एक समय जब रेल सफर का मतलब था मिट्टी की सुगंध से भरी कुल्हड़ की स्वादिष्ट चाय

म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण
18-05-2022 08:47 AM
एक समय जब रेल सफर का मतलब था मिट्टी की सुगंध से भरी कुल्हड़ की स्वादिष्ट चाय

इस बात में कोई दो राय नहीं है की, आधुनिक खोजें हमारी आधुनिक जीवनशैली को आसान बनाने एवं हमारे समय को काफी हद तक बचाने में सफल रही हैं! लेकिन इसका एक दुखद पहलू यह भी हैं की, भले ही प्राचीन संस्कृतियों अथवा वस्तुओं को, कुछ नवाचारों द्वारा बदल दिया गया हो, लेकिन इन आधुनिक खोजों के प्रयोग से, “वह तृप्ति अथवा संतुष्टि कभी नहीं मिल सकती, जो की हमें पारंपरिक प्रचलन से मिल जाती थी”! जिसका जीता जागता सबूत "कुल्हड़ में परोसी जाने वाली स्वादिष्ट चाय" है, जिसे आधुनिक प्लास्टिक और थर्मोकोल के ग्लासों द्वारा बदल दिया गया है, तथा बेस्वाद बना दिया गया है।
कुल्हड़ जिसे कभी-कभी शिकोरा भी कहा जाता है, दक्षिण एशिया में प्रचलित, पारंपरिक हैंडल-लेस (traditional handle-less) मिट्टी का प्याला होता है, जिसका प्रयोग विशेष तौर पर भारत में चाय पीने के लिए किया जाता है। भारतीय उपमहाद्वीप के बाजारों और खाने-पीने के स्टालों में पारंपरिक रूप से कुल्हड़ में चाय जैसे गर्म पेय परोसे जाते थे, जो पेय को "मिट्टी की सुगंध" से भर देते थे, जिसे अक्सर आकर्षक माना जाता है। दही, और गर्म दूध के साथ-साथ कुल्फी (पारंपरिक आइसक्रीम) जैसी कुछ क्षेत्रीय मिठाइयों को भी कुल्हड़ में परोसा जाता है। हालांकि कुल्हड़ का स्थान धीरे-धीरे पॉलीस्टाइरिन और लेपित पेपर कप (polystyrene and coated paper cups) ने ले लिया है, क्योंकि यह थोक में ले जाने के लिए हल्के और तुलनात्मक रूप से सस्ते होते हैं।
मिट्टी के बर्तन भारतीय पकवान परंपरा का एक अनिवार्य हिस्सा रहे हैं। देश भर में सबसे लोकप्रिय क्रॉकरी (crockery) में से एक, कुल्हड़ को आमतौर पर प्लास्टिक के कप से बेहतर विकल्प माना जाता है। इस मिट्टी के प्याले को पारंपरिक रूप से मलाई या निमिश, मसाला चाय, मिष्टी दोई (दही), मावा या कुल्फी के साथ गर्म मलाई दूध जैसे विभिन्न व्यंजनों को रखने के लिए, एक कप के रूप में इस्तेमाल किया गया है। कुल्हड़ स्वयं में रखे व्यंजन को एक मिट्टी का सार, स्वाद और सुगंध देने के लिए जाना जाता है। ये मिट्टी के प्याले ज्यादातर सर्दियों के दौरान देखे जाते हैं, जिस दौरान इसमें ज्यादातर चायवाले अपने ग्राहकों को गर्म चाय परोसते हैं। आमतौर पर मिट्टी के बर्तनों को विभिन्न कारणों से प्लास्टिक के कप या कांच के कंटेनर से बेहतर विकल्प माना जाता है। कुल्हड़ टेराकोटा कप हैं, जो उपमहाद्वीप और पाकिस्तान में लोकप्रिय रूप सेउपयोग किए जाते हैं। कुल्हड़, स्टिक के कप (stick cups) या कांच के कंटेनर से बेहतर विकल्प माने जाते हैं! साथ ही यह बायोडिग्रेडेबल (biodegradable) होते हैं, इसलिए इन्हें फेंका या तोड़ा जा सकता है, क्यों की यह प्लास्टिक की तरह रासायनिक रूप से खतरनाक नहीं होते। साथ ही यह प्लास्टिक या कांच के कंटेनर से सस्ते होते हैं। चाय के साथ मिट्टी की सुगंध को कुल्हड़ के अलावा कोई अन्य सामग्री प्रदान नहीं कर सकती है। साथ ही इनका, पुन: उपयोग (Reuse) नहीं किया जा सकता है, इसलिए आपको कीटाणुओं और जीवाणुओं के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं होती है। आजकल, पॉलीस्टाइनिन और लेपित पेपर कप ने कुल्हड़ का स्थान ले लिया है, और इसमें उपयोग की जाने वाली सामग्री आपके स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती है। इसलिए, विश्वसनीय स्थानों से ही कुल्हड़ खरीदना फायदेमंद होता है।
एक बार जब आप कुल्हड़ का उपयोग कर लें, तो सुनिश्चित करें कि आप उन्हें टुकड़ों में तोड़ दें ताकि कोई भी इसे फिर से उपयोग न कर सके। हालांकि आधुनिक समय में प्लास्टिक के कप के प्रचलन से कुल्हड़ की चाय का स्वाद खो गया है! कुल्हड़ या चुकर तेजी से लुप्त होती जा रही है, और डिस्पोजेबल प्लास्टिक (disposable plastic) कप से बदले जा रहे है। कुल्हड़ केवल (काली) मिट्टी से बना होता है। एक बार आकार स्थापित हो जाने के बाद, कुल्हड़ों को घर के कोयले के भट्टे या गाय के गोबर की आग पर दो दिनों तक भुना जाता है।
कई राज्यों में कुम्हार (Potter) अभी भी, चर-गति वाले इलेक्ट्रिक मोटर पहिये (variable-speed electric motor wheels) की पारंपरिक शैली को पसंद करते हैं। मनेर के शाहपुर के एक 65 वर्षीय कुम्हार किशुन पंडित के अनुसार, कुल्हड़ के उत्पाद और निर्माता, इसकी मांग के अभाव में चुपचाप लुप्त हो रहे हैं। "एक समय था, जब कुल्हड़ के बिना चाय अधूरी मानी जाती थी। लेकिन अब चीजें बदल गई हैं। मेरे बेटे ने कुम्हार बनने से इनकार कर दिया, इसके बदले उसने एक दर्जी बनना चुना!”
एक अन्य कुल्हड़ निर्माता के अनुसार बीस साल पहले, उनके कुल्हड़ बहुत मांग में थे। वह 100 कुल्हड़ के लिए 10 रुपये चार्ज करते थे। उन्हें लाखों में ऑर्डर मिलते थे।" लेकिन आज कुल्हड़ की जन्मस्थली बिहार में चीजें तेजी से बदल रही हैं। आज एक कुल्हड़ बनाने की लागत 60 पैसे है। अब वह100 कुल्हड़ के लिए लगभग 50 रुपये चार्ज करते हैं।" हालांकि कुल्हड़ की लुप्त होती विरासत के बीच, सरकारें कुल्हड़ वाले बीते हुए दौर को वापस लाने की कोशिश में हैं। एक सरकारी योजना के अंतर्गत, आने वाले तीन से छह महीने के समय में, आईआरसीटीसी (IRCTC) द्वारा संचालित सभी स्थिर कैंटीन और रेस्तरां रेलवे या नामित निजी कैटरर्स द्वारा ट्रेनों में परोसे जाने वाले सभी पेय टेराकोटा (जली हुई मिट्टी) कप या कुल्हड़ में परोसे जायेंगे। इसलिए यदि आप आप कुल्हड़ की चाय का स्वाद दोबारा चखना चाहते हैं तो भारतीय रेल आपका यह सपना पूरा कर सकती है।

संदर्भ
https://bit.ly/3l8nsLs
https://bit.ly/3LcpDbt
https://bit.ly/3NcSKg5
https://bit.ly/37PZ3ra

चित्र संदर्भ
1  हाथ में कुल्हड़ की स्वादिष्ट चाय को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
2. पॉलीस्टाइरिन और लेपित पेपर कप को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. कुल्हड़ में लस्सी को दर्शाता एक चित्रण (Max Pixel)
4. विभिन्न आकारों के कुल्हड़ को दर्शाता एक चित्रण (IndiaMART)
5. कुल्हड़ चाय के प्यालों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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