देश ने देखा आई.टी हब बेंगलुरु को जलमग्न, प्राकृतिक आपदाओं में जलवायु परिवर्तन का योगदान

जलवायु व ऋतु
23-09-2022 10:16 AM
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देश ने देखा आई.टी हब बेंगलुरु को जलमग्न, प्राकृतिक आपदाओं में जलवायु परिवर्तन का योगदान

प्रसिद्ध लेखक साइमन सिनेक (Simon Sinek) ने अपनी पुस्तक "स्टार्ट विथ व्हाई (start with why )" में बताया है की, हमें किसी भी काम को "क्यों से शुरू करना चाहिए!" यदि आप "किसी काम को क्यों या किस लिए शुरू करना है?" का उत्तर जान गए तो आगे की राह काफी आसान हो जाती है। उदाहरण के तौर पर वर्तमान में चरम मौसम, जैसे हद से ज्यादा बाढ़, गर्मी एवं ठंड जैसी अनिश्चित घटनाएं भी बेहद तेज़ी से बढ़ रही हैं। अब इन समस्याओं का सीधे-सीधे निरावरण ढूंढने से बेहतर पहले खुद से यह प्रश्न करना है की ऐसा "क्यों या किस लिए" हो रहा है?
हमारा पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान, बाढ़ से हुई अभूतपूर्व तबाही का सामना कर रहा है। भारी बारिश के दिनों के बाद, बाढ़ का पानी धीरे-धीरे कम होना शुरू हो गया है, जिससे पता चला है की इसमें 1,350 से अधिक लोग मारे गए, 33 मिलियन प्रभावित हुए, देश का एक तिहाई जलमग्न हो गया तथा 10 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक का नुकसान हुआ है। संकट को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने भी पाकिस्तान के बाढ़ पीड़ितों के लिए आपातकालीन सहायता में 160 मिलियन अमरीकी डालर की सहायता करने का फैसला किया है। अंतर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार, पाकिस्तान को जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में आठवां सबसे कमजोर देश माना जाता है। बार-बार किए गए अध्ययनों ने चेतावनी दी है कि बारिश, गर्मी और पिघलने वाले ग्लेशियर सभी जलवायु परिवर्तन की प्रमुख कारक हैं। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने से पाकिस्तान में बाढ़ के साथ-साथ चीन में सूखे में भी बढ़ोतरी हुई है।
हिमालय में हिमनदों के पिघलने के इन घातक प्रभावों से भारत भी अछूता नहीं है। एशिया के लिए, हिमालय के ग्लेशियरों का पिघलना बुरी खबर है, क्योंकि इसका भारत, पाकिस्तान, भूटान, बांग्लादेश, चीन, म्यांमार और अन्य जैसे सभी दक्षिण पूर्व एशियाई देशों पर विनाशकारी जलप्रलय, बढ़े हुए भूस्खलन, तटीय जलप्लावन के रूप में गंभीर प्रभाव पड़ेगा। राजनीतिक तनाव और सांस्कृतिक प्रतिद्वंद्विता के बावजूद, भारत और पाकिस्तान का इतिहास रहा है कि जब आपदा एक पर हमला करती है तो दूसरा मदद के लिए हाथ बढ़ाता है।
2010 में जब बाढ़ ने पाकिस्तान को तबाह कर दिया था, तब भारत ने राहत में $ 10 मिलियन डॉलर दिए। 2001 के गुजरात भूकंप के दौरान पाकिस्तान ने भी राहत भेजी थी। दोनों देशों ने 2005 में आए भूकंप और 2014 में कश्मीर में आई बाढ़ के दौरान भी सहयोग किया था। आपदाएं सीमाओं से बंधी नहीं होती हैं और भारत हाल के वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु आपात स्थितियों का एक उचित हिस्सा देख रहा है। बेंगलुरु में अभूतपूर्व शहरी बाढ़ ने कई लोगों को विस्थापित कर दिया है इससे देश का आईटी हब (IT Hub) भी जलमग्न हो गया है। बेंगलुरु के कई हिस्से वर्तमान में एक झील के समान हो गए हैं। कुछ लोग बाढ़ के लिए बेंगलुरु के "खराब" बुनियादी ढांचे की ओर इशारा कर रहे हैं। वहीँ कई विशेषज्ञों के अनुसार भारत का हर राज्य मानसून के दौरान बाढ़ की चपेट में रहता है।
असम में भी जून-जुलाई के महीने में आई बाढ़ में करीब 200 लोगों की मौत हो गई थी। इस साल जून में मणिपुर में भूस्खलन में 58 लोगों की मौत हो गई, जबकि हिमाचल प्रदेश में इस साल अगस्त तक बाढ़ और भूस्खलन में 22 लोगों की मौत हो गई। गर्मियों में, दिल्ली में तापमान 44 डिग्री तक पहुंच गया था, भारत में 122 वर्षों में सबसे गर्म मार्च दर्ज किया गया। शहरी क्षेत्रों में बाढ़, शहरी क्षेत्रों के अतिक्रमण और तटबंधों और बाढ़ की दीवारों जैसे बुनियादी ढांचे की कमी दोनों के कारण तेज हो गई है।
उपमहाद्वीप में जलवायु आपदा भारत और पाकिस्तान दोनों को प्रभावित करेगी। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सभी को दिखाई दे रहा है और पाकिस्तान में आई विनाशकारी बाढ़ भारत के लिए एक चेतावनी होनी चाहिए। जलवायु परिवर्तन हमारे समक्ष सबसे महत्वपूर्ण समस्याओं में से एक है। इसका समाधान तभी हो सकता है जब सभी देश एक साथ वैश्विक प्रतिक्रिया दें। मिस्र में सीओपी-27 (COP-27) और फिर इंडोनेशिया में इस नवंबर के जी-20 शिखर सम्मेलन में जल्द ही इस मुद्दे पर चर्चा होगी। जलवायु परिवर्तन के प्रबंधन के लिए भारत की रणनीति: जलवायु परिवर्तन के प्रबंधन के लिए हमारी रणनीति में प्रमुख लक्ष्यों की घोषणा पिछले साल ग्लासगो (Glasgow) में CoP-26 में की गई थी। उनमें शामिल हैं:
(1) 2070 तक शुद्ध शून्य तक पहुंचने की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता।
(2) 2030 तक हमारे 2005 के स्तर पर सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करने का एक अल्पकालिक उद्देश्य।
(3) 2030 तक भारत की गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन क्षमता (मुख्य रूप से सौर और पवन) को कुल का 50% तक बढ़ाना।
2030 तक अक्षय बिजली क्षमता को 450 गीगावॉट तक ले जाने का लक्ष्य हमारी रणनीति का एक महत्वपूर्ण आपूर्ति-पक्ष तत्व है और इसे पूरा करने के लिए कई कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। इलेक्ट्रिक वाहनों और रेलवे के विद्युतीकरण के माध्यम से परिवहन में जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने तथा इस्पात निर्माण, उर्वरक और पेट्रोकेमिकल्स (petrochemicals) के लिए हरित हाइड्रोजन-आधारित प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिए मांग पक्ष-कदमों के साथ होना चाहिए। हमें बेहतर सामग्री और डिजाइन, और कुशल शीतलन और प्रकाश व्यवस्था के माध्यम से भवनों की ऊर्जा दक्षता में वृद्धि करनी चाहिए और सार्वजनिक परिवहन के उपयोग का विस्तार करना चाहिए।

संदर्भ
https://bit.ly/3Df4QUk
https://bit.ly/3RG1Kx1
https://bit.ly/3QOXeeB
https://bit.ly/3RVVYao

चित्र संदर्भ
1. बड़ी बस को धकेलते लोगों को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
2. पाकिस्तान में बाढ़ के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. बाढ़ में बेबस लोगों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. बैंगलोर में बारिश और बाढ़ को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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