मलमल के कपड़ों पर फूल पत्तियों व लताओं की सजावट, लखनऊ की चिकनकारी कढ़ाई का प्राचीन उल्लेख

स्पर्शः रचना व कपड़े
17-09-2022 10:16 AM
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मलमल के कपड़ों पर फूल पत्तियों व लताओं की सजावट, लखनऊ की चिकनकारी कढ़ाई का प्राचीन उल्लेख

लखनऊ भारत के प्रमुख कढ़ाई उद्योग क्षेत्रों में से एक है। यहाँ की प्रसिद्ध चिकनकारी कढ़ाई पारंपरिक कपड़ा सजावट शैलियों में से एक है। स्थानीय चिकन कढ़ाई का बाजार मुख्य रूप से लखनऊ, चौक पर स्थित है। चिकन मलमल, रेशम, शिफॉन, ऑर्गेना, नेट आदि विभिन्न प्रकार के वस्त्रों पर एक नाजुक और कलात्मक रूप से की जाने वाली हाथ की कढ़ाई है। सफेद धागे से शांत, पेस्टल रंगों वाले हल्के मलमल और सूती कपड़ों पर कढ़ाई की जाती है। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में एक प्रसिद्ध ग्रीक यात्री मेगास्थनीज (Megasthenes) ने चिकनकारी कढ़ाई के बारे में उल्लेख किया था जो भारत में मलमल के कपड़ों पर की जाने वाली फूलों की कढ़ाई से मिलता जुलता है। लैला तैयबजी के अनुसार, शिराज की सफेद-पर-सफेद कढ़ाई से उत्पन्न हुई चिकनकारी कढ़ाई मुगल दरबार में फारसी रईसों की संस्कृति के हिस्से के रूप में भारत आई थी। एक मान्यता यह भी है कि चिकनकारी कढ़ाई को भारत के मुगल सम्राट जहाँगीर की पत्नी नूरजहां ने पेश किया था। चिकनकारी कढ़ाई ने हाल के दिनों में मुकैश, कामदानी, बदला, सेक्विन, मोती और कांच-कार्य जैसे अतिरिक्त अलंकरणों को अपनाया है। जिसने इस कढ़ाई को और भी समृद्धि रूप प्रदान किया है। हालाँकि शुरुआत में, चिकनकारी कढ़ाई रंगहीन या सफ़ेद मलमल के कपड़े पर सफेद धागे से की जाती थी। परंतु आज यह सभी प्रकार के हल्के कपड़ों जैसे सूती, जॉर्जेट, शिफॉन और रेशम इत्यादि पर की जाती है। पहने जाने वाले वस्त्रों के अलावा चिकन कढ़ाई चादर, तकिए के खोल और मेजपोश आदि पर भी की जाती है। चिकनकारी कढ़ाई के विकास के संदर्भ में बहुत से संस्करण जुड़े हुए हैं। कुछ लोगों के अनुसार चिकनकारी शब्द फारसी शब्द चाकिन या चाकेन से लिया गया है जिसका अर्थ होता है कपड़े पर नाजुक कलाकृतियाँ बनाना। यह कढ़ाई विभिन्न चरणों में की जाती है। जैसे इसमें काटना, सिलाई, छपाई, कढ़ाई, धुलाई और परिष्करण शामिल है। शुरुआत में कढ़ाई का कार्य केवल महिलाओं द्वारा किया जाता था। फिर धीरे-धीरे यह कला सभी के लिए आम हो गई। लखनऊ को दिसंबर, 2008 में चिकनकारी कढ़ाई के लिए विशिष्ट केंद्र होने का गौरव प्राप्त हुआ। लखनऊ की पारंपरिक चिकनकारी कढ़ाई में फूल पत्तियों और लताओं की आकृतियाँ या तो पूरे परिधान पर या कोनों पर की जाती है।
चिकनकारी कढ़ाई के तीन मुख्य प्रकार हैं समतल टांके, उभरे हुए टांके और जालीदार टांके। भारत से चिकनकारी कढ़ाई किए हुए वस्त्रों का निर्यात विश्व के कई देशों में किया जाता है। वर्ष 1975 से एमएलके एक्सपोर्टर्स (MLK Exporters) अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में कई कपड़ा ब्रांडों के प्रमुख निर्यातकों में से एक है। वह फैशन फ्यूज (संयुक्त राज्य अमेरिका) (United States of America), कर्मा हाईवे (इंग्लैंड) (United Kingdom), जैकपॉट (कोपनहेगन) (Copenhagen), एच एच जी (स्पेन) (Spain), अमीना (जापान) (Japan), जीएटी (इज़रायल) (Israel), बेटीना गेर्स (अर्जेंटीना) (Argentina), घोरा तबेला (उरूग्वे) (Uruguay) और कॉलिंन (फ्रांस) (France) को आपूर्ति करते हैं। भारत के कई प्रतिष्ठित व कपड़ा ब्रांडों में भारतीय चिकनकारी कला का उपयोग किया जाता है। पिछले 20 वर्षों में भारत के चिकनकारी उद्योग के दो प्रमुख फैशन डिजाइनर (Fashion Designer) संदीप खोसला और अबू जानी हैं। जिनका उद्देश्य भारत और विश्वभर में चिकनकारी कला का उत्थान करना है। वर्तमान समय में कई खुदरा विक्रेता भी चिकनकारी कार्य को अपने व्यवसाय के एक मुख्य हिस्से के रूप में देख रहे हैं।
वर्तमान समय में कढ़ाई मशीनों ने पारंपरिक हस्तनिर्मित चिकनकारी कढ़ाई का स्थान ले लिया है। हालाँकि मशीन से की गई चिकनकारी कढ़ाई कम समय में अधिक उत्पादन करने में सक्षम है। फिर भी हाथ से की गई चिकनकारी कढ़ाई का मूल्य बाजार में अपेक्षाकृत अधिक होता है। इसका कारण यह है कि इसमें अधिक समय लगता है और परिश्रम भी अधिक लगता है। हस्तनिर्मित चिकनकारी कढ़ाई में निर्माता की अभिव्यक्ति और भावनाएँ झलकती हैं। हाथ की कढ़ाई में सभी प्रकार के धागों, कपड़ों और सिलाई को सम्मिलित किया जा सकता है। इसके विपरीत मशीनों से केवल विशिष्ट प्रकार के धागे और कपड़े से विशेष प्रकार की ही सिलाई की जा सकती है। हाथ की कढ़ाई का कार्य एक दिन में पूर्ण नहीं किया जा सकता। हर डिजाइन अपने आप में अद्वितीय होता है। इसलिए इस कार्य में कई दिन, हफ्ते और महीने लगते हैं। दूसरी ओर मशीनों से की गई कढ़ाई समान और सुसंगत होती है। क्योंकि मशीनी कढ़ाई कंप्यूटर से बनती है जहाँ मशीन में डिजाइन और आकृतियाँ अपलोड (Upload) कर दी जाती हैं। इसके बाद मशीनों द्वारा अपलोड किए हुए डिजाइन को कपड़े पर काढ़ा जाता है। एक मशीन हर बार उसी पैटर्न और डिजाइन को निर्मित करती है। मशीन कढ़ाई में इस्तेमाल होने वाला धागा आमतौर पर पॉलिएस्टर, रेयान या धातु से बना होता है जिसे अलग नहीं किया जा सकता जो हाथ की कढ़ाई में सुई-धागा इस्तेमाल करने वाला कारीगर प्रत्येक सिलाई में कर सकता है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3TXOo0K
https://bit.ly/3B55IZ8
https://bit.ly/3Bvi6TD

चित्र संदर्भ
1. चिकनकारी कढ़ाई को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. ऑफ व्हाइट लखनवी चिकनकारी को दर्शाता एक चित्रण (peachmode)
3. चिकनकारी को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. पीछे से चिकन कढ़ाई को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. धोबी घाट, जहां लखनऊ की विश्व प्रसिद्ध चिकनकारी कला पहली बार सार्वजनिक रूप से दिखाई दे रही है, को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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