासकों को घर से बाहर आने पर भी अपने घर जैसा महसूस करवाते थे, आइन-ए-अकबरी में
तंबू के निर्माण और सजावट के आधार पर विभिन्न प्रकार के तंबुओं का वर्णन किया गया है।
छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय में मौजूद कनात शायद तम्बू के आंतरिक भाग के लिए
एक सजावटी परदा का उदाहरण है। यह तीन मेहराब बनाने वाले तीन ऊर्ध्वाधर पैनलों (Panel) में
विभाजित है। वृत खंड के भीतर का क्षेत्र एक सादे प्राकृतिक कपड़ा सामग्री पर, काले रंग की रूपरेखा
के साथ विशिष्ट कलमकारी गुलाबी, नीले, हरे और पीले रंगों में चित्रित फूलों के पौधों के रूपांकनों से
ढका हुआ है।कपड़े ने प्रारंभिक समय से ही वास्तुकला में एक अहम भूमिका निभाई हुई है, कपड़ा
दलितों और राजाओं दोनों के लिए विशेष स्थान प्रदान करता है, तथा सभी सामाजिक कार्य में
योगदान देता है, फिर चाहे वह वस्त्रों के लिए हो या वास्तुकला के निर्माण के लिए।
आधुनिक युग में तंबू को भारत में शामियाना या पंडाल के नाम से जाना जाता है, इसका उपयोग
भारत में आमतौर पर बाहरी पार्टियों, शादियों और दावतों के लिए किया जाता है। इन तंबू की बगल
की दीवारें हटाने योग्य हैं। इसका बाहरी कपड़ा सादा, बहुरंगी या पैटर्न वाला हो सकता है। चारों कोनों
को लकड़ी के खंभों द्वारा समर्थित किया जाता है।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3E9JIPR
https://bit.ly/3E8mvgQ
https://bit.ly/3dY1quY
https://bit.ly/3Cphorq
https://bit.ly/3SOFtgA
https://bit.ly/3CldQq5
https://bit.ly/3y6Git8
चित्र संदर्भ
1. किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी के राज्याभिषेक के लिए आयोजित दिल्ली दरबार, 1911 में एक शानदार शामियाने के उपयोग का चित्रण (Flickr)
2. शिव मंदिर में शामियाने को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
3. सिंहासन पर बैठे सुल्तान महमूद द्वितीय को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
4. शामियाने टेंट को दर्शाता एक चित्रण (indiamart)
5. एक आगंतुक का स्वागत करते हुए सम्राट बाबर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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