भगवान जगन्नाथ और विश्व प्रसिद्ध पुरी मंदिर की मूर्तियों की स्मरणीय कथा

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
01-07-2022 10:25 AM
Post Viewership from Post Date to 31- Jul-2022 (30th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
4120 37 4157
भगवान जगन्नाथ और विश्व प्रसिद्ध पुरी मंदिर की मूर्तियों की स्मरणीय कथा

लखनऊ के डालीगंज में स्थित माधव मंदिर में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले जगन्नाथ रथ उत्सव के दौरान यह शहर का सबसे आकर्षक स्थल बन जाता है! आपको जानकर बहुत प्रसन्नता होगी की, इस वर्ष लखनऊ की माधव मंदिर रथ यात्रा समिति पांच दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन करेगी तथा जगन्नाथ रथ यात्रा में प्रयोग होने वाले रथों को 300 किलो सुन्दर फूलों से सजाया जाएगा। चलिए जानते हैं की इस वर्ष के जगन्नाथ रथ उत्सव में और क्या-क्या देखने को मिल सकता है, तथा इस यात्रा के मूल माने जाने वाले भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की उत्पत्ति और उनकी प्रतिमाओं का इतिहास क्या कहता है? जगन्नाथ, हिन्दू भगवान विष्णु के पूर्ण कला अवतार श्रीकृष्ण का ही एक रूप माने जाते हैं। ओडिशा राज्य के पुरी शहर में इनका एक बहुत बड़ा मन्दिर स्थित है। इस शहर का नाम, जगन्नाथ पुरी से निकल कर ही पुरी बना है। यहाँ भी वार्षिक रूप से रथ यात्रा उत्सव आयोजित किया जाता है। सबसे बड़ा जुलूस पूर्वी राज्य उड़ीसा के पुरी में आयोजित होता है, जबकि दूसरा बड़ा आयोजन पश्चिमी राज्य गुजरात में होता है। पुरी को हिन्दू धर्म के चार धामों में से एक माना जाता है। जगन्नाथ एक संस्कृत शब्द है, जहाँ जगत का अर्थ है "ब्रह्मांड" और नाथ का अर्थ है "गुरु" या "भगवान"। इस प्रकार, जगन्नाथ का अर्थ "ब्रह्मांड के स्वामी" होता है। वास्तव में, जगन्नाथ नाम किसी भी देवता पर लागू कियाजा सकता है, जिसे सर्वोच्च माना जाता है। उड़िया भाषा में , जगन्नाथ अन्य नामों से जुड़ा हुआ है, जैसे कि जग (ଜଗା) या जगबंधु (ଜଗବନ୍ଧୁ) ("ब्रह्मांड का मित्र")। दोनों नाम जगन्नाथ से ही प्राप्त हुए हैं। जगन्नाथ से जुड़ी दो रोचक कहानियाँ बेहद प्रचलित हैं। पहली कहानी के अनुसार श्री कृष्ण अपने परम भक्त राज इन्द्रद्युम्न के सपने में आए और उन्हे आदेश दिया कि पुरी के दरिया किनारे पर पडे एक पेड़ के तने में से वे श्री कृष्ण का विग्रह (धार्मिक केंद्र या प्रतिमा) बनाएँ। इसके बाद राजा ने इस कार्य के लिए बढ़ई की तलाश शुरु की। कुछ दिनो बाद एक रहस्यमय बूढ़ा ब्राह्मण आया और उसने कहा कि प्रभु का विग्रह बनाने की जिम्मेदारी वो लेना चाहता है। लेकिन उसकी एक शर्त थी, कि वो विग्रह बन्द कमरे में बनायेगा और उसका काम खत्म होने तक कोई भी कमरे का द्वार नहीं खोलेगा, नहीं तो वो काम अधूरा छोड़ कर चला जायेगा। 6-7 दिन बाद जब अंदर से काम करने की आवाज आनी बंद हो गई तो राजा से रहा न गया और ये सोचते हुए कि ब्राह्मण को कुछ हो गया होगा, उसने द्वार खोल दिया। पर अन्दर तो उसे सिर्फ़ भगवान का अधूरा विग्रह ही मिला और वह बूढ़ा ब्राह्मण लुप्त हो चुका था। तब राजा को आभास हुआ कि ब्राह्मण और कोई नहीं बल्कि देवों का वास्तुकार विश्वकर्मा थे। इस विग्रह (Deity) के हाथ और पैर नहीं थे, और राजा को यह देखकर बेहद बुरा लगा! अपने द्वार खोलने पर वे पछतावा करने लगे। पर तभी वहाँ पर ब्राह्मण के रूप में नारद मुनि पधारे और उन्होंने राजा से कहा कि भगवान इसी स्वरूप में अवतरित होना चाहते थे और दरवाजा खोलने का विचार स्वयं श्री कृष्ण ने राजा के दिमाग में डाला था। इसलिए वह निश्चिन्त हो जाए। दूसरी कहानी महाभारत से जुड़ी है जिसके अनुसार माता यशोदा, सुभद्रा और देवकी जी, वृन्दावन से द्वारका आये हुए थे। वहां की रानियों ने उनसे निवेदन किया कि वे उन्हे श्री कृष्ण की बाल लीलाओं के बारे में बताएँ। सुभद्रा जी द्वार पर पहरा दे रही थी, कि अगर कृष्ण और बलराम आ जाएंगे तो वो सबको आगाह कर देगी। लेकिन वो भी कृष्ण की बाल लीलाओं को सुनने में इतनी मग्न हो गई, कि उन्हे कृष्ण बलराम के आने का विचार ही नहीं रहा। दोनों भाइयों ने जो सुना, उस से उन्हे इतना आनन्द मिला की उनके बाल सीधे खडे हो गए, उनकी आँखें बड़ी हो गई, उनके होठों पर बहुत बड़ा स्मित छा गया और उनके शरीर भक्ति के प्रेमभाव वाले वातावरण में पिघलने लगे। सुभद्रा बहुत ज्यादा भाव विभोर हो गई थी इसलिए उनका शरीर सबसे ज़्यादा पिघल गया (और इसलिए उनका कद जगन्नाथ के मंदिर में सबसे छोटा है)। तभी वहाँ नारद मुनि पधारे और उनके आने से सब लोग वापस आवेश में आ गए। श्री कृष्ण का ये रूप देख कर नारद बोले कि "हे प्रभु, आप कितने सुन्दर लग रहे हो। आप इस रूप में अवतार कब लेंगे?" तब कृष्ण ने कहा कि कलियुग में वो ऐसा अवतार लेंगे और उन्होंने ने कलियुग में राजा इन्द्रद्युम्न को निमित बनाकर जगन्नाथ अवतार लिया। आपने यह अवश्य सुना होगा की जगन्नाथ रथ यात्रा में प्रयुक्त रथ, हर वर्ष बदले जाते हैं लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी की कुछ विशेष वर्षों में इस यात्रा में प्रयुक्त तीन भव्य प्रतिमाओं को भी बदला जाता है! इन मूर्तियों को अंतिम प्रतिस्थापन समारोह के 8वें, 12वें या 19वें वर्ष के बाद ही बदला जा सकता है। चूंकि यह प्रतिमाएं लकड़ी से निर्मित होती हैं और लकड़ी से बनी कोई भी चीज या इस धरती पर निर्मित प्रत्येक चीज का क्षय होने की संभावना हमेशा रहती है। अतः इन प्रतिमाओं को भी बदला जाता है और इन्हे बदलने के लिए, केवल उस वर्ष को चुना जाता है जिसमें हिंदू चंद्र कैलेंडर में अधिकमास या एक अतिरिक्त महीना होता है। मूर्तियों की छवियों को तराशने के लिए दारू ब्रह्मा के पेड़ को चुना जाता है। इस अनुष्ठान में पालन की जाने वाली पूरी प्रक्रिया को निर्धारित करने के लिए प्रधान पुजारी प्राचीन आगम अभिलेखों का मंत्रोच्चारण करते हैं। यह चैत्र (मार्च-अप्रैल) के महीने में शुरू होता है, और रथ यात्रा से कुछ सप्ताह पहले समाप्त होता है। नई लकड़ी की मूर्तियों हेतु सही पेड़ की तलाश करने के लिए, दैयतास सहित मंदिर के कार्यकर्ता, पीठासीन देवी की मदद के लिए काकतपुर गांव में मंगला मंदिर के लिए निकल पड़ते हैं। मान्यता है की इससे पूर्व देवी मुख्य पुजारी की दृष्टि या सपने में प्रकट होती है, और उन्हें उस स्थान पर ले जाती है जहां सही पेड़ स्थित है। सुदर्शन की मूर्तियों के लिए नीम के पेड़ की तीन शाखाएँ होनी चाहिए और पेड़ की त्वचा लाल रंग की होनी चाहिए। बलभद्र के पेड़ की सात शाखाएं होनी चाहिए और इसकी छाल हल्के भूरे या सफेद रंग की होनी चाहिए, तथा यह पेड़ किसी विरासत स्थल या कब्रिस्तान में होना चाहिए। सुभद्रा की मूर्ति के लिए बने पेड़ में पीले रंग की छाल वाली पांच शाखाएं होनी चाहिए। और अंत में, जगन्नाथ के पेड़ की चार मुख्य शाखाएँ होनी चाहिए, लेकिन गहरे रंग की तथा यह पेड़ एक श्मशान भूमि में होना चाहिए, उसके आधार पर एक सांप का छेद होना चाहिए। अन्य दिलचस्प विशेषताओं में, पेड़ भगवान शिव के मंदिर के पास होना चाहिए। एक बार पेड़ मिल जाने के बाद, एक विशेष होम (अग्नि अर्पण) किया जाता है और पेड़ को काट दिया जाता है। कोइली बैकुंठ में, विश्वकर्मा के नाम से जाने वाले कारीगर लकड़ी के चित्र बनाते हैं। इन दिनों में, भगवान नरसिंह को प्रसन्न करने के लिए एक यज्ञ किया जाता है। जिस कक्ष में मूर्तियां तराशी जाती हैं, उस कक्ष के अंदर कारीगरों और बढ़ई को छोड़कर किसी भी पुजारी या किसी अन्य व्यक्ति को अनुमति नहीं होती है। न ही किसी कर्मकार को कक्ष के अंदर खाने, पीने या धूम्रपान करने की अनुमति होती है। निर्माण कार्य पूरा हों जाने के बाद जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन चक्र की नवनिर्मित मूर्तियों को श्री मंदिर के गर्भगृह में लाया जाता है। हमारे लखनऊ का माधव मंदिर भी इस वर्ष वार्षिक जगन्नाथ रथ यात्रा में भगवान और भक्तों के स्वागत के लिए तैयार है। इस वर्ष माधव मंदिर रथ यात्रा समिति पांच दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन करेगी। समिति के सदस्य अनुराग साहू के अनुसार “मंगलवार से उत्सव की शुरुआत हनुमान चालीसा के जाप के साथ होगी, इसके बाद बुधवार को नृत्य-नाटक और गुरुवार को हवन और अगले दिन रथ यात्रा का आयोजन होगा। उत्सव का समापन एक शिखर सम्मेलन के साथ होगा जहां शहर भर के संत भाग लेंगे और एक भंडारा भी आयोजित किया जाएगा। भगवान के रथों को करीब 300 किलो फूलों से सजाया जाएगा। देश के विभिन्न हिस्सों के लोक कलाकार विभिन्न पंडालों में अपनी प्रस्तुति देंगे। गुडिया मठ में रथ यात्रा पुरी की तर्ज पर ही चलेगी। मुख्य रथ में तुलसी का पौधा होगा। 20 फीट लंबे चांदी के रथ में जगन्नाथ, सुभद्रा और बलराम की सदियों पुरानी चंदन की मूर्तियों को भक्तों के बीच ले जाया जाएगा।

संदर्भ
https://bit.ly/3AdgOwl
https://bit.ly/3NBKRka
https://bit.ly/2FUvNvg
https://bit.ly/3RcNvjF

चित्र संदर्भ
1. पुरी में रथ पर सवार भगवान जगन्नाथ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. रथ यात्रा पुरी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. एक राज दरबार को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
4. कथा वाचन करते कृष्ण को दर्शाता एक चित्रण (Picryl)
5. बलभद्र, सुभद्रा और जगन्नाथ को दर्शाता एक चित्रण (SnappyGoat)
6. पुरी रथ निर्माण करते श्रमिक को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.