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लखनऊ का राज्य संग्रहालय, उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख संग्रहालय है।संग्रहालय वर्तमान में
नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान में स्थित है, जिसकी स्थापना 1863 में
कर्नलएबॉट(Colonel Abbot) के संग्रह से की गई थी और‘राज्य संग्रहालय' से पहले इसका
नाम 'प्रांतीय संग्रहालय' रखा गया था।संग्रहालय1863 में उन कलाकृतियों के संग्रह के साथ
शुरू हुआ,जो लखनऊ के तत्कालीन आयुक्त कर्नल एबॉट द्वारा कैसर बाग में छोटी छतर
मंजिल की इमारत में रखे गए थे।यह संग्रहालय1883 तक अपने शुरुआती दिनों में एक
नगरपालिका संस्थान के रूप में कार्य करता था, उसके बाद इसे 'प्रांतीय संग्रहालय' का दर्जा
दिया गया।संग्रहालय को जून, 1884 में अवध के नवाब ने, लाल बारादरी के पूर्वराज्याभिषेक
हॉल में एक बड़े स्थान पर स्थानांतरित किया गया।
संग्रहालय ने कई महत्वपूर्ण खुदाईयां कीं। जिनमें 1891-92 में अहिच्छत्र में, 1912-12 में
कसिया में और बाद में इंदौर खेरा, संकिसा, उंचागाँव और अष्टभुजा की खुदाई शामिल है। इन
उत्खननों और उसके बाद किए गए संग्रह ने संग्रहालय के महत्वपूर्ण पुरातत्व खंड में एक
महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संग्रहालय में पुरातत्व संग्रह को सबसे अधिक महत्वपूर्ण माना
जाता है। वहां मौजूद उत्कृष्ट कार्यों में मथुरा से भगवान विष्णु की मूर्ति है, जो 5वीं शताब्दी
की मानी जाती है, तथा इसका सम्बंध गुप्त काल से है। तो चलिए आज भगवान विष्णु की
मूर्ति की आइकनोग्राफी (iconography) की सचित्र जानकारी प्राप्त करते हैं।
सबसे पहले तो यह जान लें कि भगवान विष्णु पवित्र त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में से
एक हैं। हालांकि सभी देवता समान हैं, किंतु भगवान विष्णु को अपने कार्य की प्रकृति के
कारण तीनों में सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। वे आज भी सनातन धर्म में सबसे अधिक
पूजनीय और श्रेष्ठ देवता हैं और उन्हें स्वयं भगवान माना जाता है।विष्णु नाम "विश" शब्द
से लिया गया है जिसका अर्थ है सभी दिशाओं में फैलना,और इसलिए वे निरंतर विस्तार कर
रहे ब्रह्मांड को खुद में समाहित करते हैं।अग्नि पुराण के पहले अध्याय के अनुसार भगवान
विष्णु पुरूषों में सबसे अग्रणी है, तथा उन्हें सत्य से भी बहुत ऊपर माना गया है।
इसमें यह
भी उल्लेख किया गया है कि भगवान विष्णु सभी आध्यात्मिक शक्तियों से संपन्न हैं। वह
खगोलीय क्षेत्र के निर्माता हैं और ब्रह्म या सर्वोच्च हैं। भगवान विष्णु को नारायण कहा जाता
है जिसका अर्थ है पानी में रहने वाला। नारा का अर्थ है जल और अयन का अर्थ है,निवास
स्थान। माना जाता है कि जीवन पानी से निकला है और इसे बनाए रखने के लिए पानी की
परम आवश्यकता है।
विभिन्न पुराणों के अनुसार विष्णु परम सर्वव्यापी वास्तविकता है,आकारहीन और सर्वव्यापी
हैं।उनकी चित्रों, चिह्नों या मूर्तियों में दिखाई जाने वाली छवियां लगभग एक समान ही हैं,
उनकी प्रायः दो आकृतियां दिखाई देती हैं,एक खड़ी आकृति और एक सोई हुई आकृति।उन्हें
चार भुजाओं वाले पुरुष देवता के रूप में चित्रित किया जाता है। उनकी चार भुजाएं मानव
भाग्य के चार पहलुओं और चार वेदों का प्रतिनिधित्व करती हैं।चार भुजाएं उनके
सर्वशक्तिमान और सर्वव्यापी स्वभाव का भी संकेत देती हैं।
विष्णु के भौतिक अस्तित्व का
प्रतिनिधित्व सामने की दो भुजाओं द्वारा किया जाता है,जो सांसारिक दुनिया का प्रतिनिधित्व
करते हैं जबकि पीछे की दो भुजाएँ आध्यात्मिक दुनिया में उनकी उपस्थिति का प्रतिनिधित्व
करती हैं।भगवान विष्णु का मुकुट सर्वोच्च सत्ता का प्रतिनिधित्व करता है।वे कानों में दो
कुंडल पहनते हैं, जो ज्ञान और अज्ञान, सुख और दुख, प्रसन्नता और दर्द के प्रतिनिधि
हैं।भगवान विष्णु की छाती पर बालों का लॉक है,जिसे श्रीवत्स कहा जाता है।माना जाता
है, कि यह चिन्ह इस बात का प्रतीक है, कि वे देवी लक्ष्मी के पति हैं।यह प्रकृति के
उत्पादों और भोग की सभी वस्तुओं का प्रतिनिधित्व करता है।
भगवान विष्णु शुभ कौस्तुभ
मणि धारण करते हैं, जिसे सागर का खजाना कहा जाता है। माना जाता है, यह मणि
समुद्र मंथन के समय निकली थी। भगवान विष्णु गले में एक माला धारण करते हैं, जो
पांच इंद्रियों तथा प्रभु की मायावी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है।समुद्र मंथन के दौरान
समुद्र से निकलने पर भगवान वरुण ने लक्ष्मी को यह माला भेंट की थी।भगवान विष्णु
बाजूबंद पहनते हैं,जो सांसारिक जीवन के तीन उद्देश्यों, सुख, सफलता, धार्मिकता का
प्रतिनिधित्व करते हैं।भगवान विष्णु के शरीर को नीले रंग से प्रदर्शित किया गया है, जो
व्यापक प्रकृति का प्रतिनिधित्व करता है। यह नीला रंग अनंत अंतरिक्ष, अनंत महासागर को
प्रतिबिम्बित करता है, जो उनका निवास स्थान भी है। भगवान विष्णु एक शंख भी धारण
करते हैं, जिसे पंचजन्य कहा जाता है।पंचजन्य ब्रह्मांड का निर्माण करने और ब्रह्मांड को
संचालित करने की भगवान विष्णु की शक्ति को दर्शाता है। यह पांच तत्वों का भी
प्रतिनिधित्व करता है।भगवान विष्णु के हाथ में गदा भी दिखाई जाती है, जिसे कौमोदकी
नाम दिया गया है।यह भगवान विष्णु की उस दिव्य शक्ति को दिखाता है, जो सभी
आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक शक्ति का स्रोत है। यह संसार के समस्त दोषों को दूर
करने वाले देवता हैं। भगवान विष्णु सुदर्शन नामक चक्र भी धारण करते हैं, जो शुद्ध
आध्यात्मिक मन का प्रतीक है।चक्र व्यक्ति के अहंकार के विनाश का प्रतिनिधित्व करता
है।यह सार्वभौमिक मस्तिष्क या जागरूकता का प्रतीक भी है।
भगवान विष्णु को प्रायः पीले
रंग की धोती में दिखाया गया है, जो वेदों का प्रतिनिधित्व करता है।पीला रंग धूप को भी
दर्शाता है, जो आनंद, खुशी, बुद्धि और ऊर्जा से जुड़ा है। भगवान विष्णु कमल पर
विराजमान होते हैं, तथा कमल सत्य का प्रतिनिधित्व करता है।भारतीय संस्कृति के अनुसार
कमल का फूल समृद्धि,ज्ञान और शिक्षा, फलदायी और रोशनी का प्रतीक है। कभी-कभी
भगवान विष्णु को उनके वाहन गरुड़ पर भी दिखाया जाता है,गरुड़ सभी नागों का शत्रु है
तथा शक्ति और धर्मपरायणता का प्रतीक है। साथ ही वह उस आत्मा का भी प्रतिनिधित्व
करता है, जो परमात्मा को अपने साथ ले जाता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3AsEso5
https://bit.ly/3ChDj4l
https://bit.ly/3waH7jQ
https://bit.ly/3JYhIjb
चित्र संदर्भ
1. मथुरा की 5वीं शताब्दी की भगवान विष्णु की मूर्ति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. भगवान विष्णु की सोई हुई छवि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भगवान विष्णु की खड़ी छवि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. गरुड़ पर सवार भगवान विष्णु की छवि को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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