कुछ आसान उपायों को अपनाकर भारत बन सकता है कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर

भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)
07-06-2022 09:39 AM
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कुछ आसान उपायों को अपनाकर भारत बन सकता है कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर

आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि, रूस और यूक्रेन के बीच पिछले 3 महीनों से चल रहे विवाद के कारण, दुनिया के कई पश्चिमी देशों में अनाज की आपूर्ति बाधित हो गई है! इन देशों में जर्मनी भी शामिल है, जो की अनाज आपूर्ति की बहाली करने के लिए रूस से युद्ध करने की भी धमकी दे चुका है! लेकिन इसके विपरीत हमारे देश में, इसके बाद भी अनाज की कोई दिक्कत नहीं है! वरन, ऐसे हालातों में भी भारत दूसरे देशों को अनाज निर्यात करने की क्षमता रखता है, और अनाज के प्रति इसी आत्मनिर्भरता के कारण, भारत युद्ध की समस्या को भविष्य की आर्थिक संभावना में बदल सकता है।
भारत का कृषि क्षेत्र, देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 17-18% का योगदान देता है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में, भारत का कृषि क्षेत्र प्रभावशाली विकास की और अग्रसर है। कोरोना महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था के लिए, कृषि क्षेत्र एक वास्तविक उद्धारकर्ता साबित हो सकता है। COVID-19 महामारी भारत के कृषि क्षेत्र के लिए एक अतिरिक्त चुनौती बन गई थी। फिर भी, उचित योजना और क्रियान्वयन के साथ, भारत इन चुनौतियों को सुनहरे अवसरों में बदल सकता है।
लेकिन कई मुद्दों के कारण इसे, कई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है जैसे: 1. छोटी/खंडित भूमि जोत: सघन खेती वाले राज्यों जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश के पूर्वी भाग के ग्रामीण क्षेत्रों में, किसानों के सामने आने वाली लगभग सभी समस्याओं का मूल कारण, सिकुड़ते खेत का आकार है। अपर्याप्त आकार के कारण, किसानों के लिए वृक्षारोपण करना, कुओं, नलकूपों, या उन्नत तकनीकों में निवेश करना मुश्किल हो रहा है।
समाधान: किसानों को जोत बढ़ाने में मदद करने के लिए, भूमि को पट्टे पर देकर, समस्या का समाधान किया जा सकता है। हालाँकि यह प्रक्रिया महंगी हो सकती है, इसलिए भूमि अभिलेखों में सुधार के उपाय किए जाने चाहिए। साथ ही सरकार को सहकारी खेती जैसी, किसान केंद्रित कृषि नीतियां भी बनानी चाहिए। 2. अपर्याप्त कृषि पूंजी: भारत के कृषि क्षेत्र को, नवीन तकनीकों का लाभ उठाने के लिए पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता है, जो स्थायी खेती का मार्ग प्रशस्त कर सकती है। कई किसान औपचारिक वित्तीय स्रोतों से पूंजी उधार लेने में असमर्थ हैं, इसके अलावा, अनौपचारिक ऋण स्रोत जैसे साहूकार, व्यापारी, जमींदार और कमीशन एजेंट आदि अत्यधिक ब्याज दर वसूलने और कृषि उपज को कम कीमत पर खरीदने के लिए जाने जाते हैं।
समाधान: महामारी के दौरान, कृषि विकास में तेजी लाने और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए, भारत सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड (Credit Card) के माध्यम से 170 करोड़ किसानों को 1.54 लाख करोड़ रुपये का रियायती ऋण दिया। साथ ही, सहकारी ऋण एजेंसियों, राज्य सहकारी बैंकों, केंद्रीय सहकारी बैंकों और वाणिज्यिक बैंकों को भी किसानों को सामान्य स्थिति में मदद के लिए आगे आना चाहिए। 3. भूमि क्षरण: मृदा अपरदन की समस्या और जलाशयों में आगामी अवसादन , भारत के कृषि विकास के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बन गई है। मिट्टी का कटाव मिट्टी की उर्वरता को कम करता है, जो बदले में फसल की पैदावार को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। यह तलछट की विशाल परतें भी बनाता है, और इस प्रकार, नदियों और नालों को सुचारू रूप से बहने से भी रोकता है। साथ ही पानी का विघटन, अम्लीकरण, बाढ़ और हवा का विघटन कुछ प्रमुख कारक हैं जो मिट्टी के कटाव में योगदान दे रहे हैं।
समाधान: चूंकि महामारी ने विश्व स्तर पर खाद्य असुरक्षा के मुद्दे को बढ़ा दिया है, इसलिए सरकार को मिट्टी और पानी को संरक्षित करने के लिए परिणाम-संचालित पहल करनी चाहिए, ताकि खाद्य उत्पादन में व्यवधान को रोका जा सके। 4. अपर्याप्त भंडारण सुविधाएं: ग्रामीण क्षेत्रों में अच्छी भंडारण सुविधाओं के अभाव में, फसल के बाद भारी नुकसान होता है, जो महामारी के साथ-साथ अन्य आपात स्थितियों के दौरान विनाशकारी साबित हो सकता है। इसके अलावा, अपर्याप्त भंडारण सुविधाओं के कारण, भारतीय किसान उपज को कम कीमत पर बेचने को मजबूर हो जाते हैं। नतीजतन, यह किसानों को उनके प्रामाणिक वेतन से भी वंचित करता है।
समाधान: एक सुनियोजित कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर (cold chain infrastructure), सकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव पैदा करने के अलावा खाद्यान्न हानि को कम करने में मदद कर सकता है। वर्तमान में, कई सरकारी निकाय जैसे सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन, फ़ूड कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया, और स्टेट वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन (Central Warehousing Corporation, Food Corporation of India, and State Warehousing Corporation), स्टोरेज सुविधा उपलब्ध करा रहे हैं। फिर भी, इन संगठनों को भंडारण में सुधार के लिए वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाना चाहिए! इन सभी का अलावा खराब सिंचाई और उच्च गुणवत्ता वाले बीजों की कमी भी किसानों के लिए एक बड़ी चुनौती हैं, जिन्हे जल्द से जल्द दूर की जाने की आवश्यकता है। एक ब्रांडेड गुणवत्ता वाले उत्पाद ,में भारत की पोस्टकोविड वैश्विक निर्यात हिस्सेदारी (post covid global export share) को 2% से अधिक बढ़ाने और ग्रामीण समृद्धि में सहायता करने की क्षमता है।
पिछले पांच वर्षों में, कृषि बाजार के आकार में लगातार वृद्धि (2018 में लगभग $ 300 बिलियन) को देखते हुए, चीन, फिलीपींस और अन्य देशों की तर्ज पर, एक विशेष कृषि व्यवसाय बैंक स्थापित करना आवश्यक है। कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (Corporate Social Responsibility (CSR), फंड्स के जरिए पात्र एफपीओ की फंडिंग को वैध बनाकर फंड की कमी को भी हल किया जा सकता है। कृषि और कृषि-व्यवसाय क्षेत्र में उद्यमिता को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। जीएसटी परिषद की तर्ज पर कृषि विकास परिषद (एडीसी) स्थापित करने का भी यह सही समय है, ताकि भूमि पट्टे, निजी निवेश, कृषि अनुसंधान एवं विकास आदि को बढ़ाने के लिए सुधारों की गति को तेज किया जा सके। जैसा कि पुरानी कहावत है, कोई भी सेना खाली पेट नहीं चल सकती। इसलिए हर हालात में हमें न केवल मिसाइल (रक्षा उपकरण) बल्कि भोजन में भी आत्मनिर्भर होने की जरूरत है।

संदर्भ
https://bit.ly/3zg6tPw
https://bit.ly/3aHChCP
https://bit.ly/3tfg8SQ

चित्र संदर्भ
1. खेत में काम करती महिला, को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
2. मक्का के खेत में महिला को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
3. पंजाब के खेतों को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
4. भूमि क्षरण को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. सागरिका बहुउद्देशीय कोल्ड स्टोरेज को दर्शाता एक चित्रण (Wikimedia)
6. खेतों में किसानों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)

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