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ईसाई धार्मिक ग्रंथ, बाइबल में यूं तो कई वृतांत ऐसे हैं, जो आज भी न केवल प्रासंगिक हैं, बल्कि युद्ध और द्वेष की आग में झुलस
रही इस दुनिया को बिना किसी पक्षपात के आइना भी दिखा सकते हैं! लेकिन इन सभी में यीशु मसीह की शूली पर चढ़ने की घटना
न केवल बेहद मार्मिक है, साथ ही इस घटना में बिना किसी स्वार्थ के, मानवता की भलाई और रक्षा करने जैसे कई गूण संदेश भी
छिपे हुए हैं!
विद्वानों के अनुसार यीशु के सूली पर चढ़ने की सबसे संभावित तारीख 30-33 ईस्वी के बीच की बताई जाती है, हालांकि सटीक
विवरण पर इतिहासकारों के बीच कोई आम सहमति नहीं है। यीशु के सूली पर चढ़ने को नए नियम की किताबों में दर्ज किया गया
है, जिन्हें ईसा मसीह का सुसमाचार “gospel” (मैथ्यू, मार्क, ल्यूक और जॉन “Matthew, Mark, Luke and John”) के नाम से
जाना जाता है।
यीशु ने अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी, स्वयं की थी। "उस समय से यीशु अपने अनुयाइयों को कहा कि, उन्हें यरूशलेम
(Jerusalem) जाना पड़ेगा और पुरनियों, महायाजकों और व्यवस्था के शिक्षकों (teachers of the law) के हाथों बहुत दुख सहना
पड़ेगा। साथ ही उन्हें पहले से ही आभास था की उन्हें, निश्चित तौर पर मार डाला जायेगा और तीसरे दिन दफनाया जायेगा।" यीशु
जान गए थे कि, मनुष्य के पापों के लिए, बलिदान के रूप में उन्हें अपने जीवन का बलिदान देने की आवश्यकता होगी।
अपनी सेवकाई (ministry) और चमत्कारों के कारण कई यहूदी, यीशु को परमेश्वर के पुत्र, मसीहा के रूप में मानने लगे थे। लेकिन
यहूदी नेता यीशु के बढ़ते अनुयायियों के कारण उनसे डरने लगे थे। अतः उनके ही एक शिष्य, यहूदा इस्करियोती (Judas
Iscariot) की मदद से, रोमन सैनिकों ने यीशु को गिरफ्तार कर लिया और यहूदियों का राजा होने का दावा करने के जुर्म में, उन पर
मुकदमा चलाया गया। रोमन कानून के अनुसार, राजा के खिलाफ विद्रोह करने की सजा, सूली पर चढ़ाकर दी जाने वाली मौत थी।
रोमी गवर्नर पुन्तियुस पीलातुस (Pontius Pilate) को पता था की ,यीशु निर्दोष हैं। हालांकि पीलातुस को यीशु में कोई दोष नहीं
मिला, फिर भी वह यीशु को मृत्यु देना चाहता था। पीलातुस ने भीड़ के सामने अपने हाथ धोए, यह इस बात का प्रतीक था कि वह
यीशु के रक्तपात की जिम्मेदारी नहीं ले रहा था। सूली पर चढ़ाये जाने से पूर्व, यीशु के सिर पर कांटों का ताज था, और उनके द्वारा
ही अपने क्रॉस को पहाड़ी तक ले जाने के लिए रास्ते बनाया गया था, जहाँ उन्हें सूली पर चढ़ाया जाना था।
जिस स्थान पर यीशु को
सूली पर चढ़ाया गया, उसे कलवारी के नाम से जाना जाता है, जिसका अनुवाद "खोपड़ी की जगह" ("the place of the skull) से
किया जाता है।
कलवारी में विलाप करने और यीशु की मृत्यु को देखने के लिए भारी भीड़ इकट्ठी हुई थी। यीशु को अन्य दो अपराधियों के साथ
क्रूस पर कीलों से ठोंक दिया गया था, और उसकी भुजाओं को तलवार से छेद भी कर दिया गया था।
जब यीशु का अपमान किया जा रहा था तो, उनके साथ लटकाए गए अन्य दो अपराधियों में से एक ने यीशु से उसे याद करने के
लिए कहा और यीशु ने जवाब दिया: "मैं तुमसे सच कहता हूं, आज तुम मेरे साथ स्वर्ग में रहोगे।" फिर यीशु ने स्वर्ग (आसमान) की
ओर देखा और परमेश्वर से कहा, "उन्हें अर्थात अपराधियों को क्षमा कर, क्योंकि वे नहीं जानते कि क्या करते हैं।” अपनी अंतिम
सांस लेते हुए, यीशु ने कहा: "पिता, मैं अपनी आत्मा आपके हाथों में देता हूं।
यीशु की मृत्यु का प्रकरण बेहद दर्दनाक था, लेकिन यीशु ने इसे स्वेच्छा से स्वीकार किया। तीन घंटे तक सूली पर लटके रहने के
बाद आखिरकार यीशु ने अपने प्राण त्याग दिए।
यीशु को सूली पर चढ़ाए जाने का एक प्रारंभिक गैर-ईसाई संदर्भ, मारा बार-सेरापियन (Mara Bar-Serapion) का अपने बेटे को
लिखा गया पत्र हो सकता है, जो 73 ईस्वी के कुछ समय बाद लेकिन तीसरी शताब्दी ईस्वी से पहले लिखा गया था। हालांकि पत्र में
कोई ईसाई विषय शामिल नहीं है, और माना जाता है की लेखक न तो यहूदी और न ही ईसाई था। यह पत्र उन प्रतिशोधों को
संदर्भित करता है, जो तीन बुद्धिमान पुरुषों सुकरात, पाइथागोरस, और यहूदियों के "बुद्धिमान राजा" से लिए गए थे। कुछ
विद्वान मानते हैं कि "यहूदियों के राजा" की फांसी का अर्थ, यीशु के सूली पर चढ़ाए जाने के बारे में है।
लगभग 93 ईस्वी में यहूदी इतिहासकार जोसीफस (Jewish historian Josephus) ने लिखा है की, पीलातुस ने यीशु को सूली पर
चढ़ाया था। यीशु, एक बुद्धिमान व्यक्ति थे, उन्होंने बहुत से यहूदियों सहित अन्य जातियों को भी अपनी ओर आकर्षित किया!
दूसरी शताब्दी की शुरुआत में, टैसिटस (tacitus) द्वारा यीशु को सूली पर चढ़ाए जाने का, एक और संदर्भ दिया गया था, जिसे
आमतौर पर सबसे महान रोमन इतिहासकारों में से एक माना जाता है। 116 ईस्वी में द एनल्स (The Annals) में लिखते हुए,
टैसिटस ने नीरो द्वारा ईसाइयों के उत्पीड़न का वर्णन किया, और कहा कि पिलातुस ने यीशु को फांसी देने का आदेश दिया।
विद्वान आमतौर पर पीलातुस द्वारा यीशु के वध के लिए टैसिटस के संदर्भ को वास्तविक और एक स्वतंत्र रोमन स्रोत के रूप में
ऐतिहासिक मूल्य मानते हैं।
सूली पर चढ़ाए जाने का एक और संभावित संदर्भ, बेबीलोनियाई तल्मूड (Babylonian Talmud) में पाया जाता है: जिसमें लिखा
गया है की फसह की पूर्व संध्या पर येशु को फांसी दी गई थी।
मुसलमानों का कहना है कि यीशु को सूली पर नहीं चढ़ाया गया था, और जिन लोगों ने सोचा था कि उन्होंने उसे मार दिया, उन्होंने
गलती से यहूदा इस्करियोती, साइरेन के साइमन (Judas Iscariot, Simon of Cyrene) या उनके स्थान पर किसी और को मार
डाला था। वे कुरान 4:157-158 की विभिन्न व्याख्याओं के आधार पर इस विश्वास को धारण करते हैं, जिसमें कहा गया है: "उन्होंने
उसे नहीं मारा, न ही उसे सूली पर चढ़ाया। यीशु का सूली पर चढ़ना यीशु के जन्म से पूर्व ही परमेश्वर की योजना का एक हिस्सा
था। मानव जाति के पाप के लिए बलिदान की आवश्यकता थी। यीशु ने पापरहित जीवन जिया और इसका बलिदान कर दिया,
ताकि मनुष्य स्वर्ग में उद्धार और अनन्त जीवन प्राप्त कर सके।
संदर्भ
https://bit.ly/3KJmLnc
https://bit.ly/3O2VcHv
https://bit.ly/3xqpQVh
चित्र संदर्भ
1. अल्टारपीस से क्रूसीफिकेशन, 1490 के दशक से पैनल पेंटिंग को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. अपने अनुयाइयों के साथ आखिरी भोजन करते मसीह को दर्शाता एक अन्य चित्रण (wikimedia)
3. कलवारी के मार्ग को दर्शाता एक चित्रण (Look and Learn)
4. यीशु को सूली पर चढाने के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. यीशु को सूली से उतारने के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)
6. यीशु को दफनाने के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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